भारत ने 9 अप्रैल, 2023 को ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ (व्याघ्र परियोजना) के 50 वर्ष पूरे किए। 1973 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1 अप्रैल को ‘व्याघ्र परियोजना’ की शुरुआत बाघ की लुप्त हो रही आबादी को संरक्षित करने और इसमें वृद्धि लाने के उद्देश्य से की गई थी। उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से शुरू की गई इस परियोजना का उद्देश्य देश की राष्ट्रीय विरासत के रूप में जैविक महत्व वाले क्षेत्रों को संरक्षित करना भी है। प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष के उपलक्ष्य में 9 अप्रैल, 2023 को यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर में ‘व्याघ्र परियोजना के 50 वर्ष’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में ‘इंटरनेशनल बिग कैट्स एलायंस’ (आईबीसीए) की शुरुआत और ‘अमृत काल का टाइगर विजन’ नामक पुस्तिका जारी की गई। इसके अलावा, बाघों की स्थिति 2022: सारांश रिपोर्ट और व्याघ्र परियोजना के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक ‘स्मारक सिक्का’ (कोमेमोरेटिव कॉइन—घटना विशेष के उपलक्ष्य में प्रचालित सिक्का) भी जारी किया गया।

बाघ (पैन्थेरा टाइग्रिस) भारत का राष्ट्रीय पशु है। यह जंगलों में अन्य जंगली जानवरों की व्यवहार्य आबादी, तथा इसके जल संसाधनों और जलवायु सुरक्षा सहित पूरे निवास स्थान की पारिस्थितिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक एक अंब्रेला स्पीशीज (वे प्रजातियां, जिनका चयन संरक्षण-संबंधी निर्णयों के लिए किया जाता है क्योंकि इन प्रजातियों का संरक्षण और सुरक्षा अप्रत्यक्ष रूप से इनके पारितंत्र के भीतर अन्य प्रजातियों के संरक्षण और सुरक्षा को प्रभावित करते हैं) है।

व्याघ्र परियोजना के बारे में

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) की केंद्र प्रायोजित व्याघ्र परियोजना के तहत निर्दिष्ट बाघ अभयारण्यों, जो कि बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मानव की कम उपस्थिति वाले संरक्षण क्षेत्र हैं, में बाघों की आबादी को संरक्षित करने के लिए टाइगर रेंज स्टेट्स (जिन राज्यों में बाघ पाए जाते हैं) को केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।

राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए), जो कि बाघ कृतिक बल (टाइगर टास्क फोर्स) की सिफारिशों के अनुसार, 2005 में गठित एमओईएफसीसी का एक वैधानिक निकाय है, इस परियोजना के लिए प्रशासनिक निकाय है। एनटीसीए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत अपने कार्य करता है।

भारत में उन्नीसवीं सदी में बाघों की आबादी में तेजी से गिरावट आने लगी। बाघों की आबादी 20,000-40,000 से, बड़े पैमाने पर शिकार खेलने और अनधिकृत शिकार करने वाली गतिविधियों और जानवरों के लिए शिकार की कमी में होने वाली वृद्धि के कारण, 1970 के दशक में यह संख्या घटकर लगभग 1,820 रह गई।

बाघों का संरक्षण पहले चरण में 1970 के दशक में शुरू हुआ, जब वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 लागू किया गया। जानवरों और उनके वन पारितंत्र को संरक्षित करने के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाए गए थे। जैसाकि 1980 के दशक में बाघ के अंगों के व्यापार के कारण बाघों की संख्या लगातार कम होती गई जिससे सरिस्का बाघ अभयारण्य में बाघ विलुप्त हो गए, 2005-06 में इसके दूसरे चरण की शुरुआत की गई, जिसमें सरकार ने अभयारण्यों की सख्त निगरानी को शामिल करते हुए भूदृश्य-स्तरीय पद्धति अपनाई थी।

इस परियोजना के प्रारंभिक वर्षों में लगभग 18,278 वर्ग किलोमीटर के भू-क्षेत्र में असम, बिहार, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में 9 बाघ अभयारण्य थे, 2023 तक यह परियोजना 18 बाघ बहुल राज्यों में 53 बाघ अभयारण्यों को शामिल करती है, जो 75,796.83 वर्ग किलोमीटर (भारत के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 2.23 प्रतिशत) के भू-क्षेत्र में फैले हुए हैं।

उत्तराखंड के नैनीताल में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क और कर्नाटक में बांदीपुर टाइगर रिजर्व 1973 में भारत में स्थापित होने वाले पहले बाघ अभयारण्य थे। एनटीसीए के अनुसार, राजस्थान के रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य को 2022 में 52वां बाघ अभयारण्य घोषित किया गया था और रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य, चित्रकूट जिला, उत्तर प्रदेश (राज्य का तीसरा बाघ अभयारण्य) को अक्तूबर 2022 में 53वां बाघ अभयारण्य घोषित किया गया था।

उद्देश्य एवं गतिविधियां

व्याघ्र परियोजना उन कारकों की पहचान करती है जो बाघों के आवासों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं और आवासों को उनकी पारिस्थितिक शुद्धता में संरक्षित और प्रबंधित करने के लिए उपयुक्त प्रबंधन कार्यों के माध्यम से उन्हें कम करते हैं। विकास और वन्यजीव संरक्षण के बीच संतुलन सुनिश्चित करते हुए वैज्ञानिक रूप से गणना की गई आवास क्षमता के आधार पर उनके आर्थिक, पारिस्थितिक, सांस्कृतिक और सौंदर्यपरक महत्व पर बल देने के लिए एक व्यवहार्य आबादी को बनाए रखा जाना है।

इसने इन अभयारण्यों में अवैध शिकार और अन्य अपराधों से निपटने के प्रयास में समाज के सभी क्षेत्रों को शामिल किया है। आवासों को हुए नुकसान का समाधान समग्र रूप से पारितंत्र को ठीक करने के लिए किया जाता है।

यह परियोजना समय-समय पर देश में बाघों की गणना आयोजित करती है।

व्याघ्र परियोजना के तहत बाघों की निगरानी के परिणामस्वरूप इसकी आबादी प्रबंधन में बड़े बदलाव आए हैं, जिनमें नए बाघ अभयारण्यों की घोषणा, अभयारण्यों में मूल (कोर) और बफर क्षेत्रों का पदनाम और अधिसूचना, बाघ परिदृश्यों और बाघ गलियारों की पहचान, बाघ संरक्षण को विकास के साथ जोड़ने पर बल, बाघों और नखरितों (अंगुलेट) के लिए पुनरुत्पादन और पूरक रणनीतियां, तथा यह सुनिश्चित करना शामिल है कि संरक्षण में निवेश कमजोर जीन पूल (एक निश्चित समय पर निश्चित समष्टि में कुल जीन) का आवरण करता हो।

व्याघ्र परियोजना का बाघ अभयारण्यों के कोर क्षेत्रों में एक विशेष बाघ संरक्षण एजेंडा है जिनकी राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य के रूप में विधिक प्रास्थिति हो; बफर क्षेत्रों में एक जन-समावेशी दृष्टिकोण अपनाया गया है जिसमें वन के साथ-साथ कई उपयोगों के लिए प्रबंधित गैर-वन भूमि भी शामिल है। 50 वर्षों में, यह परियोजना मुख्य क्षेत्रों से सभी मानवीय गतिविधियों को समाप्त करने की दिशा में काम कर रही है; बफर क्षेत्रों में, यह बाघ-मानव संघर्ष को कम करने की दिशा में काम कर रही है। राज्यों द्वारा अभयारण्यों में बाघों की सुरक्षा के लिए एक विशिष्ट व्याघ्र सुरक्षा बल बनाया जाता हैं।

यह परियोजना बाघों की आबादी का हिसाब रखने और प्राकृतिक आवास को बनाए रखने के लिए परिष्कृत प्रौद्योगिकियों का व्यापक उपयोग करती है। पहले (2004 तक) बाघों की गणना के लिए व्यापक रूप से बाघों के पदचिह्नों और अन्य संकेतों का इस्तेमाल किए जाने पर निर्भर होने के बजाय, इस परियोजना में कैमरा ट्रैप का उपयोग किया जाता है जो उच्च गुणवत्तापूर्ण डेटा प्राप्त करने के लिए जानवरों की आबादी, व्यवहार और वन आवास तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के बारे में महत्वपूर्ण डेटा और जानकारी प्रदान करता है।

व्याघ्र परियोजना द्वारा 2016 में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में एक ई-आई (ई-दृष्टि) प्रणाली शुरू की गई जो बेहतर निगरानी के लिए थर्मल कैमरों का उपयोग करती है।

इसने 2010 में बाघों के लिए एक सॉफ्टवेयर-आधारित निगरानी प्रणाली शुरू की, जिसे मॉनिटरिंग सिस्टम फॉर टाइगर्स: इंटेंसिव प्रोटेक्शन एंड इकोलॉजिकल स्टेटस (M-STrIPES) कहा जाता है। यह कार्यक्रम बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन में सहायता करने हेतु फील्ड डेटा एकत्र करने हेतु ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और रिमोट सेंसिंग का उपयोग करता है, आईटी टूल का उपयोग करके एक डेटाबेस बनाता है और जीआईएस और सांख्यिकीय टूल का उपयोग करके जानकारी का विश्लेषण करता है।

बाघ सर्वेक्षण: 2006 से, एनटीसीए ने कैमरा-ट्रैप-आधारित सर्वेक्षणों और चिह्न सर्वेक्षणों के डेटा को मिलाकर प्रति चार वर्षों में भारत के बाघों की गिनती करने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान और राज्य वन विभागों के साथ साझेदारी की है। 2022 तक पांच अनुमान सर्वेक्षण आयोजित किए गए थे, 2018 में किए गए चौथे अखिल भारतीय बाघ अनुमान सर्वेक्षण को अब तक के सबसे बड़े कैमरा ट्रैप वन्यजीव सर्वेक्षण के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह मिली।

बाघों की गणना के लिए, नमूना चयन के माध्यम से जानवर की बहुतायत और घनत्व की गणना करने के लिए कैमरा ट्रैप-आधारित ‘कैप्चर-मार्क-रीकैप्चर’ पद्धति का उपयोग किया जाता है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के टाइगर सेल में कार्य केंद्रों से सुसज्जित एक प्रयोगशाला है जो प्राप्त डेटा की मात्रा को संसाधित करती है। जीपीएस स्थानों की जांच की जाती है और अलग-अलग बाघों के राष्ट्रीय डेटाबेस में अलग-अलग बाघों की खाल के साथ बरामद खाल का मिलान करके अवैध शिकार का पता लगाने के लिए सटीक स्थानों के साथ जियोटैग या तस्वीरें खींची जाती हैं। विभिन्न श्रेणियों में छवियों का कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित पृथक्करण और अलग-अलग बाघों की पहचान करने के बाद त्रुटियों के लिए डेटा की मैन्युअल जांच की जाती है और उसे सत्यापित किया जाता है।

बाघों के आवासों के प्राणी जातीय और वनस्पति जातीय मूल्यांकन, तथा इस संबंध में परिवर्तनों की निगरानी के लिए इस परियोजना के तहत वन्यजीव अनुसंधान किया गया है।

कुल मिलाकर यह परियोजना अन्य देशों, जहां बाघों की आबादी या तो स्थिर है या फिर उसमें गिरावट हो रही है, की तुलना में भारत में बाघों की संख्या बढ़ाने में सफल रही है।

उपलब्धियां

व्याघ्र परियोजना के 50 वर्ष पूरा होने के बाद प्राप्त की गई कुछ उपलब्धियां निम्नलिखित हैं:

  • व्याघ्र परियोजना की शुरुआत के दौरान देश में बाघों की न्यूनतम संख्या 268 आंकी गई थी, जो वर्ष 2006 में 1,411; 2010 में 1,706; और 2014 में 2,226 से बढ़कर 2018 में 2,967 आंकी गई जो 88,985 वर्ग किमी. क्षेत्र में निवास कर रहे थे; अप्रैल 2023 में जारी भारत में बाघ अभयारण्यों का प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन, 2022 (पांचवां चक्र), सारांश रिपोर्ट (बाघों की स्थिति 2022: सारांश रिपोर्ट) के अनुसार, यह संख्या 2022 में 6.74 प्रतिशत बढ़कर 3,167 हो गई है।
  • बाघों की स्थिति 2022: सारांश रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में बाघों की 75 प्रतिशत आबादी भारत में है।
  • अवैध-शिकार विरोधी पहल: इस परियोजना के तहत कई विशिष्ट बाघ अभयारण्यों में अवैध शिकार विरोधी अभियानों और मानसून गश्त के लिए एक विशेष रणनीति के तहत व्याघ्र सुरक्षा बलों (एसटीपीएफ) को तैनात किया गया।
  • बाघों की स्थिति 2022: सारांश रिपोर्ट के अनुसार, शिवालिक और गंगा के मैदानों, मध्य भारतीय और पूर्वी घाट जैसे कुछ क्षेत्रों में बाघों की न्यूनतम आबादी में “उल्लेखनीय” वृद्धि दर्ज की गई है।
  • इस परियोजना ने स्थानीय लोगों के लिए सालाना 45 लाख से अधिक मानव दिवस रोजगार देकर उन्हें लाभान्वित किया है। सरकार उनके सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण-विकास समितियों और स्वयं सहायता समूहों की सहायता करती है।

चिंतनीय मुद्दे

अब बाघों की संख्या बहुत अधिक हो गई है, कई अभयारण्य इन्हें आवास प्रदान करने की सीमा तक पहुंच चुके हैं और बिग कैट्स (बिल्ली परिवार के बड़े सदस्यों में से) को रखने के लिए जगह समाप्त हो रही है। साथ ही, बाघों की संख्या में वृद्धि क्षेत्र-वार विषम रही है: दक्षिणी भारत के पश्चिमी घाट जैसे संरक्षित क्षेत्रों में बाघों की आबादी स्थिर या बढ़ सकती है, लेकिन इन अभयारण्यों के बाहर जहां भारत के अनुमानित 30 प्रतिशत बाघ रहते हैं (जैसे कि छत्तीसगढ़, झारखंड, असम, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के जंगल), वहां बाघों की आबादी को बहाल करने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण संरक्षण प्रयासों की कमी रही है।

संरक्षण के प्रयास तब सफल नहीं हो सकते जब बड़े परिदृश्य में या पूरे भारत में बाघों की कुल आबादी कम हो रही हो।

बाघों पर अत्यधिक जोर देने से अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों (रेगिस्तानी लोमड़ी, रेगिस्तानी बिल्ली, धारीदार लकड़बग्घा, भारतीय भेड़िया, और गंभीर रूप से लुप्तप्राय चीनी पैंगोलिन (वज्रशल्क) और बड़ा भारतीय सारंग) और जंगल में रहने वाले मानव समुदायों के संरक्षण के लिए धन और संसाधनों की कमी हो गई है।

अभयारण्यों में अवैध शिकार का खतरा अभी भी बना हुआ है। हालांकि एनटीसीए, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो, राज्य वन विभाग और एमओईएफसीसी ने वर्षों से अवैध शिकार को रोकने के लिए सहयोग किया है, लेकिन भारत और इसके पड़ोसी देशों के बीच सीमा पार जानकारी साझा करने में मौजूदा अंतराल ने सफलता में बाधा उत्पन्न की है।

विकास के लिए भूमि परिवर्तन किया गया है क्योंकि बड़े क्षेत्रों को वन क्षेत्र के अंतर्गत बनाए रखने की राजनीतिक इच्छाशक्ति और करोड़ों रुपये की विकास परियोजनाओं के बीच तीव्र टकराव होता है।

2021 में लीगल इनेशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड इन्वायरोन्मेंट द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) की स्थायी समिति ने 2021 की पहली छमाही में 1385.34 हेक्टेयर भूमि परिवर्तन को मंजूरी दी थी, जिसमें से लगभग 780.24 हेक्टेयर भूमि बाघों के आवास (रैखिक बुनियादी ढांचे और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए) से और लगभग 302.89 हेक्टेयर संरक्षित क्षेत्रों से थी। बाघों की स्थिति, 2022: सारांश रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क जैसे कुछ क्षेत्रों में, भीड़भाड़ वाले गलियारों में राजमार्गों जैसी रैखिक बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं ने इस क्षेत्र को बड़े मांसाहारी जानवरों और हाथियों की आवाजाही के लिए कार्यात्मक रूप से विलुप्त कर दिया है।

व्याघ्र परियोजना के तहत स्वदेशी लोगों को संरक्षण की कीमत चुकानी पड़ रही है। अभयारण्यों से हटाए गए लोगों के पुनर्वास के वादे अभी तक फलीभूत नहीं हुए हैं: स्थानांतरण के लिए पहचाने गए महत्वपूर्ण बाघ आवासों में 751 गांवों में से केवल 177 को स्थानांतरित किया गया था (2023 में एक रिपोर्ट के अनुसार)। हालांकि, लोगों के स्वैच्छिक स्थानांतरण में केवल बाघ अभयारण्य के रूप में चिह्नित कोर या महत्वपूर्ण आवासों को शामिल किया जाना था, लेकिन बफर क्षेत्रों से भी लोगों को हटा दिया गया है।

समाधान

एक अस्थायी समाधान बाघों की अधिक आबादी वाले अभयारण्यों से जानवरों को उन अभयारण्यों में स्थानांतरित करना है जहां बाघों की संख्या कम है, ताकि बाघ अभयारण्यों में अतिसंकुलता को कम किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि एक विविधतापूर्ण जीन पूल है जो प्रजातियों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।

शोधकर्ता एक नए दृष्टिकोण की वकालत करते हैं जो संरक्षण रणनीति के हिस्से के रूप में अन्य प्रजातियों के संरक्षण के साथ-साथ वन समुदायों के अधिकारों पर भी विचार करेगा।

सरकार को सामुदायिक संरक्षित क्षेत्रों (CCAs), जो राज्य-नियंत्रित संरक्षित क्षेत्र मॉडल से आगे बढ़ते हैं और जानवरों और पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित करते हुए स्थानीय लोगों के अधिकारों को स्वीकृति देते हैं, जैसी अवधारणाओं के संबंध में छान-बीन करने की आवश्यकता है।

भारत को संरक्षण के एक सांस्कृतिक मॉडल के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी को आगे बढ़ाने की भी आवश्यकता है, अर्थात अरुणाचल प्रदेश में इदु मिश्मी जैसी स्थानीय जनजातियों को शामिल करना। साथ ही, हमें भारत में बाघ संरक्षण नीतियों में आमूल-चूल बदलाव की आवश्यकता है। कुछ द्वीपों के बजाय पूरे भूदृश्य (भू-सतह का वह भाग जिसका निर्धारण वहां की ढलान, जलवायु, भौमिकीय जलीय दशाओं, और जीवों की विविध क्रियाओं के फलस्वरूप होता है) की सुरक्षा के लिए एक भूदृश्य दृष्टिकोण को अपनाए जाने की तत्काल आवश्यकता है।

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