भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), जो भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग की एक शाखा है, के वैज्ञानिकों ने चंद्रमा की सतह और उपसतह के तापमान का अनुमान लगाने के लिए एक व्यापक त्रि-आयामी ताप-भौतिकी (थर्मोफिजिकल) मॉडल का निर्माण किया है। इससे संबंधित अध्ययन के निष्कर्ष अर्थ एंड स्पेस साइंस नामक जर्नल में 7 दिसंबर, 2022 को ए कॉम्प्रिहेंसिव 3डी थर्मोफिजिकल मॉडल ऑफ द लूनर सर्फेस शीर्षक से प्रकाशित किए गए थे। इस मॉडल की एक अनूठी विशेषता यह है कि इसमें चंद्रमा पर किसी भी स्थान की वास्तविक स्थलाकृति का उपयोग करके तीन आयामों में पार्श्विक ताप प्रसार के संबंध में गणना करने की क्षमता है, ताकि किसी भी पैमाने पर इसकी वास्तविक सतह और उपसतह तापमान (कुछ सेंटीमीटर से लेकर कई किलोमीटर तक) की गणना की जा सके।
यह मॉडल सबसे वास्तविक परिदृश्य का निरूपण करने के लिए चंद्रमा की सतह और उपसतह के तापमान और ताप-भौतिकी के मापदंडों के परिणाम प्राप्त करने के लिए सभी संभाव्य स्थितियों और मापदंडों पर विचार करता है। शोधकर्ताओं द्वारा इस मॉडल के परिणामों को प्रयोगशाला के प्रयोगों के साथ अच्छी तरह से तुलना, तथा अपोलो 15 और 17 नामक अंतरिक्ष अभियानों के उपलब्ध डेटा का उपयोग करके मान्य किया गया है।
मॉडल की क्षमता को क्षेत्रीय और स्थानीय दोनों स्तरों पर अपोलो 17 के अवतरण स्थल (लैंडिंग साइट) के एक छोटे से क्षेत्र की ताप-भौतिकी प्रणाली से विकसित करके प्रदर्शित किया गया है।
अध्ययन
इस मॉडल के तहत चंद्रमा की सतह पर दो या दो से अधिक परतें—बहुत कम तापीय चालकता की एक पतली ऊपरी परत (कुछ सेंटीमीटर) और इसके नीचे अपेक्षाकृत उच्च तापीय चालकता की एक सघन परत (लगभग 1 मीटर)—होने की परिकल्पना की गई है। सबसे वास्तविक परिदृश्य के अनुरूपण (सिमुलेशन) पर पहुंचने के लिए वैज्ञानिक इस मॉडल में चंद्रमा की इन परतों की सघनता और अन्य मापदंडों को बदल सकते हैं। अध्ययन के अंतर्गत इस मॉडल का उपयोग करके सतह और उपसतह के तापमान के दैनिक विकास की गणना की गई। इसके परिणामों से ज्ञात हुआ कि चंद्रमा की सतह की संरचना, जिसमें सबसे ऊपरी, सरंध्र परत की सघनता शामिल है, सतह और उपसतह के तापमान को नियंत्रित करने वाला एक महत्वपूर्ण प्राचल (पैरामीटर) है।
अध्ययन के अनुसार, यद्यपि प्रयोगात्मक परिणामों और मॉडल-व्युत्पन्न परिणामों की तुलना प्रयोगात्मक/मॉडल अनिश्चितताओं के भीतर एक अच्छी अनुरूपता दर्शाती है, जो ऐसे जटिल अनुरूपण को पूरा करने के लिए मॉडल की विश्वसनीयता को मान्यता प्रदान करती है, तथापि यह मॉडल स्पष्ट रूप से चंद्रमा की सतह और उपसतह के तापमान की भिन्नता का पूर्वानुमान लगा सकता है। ‘‘ग्राउंड ट्रुथ’’ (जमीनी वास्तविकता) के निमित्त जांच करने के लिए, मॉडल के परिणामों को अपोलो के अंतरिक्ष अभियान द्वारा यथास्थान (इनसीटू) माप से भी सत्यापित किया गया था। अपोलो 15 और 17 के ताप प्रवाह की जांच से प्राप्त एक चंद्र दिवस का उपयोग तापमान डेटा को मानक के रूप में किया गया था।
1960 के दशक से चंद्रमा के कई ताप-भौतिकी मॉडल विकसित किए गए हैं। हालांकि, इनमें से अधिकांश में पार्श्विक ताप प्रसार पर विचार नहीं किया गया है, विशेष रूप से त्रि-आयामों के संदर्भ में तो बिलकुल नहीं। हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अध्ययन चंद्रमा की सतह वाले एक व्यापक मानक ताप-भौतिकी मॉडल को विकसित करने की दिशा में पहला प्रयास है।
महत्व
चंद्र विज्ञान और अन्वेषण दोनों क्षेत्रों में इस मॉडल के कई अनुप्रयोग हो सकते हैं। कुछ को सूचीबद्ध करने के लिए, इसका उपयोग बाहरी सरंध्री परत के स्वरूप को बाधित करने के लिए किया जा सकता है। उपसतह ताप प्रसार की मॉडल गणनाओं के साथ संयुक्त रूप से वैश्विक स्तर पर इस सतही परत के स्वरूप का ज्ञान सौर आतपन के प्रभाव को दर्शाने वाली उपसतह सीमा का अनुमान लगाने में मदद कर सकता है। इस जानकारी का उपयोग दूरस्थ अवलोकनों और सैद्धांतिक मॉडलिंग पर आधारित चंद्र ताप प्रवाह मानों का निर्धारण करने में भी किया जा सकता है।
इसके अलावा, प्रयोगशाला मापों के संयोजन द्वारा मॉडल यथास्थान किए जाने वाले प्रयोगों से प्राप्त डेटा की व्याख्या करने में उपयोगी सिद्ध हो सकता है, जैसा कि चंद्रयान-3 के लैंडर पर चेस्ट (ChasTE) प्रयोग जैसे यथास्थान प्रयोगों से प्राप्त डेटा की व्याख्या करने में सहायता प्रदान करेगा। यह मॉडल चंद्रमा पर किसी भी स्थान के स्थानीय तापीय वातावरण को समझने में भी मदद करेगा जो भविष्य के मानव अन्वेषणों और चंद्रमा पर जीवन की खोज के लिए एक आवश्यक पहलू है।
इसरो के अनुसार, इस प्रकार का यह अब तक का पहला मॉडल है। इस मॉडल द्वारा प्राप्त सूचना—पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह को बेहतर ढंग से समझने में वैज्ञानिकों की सहायता कर सकती है, तथा साथ ही चंद्रमा पर भविष्य के मिशनों, रोबोटिक और चालक दल वाले दोनों, की योजना बनाने में भी सहायक हो सकती है।
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