विगत् ग्यारह वर्षों से विश्व, जलवायु परिवर्तन की दिशा में कदम उठाने हेतु वैश्विक आह्नान के तौर पर ‘अर्थ आवर’ मनाता है। इसके अंतर्गत पूरे विश्व से अपेक्षा की जाती है कि वह एक घंटे के लिए सभी प्रकार की लाइट्स बंद करें। 25 मार्च, 2017 को भी ऐसा ही किया गया, लेकिन अंधेरे के इस क्षण ने हमारा ध्यान एक अन्य समस्या की ओर खींचा, जिस पर बेहद कम ध्यान दिया गया और वह है प्रकाश द्वारा प्रदूषण।
वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार, विश्व की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी कृत्रिम प्रकाश के तले रहती है। संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में, यह आंकड़ा 99 प्रतिशत आबादी पर लागू होता है, जिसमें से अधिकतर रात में आसमान में मिल्की वे का पता नहीं लगा पाते। इसके विपरीत, चाड, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और मेडागास्कर, जो विश्व के सर्वाधिक निर्धन देश हैं, की 75 प्रतिशत से अधिक आबादी को रात में आसमान का साफ नजारा दिखता है।
कृत्रिम प्रकाश के माध्यम से कुछ जीवों के प्रजनन चक्र में बाधा उत्पन्न होती है, पक्षियों के प्रवास, जो दिशा निर्धारण के लिए तारों का प्रयोग करते हैं, में समस्या उत्पन्न हो रही है, और इससे रात में उड़ने वाले कीट दिगभ्रमित हो रहे हैं। मानव में जैविक प्रक्रिया, जो हार्मोन एवं अन्य शारीरिक कार्यों को विनियमित करती है, भी रात में अत्यधिक प्रकाश द्वारा प्रभावित हो सकती है।
विगत् 15 वर्षों में, जीवविज्ञानी, चिकित्सक, गैर-सरकारी संगठन, और यहां तक कि यूनेस्को प्रकाश प्रदूषण के मानव एवं अन्य जंतुओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के विवरण के बारे में बताकर, इसके विरुद्ध मिलकर सामने आए हैं। वर्ष 2012 में अमेरिकी चिकित्सा संघ (एएमए) ने निष्कर्ष निकाला कि ‘अत्यधिक रात्रि प्रकाश’ नींद में अवरोध उत्पन्न कर सकता है और नींद संबंधी समस्याएं बढ़ा सकता है। इस पर अधिक शोध इसका संबंध कैंसर, मोटापा, मधुमेह तथा तनाव जैसे अन्य रोगों से जोड़ सकता है।
वर्ष 2016 में, एएमए ने प्रकाश उत्सर्जक डायोड (एलईडी) के प्रयोग और इसके नकारात्मक प्रभावों का मुद्दा उठाया। दुनियाभर के देश स्ट्रीट लाइट को एलईडी लाइट से प्रतिस्थापित कर रहे हैं, जो कम ऊर्जा खपत करती हैं और लंबे समय तक चलती हैं। यह वैश्विक तापन की समस्या से लड़ने के लिए एक अच्छी खबर है, लेकिन स्वास्थ्य के लिए यह बुरा साबित हो सकता है। एएमए के अनुसार, नीली उच्च-गहनता वाला प्रकाश दृष्टि में धुंधलापन उत्पन्न कर सकता है, और परम्परागत स्ट्रीट लाइट की अपेक्षा जैविक निद्रा पर पांच गुना अधिक प्रभाव डालता है।