जैसाकि मौजूदा समय में देश में वनों की दिशा में कार्य राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के अनुरूप किया जा रहा है। इस नीति को बनाए 30 वर्ष हो चुके हैं और इन 30 वर्षों में सामयिक आवश्यकता में नवीन परिवर्तन और चुनौतियां आ चुकी हैं। नवीन उद्देश्यों को पूरा करने और उभरी चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 14 मार्च, 2018 को वन नीति का नया मसौदा ‘राष्ट्रीय वन मसौदा नीति, 2018’ जारी किया। इस नीति में भारत के हरित आवरण क्षेत्रा के संरक्षण के उद्देश्य से नगरीय हरित क्षेत्रों को बढ़ावा देने, वनीकरण के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल विकसित करने, वनाग्नि में रोकथाम के उपायों को मजबूत करने और जलाश्यों को पुनर्जीवित करने के लिए जलग्रहण क्षेत्रा में पौधारोपण करने इत्यादि प्रस्तावों को शामिल किया गया है।
नवीन प्रारूप नीति की मुख्य विशेषताएंः
* प्राकृतिक वनों के संरक्षण के माध्यम से जैव-विविधता का संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिरता का प्रबंधन करना।
* वनों के पुर्ननवीकरण एवं पुनर्स्थापन द्वारा वनों के ह्रास को रोकना और इस कार्य में प्राकृतिक रूपरेखा को खराब न होने देना।
* पारितंत्रा सेवाओं के धारणीय प्रयोग पर आधारित रोजगार लोगों को मुहैया कराकर आजीविकाओं में सुधार करना।
* देश के वानिकी से सम्बद्ध ‘नेशनली डिटरमिन्ड कॉन्ट्रीब्यूशन टारगेट’ (एनडीसी) को प्राप्त करने में योगदान करना।
* एकीकृत जल प्रबंधन तकनीकियों एवं कार्यों के द्वारा नदियों एवं नमभूमियों के जलागम क्षेत्रा में मृदा अपरदन एवं निरावरण को रोकना।
* भूमिगत जल स्रोतों के पुनर्भरण और सतही जल प्रवाह के नियमन के माध्यम से जलापूर्ति बढ़ाने के लिए वनस्पति और वनों की मृदा के स्वास्थ्य को बनाए रखना।
* गैर-वनीय उद्देश्यों संबंधी गतिविधियों से वनों की कड़ाई से रक्षा करना और इस शर्त के सख्त अनुपालन पर निगाह रखना।
* वनीकरण और पुर्नवनीकरण, कार्यक्रमों, विशेष रूप से सभी प्रकार की निरावृत वनीय भूमि और वनों से बाहर क्षेत्रा में, द्वारा देश में वनावरण/वृक्षावरण क्षेत्रा में महत्वपूर्ण वृद्धि करना।
* जैव-विविधता संरक्षण और अन्य पारितंत्रा सेवाओं के उन्नयन के प्राथमिक उद्देश्य के साथ संरक्षित क्षेत्रों और अन्य वन्यजीव समृद्ध क्षेत्रों का प्रबंधन करना।
* जल संरक्षण, जैव-विविधता, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक सेवाओं को शामिल करते हुए पारितंत्राीय सेवाओं के निरंतर प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए पर्वतीय वनों का संरक्षण एवं धारणीय प्रबंधन करना।
* सभी वनों, संरक्षित क्षेत्रों और अन्य पारितंत्रों के नियोजन और प्रबंधन में पर्याप्त रूप से फैक्टर ग्रीन अकाउंटिंग, परितान्त्रिय सेवाओं का मूल्यांकन और जलवायु परिवर्तन चिंताओं को शामिल करना।
* कृषि-वानिकी और फार्म फोरेस्ट्री को बढ़ावा देकर वनों के बाहर वृक्षावरण क्षेत्रा में वृद्धि करना।
* REDD+ तंत्र के माध्यम से वन प्रबंधन में जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण और अनुकूलन उपायों को एकीकृत करना ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सके।
* नागरिकों के स्वास्थ्य में बेहतरी के लिए शहरी एवं अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के हरित क्षेत्रों में वृद्धि एवं प्रबंधन करना।