जून 2023 में, वैज्ञानिकों ने इस साक्ष्य को उजागर किया कि ब्रह्मांड बैकग्राउंड हम अर्थात पृष्ठभूमिक गुंजन (ब्रह्मांड में पारगमन करती कम आवृत्ति वाली गुरुत्वीय तरंगें) या ‘रिपल्स इन द फैब्रिक ऑफ स्पेस्टाइम’, जिन्हें गुरुत्वीय तरंगें कहा जाता है, से प्रतिध्वनित (किसी ध्वनि की बारंबार प्रतिक्रिया से उत्पन्न गूंज) हो रहा है। ब्रह्मांडीय ध्वनि ऐसी विशाल वस्तुओं—जो चारों ओर घूमती रहती हैं, एक-दूसरे से टकराती रहती हैं और जिनका एक-दूसरे में संविलय होता रहता है, से उत्पन्न होती है। वैज्ञानिक पहली बार ब्रह्मांड में गूंजने वाली इन गुरुत्वीय तरंगों को रेडियो डेटा के रूप में रिकॉर्ड करने में सफल हुए हैं। इस सफलता को एक प्रमुख मील का पत्थर माना जा रहा है जो ब्रह्मांड में अन्वेषण हेतु एक नया मार्ग प्रशस्त करेगा। इस पृष्ठभूमिक गुरुत्वीय तरंग की तुलना कई लोगों की गुंजन से की जाती है, जैसे कि किसी पार्टी में लोग बातें कर रहे हों और किसी विशेष आवाज की पहचान करना संभव न हो।
गुरुत्वीय तरंगें
गुरुत्वीय तरंगें युगों-युगों से खगोलीय रूप से सुपरमैसिव (अति वृहत) ब्लैक होल (कृष्ण द्रव्य) जैसी सघन वस्तुओं, जो संविलयन से पूर्व एक-दूसरे के चारों ओर परिक्रमा करती रहती हैं, से निकलती हैं।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक सदी से भी अधिक समय पहले अपने आपेक्षिकता के व्यापक सिद्धांत (जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी) में ब्रह्मांड में गुरुत्वीय तरंगों की उपस्थिति की संभावना संबंधी पूर्वानुमान लगाया था। इस सिद्धांत के अनुसार, गुरुत्वाकर्षण ‘किसी भारी वस्तु की समतुल्य वस्तु द्वारा समष्टि काल के संविन्यास (फैब्रिक ऑफ स्पेसटाइम) के बंकन (बेंडिंग)’ से उत्पन्न होता है। इस सिद्धांत को समझने के लिए प्रयुक्त एनिमेशन (सजीवता) से ज्ञात होता है कि जब रबर शीट पर एक बड़ी गेंद रखी जाती है तो उस पर वक्रता उत्पन्न होती है। यदि इस शीट पर एक छोटी गेंद को घुमाया जाए तो बड़ी गेंद पर गिरने से पूर्व यह वक्रता के साथ चारों ओर घूमती है। आइंस्टीन के अनुसार, इस एनिमेशन के समान, सूर्य, पृथ्वी और अन्य विशाल खगोलीय पिंड अपने चारों ओर वक्रता बनाते हैं, और यही मुख्य कारण है कि छोटे पिंड इन बड़े पिंडों की ओर खिंचते हैं। पृथ्वी तथा ऐसे अन्य पिंडों की गति के कारण उनकी वक्रता भी गतिशील हो जाती है; इस प्रकार, समष्टि काल में ऊर्मिकादार-प्रभाव (रिपल-लाइक इफेक्ट) या गुरुत्वीय तरंगें निकलती हैं।
आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार, स्थान और समय स्वतंत्र सत्वों (इंडिपेंडेंट एंटिटी) के रूप में विद्यमान नहीं हैं। यह अंतरिक्ष के तीन विमाओं (डायमेंशन)—तुंगता, चौड़ाई और लंबाई—तथा एक विमा—समय—को एक चार-विमीय सातत्यक (फोर-डायमेंशनल कॉन्टिनूम), जिसे समष्टि काल के रूप में जाना जाता है, में जोड़ता है। सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार, यदि कोई पिंड अंतरिक्ष में घूम रहा है, तो इसका प्रभाव समय पर भी पड़ेगा क्योंकि स्थान और समय आपस में अंतर्ग्रंथित या अंतराबंध होते हैं। इसके एक दशक बाद, आइंस्टीन ने प्रस्तावित किया कि समष्टि काल कोई ऐसी चीज नहीं है जो ब्रह्मांड में होने वाली सभी घटनाओं के लिए एक पारदर्शी, अक्रिय, स्थैतिक या स्थिर पृष्ठभूमि के रूप में कार्य करता है। बल्कि, यह लचीला और आघातवर्ध्य है, पदार्थ के साथ अन्योन्यक्रिया कर सकता है, तथा ब्रह्मांड में होने वाली घटनाओं को भी प्रभावित कर सकता है।
लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल ऑब्जर्वेटरी
गुरुत्वीय तरंगों की उपस्थिति की पुष्टि पहली बार वर्ष 2015 में अमेरिका और इटली में स्थित वेधशालाओं द्वारा की गई थी, जब उन्होंने लगभग 1.3 बिलियन वर्षों पूर्व हुए दो ब्लैक होल के संघट्टन से उनकी उत्पत्ति का पता लगाया था। एक प्रयोग, जिसमें लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल ऑब्जर्वेटरी (LIGO) के संचसूचकों (डिटेक्टर्स) का उपयोग किया गया था, द्वारा उच्च-आवृत्ति की इन तरंगों का पता लगाया गया था। तत्पश्चात LIGO के उपयोग द्वारा प्राप्त किए गए सभी परवर्ती संसूचन भी उच्च-आवृत्ति की तरंगों वाले ही थे। LIGO वेधशालाओं का एक विश्वव्यापी नेटवर्क है जिसे बड़े आकाशीय पिंडों की गति द्वारा समष्टि काल में निर्मित ऊर्मिकाओं (ब्रह्मांडीय तरंगों) का पता लगाने के लिए अभिकल्पित किया गया है।
LIGO-इंडिया—ब्रह्मांड के अन्वेषण हेतु वेधशालाओं के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क में भारतीय आसंधि (इंडियन नोड)—को फरवरी 2016 में भारत सरकार की मंजूरी मिली, तथा इसे भारतीय अनुसंधान संस्थानों के एक समूह और संयुक्त राज्य अमेरिका की LIGO लैबॉरेट्री के साथ-साथ अपने अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के सहयोग से स्थापित किया जाएगा। इस महत्वाकांक्षी परियोजना की स्थापना महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में की जाएगी और 2030 तक इसका वैज्ञानिक कार्य करना अपेक्षित है।
कम आवृत्ति वाली गुरुत्वीय तरंगों का संसूचन
गुरुत्वीय तरंगें विभिन्न तरंगदैर्घ्यों, आवृत्तियों और तीव्रता में निकलती हैं। चूंकि 2015 में गुरुत्वीय तरंग का पता चला और ऐसी तरंगों की सभी परवर्ती खोजों में अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल के संघट्टन शामिल थे, तथा इनसे बहुत क्षीण ब्रह्मांडीय तरंगें उत्पन्न हो रही थीं। केवल उन्हों तरंगों का पता लगाया जा सका जो संविलय से ठीक पहले, जब निर्मुक्त हुई ऊर्जा अपने चरम पर थी, उत्पन्न हुईं थीं। हालांकि, ये लघु गुरुत्वीय तरंगें सपाट हो गई, जो मुश्किल से कुछ मिलीसेकंडों तक ही बनी रहीं।
ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड कम आवृत्ति वाली गुरुत्वीय तरंगों से प्रतिध्वनित हो रहा है, जैसे पृष्ठभूमिक ध्वनि (बैकग्राउंड नॉइज) का निरंतर गुंजन। कम आवृत्ति की ब्रह्मांडीय तरंगों की खोज करने के अपने प्रयास में, विश्व भर के वैज्ञानिक इंटरनेशनल पल्सर टाइमिंग एरे (InPTA) के बैनर तले एकत्र हुए, तथा स्पंदमान तारों (पल्सार) का पता लगाने और अध्ययन करने के लिए कुछ बेहतरीन रेडियो दूरबीनों का इस्तेमाल किया।
15 वर्षों तक 25 स्पंदमान तारों का अध्ययन करने के बाद, यह ज्ञात हुआ कि न्यूट्रॉन तारों (एक तारा जो ऊर्जा के नाभिकीय स्रोतों के समाप्त हो चुकने के पश्चात गुरुत्व के अंतर्गत अपभ्रष्टता की स्थिति तक संकुचित होता है।) से कुछ सिग्नल (संकेत) दूसरे सितारों की तुलना में थोड़ा पहले पहुंचे, जिनमें लाखों सेकंडों का अंतर था। वैज्ञानिकों का मानना है कि गुरुत्वीय तरंगों द्वारा समष्टि काल के विकृत होने के कारण ऐसी विसंगतियां उत्पन्न हुई थीं। सिग्नल प्राप्त करने के समय में यह भिन्नता गुरुत्वीय तरंगों की उपस्थिति का सूचक है।
कम आवृत्ति वाली गुरुत्वीय तरंगें, पहले अवलोकित ऊर्मिकाओं के विपरीत, संभवतः दो विशाल ब्लैक होल, जो सूर्य से लगभग लाखों गुना बड़े हैं, के संघट्टन से निकलीं। ऐसे विशाल ब्लैक होल सामान्यतया मंदाकिनियों (गैलेक्सी) के केंद्र में स्थित होते हैं।
स्पंदमान तारे (Pulsars) दूरस्थ न्यूट्रॉन तारे हैं जिनकी विशेषता उनकी उच्च घूर्णनी गति और विकिरण के छोटे विस्फोटों, जिन्हें धरती से प्रकाश की चमकदार चमक के रूप में मानव आंखों से देखा जा सकता है, को उत्सर्जित करने की क्षमता है। चूंकि ये विस्फोट अविश्वसनीय रूप से नियमित अंतराल पर होते हैं, इसलिए खगोलविदों द्वारा स्पंदमान तारों का उपयोग ‘ब्रह्मांडीय घड़ियों’ के रूप में किया जाता है।
खोज का महत्व
वैज्ञानिकों का दावा है कि गुरुत्वीय तरंगें तब उत्पन्न होती हैं जब मंदाकिनियों के केंद्र में मौजूद विशालकाय ब्लैक होल टकराते हैं और इनका एक-दूसरे में संविलयन हो जाता है। इस हालिया खोज ने वैज्ञानिकों को यह विश्वास करने पर बाध्य किया है कि हमारे ब्रह्मांड की पृष्ठभूमि में गुरुत्वीय तरंगें पारगम्य हो सकती हैं। इसके अलावा, अनगिनत विशालकाय ब्लैक होल हैं जो एक-दूसरे में संविलीन होते रहते हैं। इन ब्लैक होल के विलयन से बहुत पहले और संलयन की प्रक्रिया के दौरान भी गुरुत्वीय तरंगें लगातार उत्पन्न होती रहती हैं, जिन्हें पूरा होने में लाखों वर्ष लग सकते हैं।
ये निष्कर्ष न केवल ब्रह्मांड की प्रकृति और उत्पत्ति के बारे में, बल्कि मंदाकिनियों और ब्लैक होल के गठन और विकास के बारे में भी हमारी बढ़ती समझ में योगदान देंगे। कम आवृत्ति वाली गुरुत्वीय तरंगों की खोज एक दिन तिमिर पदार्थ (डार्क मैटर) के रहस्य पर भी प्रकाश डाल सकती है। यह अनुमान लगाया गया है कि ब्रह्मांड का लगभग 95 प्रतिशत हिस्सा तिमिर पदार्थ और तिमिर ऊर्जा (डार्क एनर्जी), जो कोई प्रकाश या विद्युत चुंबकीय तरंगें उत्पन्न नहीं करते हैं, से बना है।
संभवतः अभी तक, हमने दूरस्थ वस्तुओं के बारे में ऐसी वस्तुओं द्वारा उत्सर्जित या परावर्तित विद्युत चुंबकीय तरंगों का पता लगाकर सीखा है। ऐसा माना जाता है कि गुरुत्वीय तरंगें, विद्युत चुंबकीय तरंगों की तरह, उस घटना की सूचक होती हैं जिससे ये उत्पन्न होती हैं। 2015 में दो ब्लैक होल, जो संविलीन होकर एक बन गए थे, से उत्पन्न होने वाली गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने में सफल होने पर शोधकर्ता अपने सिद्धांत की पुष्टि करने में सक्षम हुए।
गुरुत्वीय तरंगों पर आगे की अंतर्दृष्टि (किसी पदार्थ के अभिप्राय, महत्व, या उसकी उपयोगिता का प्रत्यक्ष बोध), अध्ययन और शोध हमें समष्टि काल के बारे में कुछ सबसे मूल प्रश्नों का उत्तर देने में सहायक हो सकते हैं, जैसे कि समय के साथ मंदाकिनियां कब और किस प्रकार बनीं और बदलीं, तथा यहां तक कि जीवन की उत्पत्ति और विकास के रहस्यों पर भी प्रकाश डाल सकते हैं।
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