हाल ही में, भारत की दो आर्द्रभूमियों—गुजरात के खिजड़िया पक्षी अभयारण्य और उत्तर प्रदेश स्थित बखिरा पक्षी विहार को रामसर अभिसमय के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्ता की आर्द्रभूमियों (वेटलैंड्स ऑफ इंटरनेशनल इंपोर्टेंस) की सूची में रामसर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया। इसके साथ ही, भारत में रामसर अभिसमय के अंतर्गत संरक्षित आर्द्रभूमियों की कुल संख्या 49 हो गई जिनका क्षेत्रफल 10,93,636 हेक्टेयर है।
खिजड़िया पक्षी अभयारण्य गुजरात में कच्छ की खाड़ी के तट के निकट एक मीठे पानी की आर्द्रभूमि है, जिसे 1920 में खारे पानी के प्रवेश से खेत की रक्षा के लिए एक बांध (डाइक) के निर्माण के बाद बनाया गया था। खिजड़िया, जो मध्य-एशियाई उड़ान मार्ग (सेंट्रल एशियन फ्लाइवे—सीएएफ) का हिस्सा है, रामसर स्थल घोषित होने वाला गुजरात का चौथा आर्द्रभूमि क्षेत्र बन गया है। नल सरोवर, थोल सरोवर पक्षी अभयारण्य और वाधवाना आर्द्रभूमि राज्य के अन्य रामसर स्थल हैं।
मध्य-एशियाई उड़ान मार्ग के तहत आर्कटिक महासागर एवं हिंद महासागर के बीच विस्तृत क्षेत्र शामिल है जिसमें पक्षियों के कई महत्वपूर्ण प्रवास मार्ग शामिल हैं, और भारत सहित मध्य एशियाई प्रवास मार्ग के अंतर्गत 30 देश आते हैं।
उत्तर-पश्चिमी भारत में महत्वपूर्ण जलपक्षी आवासों में से एक के रूप में यह अभयारण्य जलीय और स्थलीय पक्षियों की एक विस्तृत शृंखला के लिए प्रजनन, भोजन और आवास का आधार है। यह स्थान 125 जलपक्षियों सहित 310 से अधिक पक्षी प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करता है; इस स्थल पर 1,65,000 से अधिक अलग-अलग प्रजातियों के जलपक्षियों की गणना की गई है। इनमें लुप्तप्राय पल्लास की फिश-ईगल (हैलियाईटस ल्यूकोरिफस) और भारतीय स्किमर (रिनचोप्स अल्बिकोलिस), और सुभेद्य कॉमन पोचार्ड (अयथ्या फेरिना) शामिल हैं। इनके अलावा, यह अभयारण्य नियमित रूप से डालमेटियन पेलिकन (पेलेकनस क्रिस्पस) की दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशियाई प्रजाति की 1 प्रतिशत से अधिक, ग्रेलैग गूज (Anser anser) की 2 प्रतिशत से अधिक और कॉमन क्रेन (Grus grus) की 20 प्रतिशत से अधिक की आबादी का भी आश्रय है।
इस अभयारण्य में पौधों की 180 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें गंभीर रूप से लुप्तप्राय भारतीय बडेलियम-ट्री (कॉमीफोरा वाइटी) शामिल हैं। यह अभयारण्य जलविज्ञान संबंधी (हाइड्रोलॉजिकल) व्यवस्थाओं के रखरखाव, क्षरण संरक्षण और पोषक चक्रण में योगदान देता है। इसका उपयोग मनोरंजन और पर्यटन, एवं वैज्ञानिक तथा शैक्षिक गतिविधियों के लिए भी किया जाता है।
रामसर स्थलों के रूप में मान्यता हेतु मानदंड
रामसर सूची में आर्द्रभूमियों को शामिल करने के लिए दो समूहों के तहत नौ मानदंड निर्धारित किए गए हैं, जिनके अनुसार किसी आर्द्रभूमि को शामिल किया जाता है, यदि वह—
- किसी उपयुक्त जैव-भौगोलिक क्षेत्र में प्राकृतिक नमभूमि या प्राकृतिक नमभूमि के समान आर्द्रभूमि की प्रतिनिधिक हो या उसका दुर्लभ अथवा अद्वितीय उदाहरण हो;
- पारिस्थितिक तंत्र की अतिसंवेदनशील, लुप्तप्राय या गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों या सकंटापन्न समूहों को आश्रय प्रदान करती हो;
- किसी विशेष जैव-भौगोलिक क्षेत्र की जैविक विविधता का अनुरक्षण करने हेतु महत्वपूर्ण वनस्पतियों और/या पशु प्रजातियों की आबादियों का आधार हो;
- वनस्पतियों और/या पशु प्रजातियों के जीवन चक्र के किसी संकटपूर्ण चरण में उनका संबल हो, अथवा प्रतिकूल पारिस्थितियों में उन्हें आश्रय प्रदान करती हो;
- नियमित रूप से 20,000 या उससे अधिक जलपक्षियों का पोषण करती हो;
- नियमित रूप से जलपक्षियों की किसी एक प्रजाति या उप-प्रजातियों की किसी आबादी में किसी विशेष प्रजाति के एक प्रतिशत का आश्रयस्थल हो;
- एक महत्वपूर्ण अनुपात में, देशज मछलियों की उप-प्रजातियों, प्रजातियों या वर्गों, जीवनकाल के विभिन्न चरणों, प्रजातियों की अंतःक्रियाओं और/या आबादियों, जो नमभूमि के लाभों या और/या महत्व का प्रतिनिधित्व करती हों और इसके कारण वैश्विक जैविक विविधता में योगदान देती हों, का सहारा हो;
- मछलियों के लिए भोजन, स्पॉनिंग ग्राउंड (अंडे देने का स्थान), नर्सरी (संवर्धन स्थान) और/या प्रवास पथ हो जिस पर, नमभूमि में या उसके बाहर, फिश स्टॉक निर्भर करता हो, और
- वह नियमित रूप से नमभूमि पर निर्भर करने वाले (गैर-पक्षी) पशु प्रजातियों की एक प्रजाति या उप-प्रजातियों की आबादी में किसी विशेष प्रजाति या उप-प्रजाति के एक प्रतिशत का आश्रयस्थल हो।
बखिरा पक्षी विहार, संत कबीर नगर जिले में एक मीठे पानी की कच्छभूमि (ऐसी आर्द्रभूमि, जहां ऊंची वनस्पतियां कम पाई जाती हैं, यानि काष्ठीय पौधों की बजाय घास जैसे छोटे पौधों की बाहुल्यता होती है।), तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा बाढ़ प्रभावित प्राकृतिक क्षेत्र है। 1980 में स्थापित यह अभयारण्य वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित है; इसकी सीमा के चारों ओर एक किमी. तक एक इको-सेंसिटिव जोन (संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों तथा वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास के ऐसे क्षेत्र, जिन्हें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील घोषित किया गया हो, इको-सेंसेटिव जोन कहलाते है।) फैला हुआ है।
यह आर्द्रभूमि यहां निवास करने वाले पक्षियों के लिए अंतरराष्ट्रीय रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पक्षियों की 80 से अधिक प्रजातियों का आवास क्षेत्र है। यह 25 से अधिक प्रजातियों, जो मध्य एशियाई फ्लाईवे पर प्रवास करती हैं, को सर्दियों में सुरक्षा या आश्रय प्रदान करता है, जिनमें से कुछ लुप्त होने वाली हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं जैसे कि लुप्तप्राय इजिप्शियन वल्चर (नियोफ्रॉन पर्कोनोप्टेरस), सुभेद्य ग्रेटर स्पॉटेड ईगल (अक्विला क्लैंगा), कॉमन पोचार्ड (अयथ्या फेरिना) और स्वैंप फ्रैंकोलिन (फ्रैंकोलिनस गुलारिस), और ओरिएंटल डार्टर (अनहिंगा मेलानोगास्टर) तथा वूली नेक्ड स्टॉर्क (सिसोनिया एपिस्कोपस)।
यह आर्द्रभूमि पौधों की 119 प्रजातियों और मछली की 45 प्रजातियों को भी सुरक्षा और भोजन प्रदान करती है। यह सुभेद्य यूरोपियन कार्प (साइप्रिनस कार्पियो) और कैटफिश वालगो अट्टू, और लुप्त होने के कगार पर खड़ी गंगेटिक ऐलिया (ऐलिया कोइला) और सिल्वर कार्प (हाइपोफथाल्मिचिथिस मोलिट्रिक्स) का आश्रय स्थल है। इसका उपयोग मनोरंजन और पर्यटन के लिए भी किया जाता है और यह खाद्य आपूर्ति एवं पोषक चक्रण में भी योगदान देता है।
इससे पहले, वर्ष 2021 में उत्तर प्रदेश के हैदरपुर, गुजरात के थोल सरोवर वन्यजीव अभयारण्य और वाधवाना आर्द्रभूमि, तथा हरियाणा के भिंडावास वन्यजीव अभयारण्य और सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान को रामसर स्थलों की सूची में शामिल किया गया था।
रामसर अभिसमय, जो 1971 में अस्तित्व में आया, एक अंतर-सरकारी संधि है जो आर्द्रभूमियों और उनके संसाधनों के संरक्षण और विवेकपूर्ण उपयोग के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की रूपरेखा प्रदान करती है। भारत ‘कन्वेंशन ऑन वेटलैंड्स’, जिसे रामसर अभिसमय के नाम से भी जाना जाता है, का 1 फरवरी, 1982 को भागीदार बना। अप्रैल 2022 तक अभिसमय में 172 सदस्य तथा 2,439 आर्द्रभूमियां हैं, जो 25,46,91,993 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई हैं। रामसर अभिसमय एकमात्र वैश्विक पर्यावरण संधि है जो विशिष्ट पारितंत्र का प्रबंधन करती हैं।
रामसर अभिसमय (कन्वेंशन) के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों, जहां प्रौद्योगिकीय विकास, प्रदूषण या अन्य मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप पारिस्थितिकीय चरित्र में बदलाव हो गया हो, हो रहा हो, या होने की संभावना हो, को सूचीबद्ध करने का एक आर्द्रभूमि स्थल रजिस्टर है, जिसे मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड (Montreux Record) कहा जाता है। इसे रामसर सूची के भाग के रूप में कायम रखा गया है। इस रजिस्टर की स्थापना कॉन्फ्रेंस ऑफ कॉन्ट्रैक्टिंग पार्टीज (1990) की अनुशंसा पर की गई। वर्ष 1993 में कृतसंकल्प किया गया कि मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड का उपयोग सकारात्मक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्द्रभूमियों के संरक्षण पर ध्यान देने के लिए प्रमुख स्थलों की पहचान करने हेतु किया जाना चाहिए।
आर्द्रभूमि, पारिस्थितिक तंत्र का जटिल हिस्सा है जिसके अंतर्गत अंतःस्थल, तटीय क्षेत्र एवं समुद्री जल की एक व्यापक शृंखला आती है। इसमें आर्द्र एवं शुष्क दोनों प्रकार के पर्यावरण की विशेषताएं होती हैं। रामसर सम्मेलन के अनुसार, आद्रभूमि क्षेत्र के अंतर्गत दलदली, कच्छ क्षेत्र, जो कृत्रिम या प्राकृतिक, स्थायी या अस्थायी, हो सकते हैं, जिसमें पानी ठहरा हुआ या बहता हुआ हो सकता है। इसमें समुद्री क्षेत्र भी शामिल है जिसकी गहराई 6 मीटर से अधिक नहीं होती। इस प्रकार, इस परिभाषा में मैंग्रोव, प्रवाल भित्ति, एश्चुरी, क्रीक, खाड़ी समुद्री घास भूमि एवं झीलें आ जाती हैं।
आर्द्रभूमि पक्षियों एवं पशुओं की दुर्लभ जातियों को संरक्षण प्रदान करती हैं। अधिकतर आर्द्रभूमियां प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से नदियों के अपवाह तंत्र से जुड़ी होती हैं, जैसे—गंगा, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदी तंत्र।
आर्द्रभूमि हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जैसाकि ये न केवल विश्व के कुछ 40 प्रतिशत वनस्पतियों और पशु-पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियों को पोषित और संरक्षित करती हैं, वरन मानव जाति के लिए व्यापक रूप से भोजन, जल, विभिन्न प्रकार के रेशे, भूजल पुनर्भरण, जल शुद्धिकरण, बाढ़ और तटीय क्षरण का नियंत्रण तथा जलवायु नियमित करने जैसी प्रमुख पारिस्थितिकीय प्रणालियां प्रदान करती हैं। वास्तव में, आर्द्रभूमियां पृथ्वी पर जल के प्रमुख स्रोत हैं। इसके अलावा, आर्द्रभूमियों में पाई जाने वाली जैव विविधता पर्यावरण और इससे संबंधित रोजगार को बढ़ावा देती हैं। रामसर अभिसमय की रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी के 6.4 प्रतिशत भू-भाग पर आर्द्रभूमि है। परंतु, पारिस्थितिक तंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होने के बावजूद, वनों की तुलना में आर्द्रभूमियां पृथ्वी से तीन गुना तेजी से लुप्त होती जा रही है , जैसाकि 1970-2015 के बीच पृथ्वी से 35 प्रतिशत आर्द्रभूमियों का लोप हो चुका है, जो कि चिंताजनक है।
भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधन संगठन (इसरो) द्वारा संकलित राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची मूल्यांकन के अनुसार, भारत के 1,52,600 वर्ग किमी. से भी अधिक क्षेत्र में आर्द्रभूमि फैली हुई हैं, जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.63 प्रतिशत है। इस कुल क्षेत्र (1,52,600 वर्ग किमी.) के 43.4 प्रतिशत क्षेत्र में अंतःस्थलीय प्राकृतिक आर्द्रभूमियां और 24.3 प्रतिशत क्षेत्र में तटीय प्राकृतिक आर्द्रभूमियां हैं, जबकि नदियां/जलप्रवाह 52,600 वर्ग किमी., जलाशय/बैराज 24,800 वर्ग किमी. अंतर्ज्वारीय मडफ्लैट 24,100 वर्ग किमी., तालाब/हौज 13,100 वर्ग किमी. और झील/सरोवर 7,300 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले हुए हैं।
आर्द्रभूमियों के मामले में, गुजरात सबसे आगे (34,700 वर्ग किमी. जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 17.56 प्रतिशत है) है, जिसके पश्चात क्रमशः आंध्र प्रदेश (14,500 वर्ग किमी.) उत्तर प्रदेश (12,400 वर्ग किमी.) तथा पश्चिम बंगाल (11,100 वर्ग किमी.) का स्थान है।
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