‘मलाणा क्रीम’ एक प्रकार की चरस है जो हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित मलाणा घाटी में पाई जाती है। चरस, जिसे हैश या हशीश भी कहते हैं, भांग के पौधे (कैनाबिस) की प्रजातियों के राल (रासयनिक पदार्थ विशेष, जो चीड़ आदि कुछ वृक्षों से निकलता है।) से प्राप्त होता है। मलाणा घाटी में भांग के ये पौधे प्राकृतिक रूप से उगते हैं और अवैध रूप से इनकी खेती भी की जाती है। इस घाटी में एक ही गांव है—मलाणा गांव—और यहां की हैश सामान्यतया राज्य के अन्य भागों से प्राप्त होने वाली चरस की तुलना में अधिक ‘क्रीमी’, या चिकनी मिट्टी की तरह होती है।
मलाणा क्रीम की विशेषताः
भांग के पौधों में कैनाबिनॉइड नामक कई रासायनिक यौगिक पाए जाते हैं, जिनमें से टेट्राहाइड्रोकैनाबिनॉल (टीएचसी) प्राथमिक साइकोएक्टिव घटक है, जो मस्तिष्क में उच्च उत्तेजना या सनसनी पैदा करता है। माना जाता है कि भांग के अन्य पौधों से प्राप्त चरस की तुलना में मलाणा क्रीम में टीएचसी की मात्रा अधिक होती है। मलाणा क्रीम के निम्न टीएचसी स्तर वाले पौधे का उपयोग औद्योगिक एवं गैर-औषधीय वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है। सीबीडी (कैनाबिडियॉल) नामक एक दूसरे उच्च स्तर वाले कैनबिनॉइड पौधों का प्रयोग औषधि निर्माण में किया जाता है। तेज सुगंध तथा बढ़े हुए टीएचसी स्तर के कारण यह लोकप्रिय चरस है। मनोरंजन के लिए उच्च टीएचसी अनुपात वाले भांग के पौधों का उपयोग किया जाता है और ‘मलाणा क्रीम’ अपने उच्च टीएचसी स्तर के कारण अधिक तेज होता है। इसके अलावा, मलाणा क्रीम में मलाणा घाटी की विशिष्ट जलवायु के कारण पादप-तेल (Terpene) स्वाद और अन्य विशेषताओं से संबद्ध सुगंधित घटक पाए जाते हैं।
भारत में शुद्धता एवं स्थान विशेष के आधार पर, एक तोला (10 ग्राम) मलाणा क्रीम की अलग-अलग किस्मों का मूल्य आमतौर पर 1,500 से 8,000 रुपये के बीच हो सकता है। विश्व में इसकी लोकप्रियता को इससे समझा जा सकता है, कि यह एम्सटर्डम के कैफे में बेचे जाने वाले सबसे महंगे हैश में से एक है।
स्वापक औषधि और मन-प्रभावी पदार्थ अधिनियम (एनडीपीएस एक्ट), 1985 के तहत भारत में चरस को प्रतिबंधित कर दिया गया था; लेकिन भांग के पौधे को कुल्लू में महत्वपूर्ण फसल माना जाता है, जिसका उपयोग जूते बनाने जैसे कई अन्य कार्यों में किया जाता है।
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