फरवरी 2019 में ‘साइंस’ नामक जर्नल में प्रकाशित लेख के अनुसार, प्रिंसटन विश्वविद्यालय (अमेरिका), और इंस्टीट्यूट ऑफ जियोडेसी एंड जियोफिजिक्स (चीन) के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के मेंटल में विशालकाय पहाड़ों की खोज की है। यह खोज पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में हमारी समझ को बढ़ाती है। पृथ्वी को सामान्यतः तीन परतों में विभाजित किया जाता हैः (i) भूपर्पटी (पृथ्वी की बाह्यतम परत); (ii) मेंटल (कोर एवं भूपर्पटी के बीच स्थित तथा ऊपरी एवं निचले मेंटल में विभाजित); और कोर (पृथ्वी का अंतरतम क्षेत्रा, जो बाह्य एवं आंतरिक कोर में विभाजित है)। नवीन खोज के अनुसार, पृथ्वी में कई अन्य परतें भी हैं, जिनकी पहचान वैज्ञानिकों ने की है।

इस अध्ययन के लिए 1994 में बोलीविया में आए भूकंप के आंकड़ों का प्रयोग किया गया। यह भूकंप 8.2 तीव्रता का था, जो दूसरा सबसे गहरा रिकॉर्ड किया गया भूकंप है। ये भूकंप उन सभी दिशाओं में तरंगों को भेजते हैं, जो कोर से होकर ग्रह के दूसरी ओर जा सकते हैं और फिर वापस भी आ सकते हैं।

तकनीक तरंगों के मूलभूत गुणों पर निर्भर करती है ,उनके मुड़ने तथा उछलने की क्षमता। जिस प्रकार से किसी प्रिज्म से गुजरने पर प्रकाश की किरणें दर्पण से टकराकर परावर्तित हो सकती हैं या मुड़ सकती हैं, इसी प्रकार भूकंप की तरंगें समरूप चट्टानों के माध्यम से सीधी यात्रा करती हैं लेकिन जब वे किसी सीमा या खुरदुरे स्थान से टकराती हैं, तो परावर्तित हो जाती हैं। वैज्ञानिकों ने सशक्त कम्प्यूटर का उपयोग करते हुए पृथ्वी की गहराई में बिखरती हुई तरंगों के जटिल व्यवहार को समझा।

शोधकर्मियों के अनुसार, सभी पदार्थों में खुरदुरापन होने के कारण प्रकाश परावर्तित हो जाता है इसीलिए हम वस्तुओं को देख पाते हैं। परतों का बिखर जाना सतह के खुरदुरेपन की सूचना देता है। इस अध्ययन में पृथ्वी के 660 किमी. की सीमा पर बिखरी हुई भूकंपीय तरंगों की जांच की गई, जिससे पृथ्वी के भीतरी हिस्से के असमतल होने का पता लगाया जा सका। वैज्ञानिक यह देखकर चौंक गए कि वहां धरती की सतह से कहीं अधिक खुरदुरापन है। दूसरे शब्दों में, रॉकी पर्वत या एपलाशियन पहाड़ों की तुलना में अधिक दृढ़ स्थलाकृति 660 किमी. की सीमा पर स्थित है। सांख्यिकीय मॉडल ने सटीक ऊंचाई निर्धारित नहीं की, परंतु ऐसा संभव है कि ये पहाड़ पृथ्वी की सतह पर उपस्थित किसी भी चीज से बड़े हों। इस परत का औपचारिक नाम न होने के कारण शोधकर्मियों ने इसे ‘660 किमी. बाउंड्री’ कहा।

शोधकर्मियों ने 410 किमी. गहराई पर मेंटल की ऊपरी मध्य सतह ‘ट्रांजिशन जोन’ का भी अध्ययन किया तथा वहां पर उन्हें ऐसी खुरदुरी संरचनाएं नहीं मिलीं। 660 किमी. सीमा पर ऊंची-नीची संरचनाओं का पता लगने से यह ग्रह कैसे बना तथा कैसे कार्य करता है; के विषय में अधिक विस्तृत जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।

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