मस्तिष्क में दीर्घकालिक स्मृति (लॉन्ग टर्म मेमोरी–एलटीएम) समेकन की प्रक्रिया को समझने के लिए विष विज्ञान विभाग, स्कूल ऑफ केमिकल एंड लाइफ साइंसेज, जामिया हमदर्द के वैज्ञानिकों द्वारा फरवरी 2022 में बिहेव्यरल टैगिंग मॉडल [बिहेव्यरल टैगिंग किसी व्यावहारिक कार्य में कमजोर प्रशिक्षण/अभ्यास से प्रेरित एलटीएम गठन की प्रक्रिया पर पीआरपी (नवीनता के परिणामस्वरूप गठित) के प्रभाव का वर्णन करता है।] पर आधारित एक नया उपकरण विकसित किया गया, जो भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस प्रकार का पहला उपकरण है। यह नया उपकरण व्यवहार के विश्लेषण के माध्यम से दीर्घकालिक स्मृति समेकन का अध्ययन करने हेतु बिहेव्यरल टैगिंग मॉडल का उपयोग करता है। यह शोध थेरानोस्टिक्स और एजिंग रिसर्च रिव्यूज जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
इसी प्रकार, वर्तमान में स्मृति समेकन के सुप्त लक्षणों की जांच करने हेतु बायोसिग्नल (जीवित जीवों की प्रणाली के बीच संचार प्रदान करने और उनके व्यवहार के बारे में जानकारी प्रदान करने के प्राथमिक स्त्रोत) का उपयोग इन विवो इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी [इन विवो इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी, मस्तिष्क में तंत्रिकीय गतिविधियों का आकलन स्थानीय क्षेत्र की क्षमता या एकल इकाइयों के रूप में करती है। इसमें मस्तिष्क के हिस्सों को सटीक रूप से लक्षित किया जाता है, और परीक्षण यौगिकों के प्रभाव का मूल्यांकन या तो प्रणालीगत वितरण के बाद या आयनरोफोरेसिस (कांच के सूक्ष्म इलेक्ट्रोड के माध्यम से ऊतकों के प्रयोगात्मक समाधान के अनुप्रयोग द्वारा मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर का अध्ययन करने की एक तकनीक) का उपयोग कर सीधे अनुप्रयोग द्वारा किया जा सकता है।] में किया जाता है, जिसमें नियंत्रित परिस्थितियों में एक कृंतक (कुतरने वाले जीव, जैसे चूहे, खरगोश आदि, जिनके आगे के दांत मजबूत और तेज होते हैं।) के मस्तिष्क से तंत्रिका संकेत एकत्र किए जाते हैं।
महत्व
अभ्यास और स्मृति, मस्तिष्क के दो सबसे मौलिक कार्यों के साथ ही तंत्रिका विज्ञान में सबसे अधिक शोधित विषय भी हैं। वास्तव में, नई जानकारी और स्मृति का संग्रहण किसी प्राणी के सीखने की प्रक्रिया से संबद्ध है। इस संबंध में, सीखे गए या संग्रहीत डेटा को मस्तिष्क में बनाए रखने पर दीर्घकालिक स्मृति विकसित होती है।
दीर्घकालिक स्मृति को गहनता से समझने के लिए, सबसे पहले स्मृति समेकन (मेमोरी कंसोलिडेशन) के बारे में जानना जरूरी है। यह वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक अस्थायी, अस्थिर स्मृति को अधिक स्थिर एवं लंबे समय तक उपयोगी स्मृति के रूप में बदल दिया जाता है। समेकन वह विधि है जिसके द्वारा स्मृतियों को संसाधित किया जाता है। इसलिए स्मृति समेकन, दीर्घकालिक स्मृति के विरचन की एक मूलभूत प्रक्रिया है।
इस खोज में शामिल वैज्ञानिकों द्वारा स्मृति लोप का कारण बनने वाले न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसॉर्डर्स (तंत्रिका या स्नायु संबंधी रोग, जिनमें केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की कोशिकाएं निष्क्रिय या नष्ट हो जाती हैं।) को समझने की दिशा में ‘विश्वविद्यालय अनुसंधान और वैज्ञानिक उत्कृष्टता संवर्धन (पर्स)’ कार्यक्रम के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सहयोग से विष विज्ञान विभाग में स्थापित इन विवो इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी सुविधा का उपयोग किया गया।
इस अध्ययन के निष्कर्षों से स्मृति लोप का कारण बनने वाले मनोभ्रंश, अल्जाइमर रोग, पार्किंसंस रोग जैसे तंत्रिका विकारों पर विभिन्न प्रकार के शोध कार्यों में लाभ हो सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह इस प्रकार की रोगग्रस्त अवस्थाओं में स्मृति समेकन पथ और स्मृति विलोपन तंत्र के बीच एक सीधा संबंध स्थापित करने की एक दिशा प्रदान करेगा।
स्मृति समेकन
स्मृति समेकन एक ऐसी प्रक्रिया है, जो मनुष्य के मस्तिष्क की अल्पकालिक स्मृतियों को दीर्घकालिक स्मृतियों में परिवर्तित करती है। अल्पकालिक स्मृति, अवधि एवं क्षमता के मामले में बहुत सीमित होती हैं। मानव मस्तिष्क लगभग 30 सेकंड के लिए अल्पकालिक स्मृतियों को संग्रहीत कर सकता है, इसलिए यदि कोई प्राणी कभी भी कुछ याद रखना चाहता है, तो उसे उस महत्वपूर्ण जानकारी को दीर्घकालिक स्मृति में बदलने के लिए अपने मस्तिष्क को प्रेरित करना पड़ेगा।
जब दो न्यूरॉन्स (तंत्रिकीय कोशिकाएं) एक ही समय में बार-बार उत्तेजित होते हैं, तो भविष्य में उनके एक साथ उत्तेजित होने की संभावना बढ़ जाती है और अंततः ये दोनों एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। जैसे-जैसे हम नए अनुभव, स्मृतियां और सूचनाएं प्राप्त करते हैं, हमारा मस्तिष्क इनसे अधिक से अधिक संबंध बनाता है। अनिवार्य रूप से, मस्तिष्क खुद को पुनर्व्यवस्थित कर सकता है, पुराने संबंधों को हटाते हुए नए संबंध स्थापित कर सकता है।
प्रारंभ में, स्मृति बनाने के दौरान होने वाले अन्तर्ग्रथनी (सिनैप्टिक) परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए अन्तर्ग्रथनी और अभिग्रहण (कैप्चर) परिकल्पना का प्रस्ताव किया गया। हालांकि, हाल ही में व्यावहारिक बंधन (बिहेव्यरल टैगिंग) की परिकल्पना प्रस्तावित की गई, जो एक अधिगम बंधनी (लर्निंग टैग) की स्थापना और सुनम्यता (प्लास्टिसिटी) से संबंधित प्रोटीन के संश्लेषण (पीआरपी) पर निर्भर करती है। व्यवहार टैगिंग की परिकल्पना मूल रूप से अन्तर्ग्रथनी एवं अभिग्रहण परिकल्पना के तहत की गई है जो यह समझाने का प्रयास करती है कि कमजोर प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले अभ्यास के टैग को पीआरपी के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है और यह लंबे समय तक चलने वाली स्मृतियों को जन्म दे सकता है।
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