परिचय
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमृत धरोहर योजना की घोषणा केंद्रीय बजट सत्र 2023-24 में की थी। इस योजना का उद्देश्य आर्द्रभूमियों के महत्व, पर्यावरण संरक्षण, तथा पारंपरिक कला और शिल्प के परिरक्षण के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना है। इससे उन्हें आर्द्रभूमियों का सर्वोत्तम संभव तरीके से उपयोग करने और जलीय जैव विविधता को बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी। यह योजना मूल्यवान आर्द्रभूमि पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने के लिए स्थानीय समुदायों के विशिष्ट संरक्षण मूल्यों को प्रोत्साहित करती है। इस योजना के अनुसार, आर्द्रभूमियां पर्यावरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और पारिस्थितिक तंत्र की देखभाल में स्थानीय समुदाय के तरीकों को ध्यान में रखते हुए इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए। इस योजना का कार्यान्वयन अगले तीन वर्षों में किया जाएगा।
योजना के मुख्य बिंदु
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) को 3,40 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह पिछले वर्ष आवंटित राशि, जो 2,478 करोड़ रुपये थी, की तुलना में 24 प्रतिशत से अधिक है।
- वर्तमान में, भारत में 75 रामसर स्थल हैं। इन्हें वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि माना जाता है।
- यह योजना न केवल रामसर स्थलों के संरक्षण को बढ़ावा देती है, बल्कि कार्बन स्टॉक (या कार्बन भंडार, एक ऐसी प्रणाली है जिसमें कार्बन को संग्रहित करने या छोड़ने की क्षमता होती है।) को बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय समुदायों के लिए पर्यावरण-पर्यटन और आय के अवसरों में भी बढ़ोतरी करती है।
रामसर स्थल उन आर्द्रभूमियों को संदर्भित करते हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण माना जाता है। इन स्थलों का चयन रामसर कन्वेंशन ऑन वेटलैंड्स (1971) द्वारा उल्लिखित निकष या मानदंडों (क्राइटिरिया) के अनुसार किया गया है। अर्थात, ये आर्द्रभूमियां दुर्लभ, अनूठी या प्रतिनिधिक प्रकार की हैं, अथवा जैविक विविधता के संरक्षण में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। ये प्रवासी पक्षियों और संकटापन्न जलीय जीव-जाति (स्पीशीज) सहित वनस्पतियों और जीवों की एक विस्तृत शृंखला का समर्थन करती हैं। 2014 के बाद से, ऐसे स्थलों की संख्या 26 से बढ़कर 75 हो गई है। इस प्रकार भारत, सबसे अधिक संख्या में रामसर स्थलों वाला एकमात्र देश बन गया है। ये 75 रामसर स्थल भारत में 13,26,678 हेक्टेयर भू-क्षेत्र में फैले हुए हैं।
योजना के मुख्य उद्देश्य
- आर्द्रभूमियों के संरक्षण हेतु: यह योजना भारत की आर्द्रभूमियों की सुरक्षा पर बल देती है जो जलीय जैव विविधता का समर्थन करती है, जिससे ये अनूठी और दुर्लभ जीव-जातियों के आवास के रूप में प्रयुक्त होती हैं। यह स्थानीय समुदायों के सहयोग से पारिस्थितिक तंत्र के धारणीय विकास पर केंद्रित है।
- पारंपरिक कला और शिल्प को संरक्षित और प्रोत्साहित करना: इस योजना के तहत भारत की पारंपरिक कला और शिल्प को संरक्षित और प्रोत्साहित करने की दिशा में काम करने वाले कारीगरों, शिल्पकारों और हितधारकों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। परिणामस्वरूप, पारंपरिक कला शैलियों को एक नया जीवन मिलेगा और रोजगार के अधिक अवसर सृजित होंगे, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया जाएगा।
- स्थानीय समुदायों को शामिल करना: स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में भाग लेने के लिए अवश्य प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जैसा कि उन्होंने हमेशा इस तरह की पहलों का नेतृत्व किया है। इस योजना द्वारा स्थानीय समुदायों के कई उल्लेखनीय संरक्षण मूल्यों को बढ़ावा दिया जाएगा, साथ ही इन समुदायों को आर्द्रभूमि को संरक्षित और विनियमित करने में सक्षम बनाया जाएगा।
- पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली विकसित करना: यह योजना ‘हरित विकास’ का एक हिस्सा है जो बजट की सात प्राथमिकताओं में से एक है। यह पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली का समर्थन करने पर केंद्रित है। यह प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग को सुकर बनाकर भारत के लिए एक संधारणीय भविष्य बनाने का प्रयास करती है।
योजना के लिए पात्रता मानदंड
- कारीगर, शिल्पकार और हितधारक जैसे लोग, जो भारत की पारंपरिक कला और शिल्प को संरक्षित और प्रोत्साहित करते हैं, वित्तीय सहायता के हकदार हैं, तथा इसके लिए आवेदन भी कर सकते हैं।
- रामसर स्थलों में या इनके आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय समुदाय इस योजना का लाभ उठाने के लिए प्राधिकृत हैं।
- इसके अलावा, आर्द्रभूमि के संरक्षण, तथा पारंपरिक कला और शिल्प को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन और अलाभकारी संगठन वित्तीय सहायता के हकदार हैं और आवेदन कर सकते हैं।
- भारत के किसी भी हिस्से में सभी व्यक्ति और संगठन बिना किसी राज्यवार प्रतिबंध के इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।
- आवेदकों के लिए आर्द्रभूमि के संरक्षण, तथा पारंपरिक कला और शिल्प को संरक्षित और प्रोत्साहित करने में उनकी भागीदारी का विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
- वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए आवेदकों के नाम पर एक बैंक खाता होना चाहिए।
- चूंकि योजना अगले तीन वर्षों के लिए लागू की जाएगी, इसलिए वित्तीय सहायता के लिए आवेदकों को परियोजना प्रस्ताव निर्धारित समय के भीतर जमा करना होगा।
योजना हेतु आवेदन प्रक्रिया
- एक समावेशी परियोजना प्रस्ताव, जिसका उद्देश्य या तो भारत की आर्द्रभूमि की सुरक्षा या फिर पारंपरिक कला और शिल्प का संरक्षण और संवर्धन करना हो, आवेदकों द्वारा प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव में परियोजना के उद्देश्य, इसकी कार्यान्वयन रणनीति, कार्यक्षेत्र, बजट आवश्यकताओं और अपेक्षित परिणामों को परिभाषित किया जाना चाहिए।
- इस परियोजना प्रस्ताव में यह निर्दिष्ट होना चाहिए कि स्थानीय समुदाय परियोजना में किस प्रकार से योगदान देंगे।
- यह परियोजना प्रस्ताव, MoEFCC को ऑनलाइन या संपठनीय प्रति (हार्ड कॉपी) के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- एक चयन समिति प्रस्तावों का मूल्यांकन करेगी और सफल आवेदकों को उनकी परियोजना के लिए स्वीकृत राशि के बारे में सूचित करेगी। इस राशि का भुगतान किश्तों में किया जाएगा।
योजना की भावी-सभावनाएं
- यह योजना पर्यावरण के संरक्षण में भाग लेने में अधिक से अधिक स्थानीय समुदायों की सहायता करेगी।
- योजना यह सुनिश्चित करती है कि विकास की प्रक्रिया से पर्यावरण को नुकसान न हो।
- भारत में पारंपरिक कला और शिल्प की संवृद्धि के अलावा, यह योजना कारीगरों और शिल्पकारों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने का प्रयास भी करेगी।
- इस योजना के तहत, कई आर्द्रभूमियां, तथा कला और शिल्प परियोजनाओं का चयन किया जाएगा, जिन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल सकती है। परिणामस्वरूप, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाने में भारत के प्रति सद्भावना में बढ़ोतरी हो सकती है तथा इसकी प्रतिष्ठा बढ़ सकती है।
निष्कर्ष
अमृत धरोहर योजना केंद्र सरकार का एक महत्वपूर्ण दूरदर्शी कदम है, क्योंकि यह न केवल आर्द्रभूमि, तथा पारंपरिक कला और शिल्प के संरक्षण पर बल्कि स्थानीय समुदाय के सशक्तिकरण और सतत विकास पर भी बल देती है।
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