विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा 1 दिसंबर, 2020 को राष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष (एसटीआई) नीति, 2020 का मसौदा जारी किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को उत्प्रेरित करने के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष से संबंधित व्यवस्था के गुणों और कमजोरियों को पहचानना तथा संबोधित करना है। यह भारत की एसटीआई व्यवस्था को सार्वभौमिक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की अपेक्षा रखती है।

नीति निर्देशित करती है कि, (i) इस दशक (2021-2030) में भारत को विश्व की तीन महाशक्तियों में से एक का दर्जा दिलाना और तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना; (ii) ‘जन केंद्रित’ एसटीआई व्यवस्था के माध्यम से कार्यात्मक मानव संसाधन को आकर्षित, पोषित, दृढ़, और बनाए रखना; (iii) प्रत्येक पांच वर्ष में पूर्णकालिक शोधकर्ताओं के समतुल्य शोधकर्ताओं की संख्या, अनुसंधान और विकास पर सकल घरेलू व्यय (जीईआरडी), तथा जीईआरडी में निजी क्षेत्र के योगदान को दोगुना करना; और (iv) इस दशक में उच्च स्तर की वैश्विक मान्यता तथा पुरस्कार प्राप्त करने के उद्देश्य से विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवोन्मेष में व्यक्तिगत और संस्थागत उत्कृष्टता का निर्माण करना।

प्रमुख प्रस्ताव

  1. राष्ट्रीय एसटीआई वेधशाला की स्थापना
  • एसटीआई नीति 2020 के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर एक एसटीआई वेधशाला की स्थापना की जाएगी, जो एसटीआई की व्यवस्था से सभी प्रकार के संबद्ध और उत्पन्न डेटा के लिए एक केंद्रित संग्राहक के रूप में कार्य करेगी। यह एक केंद्रीकृत सार्वजनिक प्लेटफॉर्म होगी, जो इसकी व्यवस्था में मौजूद सभी वित्तीय योजनाओं, कार्यक्रमों, अनुदानों और प्रोत्साहन राशियों को शामिल करेगी। यह वेधशाला संबद्ध हितधारकों के बीच वितरित, प्रसारित और अंतः प्रचालनीय तरीके से केंद्र में समन्वित और संगठित होगी।
  1. वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन
  • भविष्य पर विचार करते हुए देश के प्रत्येक व्यक्ति और उन लोगों, जो एक समान सहभागिता के आधार पर भारत की एसटीआई व्यवस्था में दिलचस्पी रखते हैं, को वैज्ञानिक डेटा, सूचना, ज्ञान और संसाधन प्रदान करने हेतु व्यापक ओपन साइंस फ्रेमवर्क (ओएसएस—वैज्ञानिक प्रक्रिया की संपूर्णता में वैज्ञानिक कार्यप्रवाह के प्रबंधन के लिए एक अवसंरचना) का निर्माण किया जाएगा।
  • एफएआईआर (जानने योग्य, अभिगम्य, अंतःप्रचालनीय और पुनर्प्रयोग योग्य) के निबंधनों के तहत सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित शोधों में प्रयुक्त और उनसे प्राप्त संपूर्ण डेटा सभी के लिए उपलब्ध करवाया जाएगा। सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित ऐसे अनुसंधानों के निर्गतों (आउटपुट) तक पहुंच प्रदान करने के लिए डंडियन साइंस एंड टेक्नोलॉजी आर्काइव ऑफ रिसर्च (आईएनडीएसटीए) द्वारा एक अलग पोर्टल बनाया जाएगा।
  • इसके अलावा लोक वित्त से पोषित पांडुलिपियों (प्रकाशित होने के पश्चात या वैकल्पिक रूप से प्रकाशित होने से पूर्व) के अंतिम स्वीकृत लेखकीय संस्करण के संपूर्ण मूलपाठ को एक संस्थागत अथवा केंद्रीय संग्रहालय में रखा जाएगा। यह नीति सरकार के लिए ‘एक देश, एक शुल्क’ की योजना पर विभिन्न जर्नलों के प्रकाशकों के साथ समझौता करने हेतु नए मार्गों का निर्माण करेगी, जिससे सभी भारतीय समझौते के तहत निश्चित किए गए भुगतान के बदले पत्रिकाओं के सभी लेखों तक पहुंच प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
  1. कौशल विकास, प्रशिक्षण और अवसंरचना में सुधार के माध्यम से एसटीआई शिक्षा
  • यह नीति एसटीआई शिक्षा को सभी स्तरों पर समावेशी बनाने हेतु उपाय करेगी, और कौशल विकास, प्रशिक्षण तथा अवसंरचना में सुधार करने की प्रक्रिया द्वारा इसे अर्थव्यवस्था एवं समाज से और अधिक जोड़ने में मदद करेगी। नीति के तहत समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले अंतर्विषयक शोधों को बढ़ावा देने हेतु संबद्ध विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाएगी।
  • नीति-निर्माताओं को शोधों में सहयोग प्रदान करने और हितधारकों को एक साथ लाने हेतु उच्च शिक्षा अनुसंधान केंद्रों (एचईआरसी) और सहयोगात्मक अनुसंधान केंद्रों की स्थापना की जाएगी।
  • अभिगम्यता के मुद्दे को संबोधित करने, और सभी स्तरों पर अनुसंधान तथा नवोन्मेष को प्रोत्साहन देने के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का प्रयोग किया जाएगा, एवं ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म बनाए जाएंगे। संकाय सदस्यों के ज्ञानवर्धन हेतु अध्यापन-अध्ययन केंद्र (टीएलसी) स्थापित किए जाएंगे, जिसके फलस्वरूप शिक्षा के स्तर में सुधार होगा।
  1. सहयोगात्मक अनुसंधान और विकास के लिए उद्योग जगत एवं प्रेरणा हेतु प्रोत्साहन
  • एसटीआई व्यवस्था के वित्तीय परिदृश्य को विस्तारित करने के उद्देश्य से एसटीआई से संबंधित क्रियाकलापों में शामिल होने के लिए केंद्र, राज्यों और स्थानीय सरकारों के प्रत्येक विभाग/मंत्रालय, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, निजी कंपनियों तथा स्टार्ट-अप्स में एक निश्चित बजट से एक एसटीआई विभाग की स्थापना की जाएगी। किसी संस्था के बाहर से किए गए निधीयन में विविधता लाई जाएगी, और बाह्य अनुसंधान एवं विकास को समर्थन देने हेतु केंद्र सरकार की एजेंसियों के हिस्से को दोगुना करने के लिए अगले पांच वर्षों में जीईआरडी को बढ़ाया जाएगा।
  • मसौदे के अनुसार, प्रत्येक राज्य बजट की एक अलग मद के तहत एसटीआई संबंधी क्रियाकलापों के लिए राज्य द्वारा आवंटित की जाने वाली सहयोग राशि का एक निश्चित प्रतिशत तय करेगा। देश की जरूरतों और प्राथमिकताओं से संबद्ध परियोजनाओं में बहुदेशी कंपनियां (एमएनसी) निजी व सार्वजनिक क्षेत्र की स्वदेशी कंपनियों तथा संस्थाओं के साथ सहयोग करेंगी। आवश्यकता के अनुरूप नवाचार समर्थित योजनाओं और अन्य उपायों के माध्यम से अनुसंधान जारी रखने के लिए राजकोषीय भुगतान और उद्योग, विशेषकर मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्योग (एमएसएमई), के समर्थन में वृद्धि करने के माध्यम से एसटीआई निवेश को बढ़ाया जाएगा।
  • एडमायर (एडीएमआईआरई—एडवांस्ड मिशन्स इन इनोवेटिव रिसर्च इकोसिस्टम) पहल के जरिये सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों की बढ़ी हुई भागीदारी से निधीयन के मिश्रित मॉडल निर्मित किए जाएंगे। वर्धित एसटीआई निधीयन परिदृश्य का सुव्यवस्थित संचालन सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न दीर्घ एंव मध्यावधिक परियोजनाओं, वाणिज्यिक उद्यमों, स्टार्ट-अप्स, प्रौद्योगिकी प्रसार और लाइसेंस आदि पर चुनिंदा रणनीतिक क्षेत्रों में दीर्घावधि के प्रत्यक्ष निवेश में सन्निवेश के लिए समग्र निधि को सरल बनाने हेतु एक एसटीआई विकास बैंक की स्थापना की जाएगी।
  • व्यापक स्तर पर मिशन मोड में चलाए जाने वाले कार्यक्रमों और राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं तथा शोधों को सुविधाजनक बनाने के लिए साधारण वित्तीय निमयों को उपयुक्त रूप से संशोधित किया जाएगा। सहायक निवेश का समर्थन करने के लिए दक्षतापूर्ण भुगतान, संचार, नियंत्रण और मूल्यांकन तंत्रों (तकनीकी और लेन-देन संबंधी लेखा परीक्षा के साथ समयबद्ध विद्वत समीक्षा) को स्थापित किया जाएगा।
  1. अनुसंधान और नवाचार की उत्कृष्ट संरचनाओं का विकास
  • इस नीति का उद्देश्य भारत में वैश्विक मानकों से संरेखित बुनियादी शोधों के साथ-साथ अनुवादित शोधों को बढ़ावा देने के प्रयोजन के लिए उपयुक्त और उत्तरदायी अनुसंधान व्यवस्था का निर्माण करना है। संबद्ध हितधारकों के लिए व्यवसायों की उन्नति के साथ अनुसंधान की उत्कृष्टता बढ़ाने के लिए अनुसंधान और नवाचार की उत्कृष्ट संरचनाओं (आरआईईएफ) को विकसित किया जाएगा।
  • अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) से संबंधित संचालन और सुरक्षा प्रोटोकॉल बढ़ाने के लिए यथोचित दिशानिर्देश प्रतिपादित किए जाएंगे। शैक्षणिक उपलब्धियों के साथ-साथ सामाजिक प्रभावों को चिह्नित करने हेतु शोध की संस्कृति को पुनःस्थापित किया जाएगा।
  1. संपूर्ण नवप्रवर्तनकारी व्यवस्था को सुदृढ़ करना
  • मसौदे के अनुसार, नीति संपूर्ण नवप्रवर्तनकारी व्यवस्था को सुदृढ़ करने, और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी-सक्षम अनुसंधान तथा नवोन्मेष व्यवस्था में बुनियादी स्तर की भागीदारी में सुधार करने के माध्यम से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करने की परिकल्पना करती है। अतः समग्र शिक्षा, अनुसंधान और नवोन्मेष प्रणाली मे परंपरागत ज्ञान पद्धतियों और मौलिक नवाचार को अनिवार्य करने हेतु एक संस्थागत संरचना की स्थापना की जाएगी।
  • मौलिक अन्वेषकों तथा वैज्ञानिकों के मध्य सहयोग को संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं, अध्येतावृत्तियों और छात्रवृत्तियों के माध्यम से सुगम बनाया जाएगा। मौलिक अन्वेषकों को पंजीकरण, बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) की मांग करने, पेटेंट के लिए आवेदन करने या उच्च शिक्षण संस्थान की सहायता से किसी भी प्रकार के वैधानिक दावे के लिए समर्थन भी दिया जाएगा। विरासत में मिले ज्ञान के संग्रहण, संरक्षण एवं संधारण के लिए कृत्रिम बुद्धि (एआई) और यंत्र शिक्षण (मशीन लर्निंग) पर आधारित उन्नत साधनों का प्रयोग किया जाएगा।
  1. आत्मनिर्भर भारतके लक्ष्य की प्राप्ति
  • ‘आत्मनिर्भर भारत’ के व्यापक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह नीति आत्मनिर्भर प्रौद्योगिकी और स्वदेशीकरण को बढ़ावा देगी। इसके लिए, प्रौद्योगिकी के स्वदेशी परिवर्धन और स्वदेशीकरण की दो-तरफा पद्धति को स्वीकार किया जाएगा, और उसे संधारणीयता तथा सामाजिक लाभ एवं संसाधनों जैसी देश की प्राथमिकताओं के साथ संरेखित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के निर्माण और विकास की दिशा में आगे बढ़ने हेतु आवश्यक जानकारी प्राप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों को सुगम बनाया जाएगा। इस उन्नति को सुसाध्य करने हेतु प्रौद्योगिकी को समर्थन देने वाला एक तंत्र बनाया जाएगा।
  • एक रणनीतिक प्रौद्योगिकी बोर्ड (एसटीबी) का गठन किया जाएगा, जो विभिन्न रणनीतिक विभागों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए एक संपर्क सूत्र का कार्य करेगा। निजी क्षेत्र और उच्च शिक्षण संस्थानों को प्रोत्साहित करने के लिए एक रणनीतिक प्रौद्योगिकी विकास निधि (एसटीडीएफ) का गठन किया जाएगा। बड़ी परियोजनाओं की परिणामी प्रौद्योगिकियों से प्राप्त अनपेक्षित लाभों का व्यावसायीकरण किया जाएगा और उनका उपयोग असैन्य उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। विध्वंसक प्रौद्योगिकियों के विकास हेतु जोखिमपूर्ण क्षेत्रों को चिह्नित करने के लिए ज्ञान और प्रमाण द्वारा संचालित पद्धति का प्रयोग किया जाएगा।
  1. समानता और समावेशन को मुख्यधारा में लाना
  • मसौदा नीति एसटीआई व्यवस्था के भीतर मुख्यधारा में समानता और समावेशन को नए सिरे से बल प्रदान करती है। एक संस्थागत तंत्र के विकास हेतु अग्रणी एसटीआई में सभी प्रकार के भेदभावों, अपवर्जनों और असमानताओं से निपटने के लिए एक भारत-केंद्रस्थ समानता और समावेशन (ईएंडआई) चार्टर बनाया जाएगा। एसटीआई व्यवस्था में महिलाओं के साथ दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों के उम्मीदवारों, वंचित समुदायों और दिव्यांगजनों सहित निःशक्तजनों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना समान अवसर प्रदान करने के माध्यम से एक समावेशी संस्कृति को सुसाध्य किया जाएगा।
  • इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए चयन/मूल्यांकन समितियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि (न्यूनतम 30 प्रतिशत) करना अनिवार्य होगा। लोगों की आयु के आधार पर उनके साथ किए जाने वाले भेदभावों को संबोधित किया जाएगा। नायकत्व (या संचालक) की भूमिका के लिए अनुभवी महिला वैज्ञानिकों पर विचार किया जाएगा, और शैक्षणिक एवं व्यावसायिक संगठनों में नियमित रूप से लैंगिक और सामाजिक समीक्षा की जाएगी।
  • इसके अलावा, एसटीआई में लेसबियन, गे, बायसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर (एलजीबीटीक्यू़) समुदाय के प्रतिनिधित्व और अवधारण को प्रोत्साहन देने तथा उनके अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने वाले विशेष प्रावधानों सहित लैंगिक समानता के संभाषणों में उन्हें सम्मिलित किया जाएगा।
  1. वैज्ञानिक संसूचन और लोक संलग्नता
  • मसौदे के अनुसार, एसटीआई नीति रचनात्मक और अंतर्विषयक प्लेटफॉर्म, अनुसंधान पहलों और आउटरीच प्लेटफॉर्म के माध्यम से क्षमता निर्माण के दृष्टिकोण में सुधार के जरिये वैज्ञानिक संसूचन एवं लोग संलग्नता को मुख्यधारा की ओर लाने में सहायक होगी।
  • वैज्ञानिक संसूचन में अंतर्विषयक अनुसंधान को बढ़ावा देने के साथ ही स्थानीय रूप से उपयुक्त और सांस्कृतिक-संदर्भ-विशेष मॉडल विकसित किए जाएंगे।
  • वैज्ञानिक शिक्षण में सुधार करने हेतु वैज्ञानिक संसूचन और वैज्ञानिक प्रशिक्षण को आपस में संलग्न किया जाएगा।
  • विज्ञान को चरम पर ले जाने के लिए टीवी, सामुदायिक रेडियो, कॉमिक्स आदि जैसे मनोरंजक मंचों की खोज की जाएगी। स्थानीय और क्षेत्रीय स्तरों पर लोकप्रिय वैज्ञानिक कार्यक्रमों और स्थानिक निवासियों की वैज्ञानिक परियोजनाओं के माध्यम से गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) तथा सिविल सोसायटी के समूहों को शामिल किया जाएगा।
  • वैज्ञानिकों, मीडियाकर्मियों और वैज्ञानिक संचारकों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर मीडिया के केंद्र स्थापित किए जाएंगे।
  1. विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अंतरराष्ट्रीय संलग्नता रणनीति
  • नीति एक गतिशील, प्रमाण-सूचित, और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की अग्रसक्रिय अंतरराष्ट्रीय संलग्नता रणनीति के लिए मार्ग खोलेगी। इसके लिए, अध्येतावृत्तियों, प्रशिक्षु योजनाओं तथा अनुसंधान और सभी मंत्रालयों में व्यापक रूप से पदोन्नति के अवसरों में वृद्धि करने के माध्यम से श्रेष्ठ प्रतिभाओं को वापस लाने के लिए आकर्षित करने के द्वारा प्रवासियों के लिए अधिक नियुक्ति की जाएगी। साथ ही, दूरस्थ योगदान के लिए उपयुक्त माध्यमों को सरल बनाया जाएगा।
  • प्रवासी भारतीय वैज्ञानिकों के लिए विशेष रूप से एक व्यावसायिक पोर्टल बनाया जाएगा। कूटनीति के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी’ की पूरक ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए कूटनीति’ होगी।
  • वैश्विक ज्ञान और प्रतिभाओं के विनिमय को प्रोत्साहन देने हेतु अंतरराष्ट्रीय ज्ञान केंद्रों, प्रमुखतः आभासीय (वर्चुअल), की स्थापना की जाएगी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के परामर्शदाताओं की भूमिका के पुनरुद्धार और पुनः परिभाषित करने के साथ उनकी संख्या बढ़ाई जाएगी।
  1. एसटीआई का संचालन
  • एक सुदृढ़ एसटीआई का संचालन करने के लिए प्रशासनिक और वित्तीय प्रबंधन, अनुसंधान संचालन, डेटा एवं विनियामक ढांचे और निकायों की अंतर्संयोजकता को ध्यान में रखते हुए, आरंभ से अंत तक संतुलन बनाए रखने के दृष्टिकोण से एक विकेंद्रीकृत संस्थागत तंत्र की स्थापना की जाएगी।
  • एसटीआई व्यवस्था के समग्र संचालन (अंतःक्षेत्रीय, अंतर्मंत्रालयी, केंद्र-राज्य एवं अंतर्राज्यीय सहित) के लिए सर्वोच्च स्तरों पर उपयुक्त तंत्रों की स्थापना की जाएगी। सभी विभागों के मध्य आरएंडडी को सुविधाजनक बनाने, प्रोत्साहित करने और समन्वय स्थापित करने हेतु एक सशक्त अनुसंधान एवं नवोन्मेष ढांचे को स्थापित किया जाएगा।
  • राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की योजना और रूपरेखा बनाने, उन्हें कार्यान्वित करने और उनकी निगरानी करने के लिए एक क्षमता निर्माण प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी।
  • राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर सभी संबद्ध हितधारकों के बीच अंतर्संयोजकता में वृद्धि करने हेतु मौजूदा प्रणालियों को मजबूत करने और नई प्रणालियों का निर्माण करने के लिए एक सशक्त एसटीआई सहयोग तंत्र की स्थापना की जाएगी, जो राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ संरेखित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए अंतर-संस्थानिक, अंतर्मंत्रालयी, अंतर्विभागीय और अंतःक्षेत्रीय के मध्य सीधे और समानांतर संबंधों और बहुहितधारक सहभागिता को बढ़ावा देगा।
  1. संचालन, कार्यान्वयन नीति, निरीक्षण एवं मूल्यांकन
  • मसौदा नीति, एसटीआई नीति के संचालन के साथ-साथ नीति और कार्यक्रमों एवं उनके अंतर्संबंधों के लिए कार्यान्वयन नीति और दिशानिर्देश, तथा निरीक्षण और मूल्यांकन ढांचे के लिए संस्थागत तंत्र की रूपरेखा तैयार करती है।
  • एसटीआई नीति के संचालन के सभी पहलुओं की सहायता करने और संस्थायित संचालन तंत्रों को ज्ञान व सूचना प्राप्त करने में सहायता करने हेतु एक समर्थ और अंतःसंचालित मेटाडेटा संरचना का निर्माण करने और उसका अनुसरण करने के उद्देश्य से एक एसटीआई नीति संस्थान की स्थापना की जाएगी।
  • यह संस्थान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एसटीआई नीति से संबद्ध शोधों का आयोजन करेगा और उन्हें बढ़ावा देगा। इसके अलावा, यह राष्ट्रीय, उप-राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर विज्ञान परामर्श तंत्र को सुदृढ़ करेगा। यह प्रशिक्षण तथा अध्येतावृत्तियों के माध्यम से एसटीआई नीति के लिए दीर्घावधिक क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू करेगा।
  • एसटीआई नीति और कार्यक्रमों के लिए सतत निरीक्षण और समयानुकूल मूल्यांकन प्रक्रियाओं सहित एक कार्यान्वयन नीति तथा दिशानिर्देशों की योजना बनाई जाएगी।

© Spectrum Books Pvt. Ltd.

error: Content is protected !!

Pin It on Pinterest

Share This