पोखरा रीजनल इंटरनेशनल एयरपोर्ट (पीआरआईए) नेपाल-चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) कोऑपरेशन की एक प्रमुख परियोजना है। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल द्वारा 1 जनवरी, 2023 को देश के पीआरआईए नामक तीसरे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन किया गया।

नेपाल ने 16 मई, 2022 को भारतीय सीमा के पास सिद्धार्थनगर में बने देश के दूसरे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (गौतम बुद्ध इंटरनेशनल एयरपोर्ट) का उद्घाटन किया था, जिसकी कुल निर्माण लागत 76.1 मिलियन डॉलर थी। इस राशि में एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) ने ऋण और अनुदान के रूप में 37 मिलियन डॉलर तथा ओपेक (OPEC) फंड फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट ने ऋण के रूप में लगभग 11 मिलियन डॉलर नेपाल को दिया था। उल्लेखनीय है कि, नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित त्रीभुवन अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट, नेपाल का पहला अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है, जिसकी शुरूआत वर्ष 1949 में की गई थी।

समझौता

पीआरआईए को वर्ष 2016 में चीन के एक्जिम बैंक से प्राप्त 215.96 मिलियन डॉलर के सुलभ ऋण (सॉफ्ट लोन), जिसके लिए नेपाल के नागर प्राधिकरण और चीन के एक्जिम बैंक ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, से बनाया गया है। समझौते के अनुसार, नेपाल को चीन के एक्जिम बैंक से प्राप्त ऋण में से 25 प्रतिशत ऋण ब्याज मुक्त होगा। शेष ऋण पर ब्याज 2 प्रतिशत सालाना तय किया गया है। ऋण चुकाने की अवधि 20 वर्ष निर्धारित की गई है, इसमें सात वर्ष की छूट अवधि, जिस दौरान कोई ब्याज देय नहीं होगा, शामिल है।


पोखरा रीजनल इंटरनेशनल एयरपोर्ट—PRIA

  • जर्मन कंसल्टिंग इंजीनियरिंग फर्म DIWI द्वारा 1971 में एयरपोर्ट के स्थान का चयन, विस्तृत इंजीनियरिंग कार्य और न्यू पोखरा एयरपोर्ट का मास्टर प्लान तैयार किया गया था।
  • पीआरआईए का रनवे (दौड़-पथ) 45 मीटर चौड़ा और 2,500 मीटर लंबा है, तथा इसकी अवस्थिति पूर्व-पश्चिम की ओर है। रनवे को 1,200 मीटर लंबे और 23 मीटर चौड़े टैक्सीवे पार्किंग बे, हैंगर और टर्मिनल से जोड़ा गया है।
  • चीन द्वारा वित्तपोषित योजना समय से पहले पूरी होने वाली थी, तथा यह 10 जुलाई, 2021 की नियोजित तिथि से छह माह पूर्व शुरू होने वाली थी। लेकिन कोरोनावायरस महामारी के चलते यह काम समय पर पूरा नहीं हो सका।

 

भारत की चिंता एवं निहितार्थ

भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या नेपाल, चीन को ऋण भुगतान करने में सक्षम होगा क्योंकि यदि ऐसा न हुआ, तो संभव है कि पुनः वैसी ही स्थिति उत्पन्न हो जो हंबनटोटा पोर्ट के मामले में हुई थी। हंबनटोटा पोर्ट (बंदरगाह) श्रीलंका में है, तथा चीन की वित्तीय सहायता से बनाया गया था। 2018 में ऋण चुकाने में विफल रहने के बाद, श्रीलंका को इस बंदरगाह का लगभग 70 प्रतिशत नियंत्रण चीनी कंपनियों को पट्टे पर देने के लिए मजबूर होना पड़ा। वर्तमान में, हंबनटोटा में युद्धपोतों और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) की पनडुब्बियों सहित चीनी जहाज ईंधन भरने या आपूर्ति लेने के लिए नियमित रूप से आते हैं। भारत के लिए चिंताजनक बात यह है कि यह बंदरगाह भारतीय समुद्री तट के बेहद निकट है।

विदेश मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार, “पोखरा भी भारत के, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के शहरों, जैसे गोरखपुर और लखनऊ, के बहुत निकट है। यह चिकन नेक नाम से ज्ञात सिलीगुड़ी कॉरिडोर से भी बहुत दूर नहीं है”, जिसका बहुत रणनीतिक महत्व है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नेपाल जैसे देशों को कर्ज के जाल में फंसाने और फिर वहां अपना मजबूत पैर जमाने की चीन की कोशिशों का महज एक हिस्सा है।

नेपाल के महालेखा परीक्षक के कार्यालय की ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया है कि “नए हवाई अड्डे के वाणिज्यिक संचालन के लिए तकनीकी तैयारी की कमी के कारण, ऐसा प्रतीत होता है कि निर्माण पूरा होने के बाद भी पीआरआईए तुरंत परिचालन में नहीं आएगा”। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नई सुविधा से नागरिक उड्डयन निकाय को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ेगा।

पोखरा में सात झीलें तथा, अन्नपूर्णा और धौलागिरी सहित कई पर्वत शृंखलाएं हैं, और मुक्तिनाथ और जोमसोम जैसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के लिए जंपिंग-ऑफ पॉइंट (वह स्थान जहां से कोई नया उपक्रम या गतिविधि शुरू की जाती है) हैं। इन पर्यटन स्थलों के कारण इस एयरपोर्ट को शुरू किया गया है।

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