मेघालय
नोगंक्रेम नृत्य उत्सवः यह उत्सव खासी जनजाति द्वारा समृद्धि व अच्छी फसल के लिए मनाया जाता है। इस उत्सव में ‘‘काबलीसिंसर’’ देवी की उपासना की जाती है। नोगंक्रेम शब्द का मतलब ‘‘बकरों की बलि’’ भी होता है। इस उत्सव में पूजा के दौरान बकरों की बलि देने का प्रचलन है।
वंगाला उत्सवः यह गारो जनजाति द्वारा ‘फसल की कटाई’ से पूर्व सूर्य देवता जिन्हें फसल का अधिदेवता भी माना जाता है, को धन्यवाद करने हेतु, नवम्बर यह में मनाया जाता है। गारो भाषा में इसका अर्थ सौ ढोल है। उत्सव के दौरान गायन एवं नृत्य द्वारा देवता को धन्यवाद किया जाता है।
त्रिपुरा
खर्ची पूजाः यह त्योहार त्रिपुरा में प्रतिवर्ष जुलाई महीने में आठ दिन तक मनाया जाता है। इसमें 7 दिन तक पूजा होती है एवं त्रिपुरी राजवंश की स्थापना करने वाले 14 देवताओं की पूजा की जाती है।
मणिपुर
चीरोबा उत्सवः यह उत्सव मणिपुर में नए वर्ष के स्वागत में मनाया जाता है। इसे साजिबू नोगंगा पंबा के रूप में भी जाना जाता है। यह मार्च/अप्रैल माह के पहले चंद्र दिन को पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
कांग चिंगबा त्योहारः यह उत्सव मणिपुर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की पूजा व रथयात्रा के दौरान जून या जुलाई के महीने में मनाया जाता है। यह दस दिन तक चलने वाला उत्सव है। जिसमें रथयात्रा का विशेष महत्व है।
जम्मू-कश्मीर
लोसरः लोसर एक तिब्बती शब्द है जिसका अर्थ है—‘‘नया वर्ष’’। यह उत्सव वर्ष के फरवरी माह में तिब्बती व बौद्ध लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान घरों व गलियों की साफ-सफाई की जाती है एवं घरों को सजाया जाता है।
सिक्किम
लोस्सोंगः यह उत्सव सिक्किम में फसल के मौसम की खुशी में मनाया जाता है। यह उत्सव प्रतिवर्ष दिसंबर में भूटिया एवं लेपचा लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान तीरंदाजी प्रतियोगिता आयोजित की जाती है एवं स्थानीय शराब ‘‘चांग’’ का निर्माण किया जाता है।
सगादवा उत्सवः सागा का मतलब चौथा दावा अर्थात् महीना होता है। यह उत्सव तिब्बती लोगों, विशेषकर महायान बौद्धों द्वारा, पूरे महीने मनाया जाता है, तथा महीने भर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इस उत्सव के दौरान गरीबों को दान भी दिया जाता है।
लाल पांडा शीतकालीन उत्सव यह राज्य पशु पांडा के नाम पर आधारित उत्सव है, जिसे राज्य सरकार द्वारा शीतकाल (दिसम्बर-जनवरी) में मनाया जाता है। इसका आयोजन सामाजिक समरसता एवं राज्य में पर्यटन विस्तार हेतु किया जाता है।
मिजोरम
चपचारकुटः यह मिजोरम का सर्वाधिक प्राचीन एवं सांस्कृतिक महत्व का उत्सव है। यह प्रत्येक वर्ष मार्च अर्थात् बसंत ऋतु में जंगलों व खेतों की सफाई के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस उत्सव का मुख्य आकर्षण ‘‘बांस नृत्य’’ (Bamboo Dance) है जिसे पुरुषों द्वारा, बांसों की धुन पर किया जाता है।
अरुणाचल प्रदेश
ड्री उत्सवः यह उत्सव प्रतिवर्ष जुलाई माह में अपतानी जनजाति द्वारा अच्छी फसल के लिऐ एवं फसल की रक्षा करने वाले देवी-दवताओं की पूजा करके मनाया जाता है।
जिरो संगीत महोत्सवः यह उत्सव अपतानी जनजाति द्वारा जिरो घाटी में सितंबर माह में आयोजित किया जाता है। इस उत्सव का आयोजन संगतिज्ञों/कलाकारों की प्रतिभा दिखाने हेतु किया जाता है।