जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के आहार में मांस, विशेषकर गोमांस की, प्रधानता थी। ‘लिपिड रेसिड्यूज इन पॉटरी फ्रॉम द इंडस वैली सिविलाइजेशन इन नॉर्थ-वेस्ट इंडिया’ शीर्षक वाले इस अध्ययन का नेतृत्व अक्षयेता सूर्यनारायण ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपने पीएचडी थीसिस के एक हिस्से के रूप में किया था। यह अध्ययन उस युग के लोगों की खाद्य आदतों का विश्लेषण करता है। अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ कि सिंधु घाटी में वनस्पति उत्पाद की विविधता और फसल उगाने के अभ्यास में क्षेत्रीय भिन्नता थी।

यह अध्ययन मुख्यतः सात गांवों पर केंद्रित थाः उत्तर प्रदेश का एक गांव आलमगीरपुर (मेरठ) और शेष छह हरियाणा के—मसूदपुर (दो अध्ययन स्थल—मसूदपुर I तथा मसूदपुर VII), लोहारी राघो, राखीगढ़ी (हिसार), खनक (भिवानी), और फरमाणा (रोहतक) गांव थे। अध्ययन के अंतर्गत इन स्थानों से प्राप्त 172 मिट्टी के बर्तनों के टुकड़ों पर मांस के रासायनिक साक्ष्यों की जांच करने हेतु सिरेमिक (मृत्तिका) लिपिड रेसिड्यू एनालिसिस [लिपिड रेसिड्यू एनालिसिस, विभिन्न पुरातात्विक संदर्भों में अध्ययन करने हेतु किया जाने वाला एक वैज्ञानिक प्रयोग है, जिसके अंतर्गत प्राचीनकाल के बर्तनों में मौजूद लिपिड (वसा) के अवशेषों का विश्लेषण कर जैविक उत्पादों का काल निर्धारण तथा संबद्ध समय के लोगों की आहार शैलियों का पता लगाया जाता है।] का उपयोग किया गया। उल्लेखनीय है कि  मृत्तिका या मिट्टी के बरतन पुरातन और ऐतिहासिक दक्षिण-एशियाई स्थलों की पुरातात्विक खुदाई के दौरान बरामद सबसे आम कलाकृतियों में से एक हैं।

अध्ययन के अनुसार, सिंधु घाटी में मवेशी/भैंस सबसे अधिक मात्रा में उपलब्ध घरेलू पशु थे। जिनमें से 90 प्रतिशत मवेशियों को तब तक जिंदा रखा जाता था जब तक कि वे 3 या 3.5 वर्ष के नहीं हो जाते थे। इससे पता चलता है कि मादा मवेशियों का इस्तेमाल दूध के लिए और नर मवेशियों का उपयोग खेती में किया जाता था। यहां खुदाई से प्राप्त जानवरों की कुल हड्डियों में मवेशियों एवं भैंसों की हड्डियों का औसत 50 से 60 प्रतिशत के बीच है, जबकि पशु अवशेषों में भेड़/बकरियों के अवशेषों की भागीदारी 10 प्रतिशत है। मवेशियों की हड्डियों के उच्च अनुपात से स्पष्ट होता है कि सिंधु घाटी की आबादी की आहार शैली में गोमांस का सेवन सांस्कृतिक रूप से प्रचलित था। इसके अलावा, भेड़ एवं मेमने के मांस का सेवन भी किया जाता था। अध्ययन में इंगित किया गया है कि सिंधु घाटी के लोगों द्वारा खाद्य पदार्थ के रूप में खरगोश और पक्षियों का भी सेवन किया जाता था, हालांकि इस बात के बहुत कम प्रमाण हैं कि मुर्गे का सेवन किया जाता था या नहीं।

हड़प्पा सभ्यता में शराब और तेल जैसे तरल पदार्थों के भंडारण के लिए धातु के कंधेनुमा (लेज-शोल्डर्ड) मर्तबानों और बड़े भंडारण मर्तबानों का इस्तेमाल किया जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता के ग्रामीण तथा शहरी स्थलों से हिरण, बारहसिंगा, चिंकारा, खरगोश, पक्षी जैसे जंगली जानवरों की प्रजातियों और नदी/समुद्री संसाधनों के जीवाश्म भी कम अनुपात में पाए गए हैं। इसी प्रकार की आहार शैली उत्तर-पश्चिमी भारत के स्थलों में पाई गई थी। इससे स्पष्ट होता है कि सिंधु सभ्यता के खाद्य पदार्थों में इन विविध संसाधनों का उपयोग किया जाता था।

इससे पहले वर्ष 2011-12 में सिंधु घाटी की आहार शैली प्रकाशित हुए एक शोध में सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा अपने भोजन में कढ़ी, बैंगन, हल्दी, लहसुन और अदरक का सेवन किए जाने का खुलासा किया गया था, जबकि वर्ष 2020 में ही, लिपिड रेसिड्यू एनालिसिस पद्धति के माध्यम से ही गुजरात में किए गए एक अन्य अध्ययन में सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के भोजन में भेड़-बकरियों के सेवन के साथ ही पनीर, मक्खन, तथा दही जैसे डेयरी उत्पादों का प्रयोग करने की पुष्टि की गई थी।

सिंधु घाटी सभ्यता आधुनिक पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम एवं पश्चिमी भारत और अफगानिस्तान के बड़े हिस्से में फैली हुई थी।

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