यह एक ज्ञात तथ्य है कि खगोलविदों द्वारा हमारे सौरमंडल में पृथ्वी के अलावा यूरोपा (बृहस्पति का चंद्रमा) पर जीवन की संभावना (परग्रही आवास) व्यक्त की जाती है, जैसाकि लगभग निश्चित रूप से उनका मानना है कि यूरोपा की बर्फीली सतह की गहराई में तरल जल का एक खारा समुद्र मौजूद है। इसी कड़ी में, 19 अप्रैल, 2022 को नेचर कम्यूनिकेशन्स जर्नल में डबल रिज फॉर्मेशन ओवर शैलो वॉटर सिल्स ऑन जूपिटर्स मून यूरोपा नामक शीर्षक से प्रकाशित शोध ने यूरोपा पर जल की मौजूदगी की संभावना को और अधिक बल दे दिया है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, हालांकि, यूरोपा के बर्फीले आवरण की सतह की भू-आकृतियां इस संभावना को संचालित करने हेतु यूरोपा की उपसतह की संरचना, गतिशीलता और परिवर्तन को प्रकट करती हैं, लेकिन इसकी सतह पर सर्वत्र दिखाई देने वाले डबल रिज (ऐसी भूवैज्ञानिक स्थलाकृति जिसमें बर्फ का उभरा हुआ और तंग अंश कुछ दूरी तक लगातार विद्यमान हो, टीला या Ridge कहलाती है।), जो इसकी सतह की सामान्य आकृतियां हैं और सैकड़ों किमी. तक फैले हैं, इनकी उत्पत्ति या गठन के स्रोत (इनके विशिष्ट आकृति विज्ञान के कारण) की खोज अब तक वैज्ञानिकों द्वारा नहीं की जा सकी है। अतः यूरोपा की इन अद्भुत भू-आकृतियों के गठन को समझने हेतु शोधकर्ताओं द्वारा प्रयोगशाला में किए गए परीक्षणों के दौरान उनका ध्यान इस बात की ओर गया कि यूरोपा की इन भू-आकृतियों की बनावट बिल्कुल वैसी ही है, जैसी कि उत्तर-पश्चिमी ग्रीनलैंड में अवस्थित बर्फ की एक मोटी चादर के मध्य बने गर्त में स्वतः विकसित हुए और 800 मी. तक फैले अर्ध-सममितीय डबल रिज की है।
शोधकर्ताओं द्वारा यूरोपा और ग्रीनलैंड के डबल रिज की सादृश्यता का पता लगाने हेतु नासा के ICESat-2 सैटेलाइट (जिसने जुलाई 2013 से मार्च 2016 तक ग्रीनलैंड में एक बर्फ की मोटी चादर के मध्य उत्तरोत्तर विकसित होने वाले डबल रिज की खोज की थी।) से प्राप्त छायाचित्रों का अध्ययन किया गया, जिसके अंतर्गत सतह के आकृति विज्ञान, भौम जलस्तर का विवेचन, रडार साउंडिंग डेटा के अध्ययन शामिल थे, जिसके पश्चात वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ग्रीनलैंड में अवस्थित डबल रिज की उत्पत्ति बर्फ की मोटी चादर के नीचे तरल पानी के किसी क्षेत्र के आप-पास दबाव पड़ने के कारण बर्फ के टूटने के फलस्वरूप हुई। जैसाकि यह डबल रिज ऐसे स्थान पर बना है, जहां सतह की झीलों और धाराओं का पानी अकसर सतह के निकट बहता है और पुनः जम जाता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, ग्रीनलैंड के डबल रिज की सतह से लगभग 10-25 मी. नीचे बर्फ की एक जलपूरित तह है। यह पानी जब सतह के पिघले हुए पानी में आकर मिलता है और उसमें डूब जाता है, तब वह पुनः दबी हुई बर्फ में संचित होकर बर्फ की एक अभेद्य मोटी तह में रूपांतरित हो जाता है। इसी प्रकार, यूरोपा की सतह पर भी यही प्रक्रिया चलती रहती है। चूंकि, इसकी सतह पर किसी प्रकार का पिघला हुआ पानी या वर्षण ज्ञात नहीं है, इसलिए संभवतः यह पानी यूरोपा की बर्फीली सतह के नीचे व्याप्त उस समुद्र से आता है, जिसका उल्लेख पूर्ववर्ती अध्ययनों में किया गया है। जब यह पानी बर्फ पर पड़ी दरारों से सतह की ओर बढ़ता है, तब वह ज्वार-भाटे या उल्कापिंडों के प्रभावस्वरूप बिखरकर बर्फ की मोटी परतों में जमा हो जाता है। यदि पृथ्वी पर किए गए परीक्षण के ये निष्कर्ष भविष्य में यूरोपा के डबल रिज के लिए सही सिद्ध होते हैं, तो यूरोपा की बर्फ की सतह के नीचे वैज्ञानिकों की सोच से भी अधिक पानी स्थानिक और अस्थायी रूप से सर्वत्र व्याप्त हो सकता है।
शोधकर्ताओं द्वारा जब यूरोपा और ग्रीनलैंड के डबल रिजों की सादृश्यता की तुलना की गई, तो उन्होंने पाया कि जब ग्रीनलैंड के डबल रिज, यूरोपा के डबल रिज की भांति अपनी पूर्णता को प्राप्त करते हैं तब उनकी औसत ऊंचाई केवल 2.1 मी. होती है, जो कि यूरोपा के डबल रिज की तुलना में बहुत छोटे हैं, जैसाकि यूरोपा की सतह की गुरुत्व शक्ति अत्यंत कम होने के कारण इसकी सतह पर पाए जाने वाले डबल रिज 300 मी. या इसकी सतह से कहीं अधिक बड़े हो सकते हैं। उनका मानना है कि यूरोपा की बर्फीली सतह बर्फ के किसी स्थिर खंड की तरह व्यवहार करने की अपेक्षा कई प्रकार की भूवैज्ञानिक और जल संबंधी प्रक्रियाओं से गुजरती है, जिसमें सतह पर फूटने वाले पानी के स्पष्ट चिह्न शामिल हैं। एक गतिशील बर्फीला आवरण (या बर्फीली सतह) उपसतह के समुद्र और बाह्य सीमा में एकत्रित अपने निकटतम खागोलीय पिंडों से पोषकता प्राप्त कर इन दोनों के बीच सुविधाओं का विनिमय करता है, इसलिए वह निवास्यता का समर्थन करता है।
अंततः यह शोध व्यापक रूप से यूरोपा के बर्फीले आवरण की गतिशीलता और डबल रिज के आकार विज्ञान की मौजूदा समझ के अनुरूप है, जो डबल रिज के गठन में उपसतह के जल नियंत्रण के लिए एक प्रक्रिया प्रदान करता है। यदि यह प्रक्रिया यूरोपा के डबल रिज के गठन को नियंत्रित करती है, तो सतह पर डबल रिज की सर्वव्यापकता यह सूचित करती है कि बर्फ के आवरण के भंगुर आच्छादन के भीतर तरल पानी है और यह एक व्यापक विशेषता है, जो यह कल्पित करती है कि सतही पानी की ये प्रक्रियाएं यूरोपा की गतिशीलता, सतह के आकृति विज्ञान और निवास्यता को पूर्व में कल्पित अनुमानों से कहीं अधिक प्रभावित करती है।
यूरोपा को बृहस्पति के सभी चंद्रमाओं (70) से ग्रह का छठा-निकटतम चंद्रमा माना जाता है। हालांकि, 1610 में इसकी खोज गैलीलियो गैलिली द्वारा की गई थी, लेकिन इसका नामकरण जर्मन खगोलविद साइमन मॉरिस ने ग्रीक पौराणिक कथाओं में प्रसिद्ध एक महिला—यूरोपा—के नाम पर किया था।
खगोलविदों के अनुमानों के अनुसार, इसकी संरचना पृथ्वी के समान है, जिसका एक क्रोड (लोहयुक्त), पर्पटी (शैलीय) और एक खारा समुद्र है। परंतु पृथ्वी के विपरीत इसका समुद्र संभवतः 10—15 मील मोटे बर्फ के आवरण के नीचे है। इसकी बर्फीली सतह एक-दूसरे को काटती हुई लंबी रैखिक दरारों से भरी है, जो बृहस्पति के अन्य चंद्रमाओं की सतह की तुलना में नई (40-90 मिलियन वर्ष) है।
पृथ्वी के चंद्रमा से लगभग 90 प्रतिशत छोटे यूरोपा का भूमध्यवर्ती व्यास 1,940 मील (3,100 किमी.) है, लेकिन यह हमारे चंद्रमा की तुलना में सूर्य के प्रकाश को 5.5 गुना परावर्तित करता है। यह लगभग 4,17,000 मील (6,71,000 किमी.) की दूरी से बृहस्पति की परिक्रमा करता है और इसे अपनी एक परिक्रमा पूरी करने में 3.5 दिन का समय लगता है। चूंकि, यूरोपा की कक्षा अंडाकार है, इसलिए बृहस्पति से इसकी दूरी सदैव समान होती है। इसका जो सिरा बृहस्पति के निकट होता है, वह दूसरे सिरे की अपेक्षा ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से अधिक आकर्षित होता है। दूरी के इस अंतर के परिणामस्वरूप यूरोपा की कक्षाएं बदलती रहती हैं, जिसके कारण इसमें ज्वार उत्पन्न होते हैं, जो इसकी सतह को विस्तारित और कम करते हैं।
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