द इंस्टीट्यूट ऑफ वर्टिब्रेट पेलियोनटोलॉजी एंड पेलियोएंथ्रोपोलॉजी (चीन) के वैज्ञानिकों द्वारा 1 मई, 2019 को सूचित किया गया कि उन्होंने तिब्बत पठार की एक गुफा में मानव जबड़े की हड्डी को खोज निकाला है, जिससे एक रहस्यमयी प्राचीन प्रजाति डेनिसोवन की उपस्थिति तथा उसकी जीवन-शैली के विषय में नए विवरणों का बोध हुआ है। यह जीवाश्म 1,60,000 वर्षीय डेनिसोवन, जो निएंडरथल के समान मनुष्य वंश का सदस्य था; का है और यह 50,000 वर्ष पूर्व विलुप्त हो गया था। उल्लेखनीय है कि एक भिक्षु द्वारा चीन के गांसू प्रांत में तिब्बती पठार पर स्थित बैशिया कार्स्ट गुफा में इस जीवाश्म की खोज की गई थी। 1980 के दशक में इस जबड़े के मिलने के पश्चात भिक्षु ने इसे एक जीवित बुद्ध को दे दिया, जिन्होंने इसे नवीनतम विश्लेषण पर कार्य कर रहे एक वैज्ञानिक को सौंप दिया।

साइबेरिया की डेनिसोवा गुफा के बाहर पाए जाने वाले इस जाति का यह जीवाश्म इस सिद्धांत को प्रमाणित करता है कि आधुनिक मानव के ये संबंधी कभी केंद्रीय तथा पूर्वी एशिया में रहा करते थे। एशिया में इनकी उपस्थिति के बारे में, वैज्ञानिकों द्वारा साइबेरिया की गुफा से पाए गए डेनिसोवन जीवाश्म से प्राप्त डीएनए की तुलना अन्य प्राचीनतम डीएनए तथा वर्तमान जनसंख्या के डीएनए से की गई, जिससे यह पता चल सका कि यह नया जीवाश्म इस बात को दर्शाता है कि डेनिसोवन तिब्बत पठार पर 10,700 फुट की ऊंचाई पर अति कठोर स्थितियों को सहन करने में सक्षम थे तथा उनके द्वारा साधारण पत्थर के औजारों का उपयोग किया जाता था। इस खोज से यह भी संकेत मिलता है कि कदाचित डेनिसोवनों ने इतनी ऊंचाई पर आनुवांशिक अनुकूल विकसित कर लिया हो और यही जीन तिब्बतियों को विरासत में मिले हों।

वैज्ञानिकों द्वारा पिछले एक दशक में डेनिसोवन के दांतों तथा हड्डियों की अधिक खोजें की गईं। यदि इनके डीएनए पर चर्चा की जाए, तो इन्होंने लगभग 4,00,000 वर्षों पूर्व समान पूर्वजों को साझा किया था। इन्होंने निएंडरथलों तथा अपनी ही जातियों के साथ वंशोत्पत्ति की थी।

शोधकर्ताओं के अनुसार, इस नए प्राप्त जीवाश्म में कोई आनुवांशिक सामग्री शेष नहीं है परंतु इससे अन्य जैविक अणु प्राप्त कर लिए गए हैं। साथ ही जबड़े के दांतों में प्राचीन प्रोटीन की खोज भी की गई है। इस प्रोटीन को साइबेरिया से प्राप्त डेनिसोवन के डीएनए से मिलाया गया, तो ये उससे मेल खा गए।

इस नए शोध तथा अन्य खोजों के साथ डेनिसोवन की उपस्थिति काफी स्पष्ट हो चुकी है। इनसे ज्ञात होता है कि उनके सिर, जबड़े, दांत, दाढ़ी, खोपड़ी आदि सभी वर्तमान मनुष्य की तुलना में काफी बड़े रहे होंगे। शोधकर्ताओं द्वारा तिब्बती जबड़ों से इनकी तुलना की जा सकती है तथा पुरातन प्रोटीनों के लिए भी इन जीवाश्मों का अध्ययन करने की संभावना है।

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