विज्ञान की दुनिया में भारत ने 9 जून, 2018 को एक और इतिहास रच दिया है। फिजिकल रिसर्च लेबोरेट्री (पीआरएल), अहमदाबाद के वैज्ञानिकों ने एक नए ग्रह की खोज की है। यह खोज स्वदेशी तकनीक से बने ‘पीआरएल एडवांस्ड रेडियल वेलोसिटी अबू-स्काई सर्च’ (पारस) की मदद से की गई है। इससे पूर्व नासा के अंतरिक्ष यान केपलर-2 ने इस ग्रह से जुड़ी कुछ जानकारियां भेजी थीं लेकिन, उनसे इस नए ग्रह की पुष्टि नहीं हो पाई थी। इसके बाद पारस स्पेक्ट्रोग्राफ के माध्यम से भारतीय वैज्ञानिकों ने ग्रह के आकार का आकलन किया था। इस दौरान उन्हें ग्रह के 60-70 प्रतिशत हिस्से पर बर्फ, सिलिकेट और लोहे जैसे तत्वों का पता चला। इस खोज के बाद भारत सितारों के आस-पास के ग्रह खोजने वाले देशों की सूची में शामिल हो गया है।
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए ग्रह को ‘एपिक 211945201 बी’ या ‘के2-236 बी’ नाम दिया गया है, जो पृथ्वी से 27 गुना बड़ा और 600 प्रकाश वर्ष दूर है तथा इसका अर्धव्यास (त्रिज्या) पृथ्वी के अर्धव्यास से छह गुना बड़ा है। इसके तारे का नाम, जिसके चारों ओर यह चक्कर लगाता है, ‘एपिक 211945201’ या ‘के2-236’ है। उल्लेखनीय है कि इस खोज के साथ भारत उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया है जिन्होंने किसी ग्रह की खोज की है।
यह ग्रह अपने तारे से बेहद नजदीक है जिस कारण इसकी सतह का तापमान 600 डिग्री सेल्सियस है और इस पर जीवन की संभावना मुश्किल है। यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से तारे के करीब रहने वाले ग्रहों के बनने की प्रक्रिया का पता चलता है। इस ग्रह को उन ग्रहों की सूची में रखा गया है जिनका मास पृथ्वी के मास का 10 से 70 गुना अधिक है और रेडियस पृथ्वी के रेडियस से 4 से 8 गुना अधिक है। अभी तक ऐसे 23 सिस्टम खोजे जा चुके हैं।
खोजा गया ग्रह 19.5 दिनों में अपने तारे के चारों ओर चक्कर लगाता है। जब यह देखा गया कि सितारे और पृथ्वी के बीच यह आता है तब इसके ग्रह होने की संभावना का पता चला। तारे और पृथ्वी के बीच में आने पर जितनी रोशनी यह रोक सकता था, उस आधार पर इसके आकार के बारे में पता किया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार, सुपर-नेप्च्यून या उप-शनि प्रकार के ग्रहों के निर्माण तंत्रा को समझने के लिए यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है।