महासागर, जो पृथ्वी के 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं, पृथ्वी प्रणाली के सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं। ये महासागर प्रमुख पर्यावरणीय संतुलनों (विशेष रूप से जलवायु) के नियामक, खाद्य और ऊर्जा संसाधनों के प्रदाता, व्यापार को सहज बनाने वाले एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक होने के साथ-साथ देशों और मानव समुदायों के बीच की एक आवश्यक कड़ी हैं। हालांकि, विभिन्न प्रकार के दबावों, जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, प्रदूषण या समुद्री संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण महासागरों की स्थिति गंभीर रूप से विकृत हो गई है। महासागर संबंधी इन समस्याओं से निपटने के लिए, यूरोपीय संघ परिषद की फ्रांसीसी प्रेजिडेंसी ने संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक के समर्थन से, वन प्लैनेट समिट के पांचवें संस्करण के रूप में वन ओशन समिट (जो पूरी तरह से महासागर को समर्पित था) का 9 से 11 फरवरी, 2022 तक फ्रांस के ब्रेस्ट में आयोजन किया। इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्वस्थ एवं समावेशी समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण और समर्थन की दिशा में ठोस कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करना है।


ब्लू हॉटस्पॉट, सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया एक मूल प्रस्ताव है जिसके तहत वहां मौजूदा वक्ताओं ने समुद्र की तीन चरम सामयिकताओं—समुद्र की दुनिया में जैविक रूप से सबसे महत्वपूर्ण, निम्न रूप से संरक्षित और सबसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त पारिस्तिथिक तंत्र (जो जोखिम में है) को संबोधित किया, तथा विश्व को इनके प्रति सचेत किया।


इस सम्मेलन में फ्रांस सहित 100 से अधिक देशों, जो विश्व के आधे से अधिक विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (ईईजेड) का प्रतिनिधित्व करते हैं, के बहु-हितधारकों ने भाग लिया। सम्मेलन के दौरान कई कार्यशालाओं, संगोष्ठियों, बैठकों और अन्य पहलों का आयोजन किया गया, जिनके तहत महासागरों से संबंधित निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा की गईः

  • समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा और पुनर्स्थापना;
  • अवैध मत्स्यन के खिलाफ कार्रवाई और संवहनीय मत्स्यन को बढ़ावा देना;
  • प्रदूषण, विशेष रूप से प्लास्टिक, के विरुद्ध संघर्ष;
  • जलवायु परिवर्तन, विशेषकर नौवहन और ‘ब्लू कार्बन’ (विश्व के महासागर में मौजूद कार्बन) के डीकार्बोनाइजेशन [डीकार्बोनाइजेशन अर्थात वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के उत्पादन को हटाना या कम करना।] के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रति समुद्री समाधान परिनियोजित करना; और
  • विज्ञान को आधार बनाकर, महासागर के अंतरराष्ट्रीय शासन को सुदृढ़ बनाना।

उपर्युक्त चुनौतियों का सामना करने के लिए कुल 13 प्रतिबद्धताएं, जिन्हें ‘ब्रेस्ट कमिटमेंट्स फॉर ओशंस’ नाम दिया गया, प्रतिपादित की गईं। 100 से अधिक देशों ने इनके प्रति अपनी प्रतिद्धता व्यक्त की।

ब्रेस्ट कमिटमेंट्स फॉर ओशंस

जैव विविधता और समुद्री संसाधनों का संरक्षणः जैव विविधता के संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण करना समय की मांग है, परंतु महासागर के दो-तिहाई भाग, जो राष्ट्रीय अधिकार से परे है और पृथ्वी की सतह के 45 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है, को वर्तमान में संरक्षित समुद्री क्षेत्र का दर्जा प्राप्त नहीं है। अतः इस संबंध में तीन प्रतिबद्धताएं प्रतिपादित की गईं, जिनके तहतः

  1. सम्मेलन में समुद्री जैव विविधता और संसाधनों के संरक्षण हेतु नए संरक्षित क्षेत्रों के सृजन का निर्णय लिया गया, जिसके अंतर्गत सम्मेलन में शामिल 30 से अधिक देशों द्वारा जनवरी 2021 में वन प्लैनेट समिट में गठित अंतर-सरकारी समूह हाई ऐम्बिशन कोलिशन फॉर नेचर एंड पीपल में शामिल होने का निर्णय लिया गया, जबकि 84 देश 2030 तक विश्व की 30 प्रतिशत भूमि और समुद्र की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हुए।
  2. वर्ष के अंत तक खुले महासागरों के सतत उपयोग और उनकी जैव विविधता के संरक्षण पर एक प्रभावी और वैश्विक समझौते के निर्णय को गति प्रदान करने के लिए यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों तथा तीसरी दुनिया (विकासशील देश) के 16 देशों ने हाई म्बिशन कोलिशन ऑन बायोडाइवार्सिटी बियॉन्ड नेशनल ज्युरिस्डिक्शन (बीबीएनजे) की शुरुआत की।
  3. अवैध, गैर-सूचित और अनियमित (आईयूयू) मत्स्यन वैश्विक मत्स्यन का लगभग पांचवा हिस्सा है; यह फिश स्टॉक [फिश स्टॉक शब्द आमतौर पर एक विशेष मछली की आबादी को संदर्भित करता है जो कमोबेश उसी प्रजाति के अन्य स्टॉक (स्कंध) से अलग होती है।] को स्थायी रूप से प्रबंधित करने के प्रयासों को कमजोर करता है और इसमें शामिल मछुआरों को अकसर अत्यंत निम्न और असुरक्षित स्थिति में काम करना पड़ता है। अतः इस समस्या से निपटने हेतु सम्मेलन के दौरान, 14 भागीदार देश अवैध मत्स्यन के विरुद्ध कई मोर्चों, जैसे मछली पकड़ने वाली नौकाओं के सुरक्षा मानक निर्धारित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) के केप टाउन एग्रीमेंट का अनुसमर्थन तथा अक्टूबर 2022 तक इसे लागू करने; बंदरगाहों पर मत्स्यन संबंधी क्रियाकलापों को बेहतर तरीके से संचालित करने हेतु खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के एग्रीमेंट ऑन पोर्ट स्टेट मेजर्स (पीएसएमए) को अभिपुष्ट करने; और यूरोपियन रेग्युलेशन, 2008 के अनुरूप अवैध मत्स्यन की निगरानी बढ़ाने के लिए अपनी (यूरोपीय संघ के सदस्य देशों द्वारा) नौसेनाओं को विदेशी अभियानों पर भेजना, पर संघर्ष करने के लिए प्रतिबद्ध हुए।

जलवायु परिवर्तनः महासागर जलवायु परिवर्तन के शमन और अनुकूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समुद्र में वैश्विक व्यापार से प्रेरित शिपिंग (जहाजरानी) में महत्वपूर्ण वृद्धि का अर्थ है, इसके कारण होने वाले नुकसान को तेजी से और काफी हद तक कम करने की आवश्यकता। इससे संबंधित चार प्रतिबद्धताएं प्रतिपादित की गईं:

  1. वन ओशन समिट में 22 यूरोपीय पोतधारक नए ग्रीन मरीन यूरोप लेबल के लिए प्रतिबद्ध हुए, जिसमें आठ क्षेत्रों के लिए अत्यंत ठोस उपाय शामिल हैं: पानी की सतह के नीचे शोर, वायु प्रदूषक उत्सर्जन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जलीय आक्रामक प्रजातियां, अवशेष, तैलीय विसर्जक और जहाजों का पुनर्चक्रण।
  2. 18 प्रमुख यूरोपीय और वैश्विक बंदरगाहों सहित 35 सक्रियक देश, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने और प्रायः घनी आबादी वाले बंदरगाह शहरों में वायुमंडलीय प्रदूषण को कम करने के लिए बंदरगाहों पर खड़े होने वाले जहाजों की विद्युत आपूर्ति में तेजी लाने के लिए प्रतिबद्ध हुए।
  3. वायुमंडलीय प्रदूषण को कम करने के लिए यूरोपीय संघ के साथ सभी भूमध्यसागरीय देशों ने इंटरनेशनल मैरिटाइम ऑर्गेनाइजेशन (आईएमओ) से 1 जनवरी, 2025 से भूमध्य सागर में लो सल्फर एमिशन्स जोन (सल्फर का निम्नतम उत्सर्जन करने वाला क्षेत्र) निर्मित करने की मांग की।
  4. कुछ समुद्री और तटीय पारिस्थितिक तंत्र ( लवणकच्छ ) निम्न ऊंचाई पर स्थित आर्द्रभूमि है ,जो अकसर खारे पानी में निमग्न रहती है और जहां जड़ी-बूटियों, घास या छोटी झाड़ियों जैसे लवण सह्य वनस्पतियों की अधिकता पाई जाती है।), समुद्री घास की परत और मैंग्रोव बड़ी मात्रा में कार्बन को अवशोषित और संग्रहित कर सकते हैं। वन ओशन समिट के दौरान, फ्रांस और कोलंबिया ने ब्लू कार्बन से निपटने के लिए एक वैश्विक गठबंधन की शुरुआत की, जो साझा और कठोर पद्धतियों के माध्यम से तटीय पारिस्थितिक तंत्र की बहाली के वित्तपोषण में योगदान करने के लिए राष्ट्रीय और बहुपक्षीय कर्ताओं को एक साथ लाएगा।

महासागरों से प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्तिः प्रतिवर्ष 90 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में समा जाता है, जिसमें से 80 प्रतिशत तट और नदियों से आता है। सभी महाद्वीपों पर स्वच्छता और अपशिष्ट निपटान प्रणाली की अवसंरचना में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है। इस मुद्दे से निपटने के लिए तीन प्रतिबद्धताएं प्रतिपादित की गईं:

  1. सम्मेलन के दौरान, यूरोपियन बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (ईबीआरडी)—यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक (ईआईबी), और फ्रांस (एएफडी बैंक), जर्मनी (केएफडब्ल्यू बैंक), इटली (सीडीपी बैंक) एवं स्पेन (आईसीओ बैंक) के डेवलपमेंट बैंकों के साथ जुड़ा, जो समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहल क्लीन ओशन्स इनीशिएटिव में शामिल हैं, जिसके लिए इन सभी बैंकों ने संयुक्त रूप से 2025 तक चार बिलियन यूरो की वित्त सहायता प्रदान करने के लिए अपने प्रयासों को दुगुना कर दिया।
  2. वन ओशन समिट के दौरान 250 कंपनियों समेत ग्रीस, इटली, कोलंबिया, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, पेरिस और सेंट्रल ग्रीस तथा विश्व भर से 500 हस्ताक्षरकर्ता, न्यू प्लास्टिक इकोनॉमी ग्लोबल कमिटमेंट से जुड़े।
  3. भारत और फ्रांस ने मिलकर सिंगल-यूज प्लास्टिक (एक बार उपयोग में आने वाला प्लास्टिक) से होने वाले प्रदूषण के उन्मूलन पर एक पहल शुरू की, जिसके बहुमुखी उद्देश्य हैं।

महासागर को वैश्विक राजनीतिक एजेंडा में सबसे ऊपर रखनाः वन ओशन समिट अंतरराष्ट्रीय बैठकों की एक शृंखला का प्रारंभिक बिंदु है जिनका केंद्रीय मुद्दा महासागर हैं। इसमें जून में लिस्बन में होने वाला संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन और शरद ऋतु में मिस्र में होने वाला COP27 शामिल हैं। इस मुद्दे से निपटने के लिए तीन प्रतिबद्धताएं प्रतिपादित की गईं:

  1. इस सम्मेलन को आगे बढ़ाने और महासागर को एक महत्वाकांक्षी अंतरराष्ट्रीय एजेंडा बनाने के लिए, फ्रांस और कोस्टा रिका द्वारा संयुक्त रूप से 2024 में संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन का आयोजन करने का प्रस्ताव रखा गया।
  2. इसके अलावा, यूरोपीय संघ—यूरोपीय ब्लू ग्रोथ और वैश्विक शासन का समर्थन करते हुए ज्ञान एकत्रित करने और कार्रवाई के लिए परिदृश्यों का परीक्षण करने के लिए “डिजिटल ट्विन ऑफ द ओशन” को साझा करने हेतु प्रतिबद्ध हुए।
  3. यूनेस्को ने यह सुनिश्चित करने हेतु अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की कि 2030 तक समुद्र तल के कम से कम 80 प्रतिशत का मानचित्र तैयार कर लिया जाएगा।

भारतीय दृष्टिकोण

वन ओशन समिट के दूसरे दिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो के माध्यम से सम्मेलन में भाग लिया और सभा को संबोधित किया। उन्होंने महासागर से भारत के प्राचीन और निकट संबंध का उल्लेख करने के साथ ही एकल उपयोग प्लास्टिक (सिंगल यूज प्लास्टिक) को समाप्त करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई, और हाल ही में भारत के तटीय क्षेत्रों से प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट को साफ करने के लिए चलाए गए एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान का उल्लेख किया, जिसके तहत तीन लाख भारतीय युवाओं द्वारा लगभग 13 टन प्लास्टिक अपशिष्ट एकत्र किया गया था। इसके अलावा, उन्होंने सम्मेलन के सदस्य देशों को भारत की ‘भारत-प्रशांत महासागर पहल’ (इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव) से अवगत कराया, जिसके तहत समुद्री संसाधनों को एक प्रमुख स्तंभ के रूप में शामिल किया गया है।


समुद्री पारिस्थितिकी से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण सम्मेलन एवं समझौते

  1. वन प्लैनेट समिटः वन प्लैनेट समिट की शुरुआत जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष और प्रकृति की सुरक्षा हेतु दिसंबर 2017 में फ्रांस, संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक की संयुक्त पहल पर वन प्लैनेट मूवमेंट के रूप में की गई थी। यह अभियान, सभी सार्वजनिक और आर्थिक हितधारकों द्वारा पृथ्वी को संरक्षित करने के लिए अधिक प्रतिबद्धता दर्शाने, अधिक ठोस निर्णय लेने और संयुक्त प्रयास करने की आवश्यकता को प्रोत्साहन देता है। वन प्लैनेट समिट की परिकल्पना, जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई हेतु एक नया, व्यावहारिक एवं प्रभावी तंत्र पेश करने के लिए की गई थी, जो पारिस्थितिक संक्रमण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को व्यापक एवं नवीनीकृत करने में योगदान देगा। प्रथम वन प्लैनेट समिट का आयोजन 12 दिसंबर, 2017 को पेरिस में किया गया था, जिसका विषय—वन प्लैनेट समिटः ए मीटिंग फॉर द प्लैनेट था, तत्पश्चात इस सम्मेलन का आयोजन प्रत्येक वर्ष किया जाता है।
  2. हाई ऐम्बिशन कोलिशन फॉर नेचर एडं पीपल (एचएसी): यह एक अंतर-सरकारी समूह है, जिसमें 90 से अधिक देश शामिल हैं। कोस्टा रिका, फ्रांस तथा यूके की सह-अध्यक्षता में संचालित इस समूह का लक्ष्य, जो “30 × 30” के रूप में भी जाना जाता है, वर्ष 2030 तक विश्व की कम से कम 30 प्रतिशत भूमि और महासागर को संरक्षित करना है। इस लक्ष्य का उद्देश्य पृथ्वी पर प्रकृति और मानव जाति की संरक्षा करने हेतु प्रजातियों के तीव्रता से होने वाले लोप को नियंत्रित तथा महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षित करना है, जो विश्व की आर्थिक सुरक्षा का आधार हैं।
  3. बायोडाइवर्सिटी बियॉन्ड नेशनल ज्युरिस्डिक्शन (बीबीएनजे) संधि: बीबीएनजे, समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (यूनाइटेड कंवेन्शन ऑन द लॉ ऑफ द सी) के तहत राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग पर एक साधन के रूप में अंतरराष्ट्रीय मसौदा संधि है, जिसमें विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों या देशों के राष्ट्रीय जल क्षेत्रों से परे खुले समुद्र शामिल हैं। ‘बीबीएनजे संधि’ जिसे ‘ट्रिटी ऑफ द हाई सिज’ अर्थात खुले समुद्र की संधि के रूप में भी जाना जाता है, पर अभी वार्ता जारी है। यह राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण एवं सतत उपयोग पर अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
  4. केप टाउन एग्रीमेंटः केप टाउन एग्रीमेंट या समझौता मत्स्यन के पोतों के मानक निर्धरित करने हेतु अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) द्वारा 2012 में प्रस्तुत किया गया अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जो मत्स्यन के पोत निर्माण, विद्युत प्रतिष्ठानों और मशीनरी, संचार उपकरण आदि साधनों को संबोधित करने वाले नियमों का समावेश करता है। इस समझौते को अवैध मत्स्यन के विरुद्ध संघर्ष में योगदान देने वाले मछुआरों को सुरक्षित समुद्र प्रदान करने के उद्देश्य से लागू किया जाएगा। केप टाउन एग्रीमेंट को लागू करने के लिए कम से कम 22 राष्ट्रों के साथ-साथ खुले समुद्र में संचालन करने वाले लगभग 3,600 मत्स्यन जहाजों द्वारा अपनी सहमति व्यक्त करना आवश्यक है। इन शर्तों के पूरा होने के 12 महीने बाद यह समझौता लागू किया जाएगा। यह समझौता अवैध, गैर-सूचित और अनियमित मत्स्यन (आईयूयू) तथा जबरन मजदूरी की रोकथाम; तथा साथ ही मत्स्यन जहाजों से समुद्री मलबे सहित प्रदूषण कम करने में उपयोगी होगा। वर्तमान में 16 देश इस समझौते से अनुबंधित हैं।
  5. एग्रीमेंट ऑन पोर्ट स्टेट मेजर्सः यह पहला बाध्यकारी अतंरराष्ट्रीय समझौता है, जो विशेष रूप से अवैध, गैर-सूचित और अनियमित मत्स्यन को लक्षित करता है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा 2016 में लागू किए गए इस समझौते का उद्देश्य अवैध मत्स्यन में संलग्न जहाजों को अपने देश के अतिरिक्त अन्य देशों के बंदरगाहों का उपयोग करने और अवैध मत्स्यन से प्राप्त मत्स्योत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचने से रोकना है।
  6. इंडो-पैसिफिक ओशन इनशिएटिव (आईपीओआई): यह भारत द्वारा 2019 में शुरू की गई एक पहल है, जिसकी घोषणा 14वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में की गई थी। इस पहल का उद्देश्य भारत और क्षेत्रीय भागीदारों के बीच महासागरों की सुरक्षा के लिए गहन सहयोग को बढ़ावा देते हुए समुद्र की सुरक्षा में वृद्धि और समुद्री संसाधनों का संरक्षण; क्षमता निर्माण और संसाधनों का उचित साझाकरण; आपदा जोखिमों का न्यूनीकरण एवं प्रबंधन; पारस्परिक रूप से लाभप्रद व्यापार, संयोजकता तथा समुद्री परिवहन के साथ-साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं शैक्षणिक सहयोग को बढ़ावा देना है।

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