वित्तीय बाजार में ‘हेयरकट’, किसी परिसंपत्ति के मूल्य में कमी को संदर्भित करता है। भारतीय बैंकिग तंत्र में किसी ऋण राशि और संपार्श्विक (प्रतिभूति) के रूप में प्रयुक्त संपत्ति के वास्तविक मूल्य के बीच के अंतर को ‘हेयरकट’ कहते हैं। यह ऋणदाता के लिए संपत्ति के मूल्य में गिरावट के जोखिम को दर्शाता है, अर्थात यदि कोई ऋण लेने वाला व्यक्ति निर्धारित बकाया राशि चुका पाने में असमर्थ है तो वह बैंक के साथ एक निश्चित राशि चुकाने का समझौता करता है। इस प्रकार ऋण वसूली के संदर्भ में, किसी ऋणकर्ता द्वारा देय वास्तविक बकाया राशि तथा बैंक को चुकाई जाने वाली राशि के बीच के अंतर को ‘हेयरकट’ कहा जाता है।
सामान्यतया भारत में ‘हेयरकट’ प्रचलित नहीं हैं। हालांकि, ऐसे उदाहरण हैं जब ऋणदाता, कुछ इक्विटी (ऋण के कुछ भाग) के लिए क्षतिपूर्ति का भुगतान करते हैं। यह अंतिम प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब ऋणदाताओं को अपनी ऋण वसूली की कोई उम्मीद नहीं होती और ऋण का निपटान एक बार में ही किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में नियामकों ने बैंकों के लिए ऋण वसूली हेतु कई विकल्प खोजे हैं। उदाहरण के लिए, कॉर्पोरेट-ऋण पुनर्गठन या अन्य परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों के बीच डूबने वाले ऋण की पूर्ति हेतु परिसंपत्ति/परिसंपत्तियों को बिक्री की अनुमति देना।
‘हेयरकट’ महत्वपूर्ण क्यों है?: जब ऋणकर्ताओं द्वारा किसी बैंक, वित्तीय संस्थान या म्यूचुअल फंड को ऋणों के पुनर्भुगतान में देरी की जा रही हो, तो वे मानक नियामक मानदंडों का पालन करते हैं—बहीखातों में उन ऋणों को संदिग्ध ऋण के रूप में दर्ज किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, बैंकों के लिए ऋण को अवमानक (सब-स्टैंडर्ड) मानना आवश्यक होता है और यदि ऋणकर्ता, ऋण चुकाने की नियत तारीख से 90 दिनों के बाद भी ऋण चुकाने में विफल रहता है, तो अवमानक के रूप में 15-25 प्रतिशत ऋण राशि निर्धारित करने का उपबंध है।
यदि ऋण एक वर्ष से अधिक समय तक अवमानक रहता है, तो 40 प्रतिशत तक का उपबंध किया जाता है तथा इसके बाद भी ऋण पुनर्भुगतान में देरी हो, तो 100 प्रतिशत तक का उपबंध भी किया जा सकता है। अब, यदि एक बैंक संदिग्ध ऋण पर 25 या 40 प्रतिशत का उपबंध करता है तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि वह शेष 75 प्रतिशत या 60 प्रतिशत की वसूली कर सकेगा।
जब ऋणी की संपत्ति के वास्तविक मूल्य का आकलन किया जाता है, तो हो सकता है कि वह बकाया ऋण को पूरा चुकाने के लिए पर्याप्त न हो। ऋण चुकाने की अवधि को आगे बढ़ाने से ऋणदाताओं को कोई लाभ नहीं होता क्योंकि देरी करने से परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट आ सकती है। ऐसी स्थितियों में, ऋणदाता समझते हैं कि डूबे हुए ऋण की राशि में से जो राशि वसूल हो रही हो उसी की वसूली कर लेनी चाहिए।
इस प्रकार, ‘हेयरकट’ का प्रावधान बकाया राशि के कुछ भाग की वसूली करने के लिए किया जाता है। हालांकि, यह स्थिति बैंकों या वित्तीय संस्थानों के लिए लाभप्रद नहीं होती।
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