रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने 9 अक्टूबर, 2023 को अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में 2023 का The Sveriges Riksbank Prize in Economic Sciences, जो अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार के नाम से प्रसिद्ध है, की घोषणा की। इस वर्ष, यह पुरस्कार हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर क्लाउडिया गोल्डिन (Claudia Goldin) को महिलाओं के श्रम बाजार के परिणामों के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने में उनके काम के लिए दिया जा रहा है।

क्लाउडिया गोल्डिन (जिनका जन्म यूएसए में 1946 में हुआ) ने यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो, इलिनोइस, यूएसए से अपनी पीएचडी (विद्यावाचस्पति) की डिग्री प्राप्त की। वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग में सेवा-अवधि (टेन्यर) अधिकार प्राप्त करने वाली महिला बनीं। वे कई पुस्तकों की लेखिका हैं, जिनमें अंडरस्टैंडिंग द जेंडर गैप: एन इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ अमेरिकन वुमेन (ऑक्सफोर्ड 1990), तथा करियर एंड फैमिली: वुमेन्स सेंचुरी-लॉन्ग जर्नी टुवर्ड इक्विटी (प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस, 2021) शामिल हैं।

गोल्डिन के अनुसंधान और निष्कर्ष

गोल्डिन ने पिछले 200 वर्षों में श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी का विश्लेषण किया है। इसके अलावा, उन्होंने यह विश्लेषण किया कि उच्च आय वाले देशों में पुरुषों की तुलना में कई महिलाओं के बेहतर शिक्षित होने की संभावना के बावजूद पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन में अंतर क्यों है जो कभी कम नहीं हुआ। भले ही उनका शोध अमेरिका के 200 वर्षों के आंकड़ों पर आधारित है, लेकिन उनके शोध के निष्कर्ष अन्य देशों पर भी लागू होते हैं। उन्होंने प्रदर्शित किया है कि समय के साथ रोजगार दरों में लिंग अंतर कैसे और क्यों बदल गया है।

गोल्डिन का शोध कोई समाधान प्रस्तुत नहीं करता है; तथापि, इसने नीति-निर्माताओं को गहरी जड़ें जमा चुकी समस्या से निपटने की सुविधा दी है। उन्होंने इस अंतर के स्रोत की व्याख्या की है, तथा बताया है कि समय के साथ कैसे इसमें बदलाव हुआ और विकास के चरण के साथ किस प्रकार यह बदलता रहा है। इसलिए, इस समस्या से निपटने के लिए कोई एक नीति नहीं बन सकी। यह एक जटिल नीतिगत प्रश्न है जिसके लिए एक निश्चित नीति को कार्यान्वित करने हेतु अंतर्निहित कारण का पता लगाना होगा।

लगभग 200 वर्षों के आंकड़ों के गहन अनुसंधान के माध्यम से, गोल्डिन ने यह निष्कर्ष निकाला कि इस पूरी अवधि के दौरान, श्रम बाजार में महिला भागीदारी ने यू-आकार का वक्र बनाया (अर्थात महिलाओं की श्रम भागीदारी में लगातार कमी और वृद्धि हुई लेकिन अवधि के आरंभ और अंत में भागीदारी दर समान रही) और इसमें ऊपर की ओर रुझान नहीं था। 19वीं सदी की शुरुआत में, जब दुनिया कृषि समाज से औद्योगिक समाज में बदल गई, तो श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी कम हो गई। तथापि, 20वीं सदी के आगमन और सेवा क्षेत्र के विकास के साथ महिलाओं की भागीदारी बढ़ने लगी। यह घर और परिवार के लिए महिलाओं की जिम्मेदारियों के संबंध में संरचनात्मक परिवर्तन और विकसित हो रहे सामाजिक मानदंडों के कारण हुआ। इसके अलावा, दो अन्य कारकों ने महिलाओं की उच्च शिक्षा और रोजगार तक पहुंच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई—विवाह की अवधारणा और गर्भनिरोधक गोलियों का उपयोग।

20वीं सदी की शुरुआत तक, लगभग 20 प्रतिशत महिलाएं लाभप्रद रूप से कार्यरत थीं। तथापि, ‘मैरिज बार’ नामक विधान के कारण रोजगार में विवाहित महिलाओं की हिस्सेदारी केवल पांच प्रतिशत थी। (मैरिज बार, विवाहित महिलाओं के रोजगार को प्रतिबंधित करने की प्रथा थी।) इस प्रकार का विधान 1930 के दशक की विश्वव्यापी मंदी (ग्रेट डिप्रेशन) के दौरान और उसके बाद अपने चरम पर था। महिलाओं की अपने भविष्य के करियर के लिए अपेक्षाएं, पुरुषों और महिलाओं के रोजगार की दरों के बीच अंतर में धीमी कमी का एक और कारण थी। मां बनने के बाद महिलाओं को लंबे और लाभदायक करियर की बहुत कम अपेक्षा होती थीं।

गोल्डिन के अनुसार, 1960 के दशक के अंत तक उपयोग में आसान गर्भनिरोधक गोलियों की शुरुआत के साथ, महिलाएं प्रसव पर अधिक नियंत्रण रख सकती थीं। इससे उन्हें अपने करियर और मातृत्व की योजना बनाने का अवसर मिला, तथा इस तरह विधि, चिकित्सा, अर्थशास्त्र आदि जैसे विषयों का अध्ययन करने और सेवा क्षेत्र के अलावा अन्य उद्यम करने का अवसर मिला। गर्भनिरोधक गोलियों ने नए अवसर प्रदान करके क्रांतिकारी परिवर्तन को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा वर्तमान में, महिलाएं शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में खुद कदम-से-कदम मिलाकर चलने में सक्षम हैं।

तथापि, एक और स्थायी अंतर है—‘लिंग-आधारित वेतन अंतर’। गोल्डिन के अनुसार, वर्तमान परिदृश्य में, एक ही व्यवसाय में पुरुषों और महिलाओं के बीच आय का बड़ा अंतर उनके पहले बच्चे के जन्म के साथ आरंभ होता है। पहले, पुरुष और महिलाएं कारखानों में काम करते थे, तथा उनकी मजदूरी उनके द्वारा किए गए काम की मात्रा और उत्पादन (आउटपुट) पर निर्भर करती थी। इसलिए, वेतन-अंतर बहुत अधिक नहीं था। जब मासिक वेतन अनुबंध की शुरुआत हुई तो यह अंतर बढ़ने लगा। जैसा कि बच्चे के जन्म के बाद अभिभावक के रूप में महिलाओं पर अधिक जिम्मेदारी होती है, इसलिए उन्हें काम के मोर्चे पर वेतनमान में धीमी वृद्धि के रूप में खामियाजा भुगतना पड़ता है।

नोबेल पुरस्कार की वेबसाइट के अनुसार: “समय के साथ पुरुषों और महिलाओं के बीच आय में अंतर में कैसे परिवर्तन हुआ, इसका अध्ययन करके, गोल्डिन और उनके सह-लेखक, मैरिएन बर्ट्रेंड और लॉरेंस काट्ज ने 2010 के एक लेख में प्रदर्शित किया कि शुरुआती आय में अंतर कम हैं। तथापि, जैसे ही पहला बच्चा जन्म लेता है, प्रवृत्ति बदल जाती है; जिन महिलाओं के बच्चे होते हैं उनकी आय तुरंत गिरती है और उसी दर से नहीं बढ़ती है जिस दर से पुरुषों की आय बढ़ती है, भले ही उनकी शिक्षा और पेशा समान हो।”

क्लाउडिया गोल्डिन का शोध उन अंतर्निहित कारकों और बाधाओं को सामने लाया, जिन्हें भविष्य में श्रम उद्योग में महिलाओं की भूमिका को समझने के लिए संबोधित करने की आवश्यकता है।

गोल्डिन के अध्ययन का महत्व

गोल्डिन के शोध ने कार्यबल में महिलाओं की स्थिति, भूमिका और भागीदारी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। इस अध्ययन को सरकारी नीतियों को अधिक लिंग-संवेदनशील बनाने के लिए लागू किया जा सकता है। यह महिलाओं को अपने करियर को आकार देने में सक्षम बनाने के लिए जन्म-नियंत्रण कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में प्रभावी साबित हो सकता है।

गोल्डिन आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और व्यक्तिगत उत्पादकता बढ़ाने में महिलाओं की शिक्षा की भूमिका पर जोर देती हैं। इसलिए, भारत जैसे विकासशील देशों को वर्तमान सदी को ‘इंडियाज सेंचुरी (India’s Century)’ बनाने के लिए महिलाओं की शिक्षा में आनुपातिक रूप से निवेश करने की आवश्यकता है।

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