कर्नाटक के मुख्यमंत्राी सिद्धरमय्या ने 8 मार्च, 2018 को राज्य के ध्वज को अनुमति प्रदान की। उन्होंने अपने राज्य का झंडा ‘‘नादध्वज’’ दिखलाया जिसमें तीन रंग हैं लाल, सफेद और पीला और उनके बीच में सफेद रंग पर राज्य का प्रतीक चिन्ह ‘गंडभेरून्ड’ दो सिर वाला एक पौराणिक पक्षी है। उनका कहना है कि यह एक ऐतिहासिक निर्णय है और राज्य के इतिहास को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। इससे राज्य के लोगों में स्वाभिमान जागृत होगा, यद्यपि विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले चुनावों के कारण यह निर्णय लिया गया है। यद्यपि हम ऐसा निर्णय नहीं ले सकते और इसके लिए केंद्र की स्वीकृति की आवश्यकता होगी। हम केंद्र सरकार पर दबाव बनाएंगे जिससे केंद्र सरकार इसे जल्द से जल्द स्पष्ट करे। ऐसा पहली बार होगा कि किसी राज्य के पास अपना झंडा होगा। जम्मू और कश्मीर के अलावा अन्य कोई राज्य नहीं है जिसके पास अपना झंडा हो। संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी राज्य को अपना झंडा चुनने से रोकता हो। उन्होंने कहा कि यह झंडा राष्ट्रीय झंडे से नीचे लगाया जाएगा। अनाधिकारिक रूप में जिस कन्नड़ झंडे का प्रयोग पहले से होता आया है, ये नया झंडा उससे भिन्न है।

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने जून, 2017 को राज्य के लिए अलग ध्वज की दिशा में कदम बढ़ाए थे। सरकार ने नौ-सदस्यीय समिति का गठन किया था जिसने राज्य के लिए अलग ध्वज अपनाए जाने के संबंध में कानूनी स्थिति पर रिपोर्ट दी। कर्नाटक सरकार के इस निर्णय से यह विवाद उत्पन्न हो गया कि क्या राज्य अपने-अपने अलग ध्वज रख सकते हैं तथा इस के अप्रत्यक्ष परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं। वर्तमान में, केवल जम्मू और कश्मीर राज्य को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष अधिकारों के कारण अपना अलग ध्वज रखने का अधिकार प्राप्त है।

यद्यपि किसी राज्य को अपना ध्वज रखने से कोई रोक नहीं है, ध्वज संहिता 2002, ध्वज तथा ध्वजारोहण से संबद्ध विषयों का उल्लेख करता है। ध्वज संहिता 2002 राष्ट्रीय ध्वज तथा आचार संहिता के विषय का उल्लेख करता है परन्तु, राज्य के पास अपना ध्वज रखने का अधिकार है या नहीं, इस विषय पर संहिता में कुछ भी नहीं कहा गया है।

उल्लेखनीय है कि कर्नाटक राज्य में लाल और पीले रंग का ध्वज अनाधिकृत तौर पर लोगों द्वारा विभिन्न राज्य-समारोहों में उपयोग में लाए जाते हैं। यद्यपि इस ध्वज का प्रयोग राज्य के औपचारिक ध्वज के रूप में स्वतंत्राता दिवस व गणतंत्रा दिवस जैसे राष्ट्रीय समारोह में नहीं होता, तथापि राज्य के स्थापना दिवस जैसे समारोहों में इसका उपयोग होता रहा है तथा समय-समय पर इसे औपचारिक रूप से राज्य का ध्वज घोषित किए जाने की मांग भी उठती रही है। 2012 में भी इस प्रकार की मांग को तत्कालीन भाजपा सरकार अस्वीकृत कर चुकी है।

जिन लोगों का दृष्टिकोण इस मामले में आलोचनात्मक रहा है, उनके अनुसार, ‘‘भारत एक राष्ट्र, एक ध्वज है, जम्मू-कश्मीर के अपवाद के साथ। भारत नाशवान राज्यों का एक अविनाशी संघ है’’। यदि हर एक राज्य ने अपने अलग-अलग ध्वजों का निर्माण कर लिया, तो यह राज्यों की शक्ति का एक पृथक प्रतीक बन जाएगा, तब अलगाववादी शक्तियां आगे आ सकती हैं। भारत भाषा तथा जातीयता के कारण अनेक विभिन्नताओं का देश है। देश में समय-समय पर अलगाववादी आवाजें उठती रहती हैं। यदि राज्यों को पृथक ध्वज रखने की स्वतंत्राता दे दी गई तो अलगाववादी सोच बलवती होगी।

इससे पहले कि राज्यों को पृथक ध्वज रखने की स्वतंत्राता दी जाए, यह आवश्यक है कि विचार-विमर्श हो तथा यह विश्लेषण किया जाए कि इससे क्या-क्या लाभ एवं हानि हो सकती हैं, क्योंकि पृथक ध्वज संघीय भिन्नताओं पर हर्षित होने तथा अलगाववाद को बढ़ावा देने, दोनों का सामर्थ्य रखता है।

 

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