बीमा विनियामक इरडा ने अगस्त 2018 में एक सर्कुलर जारी कर सभी बीमा कंपनियों को निर्देश दिए हैं कि मानसिक रोगों को हेल्थ पॉलिसी में शामिल किया जाए। यह बीमारी देश में गंभीर अनुपात में बढ़ गई है। 29 मई, 2018 से क्रियान्वयन में आए मानसिक ‘स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017’ में बीमा कंपनियों के लिए अनिवार्य किया गया है कि मानसिक बीमारी को भी शारीरिक बीमारियों की भांति ही माना जाए। हालांकि, देश की 33 बीमा कंपनियों में से किसी ने भी अभी तक ऐसी कोई पॉलिसी पेश नहीं की है, जिसमें डिप्रेशन, बायपोलर डिसऑर्डर, स्किज़ोफ्रेनिया का इलाज शामिल हो। हालांकि, विश्व के कई देशों में स्वास्थ्य बीमा कंपनियां मानसिक बीमारियों को शामिल कर लेती हैं। इरडा ने सभी बीमा कंपनियों को आदेश दिया है कि वे मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 का तत्काल प्रभाव से पालन करें। इस अधिनियम की धारा 21(4) के अनुसार, प्रत्येक बीमा कंपनी को शारीरिक रोगों की तरह ही मानसिक रोगों के उपचार हेतु स्वास्थ्य बीमा के प्रावधान बनाने चाहिए।

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में एक व्यक्ति की मानसिक स्थिति का विश्लेषण और डायग्नोसिस शामिल होता है। साथ ही इसमें उनका इलाज और पुनर्वासन भी जुड़ा होता है। मानसिक रोग हमेशा से ही बीमा पॉलिसी की एक्सक्लूजन सूची में रही हैं और इन्हें कवर नहीं किया जाता। इसमें ऑटिज्म और डाउंस सिंड्रोम जैसे रोग अपवाद हैं जिन्हें नेशनल हेल्थ इश्योरेंस कंपनी और स्टार हेल्थ इंश्योरेंस जैसी कंपनियां कवर करती हैं।

मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करने वाली इच्छुक कंपनियों को इरडा के पास नए उत्पाद का पंजीकरण कराना होगा या फिर इन्हें मौजूदा पॉलिसी में शामिल करके इनकी फाइलिंग दोबारा करनी होगी।

निःसंदेह रूप से यह इरडा की ओर से मानसिक रोगों से जुड़े मिथकों और हीन भावनाओं को मिटाने की ओर बढ़ाया गया कदम है। इससे मानसिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों को सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिलेगा और जागरूकता फैलने के साथ-साथ मानसिक रोगियों को स्वीकृति भी मिलेगी।

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