दंड प्रक्रिया (शनाख्त) विधेयक, 2022 लोक सभा में गृह मंत्री द्वारा 28 मार्च, 2022 को पेश किया गया था। इसे लोक सभा और राज्य सभा द्वारा क्रमशः 4 अप्रैल एवं 6 अप्रैल, 2022 को पारित किया गया। इस विधेयक को 18 अप्रैल, 2022 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई, और यह अधिनियम बना। यह अधिनियम, बन्दी शनाख्त अधिनियम, 1920 को निरस्त करने की दिशा में निर्दिष्ट है। 1920 के अधिनियम का दायरा, कुछ सिद्धदोषियों और असिद्धदोष व्यक्तियों के अंगुली छापों और पद छापों सहित शारीरिक माप के अभिलेखन तक सीमित था। 2022 का अधिनियम, डेटा—जिसे एकत्र किया जा सकता है, ऐसे व्यक्ति जिनसे डेटा एकत्र किया जा सकता है, और प्राधिकरण जो इस तरह के संग्रहण को अधिकृत कर सकता है—के दायरे और प्रकार को विस्तृत करता है।

सरकार के अनुसार, दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 का उद्देश्य देश में साक्ष्यों के समेकन में सहायता करना और दोषसिद्धि दर को बढ़ाने में मदद करना है। विधेयक के प्रस्ताव के साथ संलग्न उद्देश्य और कारणों के अनुसार, विधेयक—(i) अंगुली छापों, हथेली छापों और पद छापों, फोटोग्राफ, आंख की पुतली और रेटिना (दृष्टिपटल) स्कैन, शारीरिक, जैविक नमूने, तथा उनके विश्लेषण आदि को शामिल करने के लिए ‘माप’ को परिभाषित करता है; (ii) भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो को माप के रिकॉर्ड को संग्रहित, भण्डारित और परिरक्षित करने, तथा उन्हें साझा करने, प्रसारित करने, नष्ट करने एवं निपटान करने के लिए सशक्त करता है; (iii) किसी व्यक्ति को माप देने का निर्देश देने के लिए मजिस्ट्रेट को सशक्त करता है; और (iv) पुलिस या जेल अधिकारी को किसी ऐसे व्यक्ति जो माप देने का विरोध करता है या मना करता है, का माप लेने के लिए सशक्त करता है।

बदलते समय के साथ जांच विधियों को उन्नत करने की आवश्यकता है, क्योंकि प्रगति ने प्रौद्योगिकियों में आपराधिक जांच के लिए उपयोग किए जाने वाले अन्य मापों की सुविधा प्रदान की है। डीएनए प्रौद्योगिकी (प्रयोग और लागू होना) विनियमन विधेयक, 2019 (लोक सभा में लम्बित), अपराध की जांच के लिए डीएनए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने हेतु एक रूपरेखा प्रदान करने का प्रयास करता है। 1980 में, भारत के विधि आयोग ने बन्दी शनाख्त अधिनियम, 1920 की जांच करते हुए, आपराधिक जांच की आधुनिक प्रवृत्तियों के मद्देनजर इसे संशोधित करने की आवश्यकता का अनुपालन किया। मार्च 2003 में, न्यायमूर्ति वी.एस. मलिमथ की अध्यक्षता में आपराधिक न्याय प्रणाली के सुधार पर गठित विशेषज्ञ समिति ने डीएनए के लिए रक्त के नमूनों, बाल, लार और वीर्य जैसे डेटा के संग्रह को अधिकृत करने हेतु मजिस्ट्रेट को सशक्त करने के लिए 1920 के अधिनियम में संशोधन करने की सिफारिश की थी।

अधिनियम के प्रावधान

डेटाः 2022 का अधिनियम संग्रहित किए जाने वाले डेटा में हथेली के छाप, आंख की पुतली और रेटिना स्कैन जैसे शारीरिक छापों; हस्ताक्षर और हस्तलेखन जैसी व्यावहारिक विशेषताओं; और रक्त, वीर्य, बालों के नमूने व स्वैब तथा उनके विश्लेषण जैसे अन्य शारीरिक और जैविक नमूनों, या दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 में निर्दिष्ट किसी अन्य जांच को शामिल कर इसके दायरे का विस्तार करता है।

बन्दी शनाख्त अधिनियम, 1920 दोषसिद्ध व्यक्तियों, और गिरफ्तार किए गए तथा असिद्धदोष आरोपियों की निश्चित श्रेणी की जानकारी प्राप्त करने के मामले में काफी सीमित था। यह एक मजिस्ट्रेट के आदेश पर अंगुली छापों, पद छापों और ऐसे आरोपियों की तस्वीरें लेने तक सीमित था।

सम्भावित व्यक्ति जिनका डेटा एकत्र किया जा सकता हैः नया अधिनियम उन व्यक्तियों के दायरे को बढ़ाता है, जिनका डेटा सभी दोषियों, गिरफ्तार किए गए आरोपियों और किसी भी निवारक निरोध कानून के तहत हिरासत में लिए गए आरोपियों को शामिल करके प्राप्त किया जा सकता है। गिरफ्तार किए गए आरोपियों को तब तक अपने जैविक नमूने देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, जब तक कि उन्होंने किसी महिला या बच्चे के विरुद्ध अपराध न किया हो, या कम से कम सात वर्ष के कारावास का दण्डनीय अपराध न किया हो। बन्दी शनाख्त अधिनियम, 1920 के तहत निम्नलिखित व्यक्तियों को अपनी तस्वीरें और निर्दिष्ट विवरण देने की आवश्यकता होती थीः कुछ निश्चित अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए अपराधियों (जैसे कम से कम एक वर्ष के कठोर कारावास के दण्डनीय अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति), ऐसे व्यक्तियों जिन्हें सीआरपीसी, 1973 के तहत अच्छा व्यवहार या शांति बनाए रखने के लिए प्रतिभूति देने का आदेश दिया गया हो, और कम से कम एक वर्ष के कठोर कारावास के दण्डनीय अपराध के सम्बन्ध में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति।

डेटा का प्रतिधारणः 2022 के अधिनियम के अनुसार, एकत्रित विवरण को संग्रह की तारीख से 75 वर्षों के लिए एक केन्द्रीय डेटाबेस में डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप से संग्रहित किया जाएगा। यह अधिनियम कुछ श्रेणियों से सम्बद्ध लोगों के मामले में अभिलेखों को नष्ट करने की अनुमति प्रदान करता है, जिनमें वे व्यक्ति भी शामिल हैं जिन्हें पहले दोषी नहीं ठहराया गया है, और वे भी, जिन्हें सभी कानूनी उपचारों का उपयोग करने के बाद विचारण के बिना रिहा कर दिया गया है, या न्यायालय द्वारा बरी कर दिया गया है। लेकिन कोई न्यायालय या मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्तियों के ब्यौरे रखने का आदेश दे सकता है।

विवरण प्रकट करने का विरोधः बन्दी शनाख्त अधिनियम, 1920 और दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 के तहत डेटा साझा करने से इनकार करना, एक लोक सेवक को अपना कर्तव्य करने से रोकने के एक अपराध के रूप में माना जाता है। भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के तहत विवरण देने से इनकार करना या उसका विरोध करना एक अपराध है, और पुलिस अधिकारियों या जेल अधिकारियों को राज्य सरकार या केन्द्र सरकार द्वारा विहित नियमों के तहत निर्दिष्ट तरीके से विवरण एकत्रित करने की अनुमति प्रदान करता है।

विवरण एकत्र करने के लिए अधिकृत व्यक्तिः नए अधिनियम में जेल अधिकारी (हेड वार्डन के पद से नीचे नहीं) या पुलिस अधिकारी (एक पुलिस स्टेशन प्रभारी, या कम से कम एक हेड कॉन्स्टेबल के पद पर) द्वारा निर्दिष्ट व्यक्तियों के बारे में विवरण एकत्र करने का प्रावधान है। बन्दी शनाख्त अधिनियम, 1920 के तहत एक पुलिस स्टेशन के प्रभारी पुलिस अधिकारी या सीआरपीसी के तहत जांच करने, या कम से कम एक सब इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत पुलिस अधिकारी द्वारा विवरण एकत्र किया जा सकता था।

मजिस्ट्रेट की शक्तियां: दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 के अनुसार, एक मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को सीआरपीसी के तहत जांच या कार्यवाही के उद्देश्य से विवरण देने के लिए कह सकता है। मजिस्ट्रेट महानगर मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी का न्यायिक मजिस्ट्रेट या अधिकारिता रखने वाला मजिस्ट्रेट हो सकता है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की भूमिकाः दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 के तहत एनसीआरबी को राज्य सरकारों, केन्द्र-शासित प्रदेशों के प्रशासनों, या अन्य कानून प्रवर्तन एजेन्सियों से अधिनियम के अधीन आने वाले व्यक्तियों के बारे में विवरण एकत्रित करने का अधिकार है। दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 के तहत एनसीआरबी को सौंपे गए अन्य कार्यों में राष्ट्रीय स्तर पर निर्दिष्ट व्यक्तियों के बारे में विवरण संग्रहित और नष्ट करना, विवरण को सुसंगत आपराधिक रिकॉर्ड के साथ संसाधित करना और कानून प्रवर्तन एजेन्सियों को विवरण प्रदान करना शामिल है। राज्य सरकारें और केन्द्र-शासित प्रदेश, प्रशासन एजेन्सियों को अपने सम्बन्धित अधिकार क्षेत्र में निर्दिष्ट व्यक्तियों के बारे में विवरण एकत्रित, संरक्षित और साझा करने के लिए भी निर्देश दे सकते हैं।

नियम बनाने की शक्ति केन्द्र सरकार तक विस्तारितः बन्दी शनाख्त अधिनियम, 1920 में केवल राज्य सरकार को नियम बनाने की शक्ति प्रदान की गई थी। नया अधिनियम केन्द्र सरकार को भी यह शक्ति प्रदान करता है। विभिन्न मामलों पर बनाए जाने वाले नियमों में एनसीआरबी द्वारा विवरण एकत्रित, संग्रहित, भण्डारित, संरक्षित, प्रसारित और नष्ट एवं निपटान करने का तरीका शामिल है।

अधिनियम पर चिन्ता

आलोचकों ने दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 पर आपत्ति जताई है कि यह असंवैधानिक और सत्ता का दुरुपयोग है।

दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 निजता और समानता के अधिकार से सम्बन्धित चिन्ताओं को उत्पन्न करता है। अधिनियम अपराध की जांच के लिए आरोपियों से सम्बद्ध निर्दिष्ट जानकारी के संग्रह को अधिकृत करता है। ऐसी जानकारी व्यक्तियों के व्यक्तिगत डेटा का एक हिस्सा है, और इस प्रकार यह व्यक्तियों की निजता के अधिकार के अंतर्गत आती है। 2017 में, सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तियों की निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी और ऐसे सिद्धान्त निर्धारित किए, जो इस अधिकार को सीमित करने वाले किसी भी कानून को नियन्त्रित करें। इनमें सार्वजनिक प्रयोजन, इस तरह के प्रयोजन के साथ कानून के तर्कसंगत गठजोड़, और कम से कम दखल देने वाले तरीके से इस प्रयोजन की उपलब्धि शामिल है। दूसरे शब्दों में, इस प्रयोजन के लिए निजता का अतिक्रमण अवश्य ही आवश्यक और उसके अनुपात में होना चाहिए।

दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 अनुच्छेद 14 के तहत निर्धारित इन मापदण्डों या शर्तों को पूरा नहीं कर सकता है, जिसके लिए कानून का निष्पक्ष और तर्कसंगत होना आवश्यक है। यह विधि के समक्ष समानता को बनाए रखने में भी विफल हो सकता है। एक व्यक्ति जैविक नमूने देने के लिए बाध्य नहीं होगा, जब तक कि उसे किसी महिला या बच्चे के विरुद्ध किए गए अपराध के लिए गिरफ्तार नहीं किया जाता है। कुछ हद तक, इसमें व्यापक अपवाद हैं: चोरी, आखिरकार, एक पुरुष या एक महिला द्वारा की जा सकती है और जिसका शिकार एक पुरुष हो सकता है, जैसा कि एक आलोचक ने इंगित किया है। दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 का यह प्रावधान कानून के समक्ष समानता का उल्लंघन होगा, क्योंकि इसमें लिंग के आधार पर चोरी से पीड़ित लोगों के लिए अलग-अलग नियम लागू होंगे।

दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 पुलिस और जेल अधिकारियों के अधिकार को बढ़ाता है, लेकिन न्यायपालिका की शक्तियों को अपरिवर्तित रखता है। समस्या यह है कि पुलिस की प्रवृत्ति अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने की है। यह अधिनियम उन व्यक्तियों की श्रेणी को विस्तृत करता है, जिनके डेटा को किसी भी अपराध के लिए गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों हेतु संग्रहित किए गए डेटा में शामिल किया जा सकता है। यहां तक कि एक व्यक्ति, जिसने मामूली अपराध किया है, उसके व्यक्तिगत डेटा को एकत्रित और संरक्षित किया जाएगा। यह विधि आयोग की इस टिप्पणी (1980) के विपरीत है कि बन्दी शनाख्त अधिनियम, 1920 इस सिद्धान्त पर आधारित है कि कम गम्भीर अपराध के मामले में, बलपूर्वक उपाय करने की शक्ति सीमित होनी चाहिए।

इसके अलावा, मामले के लिए आवश्यक एकत्रित डेटा का साक्ष्य के साथ कोई सम्बन्ध होना आवश्यक नहीं है। एक केन्द्रीय डेटाबेस डेटा को भण्डारित करेगा, जिस तक व्यापक रूप से पहुंचा जा सकता है। डेटा व्यावहारिक रूप से एक निश्चित अवधि (75 वर्ष) के लिए संग्रहित किया जाता है। भविष्य में अपराधों की जांच के लिए डेटा के प्रतिधारण एवं भण्डारण, और इसके सम्भावित उपयोग की अनुमति देने वाला प्रावधान भी आवश्यकता तथा आनुपातिकता के मानकों को पूरा नहीं कर सकता। यह पुट्टास्वामी और आधार फैसले में स्थापित डेटा न्यूनीकरण तथा भण्डारण सीमा के सिद्धान्तों के खिलाफ भी है। एक आशंका है कि सरकार द्वारा निगरानी को प्रोत्साहित किया जा सकता है और इस कारण डेटा सुरक्षित नहीं हो सकता है, विशेष रूप से भारत में डेटा संरक्षण कानून की अनुपस्थिति और डेटा उल्लंघनों की घटनाओं में लगातार वृद्धि होने के सन्दर्भ में।

एकत्र किए जा सकने वाले विवरणों की सूची को विस्तृत करते हुए, दंड प्रक्रिया (शनाख्त) अधिनियम, 2022 किसी विशेष जांच के लिए आवश्यक मापन को सीमित नहीं करता है। यह विशेष रूप से डीएनए के नमूने लेने पर भी रोक नहीं लगाता है। हालांकि, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 53 के अनुसार, जैविक नमूनों का संग्रह और उनका विश्लेषण तभी किया जा सकता है जब ‘‘यह मानने के लिए उचित आधार हों कि इस तरह की जांच से अपराध के होने का सबूत मिलेगा।’’

अधिनियम में प्रावधान है कि यदि सम्बन्धित व्यक्ति को दोषमुक्त करार किया जाता है या उसे उन्मोचित कर दिया जाता है, तो एकत्रित डेटा को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। हालांकि, भारत में मामले, अन्वेषण और अदालत दोनों स्तरों पर जिस धीमी गति और अत्यधिक अपीलों की अनुमति के साथ आगे बढ़ते हैं, उससे एनसीआरबी के पास वर्षों तक डेटा बना रह सकता है, जो किसी ऐसे व्यक्ति के लिए अनुचित है, जिसे गलत तरीके से फंसाया गया हो।

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