भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने 9 फरवरी, 2023 को जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले में सलाल-हैमाना क्षेत्र में लगभग 5.9 मिलियन टन लीथियम के विशाल भंडार की खोज की है। इन संसाधनों को ‘रियासी सेरसंडू-खेरीकोट-रहोटकोट-दरबी’ खनिज ब्लॉक के हिस्से के रूप में स्थापित किया गया है, जहां 2021–22 से पूर्वेक्षण चल रहा है। यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल फ्रेमवर्क क्लासिफिकेशन फॉर रिजर्व्स/रिसोर्सिज—सॉलिड फ्यूल्स एंड मिनरल कमोडिटीज ऑफ 1997 (यूएनएफसी-1997) के तहत पूर्वेक्षण के चरण को शुरू में ‘G4’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इन खोजों में बॉक्साइट, एल्युमीनियम के अयस्क, और अन्य दुर्लभ मृदा तत्वों के बारे में जानकारी प्राप्त करना शामिल है। लीथियम के इन निचयों (रिजर्व) को ‘अनुमानित संसाधन’ (ऐसे संसाधन जिनके लिए भूवैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर मात्रा और श्रेणी का अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन जिनकी भूगर्भीय और श्रेणी निरंतरता को इस चरण पर प्रमाणित नहीं किया जा सकता है) कहा जाता है।

इन लीथियम निक्षेपों का व्यावसायिक रूप से उपयोग करने में पांच से सात वर्ष लगेंगे।

लीथियम का महत्व

लीथियम (Li) एक अलौह धातु है, तथा मोबाइल फोन, लैपटॉप, डिजिटल कैमरा और इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की रिचार्जेबल (पुनःआवेशनीय) बैटरियों के प्रमुख घटकों में से एक है। इसका हार्ट (हृदय) पेसमेकर, खिलौनों और घड़ियों जैसे उत्पादों के लिए प्रयोग की जाने वाली कुछ नॉन-रिचार्जेबल बैटरियों में भी किया जाता है। यह एक ग्रे, चमकदार, अलौह धातु है जो सभी धातुओं में सबसे हल्की और सबसे कम सघन होती है। हाइड्रोजन और हीलियम गैसों के बाद आवर्त सारणी (पीरियोडिक टेबल) में यह तीसरा तत्व है। लीथियम एक क्षारीय धातु (एल्कलाई मेटल) है जो अत्यधिक अभिक्रियाशील है। इसे ‘श्वेत स्वर्ण (व्हाइट गोल्ड)’ भी कहा जाता है और कई देशों ने इसके भंडार की खोज के प्रयास तेज कर दिए हैं।


लीथियम के भूवैज्ञानिक अन्वेषण के चरण

जीएसआई ने पहली बार 1999 में रियासी जिले में लीथियम निक्षेप की उपस्थिति का पता लगाया और इसका अभिलेखन किया। जीएसआई ने अब इन लीथियम निचयों को G3 चरण के रूप में वर्गीकृत किया है जिसे लवण-अधस्तल के लवण-जल या खनिज अयस्कों से लीथियम निकालने के लिए छह-चरण की प्रक्रिया में वर्गीकृत किया गया है।

यूएनएफसी के अनुसार, किसी भी खनिज निक्षेप की खोज के चार चरण होते हैं: क्षारकीय आवीक्षण (basic reconnaissance) या पूर्वेक्षण का पूर्ण रूप से उन्नत चरण (G4), तत्पश्चात प्रारंभिक अन्वेषण (G3), जिसके बाद सामान्य अन्वेषण (G2), और फिर विस्तृत अन्वेषण (G1) का चरण आता है।


भारत के लिए इस खोज का महत्व

लीथियम एक मृदु, रजताभ-श्वेत धातु (silvery-white metal) है, जो पानी के साथ तेजी से अभिक्रिया करता है। मूल्यांकन के चरणों के बाद, यदि लीथियम के पर्याप्त निचय पाए जाते हैं, तो वे भारत की आयात निर्भरता को कम करने में सहायक होंगे। भारत अपनी स्थिर बैटरी प्रणाली और EV बैटरी उद्योगों के लिए लीथियम का आयात करता रहा है, क्योंकि यह रिचार्जेबल बैटरियों, जो EVs को गति प्रदान करते हैं, और नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा  प्राप्त करने के लिए संचायक (स्टोरेज) बैटरियों में एक आवश्यक घटक है।

भारत ने 2020–21 में 173 करोड़ रुपये मूल्य की लीथियम धातु और 8,811 करोड़ रुपये मूल्य की लीथियम बैटरी का आयात किया। 2022 में केवल अप्रैल से नवंबर के बीच 164 करोड़ रुपये की लीथियम और 7,986 करोड़ रुपये की बैटरी का आयात किया गया।

पेरिस समझौते के तहत कई देश अपनी जलवायु संबंधी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की ओर बढ़ रहे हैं। EVs की ओर संक्रमण महत्वपूर्ण है, जैसाकि वाहन प्रदूषण कार्बन उत्सर्जन के एक बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा, भारत ने 2030 तक निजी कारों में EVs की बिक्री की सीमा 30 प्रतिशत, तथा दोपहिया और तिपहिया वाहनों की भी बिक्री की सीमा 80 प्रतिशत निर्धारित की है। 2021 में ग्लासगो में COP26 (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज) के दौरान, भारत ने 2070 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को निवल शून्य करने का संकल्प लिया है।

भारत सरकार ने पहले ही भारत के अद्यतित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को मंजूरी दे दी है जिसके संबंध में अगस्त 2022 में ही जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र ढांचा अभिसमय (यूएनएफसीसीसी) को सूचित कर दिया गया था। इसलिए भविष्य में ऐसे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लीथियम की उपलब्धता महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) के अनुसार, EVs की बढ़ती मांग के कारण लीथियम की वैश्विक आपूर्ति के लिए कठिन परिश्रम किया जा रहा है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर वर्ष 2025 तक लीथियम की कमी का सामना करना पड़ सकता है। 2030 तक, अपेक्षित है कि लीथियम की मांग में बैटरियों की हिस्सेदारी 95 प्रतिशत होगी, जो 2022 में दर्ज की गई लीथियम की उच्च कीमतों, 75,000 अमेरिकी डॉलर प्रति टन, से स्पष्ट है।

नीति आयोग के अनुसार, भारत का बैटरी भंडारण बाजार 2030 तक 1000 GWh से अधिक तक पहुंचना अपेक्षित है, जैसाकि 25,000 करोड़ के संचयी बाजार के आकार में परिवर्तन हो रहा है।


विश्व में लीथियम भंडार की कमी नहीं है। इसके निष्कर्षण की प्रक्रिया समय-गहन और अवसंरचना-गहन रही है। वर्तमान में, लीथियम को ठोस शैल खानों से या लवण अधस्तलों और झीलों से लवण-जल के रूप में निकाला जा रहा है, जहां से वाष्पीकरण टैंकों का उपयोग करके इसे पुनर्प्राप्त किया जाता है।

यूएस जियोलॉजिकल सर्वे में उल्लिखित है कि 2022 की शुरुआत में विश्व भर में लीथियम के 89 मिलियन टन अभिज्ञात संसाधन थे। हालांकि, इन संसाधनों का निचय या खनन योग्य भाग 22 मिलियन टन था। विश्व के आधे लीथियम संसाधन लैटिन अमेरिका (ज्यादातर बोलीविया, चिली और अर्जेंटीना), ऑस्ट्रेलिया और चीन में सकेंद्रित हैं। 2021 में लगभग 90 प्रतिशत लीथियम खनन चिली, चीन और ऑस्ट्रेलिया में हुआ, जिनमें में ऑस्ट्रेलिया इसका प्रमुख उत्पादक देश था।


भारत में संभावित लीथियम निचय

2018 से, जीएसआई ने लीथियम और संबंधित तत्वों पर 14 परियोजनाएं पूरी की हैं। इनमें से लीथियम और संबंधित खनिजों पर पांच परियोजनाएं 2021–22 में शुरू की गईं। भारत में  राजस्थान में सांभर और पचपदरा क्षेत्रों, तथा गुजरात के कच्छ के रण के लवण-जल से लीथियम को पुनर्प्राप्त करने का कुछ सामर्थ्य है। देश के अन्य संभावित भूवैज्ञानिक क्षेत्रों में राजस्थान, बिहार और आंध्र प्रदेश में स्थित प्रमुख अभ्रक (विस्तृत रूप से वितरित शैल-रचक खनिजों का एक समूह) क्षेत्र, तथा ओडिशा, छत्तीसगढ़ में पेग्माटाइट (अति दीर्घ आकार के क्रिस्टलों से युक्त एक अत्यधिक स्थूल गठन वाला आग्नेय शैल) क्षेत्र, मांड्या, कर्नाटक में किए जा रहे शैल खनन शामिल हैं।

परमाणु खनिज अन्वेषण एवं अनुसंधान निदेशालय (एएमडी), जो परमाणु ऊर्जा विभाग की एक शाखा है, ने पहले प्रारंभिक सर्वेक्षण किया था जिसमें कर्नाटक के मांड्या जिले के मारलगल्ला-अल्लापटना क्षेत्र की आग्नेय चट्टानों में अनुमानित श्रेणी के 1,600 टन लीथियम संसाधनों की उपस्थिति भी दर्शाई गई थी।

मुद्दे और चुनौतियां

जैसाकि भारत ने बैटरी सेल विनिर्माण दांचे की स्थापना करने के लिए बैटरी उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) स्कीम शुरू की है, इसलिए बैटरी सेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए खनिज प्रसंस्करण और कच्चे माल की प्रसंस्करण क्षमता विकसित करना महत्वपूर्ण है। इस नवीनतम खोज को इस दिशा में एक महत्वपूर्ण विकास कहा जा सकता है।

वर्तमान में वैश्विक लीथियम बाजार के एक-तिहाई हिस्से पर विश्व की चार सबसे बड़ी खनन कंपनियों (Albemarle, SQM, Tianqi, और FMC) का नियंत्रण है। अपनी घरेलू खदानों के अलावा, चीन ने लीथियम की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अन्य देशों में कई लीथियम खदानें स्थापित की हैं। लीथियम की उपलब्धता पर यह एकाधिकार, हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु भारत के लिए एक चुनौती रहा है।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर लीथियम के खनन के प्रभाव बहुत अधिक हैं क्योंकि खनन से जल, मृदा और वायु प्रदूषण होता है। लीथियम खनन की प्रक्रिया भी अत्यंत जल-गहन है—एक टन लीथियम का उत्पादन करने के लिए लगभग 2.2 मिलियन लीटर जल की आवश्यकता होती है। लीथियम की मांग बढ़ रही है, जैसाकि 2050 तक वैश्विक स्तर पर इसकी मांग में 488 प्रतिशत तक वृद्धि अपेक्षित है। हालांकि, लीथियम खनन और प्रसंस्करण के कारण संधारणीयता की चुनौतियों का समाधान करने के लिए अब तक पर्याप्त शोध नहीं किए गए हैं।

संपूर्ण विश्व की निगाहें भारत पर टिकी हैं, क्योंकि वर्तमान में यह G20 राष्ट्रों का अध्यक्ष है। G20 अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक अंतर-सरकारी मंच है। इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण होगा कि क्या इन महत्वपूर्ण खनिजों से प्राप्त लाभों तक समान पहुंच के संबंध में विश्व स्तर पर कोई लाभकारी प्रस्ताव हैं।

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