भारत में क्वांटम प्रौद्योगिकी के महत्वपूर्ण विकास को गति देते हुए पहली बार रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के वैज्ञानिकों के एक दल द्वारा वर्ष 2022 की शुरुआत में, उत्तर प्रदेश में प्रयागराज और विंध्याचल के बीच 100 किमी. से अधिक की दूरी के लिए ‘क्वांटम की डिस्ट्रिब्यूशन’ (क्यूकेडी) लिंक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया। यह तकनीकी सफलता इस क्षेत्र में पहले से ही उपलब्ध वाणिज्यिक ग्रेड के ऑप्टिकल फाइबर [कांच (सिलिका) या प्लास्टिक से निर्मित एक लंबा और पतला (एक धागे जैसा) प्रकाश तंतु, जिसका उपयोग डेटा या सूचनाएं आदि भेजने के लिए किया जाता है।] की सहायता से हासिल की गई। इस सफलता के साथ ही देश ने सुरक्षित की ट्रांसफर (यह सुनिश्चित करता है कि कोई मशीन या सिस्टम एक्सेस करने से पूर्व सुरक्षित स्थिति में है।) संबंधी स्वदेशी तकनीक को प्रदर्शित किया, जिसका उपयोग सैन्य ग्रेड संचार सुरक्षा कुंजी पदानुक्रम (Military-grade communication security key hierarchy) की बूटस्ट्रैपिंग (अकसर तात्कालिक साधनों के माध्यम से स्वयं अपनी सहायता करना) के लिए किया जा सकता है। इस परीक्षण में मापदंडों का मापन किया गया, और उसे 10 किलोहर्ट्ज तक की दरों पर अंतरराष्ट्रीय मानकों के दायरे में पाया गया।
इससे पहले, दिसंबर 2020 में डीआरडीओ द्वारा हैदराबाद में स्थित अपने दो केंद्रों—रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल), और अनुसंधान केन्द्र इमारत (आरसीआई)—के बीच संचार के लिए इस प्रौद्योगिकी का परीक्षण किया गया था, जिसकी सफलता के पश्चात मुंबई में स्थित डीआरडीओ युवा वैज्ञानिक प्रयोगशाला द्वारा क्वांटम रैंडम नंबर जनरेशन विकसित किया गया जो यादृच्छिक क्वांटम घटनाओं का पता लगाता है, और यह उन्हें बाइनरी अंकों के रूप में परिवर्तित करने में सक्षम था। क्वांटम के क्षेत्र में एक ही वर्ष में मिली दो सफलताओं के बाद दिसंबर 2021 में वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में नेशनल मिशन ऑन क्वांटम टेक्नोलॉजीज एंड एप्लिकेशंस के लिए 8,000 करोड़ रुपये आबंटित किए गए।
क्यूकेडी प्रौद्योगिकी
क्यूकेडी संचार की एक सुरक्षित तकनीक है, जो क्वांटम यांत्रिकी के विभिन्न घटकों के माध्यम से क्रिप्टोग्राफिक प्रोटोकॉल (कूटलेखन पर आधरित प्रोटोकॉल) का उपयोग करती है। यह दो पक्षों को एक साझा गुप्त कुंजी (शेयर्ड सीक्रेट की) उत्पन्न करने की सुविधा प्रदान करती है, और इसके बारे में केवल उन्हें ही ज्ञात होता है। इसका उपयोग संदेशों को एन्क्रिप्ट (कोडित या अपठनीय) और डिक्रिप्ट (विकोडित या पठनीय) करने के लिए किया जा सकता है।
क्यूकेडी दूरस्थ पक्षों के लिए क्रिप्टोग्राफिक की (कुंजी) साझा करने हेतु स्पष्ट रूप से लाभकारी सुरक्षित क्रिप्टोग्राफिक बिल्डिंग ब्लॉक (मूलभूत इकाई) प्रदान करने के माध्यम से क्लासिक की डिस्ट्रिब्यूशन (गणितीय समस्याओं पर आधारित) उपागमों के सम्मुख चुनौतियों को प्रभावी रूप से संशोधित करती है।
क्यूकेडी की मुख्यतः दो श्रेणियां होती हैं: (i) सृजित और परिमाणित प्रोटोकॉल क्वांटम की अज्ञात अवस्थाओं के मापन पर केंद्रित हैं। इसका प्रयोग अवैध रूप से डेटा की निगरानी करने का पता लगाने और यह मापने के लिए किया जा सकता है कि संभावित रूप से कितने डेटा की सेंधमारी/चोरी की गई है; और (ii) जटिलता-आधारित प्रोटोकॉल उन क्वांटम दशाओं पर केंद्रित हैं, जहां एक संयुक्त क्वांटम दशा का रूप लेने के लिए दो पदार्थ परस्पर जुड़ते हैं। इस पद्धति में यदि कोई अवरोधन होता है, और यदि कोई अनधिकृत व्यक्ति किसी पूर्ववर्ती विश्वसनीय बिंदु (विषय) तक पहुंच प्राप्त कर लेता है तथा उसमें कुछ परिवर्तन करता है, तो उसमें शामिल अन्य पक्ष सतर्क हो जाएंगे।
क्यूकेडी की कार्यपद्धतिः (i) क्यूकेडी के तहत एन्क्रिप्शन की एक ऑप्टिकल फाइबर में क्यूबिट्स (क्वांटम बिट्स को ‘क्यूबिट्स’ कहा जाता है; ये किसी कंप्यूटर के बाइनरी सिस्टस के ‘बिट्स’ के बराबर होते हैं।) के रूप में भेजा जाता है। ऑप्टिकल फाइबर के ये नेटवर्क किसी अन्य संचार माध्यम की तुलना में तीव्र गति से अधिक दूर तक अधिकतम डेटा का संचार कर सकते हैं।
(ii) क्यूकेडी को लागू करने के लिए प्राधिकृत उपयोगकर्ताओं के बीच
पारस्परिक क्रिया (या अंतःक्रिया) की आवश्यकता होती है। इन अंतःक्रियाओं को क्रिप्टोग्राफिक माध्यमों से प्रमाणित और हासिल करने की आवश्यकता होती है। क्यूकेडी एक-दूसरे से दूर बैठे दो उपयोगकर्ताओं को एक सामान्य, सीक्रेट (गुप्त) बिट्स के यादृच्छिक वर्णों का एक क्रम, जिसे गुप्त कुंजी (सीक्रेट की) के रूप में जाना जाता है, बनाने की सुविधा प्रदान करता है।
(iii) क्यूकेडी एक प्रमाणित संचार माध्यम का उपयोग कर सकता है, और उसे सुरक्षित संचार माध्यम में बदल सकता है। इसे इस प्रकार बनाया गया है कि यदि कोई अन्य (अनधिकृत) व्यक्ति प्रेषित संदेश को पढ़ने की कोशिश करता है, तो यह उन क्यूबिट्स को अस्त-व्यस्त कर देता है, जो फोटॉन (प्रकाश और अन्य विद्युत चुंबकीय विकिरण के मूलभूत कण, जिनका द्रव्यमान शून्य होता है) पर कूट (सांकेतिक भाषा) के रूप में होते हैं। यह अवरोधन संचार की त्रुटियां उत्पन्न करता है और तुरंत वास्तविक उपयोगकर्ता को सूचित करता है।
आवश्यकता
जैसाकि क्यूकेडी परंपरागत क्रिप्टोग्राफिक तकनीकों (जिनमें डेटा की सुरक्षा, गणित की अप्रमाणित पूर्वधारणाओं पर आधारित होती है) के विपरीत भौतिकी के सिद्धांतों पर आधारित है, इसलिए डेटा सुरक्षा की दृष्टि से यह अधिक उपयोगी है। यह हमें सुरक्षा का एक ऐसा मूलभूत स्तर प्रदान करता है, जो गोपनीय डेटा को साइबर हमलों की अरक्षितता से सुरक्षित रखने में सक्षम है। क्यूकेडी पद्धति के अंतर्गत सूचनाओं को क्वांटम अवस्थाओं या क्यूबिट्स में एन्कोड (सांकेतिक शब्दों में बदलना) किया जाता है, जिनकी न तो क्लोनिंग (प्रतिरूपण) की जा सकती है और न ही पता लगाने योग्य विसंगतियों को शामिल किए बिना आकलन किया जा सकता है।
क्यूकेडी की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह संप्रेषण या अंतःक्रिया करने वाले दो या अधिक वास्तविक उपयोगकर्ताओं की यह पता लगाने में मदद करता है कि क्या कोई अन्य व्यक्ति (जो वास्तविक उपयोगकर्ता नहीं है) उनके डेटा की जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा कर रहा है, और यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो, तो यह उपयोगकर्ताओं को अपनी की को बंद या विफल करने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे उपयोगकर्ता अपने डेटा को सुरक्षित रख सकते हैं।
उपयोगिता
क्यूकेडी तकनीक न केवल भारत की सुरक्षा एजेंसियों को स्वदेशी प्रौद्योगिकी की बुनियाद के साथ एक उपयुक्त क्वांटम संचार नेटवर्क की योजना बनाने में सक्षम बनाएगी, बल्कि क्वांटम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में भी मददगार साबित होगी।
© Spectrum Books Pvt Ltd.