दिसम्बर 2021 में, ईएसए-नासा के सोलर ऑर्बिटर ने लियोनार्ड पुच्छल तारे, जिसे जनवरी 2021 में ग्रिगोरी लियोनार्ड ने एरिजोना स्थित माउंट लेम्मोन ऑब्जर्वेटरी के माध्यम से खोजा था, की छवि भेजी, जो मिल्की वे (दुग्ध मेखला) से गुजर रहा है और जिसके एकदम दायीं ओर शुक्र और बुध ग्रह दिखाई दे रहे हैं। इसी प्रकार, अगस्त 2021 में सोलर ऑर्बिटर शुक्र की सतह से और नवम्बर 2021 में पृथ्वी के पास से होकर गुजरा। यह 2022-2030 तक 6 बार और शुक्र से होकर गुजरेगा। यह अंतरिक्षयान सूर्य के अधिकाधिक निकट जाने के लिए शुक्र के गुरुत्व बल का प्रयोग करेगा और वहां से सूर्य के उतरी तथा दक्षिणी ध्रुवों की पहली तस्वीर लेगा।
उल्लेखनीय है कि फरवरी 2020 को नासा तथा यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) द्वारा एक सहभागी अभियान के तहत सूर्य के ध्रुवों का अध्ययन करने हेतु अपने सोलर ऑर्बिटर (SolO) का प्रमोचन किया गया। 1,720 किग्रा. के प्रमोचन भार के साथ इस अंतरिक्षयान को यूनाइटेज लॉन्च अलायंस (यूएलए) के एटलस वी 411 रॉकेट के माध्यम से फ्लोरिडा के केप केनावेरल से प्रमोचित किया गया। इस अभियान से अभूतपूर्व आंकड़ों और परिदृश्य के साथ-साथ सूर्य के ध्रुवीय क्षेत्रों के प्रथम प्रतिबिंब प्राप्त होने की अपेक्षा है। इस अभियान को सबसे पहले 1999 में शुरू करने का सुझाव दिया गया था। ईएसए मूलतः इसे वर्ष 2008 से 2013 के बीच प्रमोचित करना चाहता था। हालांकि, तकनीकी बाधाओं और अभियान में होने वाले फेरबदल ने अंततः इस प्रमोचन को विलंबित कर दिया। सोलर ऑर्बिटर ईएसए के साइंस प्रोग्राम कॉस्मिक विज्ञान 2015-2025 का एक हिस्सा है। ईएसए का सोलर ऑर्बिटर और नासा का सोलर प्रोबल्लस, जीएचओ (ग्रेट हेलियोफिजिक्स ऑब्जर्वेटरी) का हिस्सा हैं।
1990 में नासा और ईएसए ने सूर्य का अध्ययन करने हेतु यूलिसस मिशन शुरू किया था। इस मिशन के तहत एक अंतरिक्षयान सूर्य के ध्रुवों के ऊपर से गुजरा भी था, लेकिन वह बहुत दूर था और उसमें कोई कैमरा भी नहीं लगा हुआ था।
सोलर ऑर्बिटर को अत्यंत निकट से सूर्य का अध्ययन करने हेतु अभिकल्पित (डिजाइन) किया गया है। इसे सूर्य की सतह से लगभग 42 मिलियन किमी. दूर से सूर्य का अवलोकन करने हेतु डिजाइन किया गया है। यह किसी अंतरिक्षयान की अपेक्षा, पहली बार सबसे निकट से सूर्य के अंजान ध्रुवीय क्षेत्रों का प्रेक्षण कर उसका प्रतिबिंबन लेगा। सोलर ऑर्बिटर से पहले, सभी सौर बिंबन उपकरण—क्रांतिवृत्त समक्षेत्र (एक्लिप्टिक प्लेन), जिसमें सभी ग्रह परिक्रमा करते हैं और जो सूर्य की भूमध्यरेखा के साथ संरेखित होता है, तक ही सीमित रहते थे। (जुलाई 2020 में ध्रुवीय क्षेत्रों की पहली छवियां जारी की गई थीं।) इस यान पर चार यथास्थित उपकरण (जो स्पर्श संवेद के अनुरूप अंतरिक्षयान के चारों ओर अंतरिक्ष के वायुमंडल का मापन करेंगे) और छह सुदूर-संवेदन प्रतिबिंबक (जो दूर से सूर्य का प्रेक्षण करेंगे) लगे हुए हैं। वैज्ञानिक दोनों प्रकार के उपकरणों से संयोजित अवलोकन करेंगे और सूर्य की बढ़ती एवं घटती चुंबकीय गतिविधि के 11 वर्षीय चक्र की अवधि के कारण प्रभामंडल (कोरोना) का कई मिलियन डिग्री से. तक गर्म होने, सौर पवन की उत्पत्ति को संचालित करने और सौर पवन के प्रति सेंकेंड में सैकड़ों किमी. की गति पर पहुंचने के कारणों यानी सौर पवन की सरंचना का मापन करने और उसे सूर्य की सतह पर उसकी उत्पत्ति के क्षेत्र से जोड़ने के कारणों, तथा इन सबका पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों के जैसे कई महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने का प्रयास करेंगे। सूर्य की झाई (सनस्पॉट) चक्र की भी व्याख्या की जा सकेगी।
एमएचडी तरंगें: चुंबक द्रव गतिकी चुंबक-द्रवगतिकी या हाइड्रो-मैग्नेटिक्स चुंबकीय गुणों और विद्युत संवाही द्रव्यों, जैसेकि प्लाज्मा, तरल धातु, खारा पानी, और इलेक्ट्रोलाइट्स के व्यवहार का अध्ययन है। एमएचडी के क्षेत्र को हेंस अल्फवेन द्वारा शुरू किया गया था, जिसके लिए उन्हें 1970 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह वह चुंबकीय क्षेत्र है, जो एक गतिमान प्रवाहकीय तरल पदार्थ में विद्युत उत्पन्न कर सकता है, जो बदले में तरल पदार्थ को ध्रुवीकृत करता है और पारस्परिक रूप से चुंबकीय क्षेत्र को ही बदलता है।
कोरोनल मास इजेक्शनः एक कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), सौर प्रभामंडल से प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र से संलग्न एक महत्वपूर्ण निर्गमन है। सीएमई को अकसर सौर गतिविधियों के अन्य रूपों से जोड़ा जाता है, लेकिन इन संबंधों की व्यापक रूप से स्वीकृत सैद्धांतिक समझ स्थापित नहीं की गई है। ये अकसर सूर्य की सतह पर सक्रिय क्षेत्रों से उत्पन्न होते हैं, जैसे कि झाइयों (सनस्पॉट्स) के समूह, अकसर प्रदीप्त (flares) के साथ जुड़े होते हैं। सूर्य अपने मैक्सिमा (उच्चिष्ठ) के निकट, हर दिन लगभग तीन सीएमई का उत्पादन करता है, जबकि इसके मिनीमा के निकट, हर पांच दिनों में लगभग एक सीएमई का उत्पादन होता है। आम तौर पर किसी सौर प्राधान्य उभेदन के दौरान मौजूद, प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र संलग्न सोलर फ्लेयर्स का पालन करते हैं, और कोरोनोग्राफ प्रतिबिंबकी में देखे जा सकते हैं।
इस अभियान से यह अपेक्षित है कि यह इस बात की जानकारी देगा कि सूर्य उपग्रहों, दिशा-निर्देशन प्रणालियों, पावर ग्रिडों, और दूरसंचार सेवाओं जैसी प्रौद्योगिकयों को कैसे प्रभावित करेगा। सूर्य के वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र से संबद्ध आंकड़े, अंतरिक्षीय मौसम की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में वैज्ञानिकों की सहायता करेंगे। यह अन्वेषण नासा द्वारा अगस्त 2018 में प्रक्षेपित पार्कर सोलर प्रोब का पूरक है।
सोलर ऑर्बिटर को इसकी विशेष थर्मल संरक्षण प्रणाली, जो इसे किसी अत्यंत गर्म क्षेत्र में जाने में सहायता करती है, के कारण ‘ब्लैकबर्ड’ उपनाम दिया गया है। इसमें 520 डिग्री से. तक का तापमान झेलने के लिए एक 150 किग्रा. का ऊष्मा कवच (हीट शील्ड) लगाया गया है। इस ऊष्मा कवच को हमेशा सूर्य की ओर सीधा होना चाहिए। यह कवच कई परतों से बना है। इसकी सामने की परत टाइटेनियम की पट्टी की अत्यधिक पतली चादरों से बनी है, जो मजबूती से ताप को परावर्तित करती है। अंतरिक्षयान की निकटम आंतरिक परत तापावरोधन को समर्थन प्रदान करने के लिए मधुमक्खी के छत्ते (मधुकोश) के पैटर्न में ऐल्युमीनियम से बनी है। इन परतों को टाइटेनियम के पतले कोष्ठों में रखा गया है। इसके दोहरे संरचनात्मक अंतराल अधिकांश अवशोषित ऊष्मा को अंतरिक्ष में तिरछा कर विकीर्णित करते हैं। पीपलोस्स (झरोखे) रिमोट कंट्रोल द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरणों की मदद करते हैं और आवश्यकता न होने की स्थिति में इन्हें बंद किया जा सकता है।
टाइटेनियम की पन्नी एक प्रकार के विशेष पदार्थ से लेपित हैं, जिसे ‘सोलर ब्लैक’ कहते हैं। मनुष्य की अस्थि की तरह ही यह भी कैल्शियम फॉस्फेट से बना होता है। (इस पदार्थ का उपयोग मनुष्य अस्थि के साथ कृत्रिम अंग बंधन के संबंध में अस्वीकृति की संभावना को कम करने के उद्देश्य से दवा में भी किया जाता है।) अस्थि-आधारित लेपन में मजबूत थर्मल के गुण, जो विद्युत संवाहक होता है, तथा तीव्र एवं पराबैंगनी विकिरण आघात के तहत अधोगति का अवरोध करने में असमर्थ होता है। यद्यपि ब्लैक पाउडर द्वारा कुछ ऊष्मा अवशोषित हो जाती है, तथापि वह ऊष्मा को अंतरिक्ष में वापस निर्मुक्त करता है। काले रंग को इसलिए चुना गया क्योंकि कुल मिशनावधि के दौरान कवच के लिए एक ही रंग को बनाए रखना आवश्यक होता है; यदि सफेद रंग हो, तो उच्च पराबैंगनी विकिरण सहित तीव्र सौर प्रवाह के संपर्क में आने के वर्षों बाद, उसका रंग परिवर्तित हो जाएगा।
यह ऑर्बिटर केवल 2025 के पश्चात वैज्ञानिकों को सूर्य के ध्रुवों का पहला दृश्य तब प्रेषित करेगा, जब यह क्रांतिवृत्त समक्षेत्र के ऊपर 17 डिग्री के प्रक्षेप पथ में पहुंचेगा, जहां पृथ्वी तथा अन्य ग्रह परिक्रमा करते हैं। अंतरिक्षयान, शुक्र ग्रह के नजदीक की कक्षा में उड़ने वाले अंतरिक्षयानों (फ्लाईबाई) के गुरुत्व के माध्यम से इस सुविधाजनक स्थान पर पहुंचने में सफल होगा। सोलर ऑर्बिटर का सबसे कठिन कोण क्रांतिवृत्त के ऊपर 33 डिग्री पर होगा और अंतरिक्षयान एक अपेक्षित विस्तरित मिशन में हो सकता है, जो दिसंबर 2026 में शुरू होगा। यह कोण सूर्य के ध्रुवीय क्षेत्रों की सर्वक्षेष्ठ छवियां प्रदान करेगा, हालांकि पूरे मिशन के दौरान अंतरिक्षयान इस क्षेत्र से संबंधित आंकड़े प्रेषित करेगा।
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