केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय द्वारा 13 जनवरी, 2022 को इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) 2021 जारी की गई। यह भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा 1987 से जारी की जा रही भारत वन स्थिति रिपोर्ट का 17वां संस्करण है। इसे प्रत्येक दो वर्ष के अंतराल पर प्रकाशित किया जाता है, जिसके तहत भारत के वन्य एवं वृक्ष संसाधनों का आवधिक आकलन किया जाता है।
इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के आंकड़ों का प्रयोग व्यापक रूप से वनों के साथ-साथ देश के वानिकी क्षेत्र को प्रभावित करने वाले हितधारकों—केंद्र तथा राज्य सरकारों, राज्यों के वन विभागों, शैक्षणिक समुदायों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों [खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) तथा जैव विविधता पर अभिसमय (सीबीडी)] द्वारा नीति-निर्माण करने, योजनाएं बनाने तथा उनका प्रबंधन करने के लिए किया जाता है।
रिपोर्ट में भारतीय वनों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है—(i) अति सघन वन (वृक्ष वितान की सघनता 70 प्रतिशत से अधिक); (ii) सामान्य सघन वन (वृक्ष वितान की सघनता 40-70 प्रतिशत); और (iii) खुले वन (वृक्ष वितान की सघनता 10-40 प्रतिशत)। इन श्रेणियों के अलावा, रिपोर्ट में गुल्मवनों (झाड़ीदार वन), जो वनावरण का भाग नहीं हैं, को भी वर्गीकृत कर मानचित्रित किया गया है।
वनावरण से तात्पर्य ऐसे सभी भू-क्षेत्रों से है, जो देश में एक हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैले हों और वन संसाधनों से आच्छादित हों। आईएसएफआर में भूमि के उपयोग, स्वामित्व और वृक्षों की प्रजातियों पर विचार किए बिना एक हेक्टेयर से अधिक में फैले ऐसे प्रत्येक भू-क्षेत्र को वनावरण के रूप में सूचित किया गया है, जहां सभी वृक्षों की वितान (वृक्षों की शाखाओं तथा पत्तियों से बना छत्र) सघनता 10 प्रतिशत से अधिक हो।
वृक्षावरण के अंतर्गत अभिलिखित वन क्षेत्र (आरएफए) के बाहर के वे सभी
भू-भाग शामिल होते हैं, जिनका क्षेत्रफल एक हेक्टेयर से कम होता है। आरएफए में ऐसे सभी क्षेत्र शामिल होते हैं, जिन्हें सरकारी अभिलेखों में वन के रूप में अभिलिखित किया गया हो। वे क्षेत्र जिन्हें राजस्व रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज किया गया हो या किसी अन्य राज्य विधान अथवा स्थानीय कानून के तहत निर्मित किया गया हो, भी आरएफए के अंतर्गत शामिल हैं।
रिपोर्ट के मुख्य परिणाम
- भारत का कुल 7,13,789 वर्ग किमी. क्षेत्र वनाच्छादित है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.71 प्रतिशत है, जबकि देश में कुल 95,748 वर्ग किमी. क्षेत्र वृक्षावरण से आच्छादित है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.91 प्रतिशत है। इस प्रकार, देश के कुल 8,09,537 वर्ग किमी. क्षेत्र में वन और वृक्षावरण है, और यह भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.62 प्रतिशत है।
- वृक्ष वितान की सघनता की दृष्टि से भारत के 99,779 वर्ग किमी. (3.04 प्रतिशत) क्षेत्र अति सघन वनों, 3,06,890 वर्ग किमी. (9.33 प्रतिशत) क्षेत्र सामान्य सघन वनों और 3,07,120 वर्ग किमी. (9.34 प्रतिशत) क्षेत्र खुले वनों से आच्छादित है। अति सघन और सामान्य सघन वन संयुक्त रूप से देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का 57 प्रतिशत हैं।
वर्ष 2019 की आईएसएफआर रिपोर्ट की तुलना में वर्तमान आकलन देश के 1,540 वर्ग किमी. (0.22 प्रतिशत) क्षेत्र में वनावरण तथा 721 वर्ग किमी. (0.76 प्रतिशत) क्षेत्र में वृक्षावरण में वृद्धि दर्शाता है। इस प्रकार, देश के कुल वनावरण और वृक्षावरण में 2,261 वर्ग किमी. क्षेत्र की वृद्धि हुई है।
- क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र मध्य प्रदेश (77,482 वर्ग किमी.) में है, जिसके पश्चात क्रमशः अरुणाचल प्रदेश (66,688 वर्ग किमी.), छत्तीसगढ़ (55,611 वर्ग किमी.), ओडिशा (51,619 वर्ग किमी.), और महाराष्ट्र (50,778 वर्ग किमी.) का स्थान आता है।
- प्रतिशत की दृष्टि से, वनावरण के मामले में मिजोरम सबसे अग्रणी है, जहां कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 84.53 प्रतिशत भाग में वनाच्छादन है। इसके पश्चात अरुणाचल प्रदेश (79.33 प्रतिशत), मेघालय (76.0 प्रतिशत), मणिपुर (74.34 प्रतिशत) और नागालैंड (73.90 प्रतिशत) आते हैं। इस प्रकार, पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुल 1,69,521 वर्ग किमी. क्षेत्र वनाच्छादित है, जो इस क्षेत्र के भौगोलिक क्षेत्रफल का 64.66 प्रतिशत है।
- वन क्षेत्र में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज करने वाले शीर्ष पांच राज्य क्रमशः आंध्र प्रदेश (647 वर्ग किमी.), तेलंगाना (632 वर्ग किमी.), ओडिशा (537 वर्ग किमी.), कर्नाटक (155 वर्ग किमी.) और झारखंड (110 वर्ग किमी.) हैं।
- वृक्षावरण के संदर्भ में प्रथम पांच राज्य—महाराष्ट्र (12,108 वर्ग किमी.), राजस्थान (8,733 वर्ग किमी.), मध्य प्रदेश (8,054 वर्ग किमी.), कर्नाटक (7,497 वर्ग किमी.) और उत्तर प्रदेश (7,421 वर्ग किमी.) हैं; जबकि प्रतिशत के संदर्भ में क्रमशः चंडीगढ़ (13.16 प्रतिशत), दिल्ली (9.91 प्रतिशत), केरल (7.26 प्रतिशत) तथा गोवा (6.59 प्रतिशत) का स्थान आता है।
- आरएफए से बाहर के वृक्षावरण के मामले में महाराष्ट्र (26,866 वर्ग किमी.) सबसे आगे है, जिसके बाद ओडिशा (24,474 वर्ग किमी.) और कर्नाटक (23,676 वर्ग किमी.) का स्थान है; जबकि प्रतिशत के संदर्भ में क्रमशः लक्षद्वीप (90.50 प्रतिशत), केरल (37.05 प्रतिशत) तथा गोवा (34.25 प्रतिशत) का स्थान आता है।
विगत पांच द्विवार्षिकी आकलनों (2011-21) में देश के वृक्षाच्छादन में वृद्धि की एक प्रवृत्ति देखी गई है, और 2011 (90,844 वर्ग किमी.) की तुलना में वर्तमान में वृक्षावरण 95,748 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है, जो एक दशक में 4,904 वर्ग किमी. की वृद्धि दर्शाता है।
- वर्तमान में, देश के 140 पर्वतीय जिलों का 2,83,104 वर्ग किमी. क्षेत्र वनाच्छादित है, जो इन जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 40.17 प्रतिशत है। हालांकि, वर्तमान आकलन 2019 की तुलना में इनके वनावरण में 902 वर्ग किमी. (0.32 प्रतिशत) की कमी दर्शाता है। राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अंतर्गत देश के दो-तिहाई क्षेत्र को वनाच्छादित रखने के परिकल्पित लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में देश द्वारा की गई प्रगति के मूल्यांकन हेतु राष्ट्रीय वन सर्वेक्षण के तहत पर्वतीय जिलों का पृथक आकलन किया जाता है। हालांकि, इस सर्वेक्षण में आकलन के लिए केवल उन जिलों को शामिल किया जाता है जहां पहाड़ी तालुका, जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 50 प्रतिशत से अधिक हो।
- जनजातीय जिलों (भारत सरकार की जनजातीय योजना के अंतर्गत जनजातीय जिलों के रूप में चिह्नित किए गए जिले) में कुल 4,22,296 वर्ग किमी. क्षेत्र में वन क्षेत्र फैला हुआ है, जो इन जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 37.53 प्रतिशत है। वर्तमान आकलन में इन जिलों में अभिलिखित वन क्षेत्रों के भीतर वनावरण में 655 वर्ग किमी. की कमी और बाह्य वन क्षेत्र में 600 वर्ग किमी. की वृद्धि दर्शाई गई है। भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा भारत सरकार के एकीकृत जनजातीय विकास कार्यक्रम (आईटीडीपी) के तहत नियमित रूप से जनजातीय जिलों में वनावरण का आकलन किया जाता है। वर्तमान में, देश में 218 जिलों को जनजातीय जिलों के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- वनाच्छादित क्षेत्र के संदर्भ में, सात प्रमुख शहरों—दिल्ली (194.24वर्ग किमी.), ग्रेटर मुंबई (110.77 वर्ग किमी.), बेंगलुरु (89.02 वर्ग किमी.), हैदराबाद (81.81 वर्ग किमी.), चेन्नई (22.70 वर्ग किमी.), अहमदाबाद (9.41 वर्ग किमी.), और कोलकाता (1.77 वर्ग किमी.) का कुल 509.72 वर्ग किमी. क्षेत्र है, जो इनके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 10.12 प्रतिशत है। हालांकि, एक दशक (2011-21) में इन महानगरों के वन क्षेत्र में 68 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है, जिसमें सर्वाधिक वृद्धि क्रमशः हैदराबाद (48.66 वर्ग किमी.), दिल्ली (19.91 वर्ग किमी.), चेन्नई (4.68 वर्ग किमी.) और ग्रेटर मुंबई (9.03 वर्ग किमी.) में दर्ज की गई; जबकि अहमदाबाद, बेंगलुरु और कोलकाता के वनावरण में गिरावट दर्ज की गई।
- रिपोर्ट के अनुसार, देश का 4,992 वर्ग किमी. भू-क्षेत्र मैंग्रोव (दलदल में या नदियों के छोर पर उगने वाला एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष, जिसकी कुछ जड़ें जमीन पर होती है; वनस्पति गरान) से आच्छादित है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 0.15 प्रतिशत है। मैंग्रोव से आच्छादित कुल क्षेत्र में से 1,475 वर्ग किमी. (29.55 प्रतिशत) क्षेत्र अति सघन मैंग्रोव, 1,481 वर्ग किमी. (29.67 प्रतिशत) क्षेत्र सामान्य सघन मैंग्रोव और 2,036 वर्ग किमी. (40.78 प्रतिशत) क्षेत्र खुले मैंग्रोव वन से आच्छादित है। यह 2019 की तुलना में 17 वर्ग किमी. (0.34 प्रतिशत) अधिक है। मैंग्रोव के आवरण में सबसे अधिक वृद्धि ओडिशा (8 वर्ग किमी.) और महाराष्ट्र
(4 वर्ग किमी.) में हुई है। - मध्य प्रदेश के सर्वाधिक भू-क्षेत्र (1.84 मिलियन हेक्टेयर) में बांस वन पाए गए हैं, जिसके पश्चात अरुणाचल प्रदेश (1.57 मिलियन हेक्टेयर), महाराष्ट्र (1.35 मिलियन हेक्टेयर) और ओडिशा (1.12 मिलियन हेक्टेयर) का भू-क्षेत्र बांस वन से संपन्न है। हालांकि, 2019 की तुलना में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बांस वन से आच्छादित क्षेत्रों में क्रमशः 2,473 वर्ग किमी. और 1,882 वर्ग किमी. की कमी दर्ज की गई, जबकि मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश के क्रमशः 1,085 वर्ग किमी. एवं 758 वर्ग किमी. क्षेत्र में बांस वन की वृद्धि दर्ज की गई।
- केरल में काष्ठ भंडार में सर्वाधिक संचयी वृद्धि (139.32 प्रति हेक्टेयर) हुई है, जिसके पश्चात उत्तराखंड (105.53 प्रति हेक्टेयर) और गोवा (101.26 प्रति हेक्टेयर) में वृद्धि दर्ज की गई है; जबकि भंडार वृद्धि के कुल परिमाण की दृष्टि से, वन क्षेत्र के भीतर काष्ठ भंडार में सर्वाधिक वृद्धि अरुणाचल प्रदेश (418.99 मिलियन) में और वन क्षेत्र से बाहर सर्वाधिक वृद्धि महाराष्ट्र (187.69 मिलियन) में हुई है।
- रिपोर्ट के अनुसार, देश के वनावरण का 20,074.47 वर्ग किमी.
(2.81 प्रतिशत) क्षेत्र अत्यधिक अग्नि प्रवण क्षेत्र, 56,049.35 वर्ग किमी. (7.83 प्रतिशत) क्षेत्र अति उच्च अग्नि प्रवण क्षेत्र, 82,900.17 वर्ग किमी. (11.61 प्रतिशत) क्षेत्र उच्च अग्नि प्रवण क्षेत्र, 94,126.68 वर्ग किमी. (13.19 प्रतिशत) क्षेत्र औसत अग्नि प्रवण क्षेत्र और 4,60,638.36 वर्ग किमी. (64.54 प्रतिशत) क्षेत्र न्यूनतम अग्नि प्रवण क्षेत्र के अंतर्गत आता है। - अनुमानित रूप से 2021 में राष्ट्रीय स्तर पर वनों में 7,204 मिलियन टन कार्बन संचित है, जो 2019 की तुलना में 79.4 मिलियन टन अधिक है। वार्षिक रूप से प्राक्कलित कार्बन भंडार में 39.7 मिलियन टन की वृद्धि हुई है, जो 145.6 मिलियन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य है।
- सर्वाधिक कार्बन भंडार क्रमशः अरुणाचल प्रदेश (1,023.84 मिलियन टन), मध्य प्रदेश (609.25 मिलियन टन), छत्तीसगढ़ (496.44 मिलियन टन) और महाराष्ट्र (451.61 मिलियन टन) के वनों में पाया जाता है।
- भारत में पाए जाने वाले वन प्रकारों में से सर्वाधिक कार्बन भंडार क्रमशः उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनों (2,177 मिलियन टन), उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वनों (1,303 मिलियन टन) और उष्णकटिबंधीय अर्ध सदाबहार वनों (686 मिलियन टन) में संचित है।
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2021 में पहली बार बाघ और एशियाई शेर आरक्षित क्षेत्रों में वनावरण का आकलन किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के बाघ आरक्षित क्षेत्र (लगभग 74,710.53 वर्ग किमी.) में से 55,666.27 वर्ग किमी. क्षेत्र वनाच्छादित है, जो कि देश के कुल वनावरण का 7.80 प्रतिशत और समग्र बाघ आरक्षित क्षेत्र का 74.51 प्रतिशत है।
- देश में स्थित कुल 52 बाघ आरक्षित क्षेत्रों में से आंध्र प्रदेश के टाइगर रिजर्व नागार्जुन सागर श्रीसैलम टाइगर रिजर्व में सबसे अधिक वनावरण (2,932.98 वर्ग किमी.) है, जबकि बाघ अभयारण्यों के क्षेत्रफल के प्रतिशत के अनुरूप वनावरण पर दृष्टिपात करें, तो अरुणाचल प्रदेश के पक्के टाइगर रिजर्व (या पाखुई टाइगर रिजर्व) का 96.83 प्रतिशत भू-क्षेत्र वनावृत्त है।
- रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दशक में बाघ अभयारण्यों में वनावरण 22.62 वर्ग किमी. (0.04 प्रतिशत) कम हुआ है। जैसाकि इस अवधि के बीच कुल 52 अभयारण्यों में से केवल 20 अभयारण्यों के वनावरण में समग्र रूप से वृद्धि हुई है, जिसमें से बक्सा (230.80 वर्ग किमी.), अन्नामलाई (120.78 वर्ग किमी.) और इंद्रावती (64.48 वर्ग किमी.) में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। इसके विपरीत, 32 अभयारण्यों में वनावरण की क्षति हुई है, जिनमें से अधिकतम क्षति कवल (11.879 वर्ग किमी.), भद्रा (53.09 वर्ग किमी.) और सुंदरबन (49.95 वर्ग किमी.) अभयारण्यों में दर्ज की गई।
- बाघ अभयारण्यों के कुल भू-क्षेत्र में से 5,382.89 वर्ग किमी. क्षेत्र, जो अभयारण्यों के कुल क्षेत्रफल का 7.20 प्रतिशत है, में आर्द्रभूमियां हैं। सुंदरबन बाघ अभयारण्य में देश की सबसे बड़ी आर्द्रभूमि है, जो 2,549.44 वर्ग किमी. (कुल क्षेत्र का 96.76 प्रतिशत) क्षेत्र में फैली हुई है, जबकि कान्हा बाघ अभयारण्य में सर्वाधिक आर्द्रभूमियां (461) हैं, जिनमें से अधिकतर का आकार 2.25 हेक्टेयर से भी कम है।
- बाघ अभयारण्यों की अपेक्षा भारत में गिर का वन, एशियाई शेर का एकमात्र प्राकृतिक आवास है। गिर राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव अभयारण्य गुजरात के जूनागढ़ जिले में कुल 1,412.13 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। सर्वेक्षण में किए गए आकलन के अनुसार, इस क्षेत्र का 1,295.34 वर्ग किमी. क्षेत्र वनाच्छादित है, जो गिर राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्यजीव अभयारण्य के कुल क्षेत्रफल का 85.20 प्रतिशत है।
राष्ट्रीय आर्द्रभूमि एटलस [इसरो के अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (एसएसी), अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित] के विश्लेषण के अनुसार, गिर राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव अभयारण्य में 31 आर्द्रभूमियां हैं, जो 25.81 वर्ग किमी. (कुल क्षेत्रफल के 1.66 प्रतिशत) में फैली हुई हैं।
- भूमि के ऊपर बायोमास (एजीबी): वैश्विक रूप से वनों, पर्यावरणिक कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के आकलन में इसकी उपयोगिता के कारण यह एक प्राक्कलित मापदंड है। एजीबी सभी कार्बन पूलों में सर्वाधिक दिखाई देता है, और इसमें होने वाला परिवर्तन कार्बन पूल में किसी व्यवधान का संकेत देता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के वनों में वन सघनता की श्रेणियों और एजीबी के अनुमानित वर्गों में एक सहसंबंध है, जैसाकि वन की सघनता में वृद्धि होने के साथ-साथ औसत बायोमास के परिमाण में वृद्धि होती है, और वन प्रकारों में विविधता होने के कारण एजीबी के वर्गों में भिन्नता पाई जाती है। सर्वोच्च श्रेणी का एबीजी अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश जैसे प्रदेशों/केंद्र-शासित प्रदेशों में पाया गया, जहां न्यूनतम मानवजनित गतिविधियां हुई थीं; जबकि पश्चिमी भारत के राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में वनाच्छादित क्षेत्र में निम्न परिमाण पाया गया।
- रिपोर्ट में भारत के वनावरण पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और उसके हॉटस्पॉट्स का मानचित्रण करने के लिए तापमान और वर्षा के डेटा पर किए गए अध्ययन का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जिसके अनुसार, वर्ष 2030, 2050, और 2085 में लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के तापमान में सर्वाधिक वृद्धि होने की संभावना है, जबकि इसी समयावधि में अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, पश्चिम बंगाल, गोवा, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के तापमान में कम वृद्धि होने का अनुमान है। वर्षा के मामले में, उक्त अवधियों में पूर्वोत्तर राज्यों और भारत के उत्तरी मालाबार तट में अनुमानतः सबसे अधिक वृद्धि होगी; जबकि पूर्वोत्तर राज्यों के अरुणाचल प्रदेश तथा सिक्किम जैसे राज्यों में, तथा लद्दाख, जम्मू-कश्मीर (केंद्र-शासित प्रदेशों) और हिमाचल प्रदेश जैसे देश के उत्तर-पश्चिमी राज्यों में वर्षा में सबसे कम वृद्धि होगी या कभी-कभी इन राज्यों को वर्षा की कमी का सामना भी करना पड़ सकता है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण वन प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में प्रभावित होंगे, विशेष रूप से हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र, और वन प्रकारों के अंतर्गत हिमालयी शीतोष्ण कटिबंधीय वन तथा अल्पाइन वन। 2030 और उससे आगे उपोष्णकटिबंधीय पाइन वनों और उपोष्णकटिबंधीय शुष्क सदाबहार वनों के लिए एक बड़े जोखिम की पहचान की गई है। इसके विपरीत, कांटेदार, उष्णकटिबंधीय शुष्क सदाबहार, पर्वतीय, तटीय और दलदली वनों को तापमान वृद्धि के कारण तुलनात्मक रूप से कम खतरा होगा; जबकि 2050 से उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन और उष्णकटिबंधीय अर्ध सदाबहार वन, जो क्रमशः देश के 3,13,617 वर्ग किमी., 1,35,492 वर्ग किमी. और 71,171 वर्ग किमी. भू-भाग में फैले हुए हैं, प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित होंगे।
रिपोर्ट तैयार करने में प्रयुक्त प्रविधि
डिजिटल भारत के दृष्टिकोण और डिजिटल डेटा सेट की आवश्यकता के अनुरूप, एफएसआई द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों के आकलन हेतु मानचित्रण के लिए विभिन्न आधुनिक तकनीकों को अपनाया गया। जैसेकि वनावरण का मानचित्रण करने हेतु 23.5 मी. के स्थानिक विभेदन (पृथ्वी की सतह पर वह न्यूनतम क्षेत्र, जो एक संवेदक के कारण अपने आस-पास के स्थान से अलग दिखाई देता है; इसे पिक्सल द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।) के साथ आईआरएस रिसोर्ससैट-2 के ऑर्थो-रेक्टिफाइड लिस III (Liss III) डेटा का प्रयोग किया गया।
रिपोर्ट में प्रस्तुत किए गए वन संसाधनों के आंकडे़ प्राप्त करने हेतु एफएसआई द्वारा 2016 में अपनाए गए ग्रिड आधारित नए फॉरेस्ट इन्वेंट्री डिजाइन का प्रयोग किया गया, जिसके तहत दो वर्षों की अवधि में लगभग 30,000 नमूने एकत्र किए गए।
इसी प्रकार, वनों की अग्नि प्रवणता ज्ञात करने हेतु 2019-20 में मोडिस सेंसर (यह किसी विशेष स्थान के लिए पूर्वाह्न तथा अपराह्न में प्रतिबिंब प्राप्त करने में सक्षम है।) का प्रयोग किया गया और एजीबी के अनुमान प्राप्त करने हेतु 2018 में एफएसआई द्वारा एसएसी, इसरो (अहमदाबाद) के साथ किए गए अध्ययन में सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर) के एल-बैंड का उपयोग किया गया, जबकि जलवायु परिवर्तन के हॉटस्पॉट्स के मानचित्रण हेतु कंप्यूटर दो आधारित मॉडलों—RCP 4.5 और RCP 8.5—का प्रयोग किया गया, जो क्रमशः औसत उत्सर्जन परिदृश्य एवं उच्चतम उत्सर्जन या सर्वाधिक प्रतिकूल परिस्थिति के परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं।
चिंता के क्षेत्र
हालांकि, एफएसआई द्वारा जारी की गई नवीनतम वन रिपोर्ट पिछले एक दशक में भारत के वनावरण में वृद्धि दर्शाती है, लेकिन इसके आंकड़े कुछ क्षेत्रों के लिए चिंता भी उत्पन्न करते हैं। जैसाकि रिपोर्ट के अंतर्गत सघन वनों में जो वृद्धि दर्शाई गई है वह केवल संरक्षित और आरक्षित वनों में हुई है, जबकि मध्यम सघन या प्राकृतिक वनों के साथ-साथ खुले वनों में आई गिरावट चिंता का विषय है। इसके अलावा, पूर्वोत्तर राज्यों, जो जैव विविधता से समृद्ध हैं, के वनावरण में 1,020 वर्ग किमी. की गिरावट और बाघ अभयारण्यों के वनावरण में आई कमी भी चिंताजनक है।
यद्यपि आकलन के लिए नई प्रौद्योगिकियों का प्रयोग किया गया है, तथापि इनकी सटीकता पर पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता, चूंकि सुदूर संवेदन आंकड़ों की भी कुछ अंतर्निहित सीमाएं होती हैं, जो वनावरण के मानचित्रण की सटीकता को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरणार्थ, Liss III सेंसर का विभेदन केवल 23.5 मी. है, जिससे भूमि पर इससे कम ज्यामितीय आयाम वाले
भू-आवरण को नहीं देखा जा सकता। मौसम की सही जानकारी की अनुपलब्धता कभी-कभी खराब परावर्तन के कारण अभिलक्षणों में त्रुटि उत्पन्न कर सकती है।
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