कवच, अनुसंधान अभिकल्प और मानक संगठन (आरडीएसओ) द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित एक स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली है जो ट्रेन दुर्घटना बचाव प्रणाली (Train Collision Avoidance System—टीसीएएस) नाम से प्रचलित है, जिसका दक्षिण-मध्य रेलवे के सिकंदराबाद मंडल में लिंगमपल्ली-विकाराबाद अनुभाग में, सफल परीक्षण किया गया। परीक्षण के दौरान, ट्रेन के दो स्वचालित इंजनों को एक ही पटरी पर आमने-सामने चलाया गया और जैसे ही इन दोनों इंजनों के बीच टक्कर की स्थिति उत्पन्न हुई, ‘कवच’ प्रणाली ने स्वचालित ब्रेकिंग सिस्टम को सक्रिय कर दोनों इंजनों को 380 मी. की दूरी पर रोक दिया।

यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) उपकरणों का एक सेट है जिसे ट्रेन के इंजनों तथा संकेतन प्रणाली (सिग्नलिंग सिस्टम) के साथ-साथ पटरियों में भी स्थापित किया जाता है। इसमें यूरोपीय ट्रेन सुरक्षा एवं चेतावनी प्रणाली, स्वदेशी एंटी कोलिजन डिवाइस जैसे प्रमुख घटक शामिल हैं।

कवच, त्रुटि की न्यूनतम संभावना के साथ सबसे सस्ती, और सुरक्षा तथा विश्वसनीयता के मानकों के सर्वोच्च स्तर ‘संपूर्ण सुरक्षा स्तर-4’ [किसी परिवहन प्रणाली में संपूर्ण सुरक्षा स्तर (Safety Integrity Level) जोखिम को कम करने का सापेक्षिक स्तर है। इसके चार (1 से 4) स्तर होते हैं, जिनमें से एक या पहला स्तर अत्यधिक जोखिम तथा चौथा स्तर न्यूनतम जोखिम को सूचित करता है।] से लैस एक आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है। भविष्य में इसमें हाई-टेक यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम लेवल-2 जैसी विशेषताएं और सिग्नलिंग इनपुट को इकट्ठा करने के लिए स्थिर उपकरण भी लगाए जाएंगे।

कवच की कार्यपद्धति

उच्च आवृत्ति के रेडियो संपर्क का उपयोग करते हुए कवच प्रणाली निरंतर गतिविधि सुधार के सिद्धांत पर कार्य करती है। यह न केवल सिग्नल (लाल बत्ती) पार करने से पूर्व ट्रेन चालक को सचेत करने हेतु स्वयं सक्रिय हो जाती है, बल्कि चालक द्वारा गति सीमा के अनुसार रेल को नियंत्रित करने में विफल रहने पर रेल के ब्रेकिंग सिस्टम को स्वचालित रूप से सक्रिय कर देती है।

इसके साथ ही, यह ड्राइवर मशीन इंटरफेस (डीएमआई)/लोको पायलट ऑपरेशन कम इंडिकेशन पैनल (एलपीओसीआईपी) में सिग्नल की स्थिति दिखाने तथा ट्रेन की आवाजाही से निरंतर अवगत कराने के अलावा आपातकालीन स्थितियों के दौरान एसओएस संदेश भेजने, रेलवे फाटकों के निकट पहुंचते ही स्वतः सीटी बजाने, कवच प्रणाली से लैस दो इंजनों के बीच टकराव को रोकने, और नेटवर्क मॉनिटर सिस्टम के माध्यम से ट्रेन की आवाजाही की सीधी निगरानी करने में भी सक्षम है।

भारत में स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली

भारत में वर्ष 2012 से ट्रेन दुर्घटना बचाव प्रणाली (टीसीएएस) के तहत स्वदेशी स्वचालित सुरक्षा प्रणाली का विकास किया जा रहा है, जिसका विशेष परीक्षण सर्वप्रथम फरवरी 2016 में यात्री ट्रेनों में किया गया और उनके परिणामों के आधार पर मई 2017 में कवच प्रणाली के प्रारंभिक मानक निश्चित किए गए। ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के एक भाग के रूप में वर्ष 2022 के केंद्रीय बजट में कवच सुरक्षा प्रणाली की घोषणा की गई थी, जिसके पश्चात रेल मंत्रालय द्वारा वर्ष 2022-2023 में सुरक्षा और क्षमता वृद्धि के लिए लगभग 2,000 किमी. रेल नेटवर्क को स्वदेशी (कवच) प्रणाली के तहत लाने की योजना बनाई गई है।

अब तक कवच का प्रयोग दक्षिण मध्य रेलवे की मौजूदा परियोजनाओं के तहत 1,098 किमी. क्षेत्र और ट्रेन के 65 इंजनों में किया गया है। कवच प्रणाली के 250 किमी. के परीक्षण भाग के अलावा वर्तमान में इसे दक्षिण मध्य रेलवे के 1,200 किमी. क्षेत्र (बीदर-परली वैजनाथ—परभणी और मन्माड—परभणी—नांदेड़, सिकंदराबाद-गडवाल—धेने—गुंतकल) में कार्यान्वित किया जा रहा है। भविष्य में इसे दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा के 3,000 किमी. मार्ग में लगाया जाएगा, जैसाकि इन मार्गों पर 160 किमी./घंटे की तीव्र गति के लिए पटरियों और रेलवे तंत्र में सुधार किया जा चुका है। इसके पश्चात, इसे हाई डेंसिटी नेटवर्क (जहां सबसे अधिक ट्रेनों की आवाजाही होती है) और सर्वाधिक प्रयोग में लाए जाने वाले नेटवर्क के 34,000 किमी. से भी अधिक लंबे मार्ग पर लगाए जाने की योजना है, जिसके अंतर्गत स्वर्णिम चतुर्भुज राष्ट्रीय राजमार्ग (प्रमुख औद्योगिक, कृषि और सांस्कृतिक क्षेत्रों के माध्यम से भारत के चार महानगरों को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग) भी शामिल है।

वर्ष 2028 तक, भारतीय रेल द्वारा इस नई और स्वचालित बचाव प्रवाली को देश की सभी रेल की पटरियों (लगभग 68,446 किमी.) पर स्थापित किए जाने की योजना है, जिस पर केवल 30-50 लाख रुपये/किमी. का खर्च ही आएगा, जो विश्व में इस प्रकार की परियोजनाओं (लगभग 2 करोड़ रुपये/किमी.) की तुलना में अत्यधिक कम और विश्व की चौथी कम लागत वाली सुरक्षा प्रणाली है।

महत्व

कवच ट्रेन सुरक्षा प्रणाली न केवल भारत में ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने (या कम करने) और भारतीय रेलवे तंत्र को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, वरन भविष्य में निर्यात की जाने वाली एक स्वदेशी सुरक्षा प्रणाली के रूप में विश्व को लोकप्रिय यूरोपीय सुरक्षा प्रणालियों की तुलना में कम मूल्य पर बेहतर सुरक्षा प्रदान करने वाला एक विकल्प प्रदान करेगी। जैसाकि भारत द्वारा इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान प्रदान करने के लिए इसकी वर्तमान अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी को 4G एलटीई प्रौद्योगिकी (Long Term Evolution & Technology) के सुसंगत बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

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