सैटेलाइट इंटरनेट, पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले भूस्थैतिक उपग्रहों की सहायता से इंटरनेट तक पहुंचने की प्रक्रिया है। इस सेवा के माध्यम से कहीं भी इंटरनेट कनेक्शन लिया जा सकता है क्योंकि यह वैश्विक कवरेज (आवरण) प्रदान करता है। इसलिए, यह उन स्थानों के लिए एक उपयुक्त इंटरनेट एक्सेस (उपयोगकर्ताओं या उद्यमों द्वारा व्यक्तिगत कम्प्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल उपकरणों का उपयोग करके इंटरनेट से जुड़ने की प्रक्रिया) है, जहां पहुंच (एक्सेस) की गुणवत्ता अविश्वसनीय या खराब है या ऐसे स्थान जहां स्थलीय इंटरनेट एक्सेस पहुंच के बाहर है। इसके अलावा, इस प्रकार की इंटरनेट सेवा के लिए एक विशाल बेस स्टेशन की नहीं बल्कि केवल एक छोटे-से डिश एंटीना की आवश्यकता होती है, जो पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ऊपर एक उपग्रह के साथ वायरलेस (बेतार) तरीके से संचार करता है। सैटेलाइट इंटरनेट की प्रभावशीलता और विश्वसनीयता के कारण निकट भविष्य में यह केबल इंटरनेट (केबल इंटरनेट हाई-स्पीड कनेक्शन का एक रूप है जो अंतिम उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट एक्सेस प्रदान करने के लिए केबल टीवी इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करता है।) को यदि पूरी तरह से नहीं, तो बड़े पैमाने पर स्थानांतरित कर देगा।
प्रक्रिया
डेटा तक पहुंचने और इससे संबंधी सभी सेवाओं का लाभ लेने की प्रक्रिया जटिल नहीं है। सैटेलाइट इंटरनेट पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए रेडियो तरंगों का उपयोग करता है। इंटरनेट सेवा प्रदाता अंतरिक्ष में एक पृथ्वी की निम्न कक्षा (एलईओ—लो अर्थ ऑर्बिट) में प्रक्षेपित उपग्रह को इंटरनेट सिग्नल भेजते हैं। यह सिग्नल उपयोगकर्ताओं के पास तुरंत वापस आता है, जिसे उनके सैटेलाइट डिश द्वारा ग्रहण किया जाता है। मॉडम से जुड़ी डिश, ग्रहण किए गए सिग्नल को उपयोगकर्ता के कंप्यूटर पर भेजती है। पूरी प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार से कार्य करती है, जैसेकि हम किसी विशेष वेब लिंक पर क्लिक करते हैं और डेटा एवं सूचना प्राप्त करते हैं या किसी को भेजते हैं। इस प्रक्रिया में तीन सैटेलाइट डिश शामिल होती हैं—पहली, अंतरिक्ष में; दूसरी, इंटरनेट सेवा प्रदाता के केंद्र में; और अंतिम, इंटरनेट उपयोगकर्ता के पास।
डेटा, संचार नेटवर्क के माध्यम से भेजा और पुनर्प्राप्त किया जाता है, जिसकी शुरुआत उपयोगकर्ता के उपकरण से होती है। तत्पश्चात, डेटा उपयोगकर्ता के मॉडम तथा सैटेलाइट डिश के माध्यम से अंतरिक्ष में उपग्रह तक जाता है, और फिर ग्राउंड स्टेशनों, जिन्हें नेटवर्क संचालन केंद्र (एनओसी) कहा जाता है, पर लौटकर आता है और उपयोगकर्ताओं तक पहुंचता है।
सैटेलाइट इंटरनेट पांच यंत्रों की एक रिले प्रणाली—इंटरनेट के लिए तैयार डिवाइस; मॉडम/राउटर; सैटेलाइट डिश; अंतरिक्ष में सैटेलाइट; और नेटवर्क ऑपरेशन्स सेन्टर (एनओसी)—का उपयोग करता है। चूंकि, सैटेलाइट इंटरनेट रेडियो तरंगों का उपयोग करके अंतरिक्ष के निर्वात में सिग्नल भेज कर सूचना प्रसारित करता है, इसलिए फाइबर-ऑप्टिक केबल की तुलना में डेटा 47 प्रतिशत तेजी से संचारित होता है।
गति और विश्वसनीयता
नए उपग्रह [स्टारलिंक (स्पेसएक्स) और प्रोजेक्ट कुइपर (अमेजॉन)] पृथ्वी के बहुत करीब (लगभग 300 मील दूर) हैं क्योंकि उन्हें एलईओ में प्रक्षेपित किया गया था। इसलिए, ये उपग्रह अपनी लोअर लेटेंसी (लैग अर्थात लोअर लेटेंसी एक नेटवर्क कनेक्शन पर कंप्यूटर डेटा के प्रसंस्करण में न्यूनतम विलंब को संदर्भित करता है।) के कारण परंपरागत सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं की तुलना में उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट की तीव्र गति प्रदान करते हैं।
हालांकि, विलंबता [कंप्यूटर से डेटा भेजने और 12 से 100 मेगाबाइट पर सेकंड (एमबीपीएस) की गति से वापस आने में लगने वाला समय] के आधार पर यह ई-मेलिंग, ब्राउजिंग, और ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करने जैसी सामान्य ऑनलाइन गतिविधियों के लिए पर्याप्त है। भूमि पर बिछाए गए फाइबर-ऑप्टिक केबल वाले इंटरनेट की अपलोड और डाउनलोड गति, वास्तव में सैटेलाइट इंटरनेट की तुलना में बहुत तीव्र है। इसलिए, ऑनलाइन गेमिंग के लिए सैटेलाइट इंटरनेट एक उपयुक्त विकल्प नहीं है।
हालांकि, अधिकांशतः सैटेलाइट इंटरनेट विश्वसनीय होता है, लेकिन भारी वर्षा या तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण इसके सिग्नल बाधित हो सकते हैं। बर्फ जमने और अन्य अवरोधों के कारण इंटरनेट सेवाओं में रुकावट आ सकती है।
सैटेलाइट इंटरनेट और वाई-फाई
एक सैटेलाइट इंटरनेट कनेक्शन के माध्यम से, उपयोगकर्ता विशेष रूप से अभिकल्पित राउटर के जरिए वाई-फाई कनेक्शन प्राप्त कर सकता है, क्योंकि यह एक प्रकार का इंटरनेट कनेक्शन है, जबकि वाई-फाई एक वायरलेस नेटवर्क को संदर्भित करता है। उपयोगकर्ता सैटेलाइट इंटरनेट कनेक्शन के साथ घर के वाई-फाई नेटवर्क को जोड़ सकता है। यह उपयोगकर्ता को लैपटॉप, फोन, टैबलेट या वायरलेस इंटरनेट से जुड़े अन्य डिवाइस पर इंटरनेट का उपयोग करने की सुविधा प्रदान करेगा।
उपलब्धता और प्रसार
वर्तमान में यह सेवा अमेरिका की 99 प्रतिशत से अधिक आबादी के लिए उपलब्ध है। इसके अलावा, कनाडा, यूके, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, आयरलैंड, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, डेनमार्क, पुर्तगाल, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी सैटेलाइट इंटरनेट का उपयोग करते हैं। विश्व के अधिकांश हिस्सों में सैटेलाइट इंटरनेट सेवा प्रदान करने के लिए पृथ्वी की निम्न कक्षा में अधिक से अधिक उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की आवश्यकता है। लेकिन अंतरिक्ष में इन उपग्रहों की अधिकता ने एक गंभीर खतरे की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
एलईओ उपग्रह-चिंता का कारण
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के अनुसार, जनवरी 2022 तक, 12,480 से अधिक स्टारलिंक उपग्रह प्रक्षेपित किए गए हैं, जिनमें से केवल 4,900 सक्रिय हैं। यूएस के फेडरल कम्युनिकेशंस कमिशन (एफसीसी) ने एलन मस्क के स्पेसएक्स को 12,000 स्टारलिंक उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की अनुमति प्रदान की है। स्पेसएक्स अंतरिक्ष में एक बहुत बड़ा तारामंडल बनाने के लिए 40,000 से अधिक छोटे उपग्रहों को कक्षा में प्रक्षेपित और प्रसारित करने की तैयारी कर रहा है। इससे कंपनी पूरी दुनिया में ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवा प्रदान करने में सक्षम होगी, जिसमें सुदूरस्थ स्थान और इंटरनेट सेवा के उपयोग से वंचित क्षेत्र भी शामिल हैं।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा इस बात से चिंतित है कि ये एलईओ उपग्रह अंतिरक्ष में मार्गों को अत्यंत संकीर्ण करेंगे, जो टकराव का कारण बन सकते हैं। टकराव की घटनाओं में वृद्धि और अंतरिक्षयान मिशनों के संभावित प्रभावों के प्रति आशंका बनी हुई है।
2019 में, स्पेसएक्स के पहले ब्रॉडबैंड उपग्रहों के परिनियोजन के तुरंत बाद, इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने तारों के निरीक्षण (स्टारगेजिंग) और निशाचर वन्यजीवों के संरक्षण के संबंध में अप्रत्याशित परिणामों की चेतावनी दी थी।
इसके विपरीत, एलन मस्क का तर्क है कि यदि मंगल पर मिशन सफल होता है तो फाइबर ऑप्टिक संचार कोई मदद नहीं करेगा और सैटेलाइट इंटरनेट, संचार का एक बेहतर साधन होगा।
सैटेलाइट इंटरनेट और भारत
भारतीय इंटरनेट प्रदाता अंतरिक्ष में इंटरनेट उपग्रह क्षेत्र पर अधिकार पाने के लिए अंतरिक्ष की कक्षा में हजारों उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की मांग कर रहे हैं। मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो कंपनी ने हाल ही में यूरोप स्थित सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवा प्रदाता सोसाइटी यूरोपियन डेस सैटेलाइट्स (एसईएस) के साथ गठबंधन किया है। कंपनी ने सैटेलाइट इंटरनेट बाजार में प्रवेश करने के लिए एक संयुक्त उद्यम बनाया है।
इस संयुक्त उद्यम के साथ, रिलायंस जियो ने भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं पर शोध के लिए भारती एयरटेल लिमिटेड के वनवेब और एलन मस्क के स्टारलिंक के बीच के अंतर को कम किया है।
भारत को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए लंबी दूरी तय करनी होगी। सरकार की सहायता से अधिक स्टार्टअप्स को अपना ध्यान इस दिशा में केंद्रित करना चाहिए।
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