लिथियम (Li, परमाणु क्रमांक 3), एक मृदु एवं चमकीली धातु है जिसका घनत्व सभी धातुओं में सबसे कम होता है। अपने बाजार मूल्य और चांदी के समान रंग होने के कारण प्रायः इसे ‘श्वेत स्वर्ण’ के रूप में संदर्भित किया जाता है, और यह जल के साथ प्रभावशाली रूप से अभिक्रिया करता है। सभी ठोस तत्वों में सबसे हल्की यह धातु विषाक्त होती है, हालांकि यदि इसका सेवन बहुत अल्प मात्रा में किया जाए तो ऐसा नहीं होता है।

लिथियम भू-पर्पटी में प्रचुर मात्रा में मौजूद है लेकिन यह भू-पर्पटी में अत्यंत महीन रूप से फैला होता है। यह संयुक्त रूप से अल्प मात्रा में लगभग सभी आग्नेय चट्टानों और कई खनिज झरनों के जल में पाया जाता है। समुद्री जल में लिथियम की सांद्रता 0.1 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम—वायु या द्रव पदार्थों की सांद्रता के मापन की विधि, जिसका सूत्र है—अवयव के भागों की संख्या/विलयन में मौजूद सभी अवयवों के कुल भागों की संख्या × 106) होती है।

आधुनिक प्रौद्योगिकी विकास और स्वच्छ ऊर्जा में संक्रमण के संदर्भ में लिथियम महत्वपूर्ण है जैसेकि इसका प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, कंप्यूटर और सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) उपकरणों, जैसेकि लैपटॉप, सेल फोन और इलेक्ट्रिक तथा हाइब्रिड वाहन, में किया जाता है।

1817 में एक स्वीडिश रसायनज्ञ, जोहान ऑगस्ट आर्फवेडसन द्वारा पेटालाइट नामक खनिज में इसकी खोज की गई थी। लिथियम अधिकांशतः लवण युक्त समतल क्षेत्र में लवण अधस्तल जल भंडार (महाद्वीपीय लवण जल भंडार) एवं खनिज झरनों में लवण; कठोर चट्टानों में स्पोड्यूमिन, लेपिडोलाइट और एंब्लीगोनाइट जैसे खनिज पेग्माटाइट अयस्क; और अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। व्यावसायिक उत्पादन हेतु लिथियम के मुख्य स्रोत महाद्वीपीय लवण जल और पेग्माटाइटस हैं।

सैद्धांतिक रूप से, लिथियम को लिथियम-समृद्ध मृत्तिका से भी निष्कर्षित किया जा सकता है (व्यावसायिक या वाणिज्यिक स्तर पर लिथियम के उत्पादन को अब तक सिद्ध नहीं किया जा सका है)।

भौगोलिक रूप से लिथियम अपने मूल रूप में सीमित मात्रा में पाया जाता है। यह मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया और चीन की कठोर चट्टानों के अयस्कों; दक्षिण अमेरिका—द लिथियम ट्राएंगल (अटकामा मरुस्थल तथा इसके निकटवर्ती शुष्क क्षेत्र के साथ बोलीविया, चिली एवं अर्जेंटीना की सीमाओं के निकट एंडीज प्रदेश)—में लवण के बेसिन (या मैदान) के महाद्वीपीय लवण जल भंडारों (सैलार); और चीन में पाया जाता है।

महाद्वीपीय लवण जल भंडार, कठोर चट्टान अयस्कों की तुलना में अधिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं: वैश्विक लिथियम संसाधनों में इसकी हिस्सेदारी लगभग 60 प्रतिशत है। हालांकि, लिथियम के वैश्विक उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत (2022 तक) ही है।

बोलीविया लिथियम के 21 मिलियन मीट्रिक टन संसाधनों (2021 तक) के साथ सबसे अग्रणी देश है, परंतु यहां लिथियम की कोई खदान नहीं है। अर्जेंटीना 19 मिलियन मीट्रिक टन (6,200 खदानें) के साथ दूसरे स्थान पर है और चिली, लगभग 9.8 मिलियन मीट्रिक टन (26,000 खदानें) का उत्पादन करता है। भारत 5.9 मिलियन मीट्रिक टन संसाधनों के साथ छठे स्थान पर है, परंतु यहां कोई खदान क्रियाशील नहीं है।

लिथियम का उपयोग

लिथियम सांद्र में से, रासायनिक श्रेणी के लिथियम का उपयोग लिथियम रसायनों का उत्पादन करने के लिए किया जाता है जो लैपटॉप, मोबाइल फोन और इलेक्ट्रिक कारों के लिए लिथियम-आयन बैटरी के निर्माण के आधार के रूप में काम आता है, जबकि तकनीकी श्रेणी के लिथियम का उपयोग ग्लास, सिरेमिक और भोजन पकाने के ऊष्मा-रोधी बर्तनों के निर्माण में किया जाता है।

लिथियम धातु के प्रमुख अनुप्रयोग इस प्रकार हैं—

  • धातुकर्म में, सक्रिय लिथियम का उपयोग लोहा, निकल और तांबे जैसी धातुओं को परिष्कृत करते समय ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन और कार्बन तत्वों जैसी अधात्विक अशुद्धियों को पृथक करने हेतु एक अपमार्जक तत्व के रूप में किया जाता है।
  • कवच पर धातु की परत चढ़ाने, वायुयान, साइकिल फ्रेम और उच्च गति वाली ट्रेनों के निर्माण हेतु लिथियम धातु को एल्युमीनियम एवं मैग्नेशियम के साथ मिलाकर मिश्र धातु बनाई जाती है।
  • इसका उपयोग कार्बनिक संश्लेषण में एन-ब्यूटिल लिथियम (C4H9Li) जैसे यौगिकों का उत्पादन करने के लिए किया जाता है, जो कृत्रिम (सिंथेटिक) रबर और फार्मास्यूटिकल्स (औषधि) जैसे अन्य कार्बनिक उत्पादों के उत्पादन के लिए बहुलकता (पॉलिमराइजेशन) का चालक है।
  • अत्यधिक क्षमता वाले रिचार्जेबल (फिर से चार्ज करने लायक) लिथियम स्टोरेज बैटरियों का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों और विद्युत भंडारण के लिए किया जाता है; सेल फोन, कैमरा और व्यापक स्तर पर अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए छोटी रिचार्जेबल लिथियम बैटरियों का उपयोग किया जाता है।
  • लिथियम का उपयोग ऊष्मा अंतरण के अनुप्रयोगों में शीतलक के रूप में किया जाता है, विशेष रूप से परमाणु प्रक्रियाओं में, लिथियम-6 और लिथियम-7 आइसोटोप का उपयोग ट्रिटियम के उत्पादन और हाइड्रोजन बम (लिथियम ड्यूटेराइड के रूप में) में प्रयुक्त ठोस संलयन ईंधन के निर्माण में किया जाता है।
  • लिथियम का उपयोग सिरेमिक और कांच उद्योगों में; सिलिका प्रसंस्करण (लिथियम ऑक्साइड) में अभिवाह (फ्लक्स) के रूप में और ओवन के सामान एवं प्रयोगशाला के सामान बनाने के लिए; ईंधन के रूप में हाइड्रोजन (लिथियम हाइड्राइड) के भंडारण हेतु; गैस धाराओं (लिथियम क्लोराइड और लिथियम ब्रोमाइड) के लिए शोषी के रूप में; और अवरक्त (इन्फ्रारेड), पराबैंगनी (अल्ट्रा-वायलेट) और वैक्यूम अल्ट्रावॉयलेट रेंज अर्थात निर्वात पराबैंगनी क्षेत्र (लिथियम फ्लोराइड) में दृश्यता के लिए ऑप्टिक्स के निर्माण के लिए किया जाता है।

नवीकरणीय ऊर्जा संवर्धन की ओर संक्रमण के लिए हरित प्रौद्योगिकियों में लिथियम एक महत्वपूर्ण घटक है।

जैसाकि यह अत्यधिक अभिक्रियाशील और अपेक्षाकृत हल्का होता है, इसलिए लिथियम स्वच्छ प्रौद्योगिकियों जैसे इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों में बैटरी के लिए आदर्श धातु है और जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने वाले मोटर परिवहन, जो कार्बन डाइऑक्साइड एवं अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है, का एक विकल्प है। लिथियम कार्बोनेट या लिथियम हाइड्रॉक्साइड से बनी लिथियम बैटरियां एक छोटी-सी जगह में बड़ी मात्रा में ऊर्जा संग्रहीत कर सकती हैं और कुशल चार्जिंग क्षमता रखती हैं। वर्तमान में, कुल लिथियम उत्पादन के लगभग 39 प्रतिशत का उपयोग बैटरी निर्माण में जबकि शेष लिथियम का उपयोग सिरेमिक और ग्लास, चिकनाई वाले ग्रीस एवं चिकित्सा, तथा अन्य अनुप्रयोगों में किया जाता है।

लिथियम की ऊर्जा भंडारण क्षमताएं इसे नवीकरणीय ऊर्जा (सौर और पवन ऊर्जा) के ग्रिड भंडारण के लिए उपयोगी बनाती हैं ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसे भंडारित और उपयोग किया जा सके।

लिथियम संबंधी कुछ तथ्य

यद्यपि लिथियम की कोई जैविक भूमिका नहीं है, यह आधुनिक औद्योगिक एवं तकनीकी विकास की प्रवृत्ति को संचालित करता है।

2016 में, विश्व भर में 43,000 मीट्रिक टन लिथियम का खनन किया गया था जिसमें 2022 तक तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई तथा 2030 तक, खनन की मात्रा में फिर से चौगुनी से अधिक वृद्धि हो सकती है।

1,000 किलोग्राम (एक टन) लिथियम का उत्पादन करने के लिए लगभग 2.2 मिलियन लीटर जल की आवश्यकता होती है।

एकल वस्तुओं के उत्पादन में लिथियम का बहुत अधिक प्रयोग नहीं होता है। उदाहरणार्थ, एक मध्यम आकार के मॉडल की इलेक्ट्रिक कार में 300 किलोग्राम की बैटरी (50 kWh) में केवल (लगभग) आठ किलोग्राम लिथियम धातु प्रयुक्त होती है।

टेस्ला मॉडल 3 के लिए एक 80-kWh लिथियम-आयन बैटरी के निर्माण हेतु 2,400 किलोग्राम से 16,000 किलोग्राम के बीच बहुत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होगा।

लिथियम निष्कर्षण के पर्यावरणीय प्रभाव

लिथियम के निष्कर्षण के प्रारंभिक चरण से ही पर्यावरणीय क्षति शुरू हो जाती हैः अयस्कों/लवण जल पदार्थों से लिथियम निष्कर्षित और संसाधित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा अधिकांशतः कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने वाले जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होती है।

अम्ल, क्षार, क्लोनिएशन (जल में क्लोरिन मिलाने की प्रक्रिया) और लवण भर्जन के माध्यम से स्पोड्यूमिन, लेपिडोलाइट, पेटालाइट और जिवाल्डाइट (लोहे से युक्त अभ्रक की एक पीली-भूरी किस्म, जो टिन के अयस्कों के साथ पाई जाती है।) के शैलीय खनिज अयस्कों से लिथियम निष्कर्षित करने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है।

यद्यपि चट्टानी खनिज अयस्कों से उच्च गुणवत्ता (लवण जल की तुलना में) वाले लिथियम का उत्पादन होता है, प्रसंस्करण में अधिक लचीलापन और तेजी से प्रसंस्करण की सुविधा देते हैं, और खनन की कम लागत वाली पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करते हैं, तथापि इनसे लिथियम निष्कर्षण के कुछ प्रमुख अलाभ हैं—यह एक श्रम-गहन प्रक्रिया है; सल्फ्यूरिक एसिड/सल्फेट, कैल्सियम ऑक्साइड और सोडियम कार्बोनेट जैसे उच्च संसाधन की खपत तीव्रता से होती है; उच्च प्रदूषक मुक्त होता है; इसमें बहुत अधिक ऊर्जा और अधिक मात्रा में जल की खपत होती है।

लवण जल भंडार तीन प्रकार के हैं—महाद्वीपीय (सैलार या लवण के समतल मैदान) भू-तापीय लवण जल, और तेल क्षेत्र।

सैलार या लवण झीलों में लवण जल से लिथियम निष्कर्षण हेतु सौर वाष्पीकरण विधि का प्रयोग किया जाता है। लवण जल को भूमिगत जलाशयों से खुले हवा वाले तालाबों में पंप किया जाता है, जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक मूल जल सामग्री वाष्पीकरण के माध्यम से समाप्त हो जाती है। तालाबों में वाष्पीकरण अनुक्रमानुसार किया जाता है। इसके बाद संकेंद्रित लवणीय जल को शोधन के लिए एक रासायनिक संयंत्र में स्थानांतरित किया जाता है, अंतिम उत्पाद के रूप में लिथियम कार्बोनेट (Li2CO3) प्राप्त होता है।

लवण जल भंडार से होने वाले उत्पादन को वर्तमान में सबसे प्रभावी, संधारणीय और कम लागत वाली लिथियम उत्पादन प्रक्रिया के रूप में माना जाता है, लेकिन इसके कई अलाभ हैं, जैसेकि—बड़ी मात्रा में जल का प्रयोग; लवण जल के निष्कर्षण से भूजल स्तर में कमी, जबकि नदियों के जलमार्ग और आर्द्रभूमियां सूख सकती हैं और मरुस्थलीकरण; दीर्घकालीन निर्माण समय एवं वाष्पीकरण प्रक्रिया के कारण खनन किए गए लिथियम का विपणन करने में लंबा समय; कम लिथियम सांद्रता का व्युत्पन्न होना; और निष्कर्षण प्रक्रिया के कारण बड़ी मात्रा में लवण के टीले बन जाना हैं जो डीजल, मैग्नीशियम, चूना तथा पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) जैसे विषाक्त रसायनों से पर्यावरण को दूषित करते हैं।

पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम करने की दिशा में विकल्प की खोज

स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि से लिथियम की मांग में वृद्धि हुई है। इसलिए लिथियम निष्कर्षण के स्रोतों तथा विशेष रूप से प्रौद्योगिकियों को उन्नत करना आवश्यक हो गया है।

भविष्य में, यद्यपि लिथियम को पुनर्चक्रण और बिक्री के माध्यम से किफायती बनाना आवश्यक हो जाएगा, तथापि अभी तक इसका अधिक पुनर्चक्रण नहीं किया गया है।

भूतापीय (जियोथर्मल) लवण जल से लिथियम खननः भूतापीय लवण जल एक ऊष्ण, संकेंद्रित खारा विलयन है जो बहुत गर्म चट्टानों (अत्यधिक ऊष्मा प्रवाह के कारण) के माध्यम से प्रसारित होकर लिथियम, पोटैशियम और बोरॉन सहित अन्य तत्वों से समृद्ध हो जाता है। भूतापीय लवण जल तक वेधछिद्र (बोरहोल) के माध्यम से पहुंच बनाई जाती है और लिथियम यौगिकों के निष्कर्षण हेतु उन्हें प्रत्यक्ष लिथियम निष्कर्षण (डीएलई) प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर सतह पर पंप किया जाता है।

भूतापीय लिथियम लवण जल अधिकांशतः न्यूजीलैंड, आइसलैंड, चिली और जर्मनी (घनी आबादी वाले क्षेत्रों के आस-पास) में पाया जाता है।

भूतापीय लवण जल से निष्कर्षित लिथियम को अन्य स्रोतों से निष्कर्षित लिथियम की अपेक्षा निम्न-कार्बन विकल्प के रूप में देखा जाता है। निष्कर्षण प्रक्रिया के लिए ऊर्जा गहन भूतापीय ऊर्जा से ही प्राप्त होती है, इसलिए यह जलवायु-तटस्थ होता है। हालांकि, तेल वाले समुद्रों के तटों पर, इस लवण जल में लिथियम की सांद्रता कम होती है और इसका उत्पादन बहुत कम (प्रत्येक ज्ञात वैश्विक लिथियम संसाधनों का केवल तीन प्रतिशत) होता है।

इस तनुकृत लवण जल से लिथियम के निष्कर्षण के लिए अत्यंत विकसित मुक्त वाष्पीकरण तकनीक का उपयोग नहीं किया जा सकता है। भू-तापीय लवण जल से लिथियम निष्कर्षण के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक संयंत्र उपलब्ध नहीं हैं।

डीएलई प्रौद्यगिकी: भूमिगत खारे जल (सैलार और भूतापीय) से लिथियम निष्कर्षण हेतु डीएलई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने से जीवाश्म ईंधन के अधिक उपयोग और निष्कर्षण में अत्यधिक ऊर्जा गहन प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती है। डीएलई प्रौद्योगिकी के लगभग 60 प्रकार हैं। कुछ मुख्य डीएलई विधियां इस प्रकार हैं:

  • आयन विनिमय प्रणालियां एक भौतिक-रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से आयनिक संदूषकों को विलायक से अलग करती हैं जहां अवांछित आयनों को उसी विद्युत आवेश के अन्य आयनों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। अनिवार्य रूप से, आयन-विनिमय सामग्री एक समायोजित सरंध्रता से युक्त एक छलनी के रूप में कार्य करती है जो केवल लिथियम (और हाइड्रोजन) आयनों को गुजरने देती है। इसके बाद आयन-छलनी को एक अम्ल से धोया जा सकता है जिससे लिथियम आयनों के प्रतिस्थापन को हाइड्रोजन आयनों से संवर्धित किया जाता है।
  • अवशोषण की प्रक्रिया में, सबसे विकसित डीएलई तकनीक, लिथियम क्लोराइड (LiCl) के अणुओं को एक अवशोषक की परमाण्विक परतों के भीतर गुजरने वाले लवण जल से हटा दिया जाता है। कुछ विकसित अपमार्जक, एसिड वॉश या अन्य रसायनों की आवश्यकता के बिना, मौजूद 90 प्रतिशत से अधिक लिथियम को पुनर्प्राप्त कर सकते हैं।
  • विलायक या तरल-तरल निष्कर्षण के तहत रासायनिक या भौतिक रूप से लवण जल से लिथियम निष्कर्षित कर इसे लिथियम क्लोराइड (या आयनों) में परिवर्तित करने के लिए एक कार्बनिक विलायक (विलायक और निष्कर्षक) शामिल होता है।
  • लिथियम की पुनर्प्राप्ति हेतु झिल्ली-आधारित प्रौद्योगिकियां सूक्ष्म छिद्रक (नैनोफिल्ट्रेशन), चयनात्मक इलेक्ट्रोडायलिसिस और झिल्ली या मेम्ब्रेन आसवन क्रिस्टलीकरण जैसी झिल्ली प्रक्रियाओं के संयोजन का उपयोग करती हैं। पारंपरिक लिथियम अवक्षेपण प्रक्रिया के साथ, ये लिथियम निष्कर्षण की लागत को कम कर सकते हैं।
  • अन्य विधियों के तहत लवण जल की सांद्रता के लिए मुक्त वायु में वाष्पीकरण के अलावा इलेक्ट्रोकेमिकल आयन पंपिंग और थर्मल-सहायक विधि शामिल हैं।

लिथियम आयनों को एकत्रित करने के लिए परिकल्पित विलायकों, झिल्ली जो केवल लिथियम आयनों को गुजरने की सुविधा देती हैं, इलेक्ट्रोकेमिकल पृथक्करण जहां लिथियम आयनों को आवेशित इलेक्ट्रोड में प्रभारित किया जाता है, और अकार्बनिक अपमार्जक का उपयोग कर लिथियम का अवशोषण करने जैसी डीएलई विधियों का उपयोग कर लिथियम को भूतापीय लवण जल से निष्कर्षित किया जा सकता है।

डीएलई विधि की उल्लेखनीय क्षमताएं हैं:

  • लवण जल परियोजनाओं से लिथियम की आपूर्ति में वृद्धि, स्थिरता लाभ के साथ लिथियम उत्पादन को लगभग दोगुना करना;
  • लिथियम निष्कर्षण प्रक्रिया के लिए आवश्यक कुल समय को कम करना;
  • उपयोग किए जाने वाले ताजे जल की मात्रा को कम करना; और
  • पारंपरिक निष्कर्षण विधियों की तुलना में कम कार्बन उत्सर्जन करना।

मुख्य कमियां

  • लवण जल में अन्य सामग्रियों को नियंत्रित और समाप्त करने की आवश्यकता, जो संभावित रूप से लिथियम निष्कर्षण प्रक्रिया (जैसे सोडियम और मैग्नीशियम) में बाधा डालती हैं;
  • अधिकांश डीएलई प्रौद्योगिकियों की अप्रमाणित व्यावसायिक व्यवहार्यता; और
  • जहां भूमिगत लवण जल या मीठे जल को सतह पर पंप किया जाता है, वहां यदि विभिन्न भूजल जलभृतों, या भूजल और सतही जल के बीच सह-संबंध को ध्यान में नहीं रखा जाता है, तो अपरिवर्तनीय क्षति होती है।

भारत के परिप्रेक्ष्य में

भारत लिथियम, निकल और कोबाल्ट जैसे कई तत्वों के लिए आयात पर निर्भर है। भारत ने 2018 से 2021 के बीच लगभग 26,000 करोड़ रुपये मूल्य का लिथियम आयात किया। खनन के लिए लिथियम संसाधनों की पहचान की गई है लेकिन इन स्रोतों से प्रसंस्करण शुरू नहीं किया गया है।

2021 में, परमाणु खनिज अन्वेषण और अनुसंधान निदेशालय (एएमडी) के प्रारंभिक सर्वेक्षणों ने कर्नाटक के मांड्या जिले में 1,600 टन के लिथियम संसाधनों के होने की ओर इंगित किया। फरवरी 2023 में, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने जम्मू के रियासी जिले के पहाड़ी सलाल-हैमाना क्षेत्र में लगभग 5.9 मिलियन मीट्रिक टन लिथियम संसाधनों की खोज की घोषणा की। स्थल की पहचान धातु के ‘अनुमानित संसाधन’ के रूप में की गई है—अर्थात, अन्वेषण प्रारंभिक चरण में है।

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