दोहरा कराधान परिहार समझौता अर्थात डीटीएए (डबल टैक्सेशन एवॉइडेंस एग्रीमेंट) दो या उससे अधिक देशों के बीच की जाने वाली एक संधि है। इसका प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों द्वारा अपने-अपने करदाताओं को एक ही आय पर दो देशों (अपने मूल देश तथा जिस देश में वे आय अर्जित करते हों) में दोहरे कर का भुगतान करने से संरक्षण प्रदान करना है। इसके द्वारा दोनों देशों के करदाताओं के आय के अधिकारों को तर्कसंगत, समान और निष्पक्ष बनाया जाता है।

दोहरा कराधान/या करारोपण एक ऐसी स्थिति को कहते हैं जिसमें किसी व्यक्ति या कॉर्पोरेट पर एक ही आधार (जैसे आय) पर दो बार कर लगाया जाता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति ने विदेश से आय प्राप्त की तो सर्वप्रथम उसे विदेश में आयकर का भुगतान करना पड़ता है और फिर अपने देश में लौटने पर उसे फिर से आयकर चुकाना पड़ता है। इसी प्रकार, कंपनियों की आय पर भी दोहरा करारोपण किया जाता है। प्रथमतः कंपनी अपनी आय पर निगम कर देती है और तत्पश्चात लाभांश प्राप्ति के बाद व्यक्तियों को निजी आयकर देना पड़ता है।

‘वियना कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ टैक्ट ट्रीटीज 1969’ के तहत डीटीएए को ‘‘लिखित रूप में राज्यों के बीच एक अंतरर्राष्ट्रीय कराधान समझौता है और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत आता है, भले ही इसमें कोई एकल साधक सन्नितहित हो और उसका कोई विशिष्ट पदनाम हो’’ के रूप में वर्णित किया गया है।

महत्व

डीटीएए का उद्देश्य दोहरे कराधान पर राहत प्रदान करके किसी देश को निवेश करने हेतु प्रोत्साहित करना है। इस प्रकार की राहत निवासी के देश में, विदेशों में अर्जित आय पर, आयकर की छूट देकर या पहले से ही विदेश में भुगतान किए जा चुके अतिरिक्त करों पर प्रत्यय प्रदान कर दी जाती है। डीटीएए के अंतर्गत कुछ मामलों में कर की रियायती दरों का भी प्रावधान है। इसके अलावा, इस समझौते से दोनों देशों में आयकर की प्रतिप्राप्ति और अंतरराष्ट्रीय व्यापार और प्रौद्योगिकी के निर्बाध प्रवाह और पारदर्शिता में वृद्धि होती है।

सन 1920 में राष्ट्र संघ अर्थात लीग ऑफ नेशन्स (पेरिस शांति सम्मेलन, 1919 के बाद स्थापित एक अंतरराष्ट्रीय संगठन) ने समान आय पर कई करों से बचने या दोहरे कराधान से बचाव के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय कराधान नियमों का निर्धारण करने के लिए चार विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्रिायों, प्रो. गिजबर्ट, प्रो. लुइगी ईनाउदी, प्रो. एडविन सेलिगमैन और प्रो. जोशिया स्टैम्प के साथ एक समूह का गठन किया। इस समूह ने सिफारिश की थी कि व्यापार या सेवा से प्राप्त आय पर कर लगाने अर्थात कराधान का अधिकार संबंद्ध व्यक्ति या फर्म के मूल देश तथा आय के स्रोत वाले देश के बीच विभाजित किया जाना चाहिए। वर्तमान कराधान नियम उन सिफारिशों के आधार पर निर्मित हैं।

इस समझौते को मानक के रूप में पहली बार राष्ट्र संघ की राजकोषीय समिति द्वारा वर्ष 1927 में तैयार किया गया था। इस संबंध में जुलाई, 1963 के दौरान यूरोपीय इकोनॉमी को-ऑपरेशन की राजकोषीय समिति ने अपना ड्राफ्ट संस्करण प्रकाशित किया था। इसके बाद, संयुक्त राष्ट्र की सामाजिक एवं आर्थिक परिषद ने अप्रैल 1976 में जिनेवा में दोहरे कराधान से बचाव के समझौते के संदर्भ में अपना मॉडल संविदा प्रकाशित किया।

भारत में, करदाताओं को डिविडेंड इनकम (संचालकों द्वारा घोषित एवं भुगतान किया जाने वाला लाभांश) पर आयकर देना पड़ता है। इसे निवेशकों की आय में जोड़ा जाता है और स्लैब दरों के अनुसार इस लाभांश को लगाया जाता है। भारत के निवासी के लिए विश्व में कहीं भी अर्जित की गई आय पर कर लगेगा। दोगुनी आय और दोहरा कराधान संभव है; लेकिन दोहरा परिहार संभव नही।

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