चीन के अनहुई प्रांत के हेफेई शहर में स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ प्लाज्मा फिजिक्स ऑफ द चाइनीज अकैडमी ऑफ साइंसेज (एएसआईपीपी) में अवस्थित ‘कृत्रिम सूर्य’—एक्सपेरिमेंटल एड्वांस्ड सूपरकंडक्टिंग टोकामक (ईस्ट या EAST) अपने प्रथम परिचालन के बाद से ही विश्व के ऊर्जा संलयन (फ्यूजन एनर्जी, ऊर्जा उत्पादन का एक प्रस्तावित रूप है, जो परमाणु संलयन अभिक्रियाओं से ऊष्मा का उपयोग करके ऊर्जा उत्पन्न करता है।) के अनुसंधान क्षेत्र में अत्यंत गर्म प्लाज्मा का परिरोध करने की अवधि के मामले में लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।

चीन द्वारा स्वच्छ या हरित ऊर्जा के उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी रहने के उद्देश्य से इस परियोजना को वर्ष 1998 में अनुमोदित किया गया था।


टोकामक एक प्रयोगात्मक मशीन है, जो गैस को प्लाज्मा में परिवर्तित करने और उसे गर्म रखने हेतु अपनी भीतरी चारदीवारी या भित्ति में अवशोषित हुए परमाणुओं के संलयन से उत्पन्न ऊर्जा के साथ संलयन अभिक्रियाओं द्वारा उत्पन्न ऊर्जा का प्रयोग करती है। ‘टोकामक’ शब्द की उत्पत्ति एक रूसी आदिवर्णिक शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है—टॉरॉयडल चेंबर के साथ चुंबकीय वक्र। विश्व की सर्वप्रथम टोकामक मशीन T-1 को 1958 में सोवियत संघ के वैज्ञानिक नेतन यावलिंस्की द्वारा परिकल्पित किया गया था।

प्लाज्मा पदार्थ की चौथी अवस्था है, जिसे प्रायः गैसों का एक सबसेट (उपवर्ग) माना जाता है, परंतु पदार्थ की इन दोनों अवस्थाओं का व्यवहार एक-दूसरे से भिन्न होता है। गैसों की भांति ही प्लाज्मा का कोई निश्चित आकार या आयतन नहीं होता और यह ठोस एवं द्रवों की तुलना में कम सांद्र होता है लेकिन सामान्य गैसों के विपरीत, प्लाज्मा अणुओं से निर्मित होता है, जिसमें कुछ या सभी इलेक्ट्रॉन विखंडित हो जाते हैं और धनावेशित नाभिक, जिसे ‘आयन’ कहते हैं, के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।


कृत्रिम सूर्यईस्ट

अपने नाम के विपरीत ईस्ट वायुमंडल में स्थापित कोई क्षेत्र नहीं है, बल्कि वास्तव में, यह एक डोनट के आकार का रिएक्टर कक्ष (या एक उन्नत परमाणु संलयन प्रयोगात्मक अनुसंधान यंत्र है), जिसमें गर्म प्लाज्मा को एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र के साथ जोड़ा गया है। इसे परमाणु संलयन (वह प्रक्रिया जिसके तहत दो परमाणु नाभिकों को जोड़कर एक नए परमाणु नाभिक और एक इलेक्ट्रॉन का निर्माण किया जाता है, जिन्हें बाद में प्लाज्मा या अत्यधिक आयनित गैस में छोड़ दिया जाता है, परमाणु संलयन कहलाती है) की प्रक्रिया को दोहराने के उद्देश्य से पिछली शताब्दी की नवीनतम टोकामक उपलब्धियों के आधार पर परिकल्पित किया गया है। इस यंत्र में तीन अलग-अलग विशेषताएं हैं: नॉन-सर्कुलर क्रॉस-सेक्शन, पूरी तरह से सूपरकंडक्टिंग मैग्नेट और पूरी तरह से सक्रिय वॉटर-कूल्ड प्लाज्मा फेसिंग कंपोनेंट्स (पीएफसी), जो उन्नत स्थिर-स्थिति वाली प्लाज्मा संक्रिया विधि (ऑपरेशन मोड) की खोज करने के लिए लाभदायक हैं। इसका लक्ष्य प्रकाश या ऊष्मा की आपूर्ति करना नहीं, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा की एक बड़ी मात्रा उत्पन्न करना है, जिससे शहरों में विद्युत आपूर्ति की जा सके।

ईस्ट को ‘कृत्रिम सूर्य’ कहा जाता है क्योंकि यह ईंधन के रूप में हाइड्रोजन और ड्यूटेरियम गैसों का उपयोग कर परमाणु संलयन की उस प्रक्रिया को दोहराता है, जो हमारे वास्तविक सूर्य को ऊर्जा प्रदान करती है। (इससे पहले, ऊर्जा का उत्पादन परमाणु विखंडन की प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता था, जिसके तहत एक भारी परमाणु के नाभिक को हल्के परमाणुओं के दो या उससे अधिक नाभिकों के रूप में विखंडित कर दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप अत्यधिक परिमाण में परमाणु अपशिष्ट उत्पन्न होता है।)

ईस्ट की उपलब्धियां: अपने 15 वर्षों से अधिक की प्रचालन अवधि में ईस्ट ने वर्ष 2021 में दो महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की—पहली, जब मई 2021 में इसने 101 सेकेंड तक लूप ऑफ प्लाज्मा (उज्ज्वल, वक्राकार संरचनाएं, जो सूर्य की सतह के ऊपर चाप के रूप में दिखाई देती हैं।) को 120 मिलियन डिग्री से. तापमान तक गर्म रखने में सफलता प्राप्त की, जिसके पश्चात अगले 20 सेकेंड यह अपने अधिकतम तापमान (160 मिलियन डिग्री से.) पर पहुंच गया, जो सूर्य के अधिकतम तापमान (सूर्य के क्रोड का तापमान लगभग 15 मिलियन डिग्री से. होता है) से दस गुना अधिक था; तथा दूसरी, दिसंबर, 2021 में जब ईस्ट ने लूप ऑफ प्लाप्मा को 1,056 सेकेंड (यानी 17 मिनट और 36 सेकेंड तक) तक सूर्य के अधिकतम तापमान से पांच गुना अधिक तापमान (70 मिलियन डिग्री से.) पर गर्म रखने का नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया। ईस्ट की ये उपलधियां फ्यूजन एनर्जी को आगे बढ़ाने की दिशा में एक ठोस वैज्ञानिक और प्रयोगात्मक आधार का काम करती हैं।


ईस्ट से पहले, फ्रांस के टोरे सुप्रा टोकामक ने वर्ष 2003 में 6.5 मिनट में 280 मेगाजूल ऊर्जा उत्पन्न कर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया था। तत्पश्चात, वर्ष 2016 में दक्षिण कोरिया के कोरिया सूपरकंडक्टिंग टोकामक एड्वांस्ड रिसर्च (केएसटीएआर) रिएक्टर ने प्लाज्मा को 70 सेकेंड के लिए 50 डिग्री से. पर बरकरार रखकर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया था।


ईस्ट के अलावा, वर्तमान में चीन HL-2A रिएक्टर के साथ-साथ J-TEXT का परिचालन कर रहा है, जबकि ईस्ट से पहले, HL-2M टोकामक, परमाणु संलयन अनुसंधान के लिए चीन का सबसे बड़ा और उन्नत प्रयोगात्मक उपकरण था, जिसने परमाणु ऊर्जा अनुसंधान के क्षेत्र में इसकी क्षमताओं में महत्वपूर्ण रूप से वृद्धि की।

भविष्य की संभावनाएं

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वर्ष 2006 में परिचालित की गई ईस्ट परियोजना, परमाणु संलयन की शक्ति का दोहन करने में मदद करेगी, जो मनुष्य को सूर्य के भीतर स्वाभाविक रूप से होने वाली अभिक्रियाओं का अनुकरण कर कृत्रिम रूप से ‘असीमित स्वच्छ ऊर्जा’ का उत्पादन करने की दिशा में एक कदम आगे ले जाएगी।

जून 2022 में ईस्ट अनुसंधान के अंत तक चीन द्वारा इस पर एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक की लागत खर्च किए जाने का अनुमान है, और इसका उपयोग एक और बड़ी संलयन परियोजना, थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (आईटीईआर), जिसे वर्तमान में फ्रांस के मार्सिले में निर्मित किया जा रहा है, के लिए प्रौद्योगिकियों का परीक्षण करने हेतु किया जा रहा है।


आईटीईआर को 50 मेगावाट परिमाण की तापक ऊर्जा के प्रयोग से 500 मेगावाट संलयन ऊर्जा का उत्पादन करने के उद्देश्य से अभिकल्पित किया गया है और इसके प्रचालन के प्राथमिक लक्ष्यों में से एक लक्ष्य प्लाज्मा को नियंत्रित करना तथा पर्यावरण के प्रति नगण्य प्रतिकूल परिणामों के साथ संलयन की अभिक्रियाओं को दर्शाना है।

यूरोपीय संघ के सभी देश, यूके, चीन, भारत और अमेरिका सहित 35 देशों के सहयोग से निर्मित विश्व के सबसे बड़े परमाणु रिएक्टर आईटीईआर में दुनिया का सबसे शक्तिशाली चुंबक लगा हुआ है, जो इसे 2,80,000 गुना मजबूत एक ऐसे चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करने में सक्षम बनाता है, जो कि पृथ्वी के चारों ओर व्याप्त चुंबकीय क्षेत्र के समान मजबूत है। इस फ्यूजन रिएक्टर के 2025 में शुरू होने की उम्मीद है, और यह वैज्ञानिकों को पृथ्वी पर तारकीय ऊर्जा (स्टार पावर) के उपयोग की व्यावहारिकताओं के संबंध में और भी अधिक अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।


कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन, जिनके समाप्त होने की संभावना है और जो पर्यावरण के लिए जोखिमप्रद हैं, के विपरीत पृथ्वी पर ‘कृत्रिम सूर्य’ के लिए आवश्यक कच्चा माल लगभग असीमित मात्रा में उपलब्ध है। इसलिए, संलयन ऊर्जा को भविष्य के लिए आदर्श ‘परम ऊर्जा’ माना जाता है।

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