24 नवंबर, 2021 को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) की अम्ब्रेला योजना ‘महासागर सेवाएं, मॉडलिंग, अनुप्रयोग, संसाधन और प्रौद्योगिकी (ओ-स्मार्ट)’ को वर्ष 2021-26 की अवधि के लिए जारी रखने की मंजूरी दी। इससे पहले, 29 अगस्त, 2018 को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा शुरू की गई इस योजना को वर्ष 2017-18 से 2019-20 की अवधि के लिए स्वीकृति दी गई थी।

ओ-स्मार्ट एक बहुविषयक तथा सतत योजना है, जिसके तहत व्यापक अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास गतिविधियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में देश के क्षमता निर्माण में वृद्धि होगी। इस योजना से संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य-14, जिसका लक्ष्य सतत विकास हेतु महासागरीय संसाधनों, तथा समुद्रों के उपयोग को संरक्षित करना है, से संबंधित मुद्दों का समाधान करने में मदद मिलेगी (जैसाकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्तमान दशक को सतत विकास के लिए समुद्री विज्ञान के दशक के रूप में घोषित किया गया है), और इस योजना को जारी रखने से वैश्विक समुद्र विज्ञान अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास में भारत का पक्ष सुदृढ़ होगा। इसके साथ ही यह विशाल महासागरीय संसाधनों के संवहनीय रूप से प्रभावी और कुशल उपयोग से राष्ट्रीय नीली अर्थव्यवस्था नीति को लागू करने हेतु आवश्यक वैज्ञानिक एवं तकनीकी पृष्ठभूमि भी प्रदान करेगी।

इसके अलावा, अगले पांच वर्षों (2021-26) में यह योजना समुद्री क्षेत्र के लिए लागू अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी, विभिन्न तटीय हितधारकों के लिए पूर्वानुमान और चेतावनी सेवाएं प्रदान करने, समुद्री जीवों के संरक्षण रणनीति की दिशा में जैव विविधता को समझने और तटीय प्रक्रियाओं को समझने के लिए वर्तमान में जारी गतिविधियों को मजबूत करने के माध्यम से अधिक व्यापक सुरक्षा प्रदान करेगी। इस योजना हेतु मंत्रालय से संबद्ध समुद्र विज्ञान और तटीय अनुसंधान पोतों का एक बेड़ा अभीष्ट अनुसंधान समर्थन प्रदान करता है।

ओ-स्मार्ट के उद्देश्य

भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में समुद्री जीवन संसाधनों और भौतिक पर्यावरण के साथ उनके संबंधों पर जानकारी देना और नियमित रूप से उन जानकारियों का अद्यतन करना; प्राकृतिक और मानवजनित गतिविधियों के कारण होने वाले तटीय कटाव के आकलन के उद्देश्य से तटरेखा परिवर्तन मानचित्र विकसित करने हेतु भारत के तटीय जल के स्वास्थ्य मूल्यांकन के लिए समय-समय पर समुद्री जल प्रदूषकों के स्तर की निगरानी करना; भारत के आसपास के समुद्रों से वास्तविक-समय डेटा के संकलन के लिए अत्याधुनिक महासागर अवलोकन प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला विकसित करना; और समाज के लाभ हेतु उपयोगकर्ता-उन्मुख महासागर सूचना, सलाह, और चेतावनियां, डेटा और डेटा उत्पादों के एक समूह का सृजन तथा प्रसारण करना।

महासागर पूर्वानुमान और पुनर्विश्लेषण प्रणाली हेतु उच्च विभेदन मॉडल विकसित करना, और तटीय अनुसंधान के लिए उपग्रह डेटा के प्रमाणन हेतु एल्गोरिदम का विकास तथा तटीय अनुसंधान में परिवर्तनों की निगरानी करना; तटीय प्रदूषण निगरानी, पानी के नीचे विभिन्न घटकों के परीक्षण और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के लिए दो पुराने तटीय अनुसंधान पोत (सीआरवी) के प्रतिस्थापन के लिए दो नए सीआरवी प्राप्त करना; समुद्री जैव संसाधनों का दोहन और महासागर से अलवण जल एवं ऊर्जा उत्पन्न करने वाली प्रौद्योगिकियों का विकास करना; और अंतर्जलीय वाहनों और प्रौद्योगिकियों को विकसित करने हेतु गिट्टी जल (ब्लास्ट वाटर) उपचार सुविधा की स्थापना करना।

समुद्री सर्वेक्षण/निगरानी/प्रौद्योगिकी प्रदर्शन कार्यक्रमों के लिए पांच अनुसंधान जहाजों के संचालन और रखरखाव का समर्थन करना और समुद्री प्रौद्योगिकी के परीक्षण और समुद्री परीक्षण गतिविधियों को पूरा करने के लिए अत्याधुनिक समुद्री तट (सी फ्रंट) सुविधा की स्थापना करना; गैस हाइड्रेट्स की जांच करने के लिए, मध्य हिंद महासागर बेसिन में संयुक्त राष्ट्र द्वारा भारत को आवंटित 75,000 वर्ग किमी. के क्षेत्र में पानी की 5,500 मी. की गहराई से पॉलीमेटालिक नोड्यूल्स (एमपीएन) का अन्वेषण करना; अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण/यूएन द्वारा भारत को आवंटित 10,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय समुद्र में रोड्रिग्स ट्रिपल जंक्शन के पास पॉलीमेटेलिक सल्फाइड का अन्वेषण करना और वैज्ञानिक डेटा तथा भारत के ईईजेड के स्थलाकृतिक सर्वेक्षण द्वारा समर्थित विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र से परे महाद्वीपीय शेल्फ पर भारत के दावे को प्रस्तुत करना।

इस योजना के अंतर्गत शामिल सात उप-योजनाएं हैं—समुद्री प्रौद्योगिकी; समुद्री मॉडलिंग एवं परामर्श सेवाएं (ओएमएएस); समुद्री अवलोकन नेटवर्क (ओओएन); समुद्री निर्जीव (नॉन-लिविंग) संसाधन; समुद्री सजीव संसाधन एवं पारिस्थितिकी (एमएलआरई); तटीय अनुसंधान; और अनुसंधान पोतों का संचालन एवं रखरखाव। महासागरीय विकास की गतिविधियों जैसे—सेवाएं, प्रौद्योगिकियों, संसाधनों, अवलोकन तथा विज्ञान को संबोधित करने के उद्देश्य से परिचालित इन उप-योजनाओं का क्रियान्वयन मंत्रालय के स्वायत्त/संबद्ध संस्थानों जैसे—राष्ट्रीय समुद्री प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी), चेन्नई; भारतीय राष्ट्रीय समुद्री सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस), हैदराबाद; राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), गोवा; समुद्री सजीव संसाधन एवं इकोलॉजी केंद्र (सीएमएलआरई), कोच्चि; और राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (एनसीसीआर), चेन्नई द्वारा किया जाता है।

ओ-स्मार्ट के प्रमुख घटक

समुद्री सजीव संसाधन और पारिस्थितिकी केंद्र—समुद्री सजीव संसाधन (एमएलआर) कार्यक्रम: इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय ईईजेड में सजीव संसाधनों के प्रबंधन हेतु एक पारिस्थितिकी तंत्र का मॉडल विकसित करना है। यह एमएलआर के सर्वेक्षण, मूल्यांकन और उपयोग की परिकल्पना करता है और भौतिक परिवेश में परिवर्तन के लिए एमएलआर की प्रतिक्रिया पर अध्ययन करता है।

राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र: चेन्नई में स्थित राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र  (एनसीसीआर), समुद्री जल की गुणवत्ता में आवधिक परिवर्तनों की पहचान करने के लिए ‘समुद्री जल गुणवत्ता निगरानी’ (पूर्व में ‘तटीय महासागर निगरानी और पूर्वानुमान प्रणाली’) पर राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित अनुसंधान कार्यक्रम लागू कर रहा है। लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह सहित भारतीय तट पर पानी और तलछट की भौतिक, रासायनिक, जैविक और सूक्ष्मजैविक विशेषताओं संबंधी मानदंड मौसमी रूप से एकत्र किए जाते हैं।

समुद्री-मॉडलिंग डेटा सम्मिलन और प्रक्रिया विशिष्ट अवलोकनः इस कार्यक्रम का उद्देश्य तटीय जल पर मानवजनित अव्यवस्थाओं को समझने और इसे परिमाणित करने के लिए भारत के आसपास के तटीय जल में जल की गुणवत्ता के मानदंडों का निरंतर मापन करना है। यह तटीय जल के वास्तविक समय के डेटा एकत्र करने और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए भारतीय तट के साथ एक उत्प्लव आधारित स्वचालित प्रणाली से लैस है।

समुद्री अवलोकन और नेटवर्क: इस घटक के तहत समुद्री अवलोकन प्रणाली, परिचालन पूर्वानुमान, वैज्ञानिक अनुसंधान और अनुप्रयोगों के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करती है।

महासागर परामर्श और सूचना सेवाएं, कंप्यूटेशनल अवसंरचना और संचार प्रणालीः भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस), हैदराबाद सात दिनों की समय-सीमा में हिंद महासागर की सतह एवं उपसतह के मापदंडों का पूर्वानुमान करने में सक्षम है। यह एकीकृत हिंद महासागर पूर्वानुमान प्रणाली (INDOFOS) की एक प्रशाखा है, जिसे मछुआरों से लेकर अपतटीय उद्योगों तक के उपयोगकर्ताओं को समय के अलग-अलग पैमाने पर समुद्र संबंधी मापदंडों (सतह और उपसतह दोनों) के विस्तृत श्रेणी के पूर्वानुमान प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है।

द्वीपों के लिए महासागर विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रमः इस कार्यक्रम का उद्देश्य द्वीपों के लिए स्थायी और पर्यावरण के अनुकूल समाधान प्रदान करना है। यह तटीय अवसंरचना जलवायु तथा प्राकृतिक आपदा के प्रति लचीली है। यह कार्यक्रम तटीय तथा अपतटीय जल को अद्भुत स्वांगीकारक क्षमता प्रदान करता है, जिससे किसी भी अन्य उत्पादन प्रणाली की तुलना में निम्न कार्बन फुटप्रिंट के साथ समुद्री मत्स्यन में स्वस्थ मत्स्य उत्पादन करने की सुविधा प्राप्त होती है।

अलवण जल के उत्पादन हेतु महासागरीय ऊर्जा का उपयोग: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने प्रयोगशाला स्तर से परे महासागर नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को विकसित किया है। इसके तहत समुद्री ऊर्जा और विलवणीकरण के दोहन के लिए टर्बाइनों और अन्य घटकों के जमीनी क्रियान्वयन पर केंद्रित गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है।

समुद्री सेंसर, महासागर इलेक्ट्रॉनिक्स और ध्वनिकी: इस घटक के तहत महासागरों का सर्वेक्षण एवं अन्वेषण करने के लिए ध्वनिकी (अकॉस्टिक) सबसे अच्छा साधन है, जो वास्तविक समय में किए जाने वाले अनुप्रयोगों के लिए इसे अत्यंत उपयोगी बनाता है। नागरिक और सामरिक जरूरतों को पूरा करने वाले समुद्री अनुप्रयोगों के लिए ध्वनिकी सेंसर, ध्वनिकी इमेजिंग प्रणाली और स्वतंत्र निष्क्रिय ध्वनिकी माप प्रणाली विकसित की जा रही है।

मानवयुक्त और मानव रहित अधोजल वाहन: एमओईएस ने 6 किमी. तक की गहराई के समुद्री संसाधनों का दोहन करने हेतु दूरस्थ रूप से संचालित कार्य श्रेणी आरओवी (आरओएसयूबी 6000) और पोलर रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल (पीआरओवीई) जैसी दूरस्थ रूप से संचालित मानव रहित प्रणालियों का विकास, प्रदर्शन और संचालन किया है।

अनुसंधान पोतों का संचालन और रखरखाव: अनुसंधान पोत बहुमुखी महासागर अवलोकन मंच हैं जो उन्नत वैज्ञानिक और यांत्रिक निगरानी उपकरणों से सुसज्जित हैं। इस प्रकार के उपकरण प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और समुद्री अवलोकन के लिए आधार की तरह हैं। अनुसंधान पोतों—सागर निधि, सागर संपदा, सागर कन्या और सागर मंजूषा का संचालन, प्रबंधन और रखरखाव प्रगति पर है और यह आगे भी जारी रहेगा। हाल ही में अधिग्रहित दो नए तटीय अनुसंधान पोत—सागर तारा और सागर अन्वेषिकारे का संचालन एवं रखरखाव किया जाना है।

सीफ्रंट रिसर्च फेसिलिटी: महासागर प्रौद्योगिकी क्षेत्र की चुनौतियों को संबोधित करने हेतु भारत में क्षमता निर्माण, सहयोग और अवसंरचना विकास के लिए काम किया जा रहा है। इसी उद्देश्य से आंध्र प्रदेश के पमनजी में सीफ्रंट रिसर्च फेसिलिटी (सीफ्रंट अनुसंधान सुविधा) तथा नेल्लौर के चित्तेदु में प्रशासनिक, कंप्यूटेशनल और प्रशिक्षण की सुविधा (एफएसीटी) की स्थापना की गई है।

गैस हाइड्रेट्स पर अध्ययन: इस घटक के तहत गैस हाइड्रेट प्राकृतिक रूप से प्राकृतिक गैस (मुख्य रूप से मीथेन) और जलयुक्त ठोस यौगिकों में पाए जाते हैं। अन्वेषण और निष्कर्षण व्यवहार्यता के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास के साथ-साथ एक व्यापक शोध-उन्मुख गैस हाइड्रेट कार्यक्रम प्रगति पर है।

पॉलीमेटालिक नोड्यूलः गहरे समुद्र तल पर पाए जाने वाले पॉलीमेटालिक नोड्यूल तांबे, कोबाल्ट, निकल और मैंगनीज जैसी सबसे आवश्यक धातुओं से भरपूर होते हैं। प्रतिकूल समुद्री परिस्थितियों और पर्यावरणीय चुनौतियों को देखते हुए समुद्र में 4 से 6 किमी. की गहराई पर पाए जाने वाले इन पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स का खनन एक प्रौद्योगिकीय चुनौती है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, अपने संबद्ध संस्थानों की मदद से इस प्रकार की चुनौतियों को संबोधित करने हेतु काम कर रहा है।

पॉलीमेटालिक सल्फाइड: पॉलीमेटालिक सल्फाइड (पीएमएस) एक समुद्री तल खनिज है। यह सोने और चांदी जैसी बहुमूल्य धातुओं और तांबा, जस्ता और सीसा जैसी मूल धातुओं का एक संभावित स्रोत है। 2016 में, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने हिंद महासागर में पीएमएस की खोज के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (आईएसए) के साथ 15 वर्ष के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।

विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र का भू-वैज्ञानिक अध्ययन: इस घटक के तहत विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) का विस्तृत और व्यापक बाथमीट्रिक (अनुगभीर) मानचित्रण किया जा रहा है, जो ईईजेड के विकास एवं प्रबंधन और इसके संसाधनों के सतत उपयोग के लिए व्यवहार्य योजना तैयार करने के लिए आवश्यक है। विभिन्न वैज्ञानिक विषयों को पूरा करने के लिए इसका उपयोग समुद्र विज्ञान अनुसंधान, भू-खतरे की क्षमता का आकलन करने जैसे क्षेत्रों में किया जाएगा।

महाद्वीपीय शेल्फ का विस्तार: संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के अनुसार, समुद्र के कानून पर तटीय राष्ट्रों के पास अपनी आधार रेखा से 200 नॉटिकल माइल (एम) तक महाद्वीपीय शेल्फ (जल सीमा) के संसाधनों पर संप्रभु अधिकार है, जिन्हें यदि यह प्रदर्शित किया जाता है कि जल सीमा 200 एम से आगे तक विस्तृत है, तो उसे 350 एम तक बढ़ाया जा सकता है। भारत ने मई 2009 में पूर्वी एवं पश्चिमी अपतटीय क्षेत्र के लिए कमिशन ऑन द लिमिट ऑफ द कॉन्टिनेन्टल शेल्फ (सीएलसीएस) को भू-भौतिकीय/भू-वैज्ञानिक डेटा के साथ अपना पहला आंशिक प्रस्ताव पेश किया। यह मामला अभी उप-आयोग की जांच के अधीन है।

डीप ओशन मिशन (डीओएम): 6000 मी. तक गहरे समुद्र में संसाधनों का पता लगाने और महासागरीय संसाधनों के सतत उपयोग के लिए जून 2021 को इस मिशन की शुरुआत की गई थी। इस घटक के तहत पॉलीमेटालिक नोड्यूल्स के खनन हेतु खनन प्रणाली का विकास किया जाएगा।

प्रमुख उपलब्धियां

मानव अस्तित्व के लगभग सभी पहलुओं में महासागर एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं। ये वैज्ञानिक एवं तकनीकी अन्वेषणों और महत्वपूर्ण खोजों में भी सहायता करते हैं। कई वर्षों से, जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण विश्व के विभिन्न हिस्सों में महासागर की जल सीमा में वृद्धि हो रही है। इस योजना की गतिविधियों के माध्यम से कई प्रमुख उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है, भारत को हिंद महासागर के आंवटित क्षेत्र में, पॉलीमेटालिक नोड्यूल्स (पीएमएन) और हाइड्रोथर्मल सल्फाइड के खनन हेतु गहरे समुद्र में व्यापक शोध करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीबेड अथॉरिटी (आईएसए) के साथ एक अग्रणी निवेशक के रूप में मान्यता मिलना। लक्षद्वीप के द्वीपों में निम्न तापमान के थर्मल विलवणीकरण संयंत्र की स्थापना जैसी सुविधाओं का उपयोग कर विलवणीकरण के लिए प्रौद्योगिकी विकास भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

इसके अलावा, भारत की महासागर संबंधी गतिविधियों को अब आर्कटिक से अंटार्कटिक क्षेत्र तक विस्तारित किया गया है, जिसमें बड़े समुद्री स्थल शामिल हैं, जिनकी निगरानी उनकी अवस्थिति और उपग्रह-आधारित अवलोकन के माध्यम से की जा रही है। भारत ने अंतर-सरकारी क्षेत्र में वैश्विक महासागर प्रेक्षण प्रणाली के हिंद महासागर घटक को लागू करने में मुख्य भूमिका निभाई है।

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