रसायन विज्ञान में 2023 के नोबेल पुरस्कार की घोषणा स्वीडन की रॉयल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा 4 अक्तूबर, 2023 को की गई थी। क्वांटम बिंदुओं की खोज और विकास के लिए मौंगी जी. बावेंडी (मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, यूएसए), लुईस ई. ब्रूस (कोलंबिया विश्वविद्यालय, यूएसए) और एलेक्सी येकिमोव (नैनोक्रिस्टल टेक्नोलॉजी इंक, यूएसए) को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। क्वांटम डॉट लाइट एमिटिंग डायोड (क्यूएलईडी) प्रौद्योगिकी पर आधारित, ये क्वांटम बिंदु वर्तमान में टेलिविजन, एलईडी लैंप, कंप्यूटर मॉनिटर आदि को प्रदीप्त करते हैं। क्वांटम बिंदु रासायनिक अभिक्रियाओं को अनुप्राणित (इन्फ्यूज) करते हैं और इनका निर्बाध प्रकाश अर्बुद (ट्यूमर) के ऊतकों को हटाते समय शल्यचिकित्सकों (सर्जनों) का मार्गदर्शन करके उनकी सहायता कर सकता है।

11 मिलियन स्वीडिश क्रोनोर की पुरस्कार राशि को तीनों वैज्ञानिकों के बीच समान रूप से साझा किया जाएगा। इस राशि के अलावा, पुरस्कार विजेताओं को 18 कैरेट के स्वर्ण पदक और एक डिप्लोमा से  भी सम्मानित किया जाएगा।

क्वांटम बिंदु

क्वांटम प्रभावों के निर्गमन के कारण, छोटे नैनोकणों की विशिष्ट विशेषताएं होती हैं। इलेक्ट्रॉन जैसे सूक्ष्म कणों (मिनट पार्टिकल) में मूलतः भिन्न और विलक्षण गुणधर्म होते हैं। इनकी गति और व्यवहार सामान्य मानवीय अनुभव में परिचित वस्तुओं से भिन्न होते हैं। क्वांटम सिद्धांत, एक सदी पूर्व भौतिकविदों द्वारा विकसित, अवपरमाणुक (सब-एटॉमिक) स्तर पर अद्भुत व्यवहार का वर्णन करता है। परमाणुओं की तुलना में नैनोकण आकार में बहुत बड़े होते हैं। एक नैनोकण के भीतर अनेक परमाणु, जो कि परमाणु के आकार पर निर्भर करता है, हो सकते हैं। तथापि, 1930 के दशक में यह सिद्धांत प्रस्तुत किया गया था कि जब कणों का आकार नैनोस्केल तक कम हो जाता है, तो यह क्वांटम प्रभावों को जन्म दे सकता है। यह इस तथ्य के कारण था कि इलेक्ट्रॉन एक सीमित स्थान में व्यवरुद्ध थे। सामान्यतः इलेक्ट्रॉन परमाणु के नाभिक से बाहर गतिमान रहते हैं। हालांकि, यदि कणों का आकार बहुत छोटा हो तो इलेक्ट्रॉन दृढ़ता से संकुलित हो जाते हैं। इससे विलक्षण क्वांटम प्रभाव हो सकते हैं। एलेक्सी येकिमोव और लुईस ब्रूस ने इन विलक्षण क्वांटम प्रभावों को देखा, तथा अपनी प्रयोगशालाओं में नैनो-आकार के कणों को उत्पन्न किया। एक ही तत्व के बड़े कणों की तुलना में भिन्न विशेषताओं वाले नैनो आकार के इन कणों को क्वांटम बिंदु कहा जाता है।

इस खोज का महत्व

क्वांटम बिंदु की खोज होने के तीन दशक बाद, ये नैनोप्रौद्योगिकी टूलबॉक्स (नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उपयुक्त उपकरणों और तकनीकों का संग्रह) का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं और कई वाणिज्यिक उत्पादों में पाए जाते हैं। कंप्यूटर और टेलिविजन स्क्रीन में क्यूएलईडी प्रौद्योगिकी प्रयुक्त होती है। इन स्क्रीनों में ऊर्जा-कुशल डायोड का उपयोग करके नीले प्रकाश को उत्पन्न किया जाता है। क्वांटम बिंदुओं का प्रयोग नीले प्रकाश का रंग कुछ हद तक बदलने में का प्रयोग किया जाता है, जिससे वह हरे या लाल रंग में बदलता है। टेलिविजन स्क्रीन में तीन प्राथमिक रंग इसी के कारण उत्पन्न होते हैं।

डायोड के ठंडे प्रकाश को समायोजित करने के लिए, प्रकाश को दिन के उजाले के रूप में सक्रिय करने या मंद बल्ब की भांति शांत करने के लिए एलईडी लैंप में क्वांटम बिंदुओं का प्रयोग किया जाता है।

क्वांटम बिंदु प्रकाश को जैव रसायन और चिकित्सा के क्षेत्र में प्रयुक्त किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि क्वांटम बिंदु नम्य इलेक्ट्रॉनिकी, बहुत छोटे सेंसर, स्लिमर सौर सेल, एन्क्रिप्टेड क्वांटम संचार, शल्य अर्बुद विज्ञान और क्वांटम कंप्यूटिंग आदि में योगदान दे सकते हैं।

एलेक्सी येकिमोव का योगदान

एलेक्सी येकिमोव ने अपनी पीएचडी (विद्यावाचस्पति) के शोध के दौरान अर्धचालकों (सेमीकंडक्टर) के, जो सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिकी (माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स) में महत्वपूर्ण घटक हैं, संबंध में अध्ययन किया। अर्धचालक पदार्थ की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए नैदानिक उपकरण के रूप में प्रकाशीय विधियों (ऑप्टिकल मेथड) का उपयोग किया जाता है। इस पदार्थ की अवशोषण क्षमता के मापन हेतु वैज्ञानिक उस पर दीप्त प्रकाश डालते थे। इसके साथ, उन्होंने उन द्रव्यों का आकलन किया जिनसे यह पदार्थ बनाया गया था और साथ ही, इसकी क्रिस्टल संरचना (किसी क्रिस्टलीय पदार्थ में परमाणुओं का क्रमित विन्यास) की सुव्यवस्था का भी आकलन किया।

चूंकि एलेक्सी येकिमोव इन विधियों से परिचित थे, इसलिए उन्होंने रंगीन कांच के अन्वेषण के लिए इन तरीकों का उपयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने 1 से 96 घंटे तक अलग-अलग तापन अवधि में पिघले हुए कांच को 500 डिग्री सेल्सियस और 700 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक तप्त किया। जब पिघले हुए कांच का एक्स-रे किया गया, तो कांच के अंदर लघु कॉपर क्लोराइड (CaCl) के क्रिस्टल बन गए थे और कणों का आकार निर्माण प्रक्रिया से प्रभावित हुआ था। कांच के नमूनों में कणों का आकार अलग-अलग था, कुछ लगभग दो नैनोमीटर के थे, और कुछ 30 नैनोमीटर तक के थे। इसके अतिरिक्त, प्रकाश अवशोषण (लाइट एब्जॉर्प्शन) कणों के आकार से प्रभावित हो रहा था—सबसे बड़े कणों ने प्रकाश को उसी तरह अवशोषित किया जैसे कॉपर क्लोराइड सामान्य रूप से करता है, जबकि छोटे कणों ने नीले प्रकाश को अवशोषित किया। येकिमोव ने आकार-आश्रित क्वांटम प्रभाव को समझा। इस प्रकार, येकिमोव क्वांटम बिंदुओं के, वे नैनोकण जो आकार-आश्रित क्वांटम प्रभाव पैदा करते हैं, उत्पादन में सफल होने वाले पहले व्यक्ति थे। इन्होंने अपनी खोज को 1981 में सोवियत संघ के एक वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित किया।

लुईस ब्रूस का योगदान

एलेक्सी येकिमोव की खोज से अनभिज्ञ लुईस ई. ब्रूस ने 1983 में विलयन में स्वतंत्र रूप से तैरते कणों में आकार-आश्रित क्वांटम प्रभावों की खोज की। वे सौर ऊर्जा का उपयोग करके रासायनिक अभिक्रियाओं पर काम कर रहे थे। कैडमियम सल्फाइड (CdS) के कणों को प्रयुक्त किया गया क्योंकि यह प्रकाश का प्रग्रहण कर सकता था और अभिक्रियाओं के होने के लिए अपनी ऊर्जा का उपयोग कर सकता था। ब्रूस ने विलयन में कणों को छोटा बनाया ताकि यह एक बड़ा क्षेत्र प्रदान कर सके, जिस पर रासायनिक अभिक्रिया हो सके। जब इसे कुछ देर के लिए छोड़ दिया गया, तो इसके प्रकाशिक गुणधर्म बदल गए और CdS कणों, जिनका व्यास लगभग 4.5 नैनोमीटर था, की तुलना में इनका व्यास लगभग 12.5 नैनोमीटर हो गया। बड़े कण समान तरंग-दैर्घ्यों पर प्रकाश को अवशोषित करते हैं जैसा कि CdS सामान्य तौर पर करता है, लेकिन छोटे कण नीले प्रकाश को अवशोषित करते हैं। ब्रूस ने 1983 में आकार-आश्रित क्वांटम प्रभाव की अपनी खोज प्रकाशित की। उन्होंने कई अन्य पदार्थों से बने कणों की भी जांच की और पाया कि कण जितने छोटे होंगे, उनके द्वारा अवशोषित प्रकाश उतना ही अधिक नीला होगा।

येकिमोव और ब्रूस के प्रयोगों ने सfबित कर दिया कि इलेक्ट्रॉन किसी पदार्थ के प्रकाशिक (ऑप्टिकल) और अन्य गुणधर्मों को नियंत्रित करते हैं जैसे कि रासायनिक अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने या विद्युत का संचालन करने की क्षमता। इससे साबित हुआ कि किसी तत्व के गुणधर्म न केवल इलेक्ट्रॉन कोश की संख्या और बाह्य कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या से प्रभावित होते हैं, बल्कि नैनो स्तर पर तत्व का आकार भी महत्व रखता है।

इस प्रकार, उस समय क्वांटम बिंदु अलग-अलग आकार के थे। इसलिए, यदि शोधकर्ता अपेक्षा करते हैं कि किसी विलयन में सभी कण एक ही आकार के हों, तो उन्हें बनाने के बाद उन्हें क्रमबद्ध करना होगा। चूंकि यह एक कठिन प्रक्रिया थी, इसने विकास में बाधा उत्पन्न की।

मौंगी बावेंडी का योगदान

मौंगी जी. बावेंडी ने अपने करियर के शुरुआती दौर में ब्रूस के साथ काम किया था। बाद में, उन्होंने कुशलतापूर्वक नैनोकणों का उत्पादन करने के लिए आसान विधि विकसित की, जिससे कुछ अपेक्षित असामान्य व्यवहार प्राप्त हुआ। उन्होंने 1993 में सफलता हासिल की। उन्होंने ऐसे पदार्थों को अंतःक्षेपित किया जो गर्म विलायक में कैडमियम सेलेनाइड (CdSe) बना सकते थे। यह मात्रा सूई के चारों ओर विलायक को संतृप्त करने के लिए पर्याप्त थी। इससे CdSe के छोटे क्रिस्टलों का तुरंत निर्माण हुआ। तथापि, जब इंजेक्शन को ठंडा किया गया, तो विलायक क्रिस्टल बनना बंद हो गए। इसके बाद बावेंडी ने विलायक का तापमान बढ़ा दिया और क्रिस्टल एक बार फिर बनने लगे। यह जितना अधिक समय तक चलता रहा, क्रिस्टल उतने ही बड़े होते गए। इस प्रकार, मौंगी बावेंडी और उनका अनुसंधान समूह एक विशिष्ट आकार के नैनोक्रिस्टल विकसित करने में सफल रहे। इन नैनोक्रिस्टलों से विशिष्ट क्वांटम प्रभाव उत्पन्न हुए।

चूंकि नैनोक्रिस्टल की इस उत्पादन विधि का उपयोग करना आसान था, इसलिए अधिक से अधिक रसायनज्ञों ने नैनो प्रौद्योगिकी के साथ काम करने की बात कही और क्वांटम बिंदुओं के अद्वितीय गुणधर्मों की जांच करना शुरू कर दिया।

नोबेल पुरस्कार के बारे में

नोबेल पुरस्कार से उन लोगों को सम्मानित किया जाता है जो मानव जाति को अधिकतम लाभ प्रदान करते हैं। अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर संस्थापित, ये पुरस्कार भौतिकी, रसायन विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान (चिकित्सा शास्त्र), साहित्य, शांति और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में दिए जाते हैं। इन पुरस्कारों को व्यापक रूप से उनके संबंधित क्षेत्रों में प्राप्त होने वाला सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। 1901 में पहली बार नोबेल पुरस्कारों से व्यक्तियों को सम्मानित किया गया था।

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