हाइड्रोजन, प्रयोज्य ऊर्जा को भंडारित और उत्पन्न कर सकती है। लेकिन आमतौर पर यह प्राकृतिक रूप से नहीं पाई जाती, बल्कि इसे उन यौगिकों से उत्पादित किया जाता है जिनमें यह अंतर्विष्ट होती है। इसी कड़ी में, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन एक स्वायत्त संस्था, इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मैटलर्जी एंड न्यू मैटीरियल्स (एआरसीआई) के वैज्ञानिकों ने परिवेशी दाब और तापमान पर मेथेनॉल (एक कार्बनिक यौगिक, जिसका अणुसूत्र CH3OH है।) और जल के मिश्रण से उच्च शुद्धता (99.99 प्रतिशत) वाली हाइड्रोजन का उत्पादन करने की एक ऐसी पद्धति विकसित की है, जो जल के विद्युत अपघटन (वॉटर-इलेक्ट्रोलिसिस वह प्रक्रिया है, जिसके तहत विद्युत ऊर्जा का प्रयोग करके जल से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को विखंडित किया जाता है।) में हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए आवश्यक विद्युत ऊर्जा का केवल एक-तिहाई उपयोग करती है।
सरल भाषा में कहें, तो वैज्ञानिकों ने एक ऐसी पद्धति विकसित की है, जो परिवेशी दाब और तापमान पर इलेक्ट्रोकैमिकल मेथेनॉल रिफॉर्मेशन (ईसीएमआर—जल के विद्युत अपघटन की तुलना में कम ऊर्जा खपत पर हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए एक वैकल्पिक आशाजनक तकनीक) का प्रयोग करते हुए मेथेनॉल और जल के मिश्रण से हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए इलेक्ट्रोलिसिस एवं शोधन दोनों प्रक्रियाओं को संघटित करती है।
प्रक्रिया
ईसीएमआर प्रक्रिया में, पॉलिमर इलेक्ट्रोलाइट मेम्ब्रेन [पीईएम इलेक्ट्रोलिसिस—हाइड्रोजन उत्पादन की एक तकनीक है। अक्षय ऊर्जा संसाधनों के साथ इसका प्रयोग किए जाने पर यह कॉर्बन उत्सर्जन को शून्य (या समाप्त) करने में सक्षम हो सकती है।] का उपयोग होता है। इसके माध्यम से रासायनिक शोधन के विपरीत कम तापमान (25-60 डिग्री से.) और कम दाब पर हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है। इसके बाद, हाइड्रोजन के शोधन या शुद्धिकरण की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि इस पद्धति में पॉलिमर इलेक्ट्रोलाइट मेम्ब्रेन के उपयोग से हाइड्रोजन को कॉर्बन डाइऑक्साइड से अलग कर लिया जाता है। एआरसीआई के वैज्ञानिकों के एक दल ने हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए 5.0 किग्रा/दिन क्षमता तक की एक इलेक्ट्रोलिसिस इकाई विकसित की। इलेक्ट्रोलाइजर स्टैक के लिए लगभग 17 किलोवॉट-घंटा/किग्रा. ऊर्जा की आवश्यकता होती है। एआरसीआई, जिस प्रक्रिया के माध्यम से हाइड्रोजन का उत्पादन कर रहा है वह हाइड्रोजन अत्यंत शुद्ध (99.99 प्रतिशत) है तथा लगभग 11-13 किलोवॉट विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए सीधे इसका उपयोग पीईएम फ्यूल सेल्स (ईंधन सेल या फ्यूल सेल एक विद्युत रासायनिक युक्ति है जो ईंधन से प्राप्त रासायनिक ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है।) में किया जा सकता है।
लाभ
इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा लाभ यह है कि हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए जो विद्युत खर्च होती है, उसके लिए वॉटर-इलेक्ट्रोलिसिस का एक-तिहाई हिस्सा ही पर्याप्त है। इस प्रकार व्यावहारिक वॉटर-इलेक्ट्रोलिसिस के लिए 55-65 किलोवॉट-घंटा/किग्रा. हाइड्रोजन की ही आवश्यकता होती है।
पीईएम आधारित ईसीएमआर इलेक्ट्रोलाइजर स्टैक के मेम्ब्रेन इलेक्ट्रोड असेंबली (एमईए), बायपोलर प्लेटस और कई प्रक्रिया संबंधी उपकरणों जैसे जरूरी घटकों को देश में ही निर्मित किया गया है और इन्हें प्रणाली के अन्य घटकों के साथ एकीकृत किया गया है। इलेक्ट्रोलाइजर स्टैक को बनाने के लिए अभिक्रिया करने वाले फ्लो फील्ड प्लेट [एफएफपी अर्थात फ्लो फील्ड प्लेट, सेल का एक महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि यह मेम्ब्रेन इलेक्ट्रोड असेंबली को ईंधन (हाइड्रोजन) और ऑक्सीडेंट (वायु) की आपूर्ति करता है, जल उत्सर्जित करता है और उत्पादित इलेक्ट्रॉनों को एकत्र करता है।] के रूप में ग्रेफाइट पदार्थ का उपयोग किया गया है। कार्बन पदार्थ को बायपोलर प्लेट्स (बायपोलर प्लेट्स पीईएम फ्यूल सेल्स का एक प्रमुख घटक है, जिसमें बहु-कार्यात्मक गुण होते हैं।) के रूप में उपयोग करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि इसे टाइटेनियम प्लेटों के स्थान पर लगाया गया है। आमतौर पर टाइटेनियम प्लेटों का उपयोग इलेक्ट्रोलाइजर इकाई की तरह किया जाता है। इस नई तकनीक से लागत में कमी आएगी।
निश्चित रूप से हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए यह पद्धति वॉटर-इलेक्ट्रोलिसिस की तुलना में कम खर्चीली होगी तथा इसे आसानी से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ जोड़ा जा सकता है। एआरसीआई, पीवी (फोटोवोल्टिक) जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के एकीकरण के लिए उद्योग साझीदारों के साथ काम कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि हाइड्रोजन के उत्पादन और इसके उपयोग के दौरान लगभग नगण्य कार्बन उत्सर्जित होता है, तथा इसके उत्पादन में जीवाश्म ईंधन संसाधनों की जरूरत नहीं होती। इसलिए हाइड्रोजन सतत ऊर्जा का एक आदर्श रूप है और भविष्य में स्वच्छ ईंधन के रूप में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। हाइड्रोजन के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है, क्योंकि इसका उच्च विशिष्ट ऊर्जा मूल्य 40 किलोवॉट-घंटा/किग्रा. होता है, जबकि गैस, डीजल, तरल पेट्रोलियम गैस जैसे रासायनिक ईंधनों की क्षमता 12-14 किलोवॉट-घंटा/किग्रा. ही होती है।
पृथ्वी पर सर्वाधिक हाइड्रोजन जल में पाया जाता है। हालांकि, यह प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम और बायोमास में भी मौजूद होता है, और इन सभी का उपयोग हाइड्रोजन का उत्पादन करने के स्रोत के रूप में किया जा सकता है।
आमतौर पर, हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए विद्युत ऊर्जा का उपयोग करके जल को हाइड्रोजन गैस में परिवर्तित करने तथा मिथेन जैसे हाइड्रोकार्बन की गुणवत्ता में बदलाव लाने की प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है। भारत की ऊर्जा आवश्यकता को स्वच्छ ईंधन की ओर दिशा देने, नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में हरित हाइड्रोजन को अपनाने तथा ऊर्जा उत्पादन—वॉटर-इलेक्ट्रोलिसिस की एकीकृत प्रक्रिया को अपनाने के लाभ हैं।
संपूर्ण विश्व में वैकल्पिक ईंधन को लेकर शोध जारी हैं, ताकि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष में मानव जाति की सहायता की जा सके। सतत ईंधनों में से हाइड्रोजन द्वारा विश्व की लगातार बढ़ती जरूरतों को पूरा करने की भरपूर संभावनाएं विद्यमान हैं। हाइड्रोजन पृथ्वी पर मौजूदा तत्वों में से सबसे सरल तत्वों में से एक है—इसमें केवल एक प्रोटॉन और एक इलेक्ट्रॉन होता है, और यह एक एनर्जी कैरियर [एक ऊर्जायुक्त पदार्थ (ईंधन), जिसे बाद में अन्य रूपों में परिवर्तित किया जा सकता है।] है।
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