प्रदूषण वायु, भूमि, जल (मीठे और खारे) में मौजूद उस अवांछित अपशिष्ट को सन्दर्भित करता है जो मानव जाति द्वारा उत्पन्न किया जाता है, और मनुष्य तथा पृथ्वी के अस्तित्व के लिए एक खतरा है। प्रदूषण के अन्तर्गत सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम 2.5) द्वारा वायु का संदूषण; ओजोन; सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड; पेयजल प्रदूषण; पारा, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, प्लास्टिक और पेट्रोलियम अपशिष्ट द्वारा समुद्र का संदूषण; तथा सीसा, पारा, कीटनाशकों, औद्योगिक रसायनों, इलेक्ट्रॉनिक और रेडियोधर्मी अपशिष्ट द्वारा भूमि की विषाक्तता या मृदा का संदूषण शामिल हैं।


पार्टिकुलेट मैटर (पीएम): पार्टिकुलेट मैटर या पीएम वायु में मौजूद उन सूक्ष्म कणों को सन्दर्भित करता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। पीएम में सूक्ष्म रूप से लघु ठोस कण या तरल बूंदें शामिल होती हैं, जिन्हें या तो सीधे वायु में उत्सर्जित किया जा सकता है, अथवा यह वायुमण्डल में संघटित गैसीय प्रदूषकों द्वारा होने वाली द्वितीयक प्रतिक्रियाओं से निर्मित होता है। पीएम में सल्फेट्स, नाइट्रेट्स, अमोनिया, सोडियम क्लोराइड, काले कार्बन, खनिज धूल और पानी शामिल हो सकते हैं, जिन्हें सबसे खतरनाक वायु प्रदूषक माना जाता है। पीएम को सामान्यतया दो आकार की श्रेणियों के बीच मापा जाता हैः पीएम 10 और पीएम 2.5।


वायु प्रदूषण न केवल मानव एवं अन्य प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े और तात्कालिक पर्यावरणीय खतरों में से एक है, बल्कि इससे भारी आर्थिक क्षति भी होती है। इसके कारण प्रतिवर्ष लाखों लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है और लाखों लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है।

जून 2022 में एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) की वार्षिक रिपोर्ट में क्षेत्रानुसार वायु प्रदूषण की वैश्विक स्थिति का वर्णन किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में विश्व के अधिकांश लोग असुरक्षित वायु में सांस ले रहे हैं, जिसके कारण औसत वैश्विक जीवन प्रत्याशा में 2.2 वर्ष या 17 अरब जीवन-वर्ष की कमी हो रही है, जो जीवन प्रत्याशा पर पड़ने वाले अन्य प्रभावों (धूम्रपान, मदिरा, एचआईवी और आतंकवाद) से कई गुना अधिक है।

यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि वायु प्रदूषण से विश्व के सभी क्षेत्र ग्रस्त हैं, लेकिन इसका सबसे घातक प्रभाव दक्षिण एशिया पर पड़ा है, जहां लम्बे समय तक वायु प्रदूषण का सामना करने के कारण लोगों की जीवन प्रत्याशा में 5 वर्ष की कमी आ रही है, और कुछ अधिक प्रदूषित क्षेत्रों मे यह और अधिक घट रही है। दक्षिण एशिया के साथ ही दक्षिण-पूर्व एशिया (लगभग 99 प्रतिशत) में प्रदूषण का स्तर असुरक्षित है, जैसाकि इस क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों में एक वर्ष के भीतर ही प्रदूषण के स्तर में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। दक्षिण एशिया के कुछ शहरों (मांडले, जकार्ता आदि) में अत्यधिक प्रदूषण के कारण लोगों की जीवन प्रत्याशा में 3-4 वर्ष की कमी आ रही है।

इन क्षेत्रों के अलावा, लगभग सम्पूर्ण मध्य और पश्चिम अफ्रीका (97 प्रतिशत से अधिक) में प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ के नए दिशा-निर्देशों (वर्ष 2021 में) की तुलना में सात गुना अधिक है जिसका मुख्य कारण ठोस ईंधनों के उपयोग में वृद्धि होना है, जिसके फलस्वरूप यहां के निवासियों की औसत जीवन प्रत्याशा 1.6 वर्ष तक, जबकि सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में 5 वर्ष तक घट गई है। अफ्रीकी देशों के अलावा, लैटिन अमेरिका के अधिकांश लोग अत्यधिक प्रदूषित वायु में सांस ले रहे हैं। इस क्षेत्र में कण प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों से आठ गुना अधिक है।

इन क्षेत्रों के विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में वायु प्रदूषण सम्बन्धी कठोर नीतियां लागू करने के फलस्वरूप कण प्रदूषण में पर्याप्त कमी आई है, जिसके कारण यहां के लोगों की जीवन प्रत्याशा में औसतन 1.4 वर्ष की वृद्धि हुई है। लेकिन अभी भी इन क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप नहीं है। यद्यपि विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में वायु प्रदूषण में वृद्धि देखी गई है, तथापि चीन एकमात्र ऐसा देश है जहां 2013 से प्रदूषण के स्तर में कमी आई है। वर्तमान में यह 39.9 प्रतिशत तक कम हो गया है और चीन ने अपनी राष्ट्रीय गुणवत्ता का मानक हासिल कर लिया है, जिसके फलस्वरूप यहां के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा में दो वर्ष की वृद्धि की सम्भावना दिखाई दे रही है। इसके बावजूद, चीन का प्रदूषण स्तर अभी भी डब्ल्यूएचओ के मानकों की तुलना में काफी अधिक है।

मई 2022 में लैंसेट द्वारा जारी रिपोर्ट—पॉल्यूशन एण्ड हेल्थः ए प्रोग्रेस अपडेट में लैंसेट के मिशन ऑन पॉल्यूशन एण्ड हेल्थ द्वारा प्रदूषण पर एक गहन और स्पष्ट समीक्षा प्रस्तुत की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2015 में 9 मिलियन से अधिक लोगों की अकाल मृत्यु के लिए प्रदूषण जिम्मेदार था, इस प्रकार यह बीमारी और समय से पहले होने वाली मौतों के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय जोखिम कारक बन गया। अत्यधिक गरीबी से सम्बद्ध विभिन्न प्रकार के प्रदूषण (घरेलू वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण) के कारण होने वाली मौतों की संख्या में जो कमी आई है, वह वायु प्रदूषण और विषाक्त रासायनिक प्रदूषण (सीसा) से हुई मौतों में वृद्धि होने के कारण निरर्थक हो गई है। इन आधुनिक प्रदूषण जोखिम कारकों के कारण होने वाली मौतों में 2015 के बाद से 7 प्रतिशत और 2000 के बाद से 66 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। प्रदूषण से होने वाली 90 प्रतिशत से अधिक मौतें निम्न आय और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। वायु प्रदूषण, सीसा विषाक्तता और रासायनिक प्रदूषण पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। वायु प्रदूषण से विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष 6.5 मिलियन से अधिक मौतें होती हैं, और यह संख्या बढ़ रही है। प्रदूषण नियंत्रण के सम्बन्ध में रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित इस समस्या की गम्भीरता के बावजूद, अधिकांश देशों ने इस मुद्दे के समाधान के लिए बहुत अधिक प्रयास नहीं किए हैं। यद्यपि उच्च आय वाले देशों ने अपने सबसे गम्भीर प्रकार के प्रदूषण को नियंत्रित किया है और प्रदूषण नियंत्रण को जलवायु परिवर्तन के शमन से जोड़ा है, तथापि निम्न और मध्यम आय वाले कुछ ही देश पर्याप्त रूप से प्रदूषण का प्रबन्धन करने और प्रदूषण नियंत्रण के लिए संसाधनों को समर्पित करने में सक्षम रहे हैं, या उन्होंने प्रदूषण नियंत्रण सम्बन्धी कार्यों में प्रगति की है।

भारत में वायु प्रदूषणः वायु प्रदूषण के मामले में भारत सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 93 प्रतिशत क्षेत्र में अभी भी प्रदूषण की मात्रा डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्देशित मात्रा से बहुत अधिक है। 2019 में, भारत में प्रदूषण से होने वाली मौतों की अनुमानित संख्या सर्वाधिक थी।


डब्ल्यूएचओ के अद्यतित वायु गुणवत्ता मानक, 2021

डब्ल्यूएचओ ने 15 वर्षों के अंतराल (विगत अद्यतन 2005 में किया गया था) पर 2021 में ग्लोबल एयर क्वालिटी गाइडलाइंस (AQGs) का एक अद्यतित संस्करण जारी किया। पिछले दशक में विकसित विज्ञान को देखते हुए वैश्विक वायु प्रदूषण मानकों का अद्यतन किया गया, क्योंकि वर्तमान में वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पहले की अपेक्षा कहीं अधिक गम्भीर हैं। 2021 में डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्दिष्ट वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में एक भी देश सफल नहीं हुआ।

2021 में निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार, पीएम 10 का वार्षिक औसत, वायु के 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि 24 घण्टे का औसत, वायु के 45 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। पहले यह सीमा 20 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सालाना और एक दिन में 50 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी। पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर या प्रतिदिन 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक न होने की अनुशंसा की गई है। पहले यह सीमा 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सालाना और एक दिन में 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी। इसी प्रकार, 24 घण्टे की अवधि में ओजोन का औसत स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, नाइट्रोजन ऑक्साइड 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, सल्फर डाइऑक्साइड 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से कम होना चाहिए और समान अवधि में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर 4 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए।


विगत कुछ वर्षों में, भारत में उद्योग, जनसंख्या घनत्व, मानवजनित गतिविधियों, और ऑटोमोबिल के उपयोग में व्यापक स्तर पर वृद्धि हुई है, जिससे वायु की गुणवत्ता में कमी आई है। पिछले कुछ दशकों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और मानवजनित गतिविधियों से उत्पन्न अन्य उत्सर्जनों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत, चीन, इथियोपिया, नाइजीरिया, अमेरिका और ईयू-15 (ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क, फिनलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, आयरलैण्ड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैण्ड, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन और यूनाइटेड किंगडम।) जैसे देशों में प्रदूषण के कारण समय से पूर्व किसी व्यक्ति की मृत्यु होने के फलस्वरूप इन देशों ने अपने भविष्य के उत्पादन का वर्तमान परिमाण खो दिया है। जबकि भारत ने वर्ष 2000 से प्रदूषण के परिणामस्वरूप जीडीपी का 3.2 प्रतिशत के बराबर उत्पादन गवां दिया। इसके अलावा, वर्ष 2000 से 2019 के बीच प्रदूषण के आधुनिक रूपों के कारण भारत, चीन और नाइजीरिया में आर्थिक नुकसान जीडीपी के अनुपात में बढ़ा है, और अब इनमें से प्रत्येक देश में जीडीपी के लगभग 1 प्रतिशत के बराबर आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है। जीवाश्म ईंधन से होने वाले वायु प्रदूषण की वैश्विक लागत लगभग 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन होने का अनुमान है।

विश्व बैंक द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वायु प्रदूषण वैश्विक रूप से अनुमानतः 8.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के नुकसान के लिए जिम्मेदार था, जो वैश्विक जीडीपी के 6.1 प्रतिशत के बराबर है।

डब्ल्यूएचओ के अनुमान (2016) के अनुसार, विश्व के 20 सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से 10 भारत में हैं। पीएम 2.5 उत्सर्जन की सघनता के आधार पर 2019 में डब्ल्यूएचओ द्वारा भारत को पांचवें सबसे प्रदूषित देश का स्थान दिया गया था, जिसमें शीर्ष 30 प्रदूषित शहरों में से 21 भारत में थे। भारतीय शहरों में औसत प्रदूषण, डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित सीमा से 500 प्रतिशत से भी अधिक है।

एक्यूएलआई रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 63 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ऐसे क्षेत्रों में रहती है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर न केवल डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों से, बल्कि अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (40µg/m3) से भी अधिक है, जो भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जैसाकि वायु प्रदूषण, विशेष रूप से कण प्रदूषण, के कारण लोगों की जीवन प्रत्याशा 5 वर्ष तक कम हो जाती है। वर्तमान में, भारत में 1998 की तुलना में कण प्रदूषण में हुई 61.4 प्रतिशत की वृद्धि ने भारतीयों की जीवन प्रत्याशा को 2.1 वर्ष और कम कर दिया है। रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि वर्ष 2013 से वैश्विक प्रदूषण में हुई कुल वृद्धि में भारत का 44 प्रतिशत योगदान है और यदि भारत में प्रदूषण का स्तर यथावत रहता है, तो उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्र में रहने वाले भारतीयों की जीवन प्रत्याशा के 7.6 वर्ष कम होने की सम्भावना है।

ग्रीनपीस की वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट, 2021 में पीएम 2.5 (जिसके कारण 30 लाख से अधिक अकाल मृत्यु होने का अनुमान है।) के सन्दर्भ में नई दिल्ली को विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानी का दर्जा दिया गया। भारत के शहरी क्षेत्रों में परिवेशी वायु गुणवत्ता में निरन्तर गिरावट वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करती है। यद्यपि भारत सरकार द्वारा वाहनों और औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने के लिए विभिन्न नीतिगत उपाय किए जा रहे हैं, तथापि अभी भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है।

कोलैबोरेटिव क्लीन एयर पॉलिसी सेण्टर द्वारा प्रकाशित 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण घरों में जलने वाला ठोस ईंधन था।

भारत के लिए यह चिन्ताजनक है कि देश के राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्देशित 2005 के वैश्विक वायु गुणवत्ता मानकों को ही पूरा नहीं करते, जिससे डब्ल्यूएचओ के 2021 के दिशा-निर्देशों के क्रियान्वयन को हासिल करना भारत के लिए दूर की कौड़ी है। भारत के एनएएक्यूएस में अन्तिम बार वर्ष 2009 में संशोधन किया गया था। ये मानक पीएम 10 की वार्षिक और दैनिक सीमा क्रमशः 60 और 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तथा पीएम 2.5 की वार्षिक और दैनिक सीमा क्रमशः 40 और 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर निर्दिष्ट करते हैं। सल्फर डाइऑक्साइड, सीसा और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड सहित कई रासायनिक प्रदूषकों के लिए भी मानक हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि डब्ल्यूएचओ के संशोधित मानक, वायु गुणवत्ता मानकों को मजबूत करने की दिशा में सरकार की नीति में सम्भावित बदलाव का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

वायु प्रदूषण से निपटने में भारत के समक्ष चुनौतियां: महानगरों में वायु की गुणवत्ता का प्रबन्धन चार चरणों की एक प्रक्रिया है, जिसमें समस्या की पहचान, नीति-निर्माण, उनका कार्यान्वयन और नियंत्रण शामिल हैं। पूरी प्रक्रिया में वायु गुणवत्ता के मानकों के प्रभावी प्रबन्धन के लिए व्यापक डेटा समूह का जटिल विश्लेषण शामिल है। लेकिन पारदर्शिता की कमी और डेटा की अनुपलब्धता वायु की गुणवत्ता से सम्बन्धित मुद्दों को हल करने की दिशा में एक प्रमुख चुनौती है।

अधिकांश भारतीय शहरों में तकनीकी और ढांचागत समर्थन का अभाव है। भारत जैसे विकासशील देश में उन्नत शहरी अवसंरचनात्मक परिवर्तनों के कार्यान्वयन में वित्तीय साधनों का अभाव; न्यायालय द्वारा अनिवार्य किए जाने के बाद भी उद्योगों को शहरी क्षेत्रों से स्थानान्तरित करने में कठिनाई; और सबसे बढ़कर, हरित समाधानों को स्वीकार न करने के प्रति लोगों की स्वभावजन्य आदतें—वायु प्रदूषण के शमन हेतु बनाई गई रणनीतियों के लिए गम्भीर बाधाएं हैं।

जन-जागरूकता की कमी और उत्सर्जन नियंत्रण के उपायों के साथ-साथ अक्षम यातायात प्रबन्धन प्रणाली वायु प्रदूषण से निपटने में एक और बड़ी बाधा है। सरकार द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए गए उपायों में जनहित एवं जन सहभागिता की कमी के परिणामस्वरूप प्रदूषण नियंत्रण के लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफलता मिल सकती है।

वायु प्रदूषण के शमन हेतु भारत के प्रयासः भारत ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने और परिवेशी वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं। अक्षय ऊर्जा के विस्तार की दिशा में बढ़ने हेतु एक वैकल्पिक ईंधन के रूप में सम्पीड़ित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) का उपयोग, भारत स्टेज VI वाहन और ईंधन मानकों की शुरुआत, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) जैसी विभिन्न पहलें वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किए गए कुछ महत्वपूर्ण प्रयास हैं। मार्च 2022 में जारी प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के प्रथम स्वतंत्र प्रभाव आकलन के अनुसार, योजना के तहत रसोई ईंधन के रूप में एलपीजी की अधिक पैठ और उपयोग से वर्ष 2019 में प्रदूषण से सम्बन्धित कम से कम 1.5 लाख अकाल मौतों पर रोक लगाई जा सकी है। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार की दिशा में बदलाव किया गया है। पार्टिकुलेट मैटर और धूल कणों की सघनता को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, जिनमें शहरों के आस-पास ग्रीन बफर (हरित क्षेत्र), शहरी क्षेत्रों के आस-पास 33 प्रतिशत हरित आवरण या हरियाली का रखरखाव, और शहरों में पानी के फव्वारों की स्थापना शामिल हैं।

वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए जनवरी 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) शुरू किया गया। इसका उद्देश्य वर्ष 2017 की तुलना में 2024 तक कम से कम 102 शहरों में मोटे कणों (10 माइक्रोमीटर) या उससे कम व्यास वाले पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 10) और सूक्ष्म कणों (2.5 माइक्रोमीटर) या उससे कम व्यास वाले पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) की सघनता को 20 से 30 प्रतिशत तक कम करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट और प्राप्त वायु गुणवत्ता के आंकड़ों के आधार पर 23 राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों के 102 शहरों को इस कार्यक्रम के तहत नॉन-अटेनमेंट सिटीज (वह शहर, जिसकी वायु गुणवत्ता वर्ष 2011 से 2015 के राष्ट्रीय परिवेशी वायु के गुणवत्ता मानदण्डों को पूरा नहीं करती।) के रूप में शामिल किया गया है। इनमें से दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और बेंगलुरु को छोड़कर ज्यादातर शहर टियर 2 सिटीज (50,000 से 1,00,000 की आबादी वाले शहर) हैं। इस सूची में सबसे अधिक शहर (17) महाराष्ट्र के हैं, जबकि इसके पश्चात उत्तर प्रदेश के 15 शहर हैं। झारखण्ड, मेघालय, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल का एक-एक शहर भी इस सूची में शामिल है। एक्यूएलआई रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत इस कार्यक्रम के तहत देश के वायु प्रदूषण को 25 प्रतिशत तक कम करने में सफल रहता है, तो भारत की औसत राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा 1.4 वर्ष तक बढ़ सकती है, जबकि दिल्ली-एनसीआर के निवासियों की जीवन प्रत्याशा में औसतन 2.6 वर्ष की वृद्धि होने की सम्भावना है।

केन्द्र सरकार द्वारा दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और शमन हेतु निर्धारित समय-सीमा में प्रदूषण से सम्बन्धित एजेंसियों द्वारा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्देशित उपायों का कार्यान्वयन किए जाने के उद्देश्य से 2018 में व्यापक कार्य योजना (सीएपी) लाई गई।

दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के लिए 12 जनवरी, 2017 को ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) अधिसूचित किया गया। यह चार एक्यूआई श्रेणियों (मध्यम से खराब, बहुत खराब, गम्भीर और अति गम्भीर या आपात स्थिति) की अनुक्रिया के लिए श्रेणीबद्ध उपायों और कार्यान्वयन एजेंसियों की पहचान करता है।

वायु को प्रदूषित करने वाली गतिविधियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के प्रावधान के साथ-साथ लोगों को वायु की गुणवत्ता की जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से समीर ऐप शुरू किया गया।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 1983-84 में पर्यावरण शिक्षा, जागरूकता और प्रशिक्षण योजना शुरू की गई। इस योजना का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के बीच पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना और पर्यावरण के संरक्षण में लोगों को शामिल करना है।

राष्ट्रीय हरित कोर (एनजीसी) कार्यक्रम के तहत इको-क्लब के रूप में कई स्कूलों की पहचान की गई है, जिसमें बड़ी संख्या में छात्र वायु प्रदूषण से सम्बन्धित मुद्दों सहित पर्यावरण संरक्षण और संधारण सम्बन्धी विभिन्न गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं।

समर्पित मीडिया कॉर्नर के तहत वायु गुणवत्ता से सम्बन्धित जानकारी तक पहुंच प्राप्त करने के लिए ट्विटर और फेसबुक अकाउंट बनाए गए हैं। यह आम जनता द्वारा पर्यावरण से सम्बन्धित शिकायत दर्ज कराने के लिए एक मंच के रूप में भी कार्य करता है।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों की भागीदारी और नागरिकों के बीच जागरूकता बढ़ा रहा है, जिसमें साइकलिंग, पानी और बिजली की बचत, पेड़ों की कटाई, वाहनों का उचित रखरखाव, लेन अनुशासन का पालन और सड़कों पर भीड़ कम करने के लिए कार-पूलिंग को बढ़ावा देने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।

इनके अलावा, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा समय-समय पर राष्ट्रीय पवन-सौर ऊर्जा हाइब्रिड नीति, 2018; राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति, 2016; मोटर यान (वाहन स्क्रैपिंग सुविधा का पंजीकरण और कार्य) नियम, 2021; इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2020; राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018; प्रधानमंत्री जैव ईंधन-वातावरण अनुकूल फसल अवशेष निवारण (जी-वन) योजना, 2019; हरित राजमार्ग (वृक्षारोपण, प्रत्यारोपण, सौन्दर्यीकरण और अनुरक्षण) नीति—2015; राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, 2021; राष्ट्रीय जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन, 2010 और उत्सर्जन मानक भारत स्टेज (बीएस-VI), 2020 इत्यादि नीतियां और योजनाएं लागू की गई हैं।

वायु प्रदूषण नियंत्रण सम्बन्धी उपर्युक्त नीतियां और योजनाएं राज्य स्तर पर भी लाई गई हैं या लाई जा रही हैं।

अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार ने इस दिशा में प्रयास किए हैं, जैसाकि भारत विश्व बैंक के कन्ट्री पार्टनर्शिप फ्रेमवर्क (विश्व बैंक समूह और भारत के बीच लगभग आठ दशकों के मजबूत सहयोग पर आधारित कार्यक्रम) कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसके तहत गंगा के मैदानी क्षेत्र पर मुख्य जोर दिया गया है, जहां जनसंख्या घनत्व और अत्यधिक प्रदूषण के कारण चुनौती से निपटने के लिए क्षमता और प्रणालियों को समर्थन देने की आवश्यकता है। इसके अलावा, विश्व बैंक द्वारा भारत में वायु प्रदूषण के प्रबन्धन के लिए नागरिकों को तैयार करने हेतु उनकी क्षमता और कौशल संवर्धन की दिशा में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (एनकेएन) की सहायता की जा रही है। यह प्रशिक्षण भारत के राष्ट्रीय कौशल अर्हता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) से संरेखित है। भारत 2019 से संयुक्त राष्ट्र के क्लाइमेट एण्ड क्लीन एयर कोलिशन का सदस्य है। इस गठबंधन के तहत भारत देश में अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों के शमन के अवसरों की पहचान करने, क्लाइमेट-स्मार्ट कृषि तकनीकों पर बल देने तथा अपशिष्ट निपटान जैसे क्षेत्रों में प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु सक्रिय है। वर्ष 2015 में, भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के पेरिस सम्मेलन में इण्टरनेशनल सोलर अलायंस की शरुआत की गई। 80 देशों वाले इस अन्तरराष्ट्रीय सहयोग या गठबंधन का उद्देश्य सौर ऊर्जा से सम्बन्धित अभिनव और किफायती अनुप्रयोगों को प्रोत्साहित करके स्वच्छ ऊर्जा को सुनिश्चित करना है, जिससे वायु प्रदूषण में भी कमी होगी।

राज्य एवं अंतर्राज्यीय स्तर पर वायु प्रदूषण में कमी के प्रयासों के तहत, दिल्ली-एनसीआर  में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा स्मॉग टॉवर की स्थापना के साथ ही इलेक्ट्रिक बसों और सीएनजी से चलने वाले वाहनों पर जोर दिया गया है (उदाहरणार्थ, दिल्ली में 2001 से 2006 तक सीएनजी से चलने वाले वाहनों का इस्तेमाल किया गया है, जिससे पीएम, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), और सल्फर ऑक्साइड (SO2) के उत्सर्जन स्तर में काफी कमी आई।)। उत्तर प्रदेश में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार द्वारा एयरशेड प्रबन्धन पर जोर देने के साथ ही पराली की समस्या से निपटने का प्रयास किया जा रहा है। महाराष्ट्र में बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए सेंसर-आधारित 128 सिस्टम स्थापित करने की योजना बनाई है, जबकि वर्ष 2016 में सबसे पहले फ्लाई ऐश उपयोगिता नीति को महाराष्ट्र ने ही लागू किया था। इसके अलावा, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को दूर करने हेतु उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब द्वारा व्यापक स्तर पर जैव अपघटन के माध्यम से पराली के स्थानीय प्रबन्धन, एनसीआर में ताप विद्युत संयंत्रों में पूरक ईंधन के रूप में 50 प्रतिशत धान के भूसे के साथ बायोमास के अनिवार्य उपयोग, और गुजरात तथा राजस्थान में चारे के रूप में गैर-बासमती चावल की पराली के उपयोग के तरीके और साधन विकसित करने के लिए एक कार्यबल का गठन करने जैसे उपाय किए जा रहे हैं।

वायु प्रदूषण को कम करने की दिशा में निजी क्षेत्र की भूमिका के तहत ईंट की भट्टियों से धुएं के उत्सर्जन के लिए जिग-जैग टेक्नोलॉजी (ईंटों को व्यवस्थित करने की एक तकनीक जो कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक है) का प्रयोग, ऑनलाइन निरन्तर उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (ओसीईएमएस) के माध्यम से निस्तारित विसर्जकों की निगरानी और अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों में वेब कैमरों की स्थापना शामिल हैं। वर्ष 2018 में महिन्द्रा समूह ने पराली को जैव ईंधन में परिवर्तित करने के लिए इन्द्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (आईजीएल) के साथ सहभागिता की, जिसका उपयोग गांवों में जनरेटर चलाने के ईंधन के रूप में किया जा सकता है। इसके साथ ही महिन्द्रा समूह और विप्रो—अन्तरराष्ट्रीय पहल अलायंस फॉर क्लीन एयर के तहत भी वायु प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में कार्यरत हैं। आईकेईए, स्वीडिश फर्नीचर निर्माता बहुराष्ट्रीय कम्पनी, चावल की फूस (या पराली) का प्रयोग कच्चे माल के रूप में करती है जो वायु प्रदूषण को कम करने वाले एक व्यर्थ पदार्थ को आर्थिक रूप से व्यवहार्य संसाधन के रूप में उसकी पुनर्प्रयोज्यता को प्रदर्शित करती है, जबकि एक्सऑन-मोबिल (Exon-Mobil) कम्पनी जैसी कम्पनियां औद्योगिक प्रतिस्पर्धा, ऊर्जा दक्षता और पर्यावरणीय व्यवहार्यता में वृद्धि करने हेतु ऊर्जा-दक्ष औद्योगिक लुब्रिकेंट बनाती हैं, और सीमेंस मोबिलिटी द्वारा वायु की गुणवत्ता का पता लगाने हेतु ‘जेफर’ (Zephyr) नामक सेंसर का उत्पादन किया जाता है।

इसी प्रकार, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु नए नवोन्मेषक स्टार्ट-अप्स चक्र इनोवेशन (दिल्ली) द्वारा ‘चक्रशील्ड’ (डीजल से चलने वाले जनरेटरों से निकलने वाली कालिख को स्याही और पेंट में परिवर्तित करने में सक्षम यंत्र), NavAlt (केरल) द्वारा ‘आदित्य’ (सौर ऊर्जा से संचालित नौका) और अग्निसुमुख (बेंगलुरु) द्वारा रसोई के लिए ऊर्जा दक्ष गैस के चूल्हों जैसे व्यावसायिक उपकरण निर्मित किए गए हैं, जबकि सेलजाइम बायोटेक (तमिलनाडु) ने वायु प्रदूषण में वृद्धि करने वाले विलायक द्रव्यों का उपयोग किए बिना प्रतिजैविक बनाने के लिए व्यवस्थित एन्जाइमों का प्रयोग किया।

भारत पहले ही वायु के गुणवत्ता प्रबन्धन के लिए विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक परिवर्तन कर चुका है। उदाहरण के लिए, दिल्ली मेट्रो की दिन की ऊर्जा आवश्यकता के 60 प्रतिशत की आपूर्ति मध्य प्रदेश में 750 मेगावाट की रीवा सौर परियोजना से प्राप्त सौर ऊर्जा के माध्यम से की जा रही है। कोयले पर अपनी निर्भरता को कम किया जा रहा है। साथ ही, अगले 25 वर्षों में अपने ऊर्जा बिल पर 170 मिलियन डॉलर से अधिक की बचत की जा रही है। यद्यपि भारत निरन्तर वायु प्रदूषण को कम करने की दिशा में अग्रसर है, तथापि अभी भी प्रभावी नीतियों, प्रौद्योगिकियों और भूमि उपयोग की योजना के संयोजन से वायु प्रदूषण के शमन के लिए नियंत्रण की बेहतर रणनीतियां विकसित करने में मदद मिल सकती है। कुछ सम्भावित रणनीतियां इस प्रकार हैं:

  • भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण को बढ़ाने का मुख्य कारक निजी वाहनों की संख्या में भारी वृद्धि है। निजी वाहन के स्वामित्व के लिए एक निश्चित सीमा निर्धारित करने के नियम होने चाहिए। इसके अतिरिक्त, 10 वर्ष या उससे अधिक पुराने वाहन वायु की गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं, इसलिए इन्हें चरणबद्ध तरीके से निष्क्रिय किया जाना चाहिए। सभी स्रोतों, मुख्य रूप से वाहनों और उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन की सीमा भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • निजी वाहनों पर लोगों की निर्भरता को कम करने हेतु बाइकिंग और सार्वजनिक परिवहन की बेहतर सुविधाओं का विकास करने, पैदल चलने, तथा शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण के चिह्नित स्रोतों के स्थानान्तरण से उत्सर्जन को रोकने में काफी मदद मिल सकती है।
  • हाइब्रिड वाहनों या ईंधन सेल वाहनों या ईंधन परिवर्तन की नई पद्धतियां, जैसे अल्ट्रा-लो सल्फर ईंधन या सीएनजी, ब्राजील में मेथेनॉल या जापान में उपयोग किए जाने वाले हाइड्रोजन ईंधन जैसे वैकल्पिक ईंधन वायु प्रदूषण को कम करने में बहुत मदद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, हाल के वर्षों में, ईंधनों में सल्फर की मात्रा में कमी के परिणामस्वरूप सल्फर ऑक्साइड में कमी आई है।
  • शहरी क्षेत्रों में नियंत्रित स्थितियों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो महत्वपूर्ण रूप से प्रदूषक उत्सर्जन को कम करने में मदद करेंगी। उत्सर्जन व्यापार, जिसे कैप एण्ड ट्रेड (कार्बन उत्सर्जन की सीमा और व्यापार) के रूप में भी जाना जाता है, का नियंत्रण एक अन्य रणनीति है, जिसे शहरों में लागू किया जा सकता है।
  • लोगों को आरम्भ में ही वायु प्रदूषण के प्रबन्धन का महत्व समझाने के लिए ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सरकार द्वारा जन-जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। इसमें नियंत्रण के उन विभिन्न उपायों पर भी प्रकाश डाला जाना चाहिए, जिन्हें प्रदूषक उत्सर्जन को कम करने के लिए अपनाया जा सकता है। विशेषकर, पराली से उत्पन्न प्रदूषण के सम्बन्ध में किसानों को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा विकसित पूसा डीकम्पोजर (फंगस आधारित घोल जो पराली को पर्याप्त रूप से नरम बना देता है, जिससे इसका प्रयोग मिट्टी के साथ मिलाकर खाद के रूप में किया जा सकता है।) जैसे साधनों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित कर प्रदूषण को कम करने के साथ-साथ मृदा पोषकों एवं सूक्ष्मजीवों को भी बनाए रखा जा सकता है।
  • एलईडी बल्बों और उपकरणों को बढ़ावा देकर या बिजली के उपयोग को कम करके उन प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है, जो विद्युत उत्पादन के दौरान उत्पन्न होते हैं और औद्योगिक वायु प्रदूषण के अधिकांश घटकों को उत्पन्न करते हैं।

भविष्य की सम्भावनाएं: वायु गुणवत्ता प्रबन्धन एक सतत प्रक्रिया है। इसके लिए पर्याप्त निधि की आवश्यकता होती है और सरकार के सामर्थ्य के साथ एकीकृत होने के लिए क्षमता निर्माण पर निरन्तर ध्यान देने के साथ ही निजी क्षेत्र, सिविल सोसायटीज, एनजीओ एवं लोगों के व्यवहार में इसे शामिल करने की आवश्यकता है। सकारात्मक पहलू यह है कि कई देशों ने यह दिखाया है कि मजबूत प्रतिबद्धता, और एक पूर्ण रूप से लक्षित तथा लागत प्रभावी योजना के साथ वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।

विश्व बैंक और इण्टरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर अप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 2030 तक स्वच्छ वायु मार्ग के माध्यम से वायु प्रदूषण को लक्षित करना भारत को महत्वपूर्ण जलवायु परिवर्तन के साथ सह-लाभ प्रदान कर सकता है। इससे 2030 तक भारत के कार्बन उत्सर्जन में 23 प्रतिशत और 2050 तक 42 प्रतिशत की कमी आएगी।

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