नेचर जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी के इमेजिंग एंड सेंसिंग फॉर आर्कियोलॉजी, आर्ट हिस्ट्री एंड कन्जर्वेशन लैब, चीन की दुनहुआंग रिसर्च अकादमी तथा ब्रिटिश लाइब्रेरी के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से सिल्क रूट पर स्थित यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल मोगाओ गुफाओं के निर्माण काल का पता लगा लिया गया है।
सिल्क रूट या रेशम मार्ग, विश्व के प्राचीनतम व्यापारिक मार्गों में से एक है, जो एशिया, यूरोप और अफ्रीका महाद्वीपों को एक-दूसरे से जोड़ता है। चीन के विख्यात रेशम के व्यापार का मुख्य मार्ग होने के कारण इसे सिल्क रूट या सिल्क रोड भी कहा जाता है। 6,500 किमी. से भी अधिक क्षेत्र में फैले इस मार्ग का प्रयोग दूसरी शताब्दी ई.पू. चीनी रेशम को मध्य एशिया के जरिये यूरोप तक पहुंचाने के लिए किया जाता था। वर्तमान में इस मार्ग का केवल व्यापारिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्व है, क्योंकि इसी मार्ग से एशिया और यूरोप के बीच विचारों तथा कलाओं के माध्यम से संस्कृतियों के आदान-प्रदान की शुरुआत हुई।
उत्तरी चीन में गोबी मरुस्थल के निकट खड़ी चट्टानों में निर्मित मोगाओ के 492 गुफा मंदिर बौद्ध धर्म से संबंधित भित्तिचित्रों के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं, जो सिल्क रूट पर हुए कला और स्थापत्य, धर्म, विज्ञान, राजनीति और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के इतिहास के अध्ययन हेतु अपरिमित स्रोत प्रदान करते हैं, परंतु इस स्थान के उत्तरी छोर पर बनी गुफा 465, जिसे प्रोसाइक केव 465 के नाम से जाना जाता है, अपनी तिब्बती तांत्रिक बौद्ध शैली में निर्मित भित्तिचित्रों के कारण अनूठी है।
प्रोसाइक केव 465 की छत पर भगवान बुद्ध के पांच दिव्य चित्र अंकित हैं, जिनमें से छत के बीचोबीच श्वेत रंग में वैरोचन, पूर्वी छत पर नीले रंग में अक्षोभ्य, दक्षिणी छत पर लाल-भूरे रंग से रत्नसंभव, पश्चिमी छत पर पीले रंग से अमिताभ और उत्तरी छत पर हरे रंग से अमोघसिद्धि के चित्र निर्मित किए गए हैं। इन भित्तिचित्रों में दर्शाए गए बुद्धों को इनके हाथों की मुद्रा से पहचाना जा सकता है। इंडो-तिब्बती चित्रशैली में बने ये भित्तिचित्र, महायोग तांत्रिक बौद्ध बिंबविधान की एकमात्र शृंखला है, जिनमें देवताओं को कई भुजाओं और सिरों के साथ उन्मत्त रूप से अपनी पत्नियों तथा उनके संघों के साथ दर्शाया गया है। इन्हीं चित्रों के निकट पट्टी से सज्जित एक सिंदूरी रंग के वर्गाकार कागज का टुकड़ा पाया गया, जिस पर संस्कृत में लिखे सूत्र को मुद्रित या मुद्रांकित कर उसे छत पर चिपकाया गया थाµजिसने मोगाओ गुफा मंदिरों के निर्माण काल को स्पष्ट करने में सहायता की।
शोध के दौरान कागज के टुकड़े पर मुद्रित ये सूत्र चारों दिशाओं में स्थित छतों पर चित्रित बुद्ध के चित्रों के नीचे चिपके हुए थे। शोधकर्ताओं के अनुसार, संभवतः इन कागजों को गुफा मंदिर के निर्माण के दौरान अभिषेक या प्रतिष्ठा की प्रथा के रूप में चिपकाया गया होगा। हालांकि, इन कागजों पर लिखे सूत्र अस्पष्ट थे, लेकिन शोधकर्ताओं द्वारा लिखित सूत्र की पहचान एक बौद्ध संस्कृत सूत्र के रूप में की गई जिसे ‘‘प्रतीत्यसमुत्पाद के सारांश’’ के रूप में जाना जाता है। इसे बुद्ध की शिक्षाओं का सार माना जाता है, और इसका अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता हैः ‘‘सभी चीजें कारणों से उत्पन्न होती हैं। तथागत (बुद्ध) ने इन कारणों के साथ-साथ उनके निवारण के उपाय भी बताए हैं।’’ संस्कृत में बुद्ध का यह उपदेश इस प्रकार हैः ‘‘ये धर्मा हेतु-प्रभवा हेतुं तेषां तथागतो हृयवदत् तेषां च यो निरोध एवं वादी महाश्रमणः।’’
शोधकर्ताओं के अनुसार, इन गुफाओं का रहस्य जानने के लिए उनके द्वारा ऑटोमेटेड 3डी स्पेक्ट्रल इमेजिंग सिस्टम का उपयोग किया गया, जो भूमि से चित्रों के उच्च रेजोल्यूशन वाले प्रतिबिंबन प्रदान करता है और फिर स्वचालित रूप से बड़ी मात्र से आंकड़ों को संसाधित करने के लिए मशीन लर्निंग पद्धति का उपयोग किया गया। भित्तिचित्रों के अध्ययन में सहायक यह तकनीक कई मीटर दूर से ही बड़े चित्रित क्षेत्रों के दूरस्थ वर्णक्रमीय प्रतिबिंबन को उच्च रेजोल्यूशन में पूरा करने में सक्षम हैं और चित्रों के वर्णक्रमीय चिह्नकों के आधार पर उस समय उपयोग किए जाने वाले रंजकों की पहचान कर नग्न आंखों से न दिखाई देने वाले धुंधले या फीके लेखन को भी प्रकट कर सकती है।
प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए शोधकर्ताओं को गुफा में मिले संस्कृत सूत्र में कुछ ऐसे वर्ण, यहां तक कि स्वर भी दिखाई दिए, जो 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से पहले प्रचलित वर्णों के रूपों से भिन्न थे, जिसके आधार पर शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस गुफा मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से 13वीं शताब्दी में हुआ होगा।
हालांकि, इससे पहले वर्षों से दुनहुआंग में स्थित अन्य गुफाओं की तरह ही इस गुफा के निर्माण के समय को लेकर भी इतिहासकारों तथा पुरातत्वविदों के बीच लंबे समय से विवाद चला आ रहा है (जैसाकि इसे चौथी से 14वीं शताब्दी के बीच अलग-अलग शासकों के काल में निर्मित माना जाता है), तथापि इस शोध द्वारा प्रकाश में आए संस्कृत सूत्र इस गुफा मंदिर में निर्मित भित्तिचित्रों के निर्माण काल के पुरातात्विक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।