19 मार्च, 2018 को भारत यूरोप के कॉपरनिकस (यूरोप का पृथ्वी का अवलोकन करने वाला कार्यक्रम) में शामिल हो गया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत पृथ्वी का अवलोकन करने वाले उपग्रह जिन्हें कॉपरनिकस कहा जाता है, के द्वारा जुटाए गए आंकड़ों को साझा करने की यूरोप की विशाल वैश्विक व्यवस्था है। इस कार्यक्रम में शामिल होने से भारतीय दूरसंचार संवेदन उपग्रहों के एक बैंड से प्राप्त डेटा यूरोपीय कॉपरनिकस कार्यक्रम के लिए होगा, वहीं निर्दिष्ट भारतीय संस्थान के उपयोगकर्ता भी यूरोप के छह सेंटिनल उपग्रहों से आंकड़े प्राप्त कर सकेंगे और इस कार्यक्रम की सहभागी अंतरिक्ष एजेंसियों से भी यह आंकड़े प्राप्त किए जा सकेंगे। इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्राप्त होने वाले आंकड़ों का प्रयोग किसी प्राकृतिक आपदा के पूर्वानुमान, आपदा से प्रभावित लोगों को बचाना तथा उन तक राहत पहुंचाना, जमीनी तथा समुद्री आंकड़े इकट्ठा करना; सुरक्षा, कृषि, जलवायु परिवर्तन तथा वायुमंडलीय मुद्दों के संदर्भ में। भारत ने वर्ष 2013 में ओडिशा के तूफान में तथा वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश में आयी बाढ़ के समय इसकी सेवाएं प्राप्त की थीं। इस कार्यक्रम के तहत् यूरोपीय आयोग भारत को मुफ्त तथा पूर्ण आंकड़े प्रदान करेगा जोकि कॉपरनिक्स सेंटीनल परिवार के छह उपग्रहों द्वारा जुटाए जाएंगे। इसके बदले भारत यूरोप के कॉपरनिकस कार्यक्रम के अन्य सहभागियों के साथ भारत के पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों (ओशनसैट-2, मेधा-ट्रोपिक्स, स्कैटसैट-1, सरल, इन्सैट-3D, इन्सैट 3DR) द्वारा जुटाए गए आंकड़ों को साझा करेगा।
पिछले कुछ समय से लैंडसैट डाटा तथा सेंटीनल डाटा पूरे विश्व में मुफ्त तथा बड़ी सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए आंकड़ों के लिए लाइसेंस या बिक्री के व्यापारिक लाभ समाप्त हो चुके हैं। यद्यपि वीएचआर (वेरी हाय रिज्योल्यूशन) आंकड़े प्राप्त करने के लिए कुछ खर्च करना पड़ता है। कॉपरनिक्स प्रोग्राम के अंतर्गत सेंटीनल माइक्रोवेव आंकड़े मुफ्त में उपलब्ध कराता है। सितम्बर 2011 से इसरो रिसोर्ससैट-2/2। एलआईएसएस प्प्प् तथा एडवान्सड वाइड फील्ड सेन्सर डाटा तथा अन्य कुछ आंकड़े मुफ्त में उपलब्ध कराता है।
ब्राजील ने भी यूरोपीय आयोग के साथ समझौता किया है और साथ ही चिली तथा कोलम्बिया ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया है। कॉपरनिकस कार्यक्रम पृथ्वी के अवलोकन हेतु तैयार किया गया सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है।