इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च भोपाल (आईआईएसईआरबी), के शोधकर्ताओं के एक दल ने चांदी नैनोमैटिरियल्स [नैनोमैटिरियल्स, उन पदार्थों का निरूपण करते हैं, जिसके एक खंड का आकार (कम से कम एक आयाम में) 1 से 100 नैनोमीटर के बीच होता है] का उत्पादन करने के लिए एक सुरक्षित और सरल प्रक्रिया विकसित की है, जिनका उपयोग एंटीमाइक्रोबियल एजेंटों (एक रोगाणुरोधी एजेंट को एक प्राकृतिक या कृत्रिम पदार्थ के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बैक्टीरिया, कवक और शैवाल जैसे सूक्ष्मजीवों के विकास को रोकता या समाप्त करता है।) के रूप में किया जा सकता है।
प्रक्रिया व परिणाम
इस अध्ययन के अंतर्गत एक दोहरी पद्धति से मिलकर बने चांदी के नैनोमैटिरियल (AgNMs) के उत्पादन के लिए एक पूर्ववर्ती लिगैंड [एक अणु या आयन, जो एक केंद्रिक परमाणु (प्रायः धात्विक) के साथ एक जटिल समन्वय बनाता है, लिगैंड कहलाता है।] के रूप में छोटे-से अमीनो एसिड, एल-टायरोसिन (Tyr) का उपयोग किया गया। सरल शब्दों में, शोधकर्ताओं ने चांदी नैनोमैटिरियल्स का उत्पादन करने के लिए मांस, डेयरी, नट्स, और बीन्स जैसे खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले अमीनो एसिड, टायरोसिन, का उपयोग किया, जिसमें अत्यधिक रोगाणुरोधी गुण पाए जाते हैं।
शोधकर्ताओं ने कास्टिक सोडा से युक्त टायरोसिन में सिल्वर नाइट्रेट (भारत में मतदान के बाद नाखूनों पर लगाई जाने वाली ‘चुनाव स्याही’ का मुख्य घटक) को उपचारित किया। परिणामतः टायरोसिन ने चांदी नैनोमैटिरियल के उत्पादन में एक रिड्यूसिंग और कैपिंग एजेंट (किसी रासायनिक अभिक्रिया में रिड्यूसिंग एजेंट या अपचायक का प्रयोग नैनोमैटिरियल के संश्लेषण के लिए किया जाता है, जबकि कैपिंग एजेंट का प्रयोग नैनोपार्टिकल्स को स्थिर रखने के लिए किया जाता है) के रूप में कार्य किया।
तत्पश्चात, उच्च-रेजॉल्यूशन वाले दो माइक्रोस्कोप—स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (SEM) तथा ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (TEM)—में विकसित किए गए उत्पाद का परीक्षण करने पर उन्हें AgNMs के दो रूप मिले—चांदी के छोटे नैनोक्लस्टर (फोटोफिजिकल गुणों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण) और चांदी के बड़े नैनोपार्टिकल्स (विशेष रूप से रोगाणुरोधी गुणों के लिए महत्वपूर्ण) AgNMs के इन दोनों रूपों में से नैनोपार्टिकल्स को लगभग चार घंटे के भीतर निमोनिया, पेरिटोनिटिस, यूटीआई, मौखिक और जननांग संक्रमण, पेट के संक्रमण आदि से जुड़े S.cerevisiae, C.albicans, E.coli और B.cereus जैसे रोगाणुओं को समाप्त करने में सक्षम पाया गया।
इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने प्रोपीडियम आयोडाइड स्टेनिंग (एक परमाणु और गुणसूत्र अभिरंजक, जो प्रदीप्त लाल रंग का होता है), ऑक्सीजन के प्रति प्रतिक्रियाशील वर्गों के उत्पादन की निगरानी, प्रोटीन का रिसाव, डीएनए को अलग करने की प्रक्रिया जैसे AgNMs की रोगाणुरोधी गतिविधि के यंत्रवत पहलुओं के विभिन्न तरीकों का प्रयोग कर उस पद्धति को भी स्पष्ट किया, जिसके द्वारा नैनोपार्टिकल सूक्ष्मजीवों को समाप्त करते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, नैनोपार्टिकल ‘सिंगलेट ऑक्सीजन के (102) वर्ग, (जो एक अत्यंत प्रतिक्रियाशील वर्ग है) को उत्पन्न करते हैं, जो कोशिकीय तनाव में वृद्धि करते हैं और परिणामस्वरूप रोगाणुओं की कोशिका झिल्ली को तोड़ते हैं एवं कोशिकाओं से प्रोटीन के रिसाव का कारण बनते हैं, जिससे रोगाणु समाप्त हो जाते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, चांदी जैसी सामान्य सजावटी धातु, जब नैनो कणों का रूप लेती है तो मानव के एक बाल के आयाम से एक लाख गुना छोटी हो जाती है, और इस में हितकारी रोगाणुरोधी गुण होते हैं। प्राचीन काल से चिकित्सकों द्वारा संक्रमण को रोकने और उपचार को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न रूपों में चांदी का उपयोग किया जाता रहा है।
महत्व एवं आवश्यकता
यह अध्ययन नैनोमैटिरियल के निर्माण में टायरोसिन के एक छोटे अणु (Tyr) की भूमिका को स्पष्ट करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है और संभावित रोगाणुरोधी अनुप्रयोगों में नए नैनोमैटिरियल्स के उपयोग का वर्णन करता है। जैसाकि इस प्रक्रिया से उत्पन्न नैनोपार्टिकल्स सूक्ष्मजीव नाशक का कार्य करते हैं, और छोटे आकार के नैनोक्लस्टर, जो दीप्त होते हैं, का प्रयोग बायोइमेजिंग अनुसंधान के लिए किया जा सकता है। इस शोध के परिणामों को जर्नल अमेरिकन केमिकल सोसायटी (एसीएस) अप्लायड मैटिरियल्स एंड इंटरफेसेस में, दिसंबर 2021 में प्रकाशित किया गया था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वर्तमान में मानव स्वास्थ्य के लिए जीवाणुओं के एंटीबायोटिक रिजिस्टेंस (जब जीवाणु और कवक जैसे रोगाणु, उन्हें नष्ट करने के लिए निर्मित की गई दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं, उस स्थिति को एंटीबायोटिक रिजिस्टेंस या प्रतिजैविक प्रतिरोध कहते हैं।) को मुख्य संकटों में से एक घोषित किया है। मनुष्यों, पशुओं और कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं (प्रतिजैविक) के अनियंत्रित और अंधाधुंध उपयोग के कारण भारत, जिसे ‘एंटीमाइक्रोबियल रिजिस्टेंस कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’ कहा जाता है, के लिए यह एक गंभीर समस्या है। इसके कारण भारत में लाखों मरीज कई दवाओं के प्रतिजैविक प्रतिरोध के दुष्परिणाम भुगत रहे हैं। अतः ऐसी स्थिति में, प्रतिजैविकों को प्रतिस्थापित करने हेतु आईआईएसईआरबी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत किए गए नैनोमैटिरियल्स जैसे अन्य उपायों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है।
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