एरोसॉल का कश खींचने एवं छोड़ने की क्रिया को वैपिंग कहा जाता है। सामान्यतया इस क्रिया को वाष्प के रूप में संदर्भित किया जाता है, जो एक ई-सिगरेट या इसी प्रकार के उपकरण द्वारा उत्पन्न होती है। वैपिंग शब्द का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि ई-सिगरेट में तंबाकू के धुएं की जगह एरोसॉल का उत्सर्जन होता है, जिसमें असल में सूक्ष्म कण होते हैं। इनमें से कई कणों में अलग-अलग मात्रा में जहरीले रसायन होते हैं। इन कणों से कैंसर के अलावा श्वसन संबंधी रोग एवं हृदय रोग भी हो सकता है।
ई-सिगरेट के उपयोग में वृद्धि के साथ ही वैपिंग में भी वृद्धि हुई है। वर्ष 2007 में अमेरिका में ई-सिगरेट की शुरुआत की गई थी। वैपिंग उपकरणों में न केवल ई-सिगरेट, बल्कि वेप पेन तथा उन्नत किस्म के व्यक्तिगत वेपोराइजर, जिन्हें ‘एमओडीएस’ (MODS) भी कहा जाता है, भी शामिल हैं।
सामान्यतया एक वैपिंग उपकरण में एक मुंहनाल, एक बैटरी, ई-लिक्विड या ई-जूस अर्थात इलेक्ट्रॉनिक रूप की तरल सामग्री वाले कार्ट्रिज का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, एक बैटरी द्वारा संचालित उपकरण लगा होता है जो ई-लिक्विड को गर्म करता है। जब इस उपकरण का उपयोग किया जाता है तो बैटरी तापक घटक को गर्म करती है, जो ई-लिक्विड की सामग्री को एरोसॉल में बदल देती है। एरोसॉल सांस खींचने या कश लेने पर फेफड़ों में जाता है और फिर कश छोड़ने पर फेफड़ों से बाहर आता है।
वेपोराइजर उत्पादों में प्रयुक्त ई-लिक्विड में प्रोपलीन ग्लाइकोल या वनस्पति ग्लिसरीन-आधारित तरल पदार्थ के साथ निकोटीन, स्वाद बढ़ाने वाले मसालों तथा अन्य रसायनों एवं धातुओं का उपयोग किया जाता है; लेकिन इसमें तंबाकू का उपयोग नहीं किया जाता है। कुछ लोग इन उपकरणों का उपयोग टीएचसी (टेट्राहाइड्रोकनाबिनोल) को वेप (कश लेने) करने के लिए करते हैं। टीएचसी एक ऐसा रसायन है जो निकोटीन के बजाय मारिजुआना का उपयोग करता है तथा मानव के मन-मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
वैपिंग के संदर्भ में, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा जारी श्वेतपत्र में ईएनडीएस या ई-सिगरेट के उपयोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख किया गया, जिसमें डीएनए की क्षति—कार्सिनोजेनेसिस (कैंसर के गठन की शुरुआत)—कोशिकाओं तथा आणविक एवं रोग प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना शामिल है। इसके अलावा, व्यक्ति में श्वसन, हृदय और तंत्रिका संबंधी विकार भी हो सकते हैं, और यह भ्रूण के विकास तथा गर्भावस्था को भी प्रभावित करता है।
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