शोध जर्नल, नेचर एस्ट्रोनॉमी, नेचर जियोसाइंस, एंड नेचर कम्युनिकेशंस, में 10 अगस्त, 2020 को प्रकाशित अध्ययन में यह परिकल्पित किया गया है कि, वर्ष 1801 में इतालवी बहुश्रुत (इटालियन पॉलीमैथ) ग्यूसेप पियाजी द्वारा खोजा गया क्षुद्र ग्रह ‘सेरेस’ की सतह के नीचे संभवतः समुद्र-जल (लवण जल) के जलाशय वाले महासागर हो सकते है।
मंगल एवं बृहस्पति ग्रह के बीच क्षुद्रग्रह पट्टी में ‘सेरेस’ सबसे बड़ा पिंड है। अपने गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बना यह खगोलीय पिंड, विशाल आकार का है, जिसके कारण नासा का अंतरिक्ष यान डॉन इसकी सतह की उच्च-रिजोल्यूशन वाली तस्वीरें लेने में सक्षम हुआ। 592 मील में फैला हुआ यह पिंड, प्लूटो से 14 गुना छोटा है।
वर्ष 2011 से 2018 के बीच, नासा के डॉन ने ‘वेस्टा’ और ‘सेरेस’, जो हमारे सौरमंडल के मुख्य क्षुद्रग्रह पट्टी के दो सबसे बड़े पिंड हैं; की 4.3 बिलियन-मील यात्रा प्रारंभ की। यह नया शोध, वर्ष 2015 से 2018 के बीच अंतरिक्ष यान डॉन द्वारा सेरेस के ग्रहपथ (ऑर्बिट) पर चक्कर लगाने के दौरान किए गए प्रेक्षणों पर आधारित है।
डॉन का प्रेक्षण 57 मील चौड़े 22 मिलियन वर्ष पुरानी आकृति ओक्केटर क्रेटर, जो चमकीले बिंदुओं (ब्राइट स्पॉट्स) को प्रदर्शित करती थी; पर केंद्रित था। खोज में इन चमकीले बिंदुओं की पहचान सोडियम कॉर्बाेनेट, अथवा ऑक्सीजन, कॉर्बन तथा सोडियम के यौगिक पदार्थ के रूप में हुई थी। वैज्ञानिकों के दल का कहना था कि क्षुद्र ग्रह पर स्थित नमक का भंडार ऐसा लग रहा था जैसे वह पिछले 2 मिलियन वर्षों में निर्मित हुए हों।
डॉन अभियान के पश्चात प्राप्त हुए तथ्यों से ज्ञात होता है कि क्रेटर के नीचे लवण जल के विशाल जलाशय हैं। ये क्रेटर 25 मील गहरे और सैकड़ों मील तक फैले हैं। डॉन से प्राप्त हुए तथ्यों से यह संकेत भी मिलता है कि क्रेटर के केंद्र में हाइड्रेटेड क्लोराइड नमक भी मौजूद हो सकता है, जिसे सिरेलिया फैक्युला कहा जाता है। यह पहली बार है जब पृथ्वी के अलावा किसी अन्य ग्रह पर हाइड्रोहेलाइट पाया गया है।
वैज्ञानिकों में भी इस विचार से कुतूहल है कि क्या छोटे ग्रहों और क्षुद्रग्रहों पर भी तरल जल संरक्षित रह सकता है? वैज्ञानिकों के अनुसार, सेरेस में जब क्रेटर उत्पन्न हुए होंगे, तो हो सकता है कि जलाशय से ग्रह की सतह का विभंजन हुआ हो और इन गड्ढों में चमकता हुआ नमक (ब्राइट सॉल्ट) इकट्ठा हो गया हो। जब विभंजन नमकीन जलाशय तक पहुंचा होगा तब लवणीय जल गड्ढों की सतह तक पहुंच सका होगा। पानी के वाष्पित होने पर एक चमकती हुई नमकीन परत का निर्माण हुआ होगा।
क्रेटर पर टीले और पहाड़ भी हैं, जिनका सृजन शायद पानी के प्रवाह के थम जाने से हुआ होगा, जिससे यह परिकल्पित किया जा सकता है कि सेरेस पर भूगर्भिक गतिविधि हुई हों। यह शंकुधारी पहाड़ियां ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाने वाली बर्फ से निर्मित पिंगोस या छोटे पहाड़ों के समान हैं। इन संरचनाओं से ज्ञात होता है कि सेरेस में लगभग 90 लाख वर्षों पहले वास्तव में बर्फ के ज्वालामुखी या क्रियोवोल्कैनिक गतिविधि शुरू हुई थी। संभवतः यह प्रक्रिया अभी भी चल रही है, जिससे सतह तक लवण जल का रिसाव हो रहा है।