ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट को संक्षिप्त रूप से ‘जीआरआईएचए’ (GRIHA) कहा जाता है। ‘जीआरआईएचए’ को ‘नए भवनों’ (ऐसे भवन जिनका निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है) का स्वरूप निर्धारित करने तथा उनका मूल्यांकन करने केलिए विकसित किया गया है। इस प्रणाली केतहत भवनों केमूल्यांकन हेतु उनकेजीवनकाल केनिम्नलिखित चरणों की पहचान की गई हैः यह प्रणाली किसी भवन का मूल्यांकन समग्र रूप से उसकेसंपूर्ण जीवनकाल में पर्यावरणीय प्रदर्शन केमात्रात्मक एवं गुणात्मक मानदंडों केआधार पर करती है, जो हरित भवनों और स्थायी आवासों केलिए निश्चित मानक प्रदान करता है। इसका उद्देश्य संसाधनों की खपत, अपशिष्ट उत्पादन और समग्र पारिस्थितिक/पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है। जीआरआईएचए—‘‘जिसका मापन होता है उसका प्रबंधन हो जाता है’’—केसिद्धांत पर कार्य करता है। इसकी स्थापना भारत में हरित भवनों अर्थात ग्रीन बिल्डिंग्स को बढ़ावा देने और प्रभाव में लाने केलिए द एनर्जी एंड रिर्सोसेस इंस्टीट्यूट (टेरी) और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा संयुक्त रूप से की गई थी। यह एक स्वतंत्र व लाभ निरपेक्ष संस्था (एनपीओ) है। वर्ष 2007 में एमएनआरई द्वारा भारत में हरित भवनों केलिए ‘जीआरआईएचए’ को राष्ट्रीय रेटिंग प्रणाली केरूप में अंगीकृत किया गया था।

ग्रीन रेटिंग सिस्टम की आवश्यकताः मानव-आवासों द्वारा पर्यावरण विभिन्न प्रकार से प्रभावित होता है। एक आवास केनिर्माण कार्य में ऊर्जा, जल तथा भवन सामग्री, आदि केरूप मेंप्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया केदौरान अपशिष्ट का उत्सर्जन होता है। इन आवासों में विद्युत ऊर्जा उपलब्ध करवाने केलिए कार्बनिक पदार्थों का उत्सर्जन किया जाता है, जिससे पर्यावरण प्रभावित होता है। तेजी से बढ़ती भारतीय जनसंख्या और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि ने भवन निर्माण केलिए उपलब्ध संसाधनों पर भारी दबाव डाला है। पानी की कम उपलब्धता वाले भारतीय शहरी क्षेत्रों में पर्यावरण अनुकूल वातावरण का निर्माण करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।

ग्रीन रेटिंग सिस्टम केला:(क)भवन निर्माण में आवश्यक सुविधाओं को कम किए बिना ऊर्जा की खपत में कमी करना; (ख) प्राकृतिक क्षेत्रों, आवासों एवं जैवविविधता की क्षति और मिट्टी केकटाव, आदि को कम करना; (ग) वायु एवं जल प्रदूषण में कमी (प्रत्यक्ष स्वास्थ्य लाभ केसाथ); (घ) पानी की खपत कम करना; (ङ) पुनचक्रण तथा पुनः उपयोग केकारण सीमित अपशिष्ट उत्पादन; (च) प्रदूषण की मात्रा में कमी; (छ) उपयोगकर्ता की उत्पादकता मेंवृद्धि।

जीआरआईएचए ने भारत में मौजूदा स्कूलों केपर्यावरणीय प्रदर्शन केमापन और मूल्यांकन केलिए एक ढांचे केरूप में ‘जीआरआईएचए फॉर एक्जिस्टिंग डे स्कूल्स’ विकसित किया है। इसका उद्देश्य छात्रों और शिक्षकों केबीच पारिस्थितिकीय फुटप्रिंट को कम करने और हरित जीवन शैली अपनाने केलिए एक सक्रिय दृष्टिकोण विकसित करना है।


ग्रीन स्कूल

1990केदशक मेंयूरोप मेंग्रीन (हरित) स्कूल की अवधारणा को पेश किया गया था। हालांकि, 1992केरियो अर्थ शिखर सम्मेलन में ‘मानव द्वारा पर्यावरण को प्रभावित करने वाले प्रत्येक क्षेत्र’ मेंकार्रवाई करने की आवश्यकता पर बल दिया गया था। 2002मेंजोहानसबर्ग (अफ्रिका) में ‘वर्ल्ड डेवलपमेंट ऑन सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ (WSSD) सम्मेलन केदौरान ‘पर्यावरण केबारे मेंशिक्षित करने’ केअभियान को ‘संवहनियता केलिए शिक्षित करने’ केअभियान में बदलने का प्रयास किया गया।

यह बदलाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सतत विकास को बढ़ावा देने केलिए उपयुक्त माहौल बनाने पर जोर देता है। इस प्रकार भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को देखते हुए स्कूल में पर्यावरणीय समझ विकसित करने केलिए छात्रों को ग्रीन स्कूल अर्थात पर्यावरण अनुकूल स्कूलकेसाथ भागीदार बनाने केलिए कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं।


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