लिगो, ‘लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी’ का संक्षिप्त रूप है। यह वेधशाला लेजर इंटरफेरोमीट्री के माध्यम से ब्रह्मांड की गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाती है और एक खगोलीय उपकरण के रूप में गुरुत्वीय तरंग, अवलोकन प्रदर्शित करती है। इसमें दो बड़े इंटरफेरोमीटर लगे हैं, जिनमें से प्रत्येक में 4 किमी. लंबी दो भुजाएं लगी हैं। सामान्य दूरबीनों के विपरीत लिगो, समष्टि काल (स्पेस-टाइम) में आने वाली तरंगों को नहीं देख पाता क्योंकि गुरुत्वीय तरंगें विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम या प्रकाश का हिस्सा नहीं होतीं। ये प्रकाश तरंगें नहीं हैं, लेकिन अपरिमित गुरुत्वाकर्षण के कारण समष्टि काल में प्रसार के रूप में मानी जाती हैं। एकल लिगो संसूचक (डिटेक्टर), इस घटना का पता नहीं लगा सकता, इसलिए गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने के लिए दो संसूचकों का उपयोग किया जाता है, जो एक इकाई के रूप में सूक्ष्म गुरुत्वीय तरंगों की सटीकता सुनिश्चित करते हैं। हालांकि, गुरुत्वीय तरंग जैसे किसी संकेत का पता लगाने के लिए उत्कृष्ट सटीकता की आवश्यकता होती है। स्वाभाविक रूप से, इसके लिए शोर को बहुत सावधानी से कम करने की आवश्यकता है, क्योंकि जब इस प्रकार के सूक्ष्म संकेत का पता लगाया जा रहा हो, तो संसूचकों के आस-पास सामान्य मानवीय उपस्थिति के कारण भी संकेत मिलने बंद हो सकते हैं तथा प्रयोग के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।
गुरुत्वीय तरंगें एवं महत्व
खगोल भौतिकीविद रसेल हल्स और जोसेफ टेलर को 1974 में उनके द्वारा पृथ्वी से 21,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित दो न्यूट्रॉन तारों की खोज के लिए वर्ष 1993 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन दो तारों के रेडियो उत्सर्जन का पता लगाने पर टेलर और उनके साथियों ने पाया कि दोनों तारों (यदि दो तारे गुरुत्वीय तरंगों का विकिरण करते हैं।) का एक ग्रहपथ या क्षेत्र उसी तरह से कम होता जा रहा था जिस प्रकार आपेक्षिता के व्यापक सिद्धांत (आइंस्टीन द्वारा प्रस्तुत) द्वारा अनुमान लगाया गया था। दूसरे बाइनरी न्यूट्रॉन तारे के विश्लेषण ने इस प्रभाव की पुष्टि की कि गुरुत्वीय तरंगें मात्र सिद्धांत नहीं हैं। गुरुत्वीय तरंगें ब्रह्मांड में किसी सर्वाधिक उग्र और प्रबल प्रक्रिया के कारण समष्टि काल में उत्पन्न होने वाली छोटी तरंगें होती हैं। आपेक्षिता के व्यापक सिद्धांत के अनुसार, अंतरिक्ष में अधिक द्रव्यमान वाले पिंड (जैसेकि न्यूट्रॉन तारे या ब्लैक होल्स एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं) समष्टि काल को कुछ इस तरह से अस्त-व्यस्त कर देते हैं कि विकृत अंतरिक्ष की ‘तरंगें’ स्रोत से विकीर्णित होने लगती हैं (जैसाकि किसी तालाब में दूर से पत्थर फेंके जाने के कारण उत्पन्न हुई तरंगों की गति होती है)। इसके अलावा, ये तरंगें अपने प्रलयोद्गम सहित गुरुत्वीय प्रकृति के संकेतों की जानकारी के साथ ब्रह्मांड में प्रकाश की गति से संचारित होती हैं। सबसे शक्तिशाली गुरुत्वीय तरंगें कृष्ण विवरों (ब्लैक होल) की टक्कर, तारकीय क्रोडों (सुपरनोवी) के निपात, न्यूट्रॉन तारों या बौने तारों के सम्मिलन जैसी विनाशकारी घटनाओं, न्यूट्रॉन तारों के किंचित अस्थिर आवर्तन, जो पूर्णतया गोलाकार नहीं होते, और संभवतः ब्रह्मांड के निर्माण के समय उत्पन्न गुरुत्वीय विकिरण के अवशेषों के द्वारा भी उत्पन्न होती हैं। अतः इन वस्तुओं या अद्भुत घटनाओं को गुरुत्वीय तरंगों को आकर्षित और ध्वन्यालेखित करने के स्रोतों के रूप में देखा जाता है।
गुरुत्वीय तरंगें बहुत शक्तिशाली होती हैं। गुरुत्वीय तरंगों के अध्ययन के परिणाम, गुरुत्वाकर्षण की प्रकृति से लेकर लौह से भारी प्रत्येक तत्व की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हैं। इन तरंगों का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये व्यापक रूप से अज्ञात होने के साथ ही मौलिक घटनाएं हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, इनके अध्ययन द्वारा ब्रह्मांड में कृष्ण विवरों के आकार की सटीक गणना और ब्रह्मांड के विस्तार की दर को बेहतर तरीके से समझने में सहायता मिलेगी।
लिगो वेधशालाएं: लेजर इंटरफेरोमीटर के द्वारा गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने के उद्देश्य से 1994 में, नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ), मॉसचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) तथा कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कैलटेक) के बीच विचार-विमर्श के पश्चात, एनएसएफ द्वारा अमेरिका के लुइसियाना के लिविंगस्टन और वाशिंगटन के हैनफोर्ड में दो बड़ी-बड़ी लिगो वेधशालाओं की स्थापना का निर्माण कार्य शुरू किया गया, जो 1999 में पूरा हुआ तथा वर्ष 2001 में गुरुत्वीय तरंगों के मापन का कार्य शुरू किया गया। वर्तमान में ये दोनों वेधशालाएं किसी प्रोटॉन के आवेशित व्यास के दस-हजारवें से कम वाले 4 किमी. के प्रतिबिंब-अंतराल (मिरर स्पेसिंग) में होने वाले परिवर्तन का पता लगा सकती हैं। लिगो वेधशाला, जिसमें कैलटेक, एमआईटी, लिगो हैनफोर्ड और लिगो लिविंगस्टोन शामिल हैं, की जिम्मेदारियों में लिगो डिटेक्टर्स की क्षमताओं में आगामी सुधार करते हुए लिगो डिटेक्टर्स का संचालन, शोध एवं विकास करना, गुरुत्वाकर्षण, खगोलिकी एवं खगोलभौतिकी के मूलभूत भौतिक विज्ञान पर अनुसंधान करना, और जन शिक्षा तथा पहुंच को सुनिश्चित करना शामिल है। वर्ष 2020 से 2022 के बीच लिगो ने हैनफोर्ड और लिविंगस्टोन वेधशालाओं का उन्नयन किया।
लिगो की उपलब्धियां: हालांकि, 2002 से 2010 तक अंतरिक्ष में किसी सूक्ष्म गुरुत्वीय तरंग की खोज नहीं की जा सकी थी। अतः मूल लिगो संसूचकों की क्षमता में वृद्धि करने हेतु वर्ष 2008 में विकसित लिगो परियोजना शुरू की गई, जिसके अंतर्गत संशोधित संसूचकों ने वर्ष 2015 में परिचालन आंरभ किया। इस परिचालन के तहत 14 सितंबर, 2015 को अमेरिका में स्थापित दोनों वेधशालाओं ने पहली बार आसमान में एक उत्तेजना दर्ज की, जो पृथ्वी से 1.3 बिलियन प्रकाश वर्ष दूर किसी बिंदु (केंद्र) से बाहर की ओर संचारित होने वाली गुरुत्वीय तरंगों का परिणाम थी। वैज्ञानिकों के अनुसार, उस समय, अंतरिक्ष में सूर्य से क्रमशः 29 और 36 गुणा अधिक द्रव्यमान वाले दो बड़े ब्लैक होल्स का गुरुत्वीय तरंग संकेतकों को छोड़ते हुए एक-दूसरे में विलय हो गया था। इस खोज के लिए भौतिकी के क्षेत्र में ‘लिगो संसूचकों के निर्णायक योगदान तथा गुरुत्वीय तरंगों के अवलोकन के लिए’ रेनर वीस, किप थॉर्न और बैरी सी. बैरिश को वर्ष 2017 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ऑब्जर्वेशन को रन्स (RUNS) के रूप में संचालित किया जाता है। जुलाई 2022 तक, लिगो ने 3 रन्स पूरे किए हैं। पहला रन (01), 12 सितम्बर, 2015 से 19 जनवरी, 2016 के बीच संचालित किया गया, जिसमें 3 जीडब्ल्यू डिटेक्शन (सभी कृष्ण विवरों के संघट्टन के कारण) का पता लगाया गया। दूसरे रन (02), 30 नवम्बर, 2016 से 25 अगस्त, 2017 के बीच संचालित, के तहत 8 जीडब्ल्यू डिटेक्शन (सात कृष्ण विवर संघट्टन एवं एक न्यूट्रॉन तारे के विलय द्वारा) की गईं। तीसरे रन (03), जिस दो चरणों—अप्रैल से सितम्बर 2019 तथा नवम्बर 2019 से मार्च 2020 के बीच संचालित किया गया, ने ब्लैक होल में न्यूट्रॉन तारे के प्रथम विलय का पता लगाया। तीसरे रन को 27 मार्च, 2020 को निलम्बित कर दिया गया। इस प्रकार, लिगो ने 2015-2020 के बीच 12 बार जीडब्यू का पता लगाया। नवम्बर 2021 में लिगो ने इटली स्थित वर्गो (Virgo) तथा जापान स्थित कागरा (KAGRA) के साथ मिलकर दिसम्बर 2022 में चौथे रन (04) के संचालन की घोषणा की, लेकिन जून 2022 में इसे बदलकर मार्च 2023 कर दिया गया।
लिगो-इंडियाः वर्ष 2016 में भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई), तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) तथा कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान एवं शैक्षणिक संस्थानों के साथ किए गए समझौता ज्ञापन के तहत, 2019 में ‘लिगो-इंडिया’ परियोजना की नींव रखी गई थी, जिसके लिए अप्रैल 2023 में, भारत सरकार द्वारा निर्माण शुरू करने के लिए आवश्यक अंतिम मंजूरी दे दी गई है। लिगो-इंडिया के निर्माण के लिए लगभग 320 मिलियन डॉलर खर्च होंगे, जिसका पहला अवलोकन दशक के अंत तक होना अपेक्षित है। इस परियोजना के तहत महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में औंध के निकट लिगो संसूचक आधारित वेधशाला बनाई जाएगी, जहां लिगो संसूचकों के माध्यम से गुरुत्वीय तरंगों का अध्ययन किया जाएगा।
एनएसएफ और भारत सरकार द्वारा शुरू की गई इस संयुक्त परियोजना के तहत बनाई जाने वाली इस वेधशाला में विभिन्न क्षेत्रों (जैसे लेजर, वैक्यूम, ऑप्टिक्स, कंप्यूटर, और भौतिकी आदि) की विशेषज्ञता को शामिल किया गया है जो अत्याधुनिक अनुसंधान के अवसर प्रदान करते हैं। इस परियोजना के तहत अपरिमित निर्वात (वैक्यूम) अवसंरचना के लिए बनाई गई योजनाओं की संकल्पना और समीक्षा की जा चुकी है। आंतरिक रूप से इस बहु-विषयक विज्ञान परियोजना में अमेरिकी संस्थानों के साथ भारत के राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी (इंदौर), इंस्टिट्यूट फॉर प्लाज्मा रिसर्च (अहमदाबाद) तथा पुणे में स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स द्वारा सहयोग किया जाएगा। इस परियोजना का उद्देश्य, विभिन्न भौतिकीय प्रयोगों के माध्यम से ब्रह्मांड में उत्पन्न होने वाली गुरुत्वीय तरंगों की उत्पत्ति के स्रोतों का अधिक सटीकता से पता लगाना है।
लिगो परियोजना के तहत भारत में निर्मित की जा रही यह वेधशाला तीसरी लिगो वेधशाला होगी, जिसका निर्माण अमेरिका के बाहर किसी अन्य देश में किया जा रहा है, और 2025 में इस वेधशाला के परिचालित होने की संभावना है। अन्य लिगो संसूचकों की तरह ही भारत में स्थापित किए जाने वाले लिगो संसूचकों की भी दोनों भुजाएं 4-4 किमी. लंबी होंगी। हालांकि, अति-उच्च सूक्ष्मतापूर्ण इस प्रणाली से स्थानीय स्थिति की विशेषताओं द्वारा निर्धारित एक अद्वितीय ‘अयान’ प्रदर्शित करना अपेक्षित है। इस परियोजना के लिए राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान द्वारा 2019 के आरंभ में किए गए विस्तृत भू-तकनीकी और भू-भौतिकीय सर्वेक्षण के अलावा स्थानीय प्रकृति की विशेषता के लिए ‘लिगो इंडिया’ साइट पर एक वर्ष से बहु-स्टेशन भूकंपीय सर्वेक्षण अभियान चलाया जा रहा है।
इस परियोजना के तहत एक संपूर्ण लिगो इंटरफेरोमीटर के लिए भारी मशीनरी, इसके स्वरूप, संस्थापन और प्रवर्तन, तथा उसके प्रशिक्षण और सहायता हेतु तकनीकी डेटा और आवश्यक अवसंरचना (वैक्यूम सिस्टम सहित) के लिए आवश्यकताओं और डिजाइनों की आपूर्ति लिगो वेधशाला द्वारा की जा रही है, जबकि साइट के अलावा, प्रतिष्ठान और इंटरफेरोमीटर के संचालन हेतु आवश्यक वैक्यूम सिस्टम और अन्य अवसंरचना, तथा अत्यंत स्थिर लेजर, क्वांटम मापन तकनीक का डिजाइन और रचना, जटिल नियंत्रण प्रणाली के प्रबंधन एवं संचालन में स्वदेशी प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत अपना योगदान दे रहा है।
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