टाइटन सौरमण्डल का एकमात्र अन्य खगोलीय पिण्ड है जिसकी दृश्यभूमि (लैण्डस्केप) के कुछ लक्षण—झीलें एवं नदियां, लैबिरिन्थी कैनियन (गहन गम्भीर खड्ड), तथा रेत के मृदु टीले—पृथ्वी के समान हैं। हालांकि, टाइटन पर निर्मित इन भूगर्भीय दृश्यभूमियों का गठन बिल्कुल पृथक सामग्री से हुआ है। यहां नदियों में जल की बजाय तरल मीथेन बहता है और रेत के बजाय इसके टीलों में से हाइड्रोकार्बन निष्कासित होते हैं। पृथ्वी की भांति टाइटन पर भी मौसम, बारिश, बाढ़, रेत के टीले और भू-क्षरण मौजूद हैं। शनि ग्रह के सबसे बड़े चन्द्रमा, टाइटन, की सतह कुछ हद तक पृथ्वी की तरह दिखाई देती है; ऐसा क्यों होता है—इससे सम्बन्धित शोध के निष्कर्ष जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में 1 अप्रैल, 2022 को द रोल ऑफ सीजनल सेडिमेण्ट ट्रांसपोर्ट एण्ड सिण्टरिंग इन शेपिंग टाइटंस लैण्डस्केप्सः ए हाइपोथीसिस नामक शीर्षक से प्रकाशित किए गए थे।

शोध के अनुसार, चूंकि टाइटन के अवसाद ठोस कार्बनिक यौगिकों से बने हैं, इसलिए उन्हें पृथ्वी पर पाए जाने वाले सिलिकेट-आधारित अवसाद की तुलना में कहीं अधिक भंगुर होना चाहिए। इस प्रकार, टाइटन के अवसाद में नाइट्रोजनीय वायु और तरल मीथेन पाया जाना चाहिए जो इसे महीन कणों (धूल) में परिवर्तित करते हैं, जो इस तरह की विभिन्न संरचनाओं को सम्भालने में सक्षम नहीं होती।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के जियोलॉजिकल साइंसिज के सहायक प्रोफेसर और शोध प्रमुख मैथ्यू लैपोट्रे के अनुसार, सिण्टरिंग (द्रवीकरण के बिन्दु तक विगलन हीन ऊष्मा या दाब द्वारा गैस पदार्थ के बनने को सिण्टरिंग कहते हैं।), वायु और मौसमी परिवर्तन के संयोजन से टाइटन पर इन संरचनाओं का गठन सम्भव हो सकता है। शोधकर्ताओं ने एक विशेष प्रकार के अवसादों का अध्ययन किया जिन्हें अण्डक (ooids) कहा जाता है, जो पृथ्वी पर पाया जा सकता है, और इनकी संरचना टाइटन के समान होती है। अण्डक उष्णकटिबन्धीय जल में पाए जा सकते हैं, जहां वे बहुत महीन कणों का उत्पादन करते हैं। रासायनिक वर्षण के माध्यम से इन कणों के साथ-साथ गुरुत्वाकर्षण के प्रभाववश सामग्री एकत्रित होती है और ये समुद्र में नष्ट हो जाते हैं। नतीजतन, वे एक संगत आकार बनाए रखते हैं।

इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने कैसिनी मिशन के दौरान दर्ज किए गए वायुमण्डलीय डेटा का विश्लेषण किया, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि इस पिण्ड के चारों ओर अवलोकित विशिष्ट भूगर्भीय विशेषताओं का निर्माण उन अवसादों द्वारा किस प्रकार से हुआ होगा। शोधकर्ताओं ने पाया कि टाइटन की भूमध्य रेखा (इक्वेटर) के आसपास हवाएं अधिक सामान्य थीं, रेत के टीलों के विकास के लिए अनुकूलतम स्थितियों का निर्माण किया। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि निचली हवाओं ने स्थूलतर कणों के गठन में सहयोग किया, जिससे अधिक ठोस अवसादी चट्टान का निर्माण हुआ। उसके बाद पवन द्वारा कठोर चट्टान के अपरदन से वह महीन अवसादों में परिवर्तित हो गई, ठीक वैसे ही जैसाकि पृथ्वी पर होता है।

इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने यह भी प्राक्कल्पना की कि तरल मीथेन की गतिविधि ने भूक्षरण और अवसाद के विकास में भी योगदान दिया।

लैपोट्रे के अनुसार, शोधकर्ताओं ने यह दर्शाया कि टाइटन पर—पृथ्वी तथा मंगल ग्रह (जैसाकि मंगल ग्रह पर पहले पाया जाता था) की तरह एक सक्रिय अवसादी चक्र मौजूद है, जो टाइटन के मौसमों द्वारा संचालित सांयोगिक अपघर्षण तथा सिण्टरिंग के माध्यम से उसके लैण्डस्केप के अक्षांशीय विस्तार की व्याख्या कर सकता है।

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