केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (एचईएफए) के पूंजीगत आधार को बढ़ाने हेतु स्वीकृति प्रदान कर दी है। इसके अंतर्गत शिक्षा में 2022 तक बुनियादी ढांचे और प्रणालियों के पुनरुद्धार के लिए वर्तमान के 10,000 करोड़ के बजट को बढ़ाकर 1,00,000 करोड़ रुपए किया जाएगा।

यह एक समावेशी रूप से भिन्न वित्तीय क्षमता वाले सभी शैक्षिक संस्थानों की आवश्यकताओं को संबोधित करने में सक्षम होगा। यह एचईएफए को संस्थानों की आवश्यकताओं को निधि के लिए तैनात करने के लिए बाजार से अतिरिक्त संसाधनों का लाभ उठाने में सक्षम बनाता है।

उल्लेखनीय है कि आईआईएसई योजना के अंतर्गत केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी और आईआईएसईआर सहित सभी केंद्रीय वित्त पोषित संस्थान (सीएफआई) आगामी चार वर्षों में नवीन बुनियादी ढांचे का विस्तार और निर्माण करने के लिए 1,00,000 करोड़ रुपए की निधि से उधार ले सकते हैं।

केंद्र सरकार ने कैनरा बैंक के साथ एक विशेष प्रयोजन वाहन के रूप में सितम्बर, 2016 में उच्च शिक्षा वित्त पोषण एजेंसी (एचईएफए) को मंजूरी दी थी। इसके माध्यम से वित्त पोषित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भारतीय प्रबंधन (आईआईएम), जैसे भारतीय महत्वपूर्ण संस्थानों में आधारभूत संरचना, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी का अत्याधुनिक विकास होने की संभावना है। एचईएफए देश के शीर्ष शैक्षिक संस्थानों में उच्च गुणवत्ता वाली अवसंरचना के निर्माण को बढ़ावा देगा।

दरअसल एचईएफए को सार्वजनिक क्षेत्रा के बैंक एवं सरकार स्वामित्व वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय एजेंसी के अंतर्गत एक स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) के रूप में गठित किया गया है। यह सार्वजनिक उद्यमों/उपक्रमों एवं कॉर्पोरेट क्षेत्रा से कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के माध्यम से धन जुटाएगा, जिसका प्रयोग अनुदान के रूप में इन संस्थानों में नवाचार को बढ़ावा देने में किया जाएगा। इन संस्थानों को दिए गए ऋण का मूलधन संस्थानों के आंतरिक òोतों के माध्यम से चुकाया जाएगा, लेकिन ब्याज सरकार द्वारा नियमित योजनागत सहायता के माध्यम से अदा किया जाएगा। एचईएफए उच्च शिक्षण संस्थानों के वित्तपोषण को बाजार से संबद्ध कर इनकी अवसंरचना के विकास की गति को तीव्र करेगा। यह एजेंसी सरकार पर पड़ रहे वित्तीय दबाव को कम करेगी, क्योंकि वर्तमान में ऐसे संस्थानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने का कार्य सरकार ही करती है। इसके द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों में जवाबदेहिता को बढ़ावा मिलेगा, चूंकि संस्थानों को ऋण का भुगतान आंतरिक òोतों से करना होगा अतः वे बेहतर शिक्षण एवं गुणवत्ता में सुधार का प्रयास करेंगे।

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